Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 10:00 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनील : रुबययी ये तूमम्म्ममम ( सुनील ने रूबी को हटाना चाहा)

रूबी : श्ह्ह्ह्ह्ह ( सुनील के मुँह पे उंगली रख दी और उसे चुप करा दिया) मैने सोनल से वादा किया है तुम्हें कभी दुख के सागर में नही डूबने दूँगी. और हमारी मँगनी भी हो चुकी है. अब कुछ मत बोलना ( और रूबी ने अपने होंठ सुनील के होंठों से चिपका दिए.)

रूबी के होंठ तो जैसे जल रहे थे ना जाने कब से उनमें प्यास भरी पड़ी हो जो सुनील के होंठों के रस से ही भुज सकती थी.

सुनील ने रूबी को अलग करने की कोशिश करी तो रूबी भड़क गयी. 'क्यूँ मैं अच्छी नही लगती क्या. हम कोई पाप तो नही कर रहे, कल शादी होगी हमारी, क्या मैं तुम्हें दो पल का सुख भी नही दे सकती.'

सुनील : उफ़फ्फ़ तुम तो, शादी से पहले ही.....

रूबी : सच कसम से तुम्हारी इन ही अदाओं ने तो सबको तुम्हारा दीवाना बना रखा है. यार कॉन सी सुहागरात मनाने जा रहें है बस कुछ पल मस्ती ताकि तुम्हें चैन की नींद आ जाए.

सुनील : ये तुम को आज हो क्या गया है.

रूबी : अपने प्यार को खुश देखना चाहती हूँ बस, तुम्हें जिंदगी के हर दर्द से दूर रखना चाहती हूँ. यही सोच रहे होगे ना कि रूबी कितनी बेशर्म बन गयी है, तुम्हारे लिए तो कुछ भी करूँगी, चाहे रंडी का रूप धारण कर तुम्हें खुश क्यूँ ना करना पड़े. सूमी दीदी होती तो चिंता नही थी, तुम्हें उनकी बाँहों में ज़्यादा सकुन मिलता. पर मेरा प्यार भी बुरा नही एक बार महसूस तो करो.

सुनील रूबी की तड़प के आगे पिघल गया, उसे रूबी में एक पल को सूमी दिखी और अगले ही पल सोनल. सुनील ने रूबी के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और और अपने होंठ उसके होंठों से सटा दिए.

अफ, रूबी की आत्मा तो ऐसे नाची जैसे बारिश में मोर. उसे उसका प्यार पूरे रूप में मिल गया था, बस जिस्मों का मिलन बाकी था, रूह ने रूह को कबुल कर लिया था.

उधर सुनील के बिना सोनल को नींद आ रही थी ना ही सूमी को. दोनो बिस्तर पे लेटी एक दूसरे को ही देख रही थी, यहाँ जैसे ही सुनील ने रूबी के होंठों को चूसना शुरू किया सोनल की आँखें बंद होती चली गयी और सूमी के अंदर एक कशिश जाग उठी सोनल के लबों को चूमने की और सूमी खुद को ना रोक पाई और दोनो के होंठ आपस में मिल गये- दो जिस्म यहाँ और दो जिस्म वहाँ तीन आत्माएँ एक दूसरे में में विलीन और चोथी आत्मा बाकी दो से मिलने को आतुर, पर ये संगम सुनील और रूबी के जिस्मों के संगम के बाद ही मुमकिन था.

सोनल और सूमी धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गयी और यहाँ सुनील ने रूबी के होंठ चूस चूस कर उसके जिस्म में कामग्नी की ज्वाला भड़का दी थी जिसपर रूबी ने बड़ी मुस्किल से काबू रखा हुआ था.

जिस्म में बढ़ती हुई अग्नि रूबी से बर्दाश्त ना हुई और और सुनील से लिपट के रोने लगी. सुनील घबरा गया कि इसे हुआ क्या. इस पहले सुनील खुद कुछ बोलता रूबी बोल पड़ी - अब ये दूरी बर्दाश्त नही होती, मैं मर जाउन्गि - बरसा दो अपने प्यार की फ़ुआर, भुजा दो मेरे जिस्म की अग्नि.

शादी से पहले सुनील आगे नही बढ़ना चाहता था, पर उसे कुछ तो करना ही था जिससे रूबी की छुधा शांत हो जाए. उसके हाथ रूबी के कपड़ों में उलझ गये और रूबी के जिस्म से एक एक कपड़ा साथ छोड़ने लगा और उसका मदमाता हुस्न सुनील की आँखों को जलाने लगा.,

जैसे जैसे रूबी के जिस्म से कपड़े उतर रहे थे वैसे वैसे उसकी साँसे अटकती जा रही थी. ये ये क्या हो गया सुनील को क्या आज ही सब कुछ, नही मेरा सुनील ऐसा नही है, तो फिर वो सारे कपड़े क्यूँ उतार रहे हैं.

रूबी के मन में एक भाव आता एक भाव जाता, दिल, दिमाग़ और रूह तीनो ही अलग दिशा में जा रहे थे और रूबी इन तीन के बीच पिस्ति अपनी सही भावना को नही पहचान पा रही थी.

जिस्म अपना ही राग अलापने लग गया था जो सुनील की हर छुअन के साथ सिहर रहा था और उसके जिस्म के और करीब होने को आतुर होता जा रहा था. रूबी भूल चुकी थी वो कहाँ है, घर में कुछ देर पहले क्या हुआ, किस हालत में सवी को ले जाया गया. याद रहा तो बस इतना ही के उसका जिस्म सुनील की बाँहों में पिघल रहा था.

रूबी के जिस्म से वस्त्र अलग हो चुके थे और सुनील की नज़र जब उसके उरोजो पे पड़ी तो कुछ पल को उसे यूँ लगा जैसे सोनल उसके सामने हो. जहाँ सोनल सागर और सुमन के संगम का परिणाम थी वहीं रूबी सागर और सवी के संगम का और रूबी के जिस्म में सुनील को सागर की वही छाप दिख रही थी जो उसने सोनल में देखी थी.

दो जिस्मो में शायद एक ही रूह के अंश विद्यमान थे - जिस्म ने दिमाग़ को और तर्क वितर्क नही करने दिया और सुनील के होंठ रूबी के निपल को अपने क़ब्ज़े में ले बैठे.

अहह ऊऊओह म्म्म्मा आआआअ सिसक पड़ी रूबी ...

सुनील भूल गया था कि कुछ देर पहले वो क्यूँ परेशान था इस वक़्त उसके अंदर बस रूबी की छवि ही दिखाई दे रही थी जो आँखों के ज़रिए दिल की गहराइयों में उतर चुकी थी.

सुनील ने तेज़ी से रूबी के निपल को चूसना शुरू कर दिया और दूसरे को अपनी उंगलियों में मसल्ने लगा.

आह आह धीरे धीरे उफफफ्फ़ उम्म्म्म रूबी के मुँह से लगातार सिसकियाँ फूटने लगी.

ना चाहते हुए भी रूबी सुनील और रमेश की तुलना करने लगी और जिस तरहा सुनील उसे प्यार कर रहा था जैसे कोई धीरे धीरे फूल की कोंप्ले सूंघ रहा हो - सुनील ने रूबी के अंदर बसी बची कूची कड़वी यादें रमेश की छिन्न भिन्न कर डाली और रूबी भूल गयी के रमेश का कोई अस्तित्व भी था उसकी जिंदगी में अब बस एक ही नाम था जो दिल, दिमाग़ और होंठों पे छप गया था - सुनील.

दो जिस्मों के टकराव में जब रूह तक सम्मलित हो जाए तो उस समय जिस्म में जो प्रगाढ़ प्रेम की तरंगें उठती हैं उनका कोई मुकाबला नही - यही रूबी के साथ हो रहा था....उसके जिस्म का पोर पोर संगीत की लय में बजने लगा था- जो अहसास वो इस समय महसूस कर रही थी वो अनोखा था, एक दम निराला और इस अहसास की ताब वो ज़्यादा देर ना झेल सकी और भरभरा के जल बिन मछली की तरहा थिरकते हुए झड़ने लगी. साँसों की गति यकायक एक दम तीव्र हो गयी जैसे कई मीलों का सफ़र दौड़ के किया हो.

धीरे धीरे जिस्म शीतल पड़ने लगा और सुनील की बाहों में झूल गया. सुनील ने रूबी को आराम से बिस्तर पे लिटाया और चद्दर से ढँक वो धीरे से कमरे से बाहर निकल गया.

सुनेल तेज़ी से कार चलता हुआ मुंबई की तरफ बढ़ रहा था. रास्ते में एक बार सवी के जिस्म में कुछ हलचल हुई तो प्रोफ़ेसर. ने नींद का इंजेक्षन दे डाला.

इसके बाद कभी मिनी कार चला ती और कभी प्रोफ़ेसर. बार बारी वो ड्राइव करते हुए तेज़ी से मंज़िल की तरफ बढ़ रहे थे.

करीब 2 किमी का फासला रह गया था उस जगह से जो प्रोफ़ेसर ने सुनेल को बताई थी मुंबई से कोई 15 किमी बाहर जहाँ कभी किसी बिल्डर ने एक कॉलोनी बनाने की सोची थी लेकिन अब सिर्फ़ वहाँ खंडहर ही रह गये थे ...उँची खाली इमारतें जो जगह जगह से टूट रही थी.

अचानक सवी के जिस्म में तेज़ी से हल चल हुई और वो कार का पिछला सीसा तोड़ती हुई पीछे जा गारी और उसी वक़्त खड़ी भी हो गयी. उसके हाथ पाँव खुल चुके थे और उसने अपने दोनो हाथ फैला कर कार को जैसे जाकड़ लिया और हाथों को यूँ हिलाया कि कार उड़ती हुई 4 किमी पीछे जा कर गिरी. इसके बाद सवी लहराती हुई गिर पड़ी और उसके जिस्म से एक धुआँ निकलता हुआ वीलिन हो गया.

जिस तेज़ी से कार की गति रुकी और वो पीछे को उछली मिनी एक ज़ोर दार चीख मार बेहोश हो गयी. प्रोफ और सुनेल ने किसी तरहा गिरने पे चोट कम लगे उसके बारे में सोचा पर इतना समय ही कहाँ था. जिस तरह कार गिरी प्रोफ़ेसर सीट और स्टीरिंग के बीच फस गया. उसकी पसलियां टूट के दिल में जा घुसी और मुँह से खून निकलने लगा.

शायद कुछ पल ही बचे थे प्रोफ़ेसर के पास. सुनेल मिनी के नीचे दब गया था और एक बॅग जो खुल गया था उसके अंदर से निकले कपड़े कूश्षन का काम कर गये जिससे सुनेल और मिनी बच तो गये पर सुनेल के बाएँ हाथ की हड्डिती टूट गयी, मिनी को भी काफ़ी चोटें आई. सुनेल को जब कुछ होश आया वो प्रोफ़ेसर की तरफ लपका रेंगता हुआ. प्रोफ़ेसर शायद इसी पल तक के लिए साँसे बचा के बैठा था उसके मुँह से बस इतना निकला - मेरी डाइयरी - और उसकी जीवन लीला वहीं समाप्त हो गयी.
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