Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 10:01 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
रूबी सुनील के कदमों में झुक गयी.

'अरे अरे पगली ये क्या कर रही है, तेरी जगह कदमों में नही दिल में है' सुनील ने उसे उठा गले से लगा लिया.'

रूबी ने सुनील के माथे का चुंबन लिया और फट से कमरे से बाहर निकली और दरवाजा बंद कर दिया और दरवाजे से सट के अपनी साँसे संभालने लगी, दूर सामने गगन पे चाँद उसे चिड़ा रहा था, पगली दुनिया की सबसे बड़ी पेम लीला का भागीदार बनने की जगह बाहर निकल आई, मैं तो मज़े ले ले के देखूँगा.

'जा जा जो तू देखेगा वो मुझे तेरे अक्स में झलकता हुआ दिखेगा, फिर पूछूंगी, तेरा ध्यान अपनी चाँदनी के साथ रहता है या प्रेम लीलाओ की तरफ'

'अरे तुम क्या जानो, मैं तो स्तंभ हूँ यादगार का, जब भी दोनो आज के बाद मुझे देखेंगे, उन्हें आज की रात याद आएगी, कल तुम्हारी बारी है ना, कल बात करेंगे, अब ज़रा मुझे अपनी किरणों में प्रेम रस को समेटने दो' चाँद रूबी को ये अहसास दिलाता हुआ धीरे धीरे उस और सरकने लगा की सवी और सुनील के कमरे की खिड़की के एक दम सामने आ जाए.

रूबी का चेहरा शर्म से लाल पड़ गया और दूसरे कमरे में भाग बिस्तर पे गिर लंबी लंबी साँसे लेने लगी.

रूबी के जाते ही , सुनील वहीं बिस्तर के पास पड़े सोफे पे बैठ गया.

सामने टेबल पे शॅंपेन की बॉटल बर्फ में लगी पड़ी थी, सुनील के दिमाग़ में सूमी और सोनल का अक्स उभरने लगा, उसने सर झटका और दिमाग़ एक दम खाली कर सवी से बोला ' तो साली जी आख़िर जीत ही गयी, सीधा बीवी बन गयी क्यूँ'

'साली तो उसी दिन हार गयी थी, जब तुमने ठुकरा दिया था, ये तो मेरी किस्मत अच्छी थी जो बीवी बनने का सोभाग्य मिल गया, बस अब जिंदगी से कुछ और नही चाहिए, सब कुछ मिल गया तुम को पा कर'

'अच्छा जी'

चाँद सरकता हुआ इनकी खिड़की के सामने आ चुका था, शॅंपेन की बॉटल देख तो उसका मन भी ललचा गया, सोम रस और प्रेम रस का कॉकटेल, तोबा तोबा ये रात तो गदर मचा देगी तभी बादलों ने चाँद को घेर लिया और चाँद ऐसे खुंदक में आया के पूछो मत.

भूंभुनाते हुए चाँद ने बादलों के बीच का कमजोर हिस्सा ढूँढ लिया और अपने किरणें कुछ इस तरहा बादलों के बीच से समुद्र पे फेंकी कि पलट कर वो सुनील और सवी पे मंडराती हुई वापस उसी रास्ते से चाँद तक पहुँचने लगी.

'हूँ आए बड़े मुझे ढकने वाले - ये सुनील है इसकी रास लीला मैं कैसे छोड़ूं ....उम उम उम है अब शॅंपेन की बॉटल खुलेगी

सुनील तक जैसे चाँद की ख्वाइश पहुँच गयी थी उसने वाकई में शॅंपेन की बॉटल उठा ली.

'बेगम साहिबा ज़रा इधर तो आइए - अभी तो रात को जवान होने में बहुत वक़्त है कुछ ज़रा प्रकृति की नज़ाकत का भी मज़ा ले लिया जाए और ये सोम रस आपके हाथों की छुअन के लिए बेताब हो रहा है'

सवी ने सुनील को ऐसे घूरा जैसे कोई अजूबा देख लिया हो, उई माँ ये सुनील वही है क्या जो मर्यादा की लंबी छोड़ी दीवारों के पीछे छुपा रहता था.

'जानेमन ऐसे क्या देख रही हो मुझे नही वो देखो बादलों के साथ लूका छुपी करता हुआ चाँद कैसे तुम्हारे हुश्न के दीदार के लिए तड़प रहा है'

बिस्तर से उतर सवी पायल छनकाती हुई सुनील के सामने जा बैठी.

पलकें झुकी हुई थी, पर दिमाग़ एक तुलना करने लग गया, वो सुहागरात जो बरसों पहले समर के साथ बिताई थी और इस सुहागरात के आगाज़ का ही सोच सवी उन पलों को कोसने लगी जो उसने सुनील से दूर रह कर बिताए थे. ना चाहते हुए भी इंसान खांस कर औरत तुलना करने से बाज नही आती और सवी भी इसका शिकार हो गयी थी.

सुनील उठ के खड़ा हो गया और सवी के पास जा कर बैठ गया ' हज़ूर चेंज कर लो, ये भारी लहनगा कहीं कमर में लचक ना डाल दे'

सवी ने शायद सोचा था कि सुनील शायद सीधा हमला करेगा और उसके कपड़े कमरे में उतार के इधर उधर बिखरते जाएँगे, पर सुनील एक दम शांत था और कुछ मसखरी के मूड में था, वो माहॉल को हल्का बनाना चाहता था ताकि सवी के मन में जो भी सवाल उठ रहे हों वो शांत हो जाए.

हर गुज़रते पल के साथ सवी सुनील की कायल होती जा रही थी.

सवी ने धीरे धीरे सभी गहने उतारे जिनके बोझ तले जिस्म दुखने लगा था और उठ के वॉर्डरोब से एक नयी लाइनाये ले बाथरूम में घुस गयी,

इस बीच सुनील भी अपना नाइट सूट पहन चुका था. उसने जब सवी को देखा तो उसके मुँह से सीटी निकल गयी सोफे से उठा और धम्म से फिर गिर पड़ा जैसे वाकई में बेहोश हो गया. सवी घबरा गयी और भाग के सुनील के पास पहुँची.....सुनील ...सुनील वो बौखला के सुनील को हिलाने लगी और उसका नाम पुकारने लगी,

'कुछ पल आराम देने दो इन नज़रों को, तेरे हुस्न की लो में कहीं जल जाए' आँखें बंद किए ही सुनील बोला और सवी को यूँ लगा जैसे किसी ने उसे 360 डिग्री पूरा घुमा डाला हो.

'मेरी जान निकाल दी, ऐसे भी कोई करता है'

'यार मैं तो खुद को कोस रहा हूँ, इतना समय तुम से दूर क्यूँ रहा'

'और अब तंग कर रहे हो'

सुनील ने फट से आँखें खोली ' तोबा तोबा मेरी ये मज़ाल'

'जाओ नही बोलती आज भी रुला ही डाला' सवी उठ के उस दरवाजे पे खड़ी हो गयी जो बाहर बाल्कनी टाइप जगह पे खुलता था. उसकी आँखें नम पड़ चुकी थी. सुनील का यूँ इस तरहा बेहोशी का नाटक करना उससे बर्दाश्त ना हुआ.


सुनील उठ के उसके पास गया और पीछे से से उसके साथ सट गया.

'सॉरी जान, मैं तो मज़ाक कर रहा था.'

'तुम्हारा मज़ाक और यहाँ जान निकल गयी'

'ये जान तो अब मेरी है ऐसे कैसे निकल जाएगी' सुनील ने अपने होंठ सवी की गर्दन पे टिका दिए.

अहह सिसक पड़ी सवी, जैसे होंठ नही दो जलते हुए अंगारों ने उसे छू लिया हो.

'वो देखो चाँद भी कितना बेताब है तुम्हें देखने के लिए कैसे बादलो की ओट से निकल इधर झाँक रहा है'

सवी के गाल टमाटर की तरहा लाल सुर्ख हो गये, हुस्न अपनी तारीफ पे लजाए ना ये तो उसकी तासीर नही, फिर सवी कैसे छूटी रहती, कभी पलकें झुकती कभी थोड़ी उठा चाँद को देखती सवी को चाँद में जैसे सुनील का अक्स नज़र आ रहा था, ये वो अहसास था जिसे बोलों में बयान करना नामुमकिन होता है इसे सिर्फ़ औरत एक औरत ही महसूस कर सकती है और हर औरत इस अहसास को अपने ही अलग रंग में महसूस करती है, जाने कितने रंग है इस अहसास के, ये खुद रंग बनाने वाला भी आज तक नही जान पाया होगा.

'इन लहरों को देखो कैसे उछल रही हैं जैसे अभी चाँद को छू कर उसे अपने अंदर समेट लेंगी'

'डॉक्टर साहिब, आप तो शायर भी हो !' सवी के मुँह से निकला.

'शायर होता हज़ूरे-आला तो जाने कितने कसीदो का उंवां कर डाल ता तुम्हारे बेमिसाल हुस्न की तबीर में, इस वक़्त तो बस एक पतंगा जलने को मचल रहा है और इस कायानात को बटोर गवाह रखना चाहता है' सुनील ने सवी के बालों को उसकी गर्दन से हटा अपने तपते हुए होंठ उसके लरजते हुए जिस्म से चिपका दिए.

राहत-ए-सकुन के तहत सवी की आँखें खुद ब खुद बंद हो गयी.

दूसरे कमरे में रूबी की आँखों से नीद गायब हो चुकी थी, बिस्तर पे करवटें बदल वो बार बार ये सोच रही थी, क्या कर रहे होंगे दोनो और उधर सोनल को बिस्तर पे लेटे यूँ महसूस हो रहा था जैसे अभी सुनील ने अपने होंठ से उसे चूम लिया हो, उसके अधरों पे मुस्कान आ गयी.
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