RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
अगले दिन कोई साढ़े ग्यारह बजे श्रीमती जी ने मुझे फिर याद दिलाया कि अदिति से बात करनी है.“ठीक है तू अपने फोन से बात करा दे मेरी!” मैंने कहा.
रानी ने नंबर डायल करके फोन मुझे दिया और खुद किचन में चली गयी लंच की तैयारी के लिए. मैं फोन कान से लगाये चेयर पर बैठा था, घंटी जा रही थी. कोई आधे मिनट बाद अदिति ने फोन लिया.“हेलो मम्मी जी, नमस्ते!” अदिति की सुरीली आवाज मेरे कानों में गूंजी.मैं डेढ़ साल बाद इस आवाज को सुन रहा था.
“हेल्लो मम्मी जी??” उधर से फिर वो बोली.“हां, अदिति बेटा, मैं हूं. रानी तो किचन में है खाना बना रही है.” मैं बोला.“पापाजी नमस्ते, कैसे हैं आप?”“आशीर्वाद, मैं बिल्कुल ठीक हूं अदिति बेटा, तू कैसी है?”“मैं भी ठीक से हूं पापा जी!”
“बेटा, रानी कह रही थी कि तुझे मुझसे कोई बात करनी है?” मैंने कहा.“हां, पापाजी, वो मेरे भाई की शादी है न दिल्ली में. उसी के बारे में बात करनी थी.”“बोलो बेटा क्या बात है?”“पापाजी मैं भी चलूंगी शादी में… एक ही तो भाई है मेरा!”“ठीक है बेटा, तू फ्लाइट से दिल्ली आ जाना, मैं यहाँ से ट्रेन से पहुंच जाऊँगा.” मैंने कहा.
“नहीं पापा जी, आप पहले बंगलौर आओ. फिर हम दोनों साथ ट्रेन से ही दिल्ली चलेंगे.”“यह क्या कह रही है तू बहू? मुझे ट्रेन से बंगलौर आने में पच्चीस छब्बीस घंटे लगेंगे और फिर हम दोनों बंगलौर से दिल्ली जायेंगे ट्रेन से. तुझे पता है बंगलौर से दिल्ली जाने में कम से कम पैंतीस छत्तीस घंटे लगते हैं सुपरफास्ट ट्रेन से? बेटा तू तो वैसे ही फूल सी नाजुक है ट्रेन के सफ़र में तेरी हालत खराब हो जायेगी और मैं भी थक जाऊंगा” मैंने बहू को समझाया.
“पापाजी, मैंने ये सब पहले ही सोच रखा है. पहले आप यहां आओ तो सही फिर साथ चलेंगे.” बहूरानी ने जैसे जिद की.“ये क्या जिद है बेटा, तू फ्लाइट से आजा मैं यहां से ट्रेन से आ जाता हूं; इसमें क्या प्रॉब्लम है?”“पापा जी, हम दोनों साथ में और छत्तीस घंटे का सफ़र… जरा फिर से सोचो तो सही आप?”“हां हां, पता है छत्तीस घंटे लगते हैं ट्रेन में इसमें सोचना क्या. ट्रेन की खटर पटर में पूरी दो रातें और एक पूरा दिन निकालना किसी सजा से कम नहीं होगा. अदिति बेटा तेरे बदन की पोर पोर दुखने लगेगी और बुरी तरह थक जायेगी तू और मेरी तो कमर ही अकड़ जायेगी उठते बैठते. इसलिए बेकार की जिद मत कर और तू प्लेन से ही चली जा दिल्ली; मैं यहां से ट्रेन से आ ही जाऊंगा.”
“पापाजी, वही तो मैं चाहती हूं कि मैं थक जाऊं आपके साथ इन छत्तीस घंटों में और आप अच्छे से थका देना मुझे जिससे मेरे बदन की पोर पोर दुखने लगे, मेरे अंग अंग में मीठा मीठा दर्द होने लगे!” बहूरानी जी बेहद मीठी आवाज में बोली.“क्या क्या क्या… मैं समझा नहीं बेटा?” मैंने कहा.
लेकिन बहूरानी की बातों का अर्थ समझ कर मेरे दिमाग की बत्ती झक्क से जल उठी.
“पापा जी, आप भी ना कितने भोले हो… आप जरा गहराई से सोचो तो सही. मेरा मतलब है हम दोनों राजधानी एक्सप्रेस के ऐ सी फर्स्ट क्लास के प्राइवेट कूपे में जिसमें सिर्फ दो ही बर्थ होती हैं और जिसे हम भीतर से लॉक कर सकते हैं… फिर हम चाहे जो भी करें… कोई हमें डिस्टर्ब करने वाला नहीं; वो भी पूरी दो रातें और एक पूरा दिन तक लगातार. फुल स्पीड से दौड़ती राजधानीएक्सप्रेस में वो सब बेफिक्र हो कर करना कितना मजेदार और नया अनुभव होगा न और आपकी कमर जब ऊपर नीचे होती रहेगी तो अकड़ेगी कैसे पापा? ऐसे सोचो न पापा जी. वैसे भी हमें मिले हुए डेढ़ साल से ऊपर ही हो गया. मेरा तो बहुत मन कर रहा है आपसे मिलने को!”
“अच्छा अच्छा… अब समझा. तू जीनियस है अदिति बेटा और मैं कितना बुद्धू हूं.” मैंने कहा और खुद को जोर से चिकोटी काट के सजा दी कि यह बात मुझे पहले क्यों नहीं सूझी कि बहूरानी मुझे ट्रेन से ही चलने के लिए क्यों जोर दे रही है.
“तो ठीक है पापा जी, मैं बंगलौर-निजामुद्दीन राजधानी में ऐ सी फर्स्ट क्लास का दो बर्थ वाला कूपा रिज़र्व करवा लेती हूं आप छह तारीख को यहाँ आ जाना. हम लोग अगले दिन सात तारीख को दिल्ली चलेंगे. शादी तो दस दिसम्बर की है न!”“अदिति बेटा, कोई ऐसी ट्रेन देख न जिसमें छप्पन घंटे लगते हों दिल्ली पहुँचने में!” मैंने कहा.
“अब रहने दो पापाजी, अभी तो आप बात समझ ही नहीं रहे थे; अब मन में लड्डू फूट रहे हैं आपके. अब तो मैं फ्लाइट से ही जाऊँगी दिल्ली और आप आते रहना पैसेंजर ट्रेन से!” बहूरानी खनकती हंसी हंसते हुए बोली.“अरे रे रे… अदिति बेटा, ऐसा जुल्म मत करना अपने पापा पे… तू तो मेरी एकलौती प्यारी प्यारी बहूरानी है न!”“हम्म!” उधर से बहूरानी की आवाज आई.
“ठीक है बहूरानी. ट्रेन में तो मैंने भी कभी चुदाई नहीं की पहले. अब तेरी खैर नहीं. राजधानी से भी तेज स्पीड से चोदूँगा तुझे पूरी दो रातों तक; तेरी तंग चूत का भोसड़ा न बन जाए तो कहना!” मैंने कहा.उधर से बहूरानी की खनकती हंसी सुनाई दी और उसने फोन काट दिया.
मैंने फोन को चूमा और किचिन में जा के रानी को दे दिया और उसे अपना बंगलौर और दिल्ली जाने का प्रोग्राम बता दिया.
तो मित्रो, जिस दिन बहूरानी से ये सब बातें हुयीं, उस दिन पिछले साल नवम्बर की 20 तारीख थी और अगले महीने दिसम्बर की तीन तारीख को मुझे बंगलौर रवाना होना था ताकि मैं छह की सुबह बैंगलोर पहुंच सकूं; फिर अगले दिन सात को दिल्ली के लिए निकलना था वहां से. मतलब मेरे पास बारह तेरह दिन ही शेष थे. यह मेरा फर्स्ट चांस था कि मुझे किसी राजधानी एक्सप्रेस के ऐ सी फर्स्ट क्लास में, वो भी दो बर्थ वाले कूपे में ट्रेवल करने का अवसर मिल रहा था. सुन रखा था कि ऐ सी फर्स्ट क्लास का किराया हवाई जहाज जितना ही होता है..
खैर जो भी हो, मुझे कोई ख़ास तैयारी तो करनी थी नहीं, बस यह पता था कि दिसम्बर में दिल्ली में भयंकर सर्दी होती है तो उसी के हिसाब से मैंने अपने सूट टाई वगैरह सब ड्राई क्लीन करवा के रख लिए.हां, मेरी बहूरानी को बिना झांटों वाला चिकना लंड पसन्द है ताकि वो उसे आराम से चूस चाट सके; अब ये काम तो मैं जाने के दिन ही करने वाला था.
मेरी बीवी रानी को झांटों वाला लंड ज्यादा पसन्द है क्योंकि वो कभी इसे मुंह में नहीं लेती बस चुदवाते टाइम उसे अपनी कमर उठा उठा के अपनी चूत का दाना मेरी झांटों से रगड़ने में बहुत मज़ा आता है और वो ऐसे करते हुए अच्छे से झड़ जाती है.सास बहू की पसन्द हमेशा अलग अलग ही होती है न; इन चूत वालियों की माया ही निराली है; किसी को कुछ तो किसी को कुछ और ही पसन्द आता है.
इस तरह हमारा प्रोग्राम सेट हो गया और मैं छह दिसम्बर की सुबह बैंगलोर जा पहुंचा. स्टेशन पर मेरा बेटा अपनी गाड़ी से मुझे रिसीव करने आया हुआ था; स्टेशन से घर पहुँचने में कोई पैंतीस चालीस मिनट लगे. मैं गाड़ी से उतर गया और बेटा गाड़ी को पार्क करने लगा.
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