Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 10:00 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सोनल से मिलने की ललक सुनेल को फट पड़ने से रोक लेती है. और वो सुनील के साथ कमरे में चला जाता है.

सोनल के सामने जब दोनो आते हैं तो वो तो पलकें झपकना भूल जाती है और फटी आँखों से दोनो को देखने लगती है.

अगर सुनेल की फ़्रेच कट हटा दो तो दोनो में कॉन सुनील और कॉन सुनेल कोई नही पहचान पाएगा.

सूमी : देख सोनल तेरा बिछड़ा भाई आ गया. किस्मत ने खून से खून को मिला ही दिया.

तभी नर्स अंदर आती है. सोनल को लेने बच्चों को दूध पिलाने का वक़्त हो गया था. सूमी साथ जाती है.

और सुनेल दोनो को जाते देखता रहता है.

सुनेल से रहा नही जाता और पूछ ही लेता है ---- ये ये क्या....

सुनील : वक़्त की मार कह या हालत, कुछ भी कह सोनल मुझ से प्यार करने लगी थी. मैं दूर भागता था पर वो नही मानती थी....एक दिन सूमी के कहने पे मुझे सोनल से शादी करनी पड़ी. रिश्ते स्वाहा हो गये और नये रिश्ते जनम ले बैठे.

सुनेल : वाह क्या सीन है पहले माँ से शादी फिर बहन से शादी इतने पे भी बस नही किया और अब मासी से भी शादी. बड़े अच्छे गुल खिलाए तूने. लानत है तुझे तो इंसान बोलने में भी शरम आती है, पता नही किस मनहूस घड़ी में तू मेरा भाई बना.दिल तो करता है गाढ दूं तुझे ज़मीन में.

मिनी घबरा गयी उसका सपना उसकी आँखों के सामने आ गया.

मिनी : चुप करिए आप, जब कुछ पता ना हो तो मर्यादा के रक्षक मत बानिए. मैं जानती हूँ सुनील भाई कैसे हैं. जब मैं इन्हे आप समझती थी, इन्होने मेरा कोई फ़ायदा नही उठाया मुझ से दूर ही रहते थे.

सुनेल : गुस्से से मिनी को...यानी तुम सब जानती थी बहुत पहले से और मुझे भनक भी नही लगने दी.

मिनी : इसमें मेरा दोष नही आपने ही मना किया था आप कुछ नही जानना चाहते थे क्या हुआ मेरा साथ क्यूँ हुआ.ये सब भी तो उसका हिस्सा ही था क्यूंकी मेरा रिश्ता इनसे तब बना जब रमेश से मेरी शादी हुई थी.

मिनी भी कुछ ज़ोर से ही बोल बैठी.

सुनील : चुप करो दोनो यहाँ तमाशा करने की ज़रूरत नही घर चलके बात करेंगे.

सुनील गुस्से में पैर पटक कमरे से बाहर निकल गया.

सुनील के बाहर जाते ही

मिनी : देखो इतना भड़कने की ज़रूरत नही भाई ने कहा ना घर पे बात करेंगे, उनकी पूरी बात सुनना फिर किसी नतीजे पे पहुँचना. और आप तो उनकी जान बचाने आए थे ना. तो पहले वो काम करो जो सबसे ज़रूरी है.

मिनी की बात सुन सुनेल को अपना वो फ़ैसला याद आता है जिसके लिए वो यहाँ आया था, बात सिर्फ़ सुनील की होती तो शायद वो यहीं से वापस चला जाता पर माँ का मोह और सवी मासी जिसने उसके लिए बहुत कुछ किया था इन दो बातों ने उसे रोक दिया.

सुनेल : चलो घर चलें सवी मासी पता नही किस हालत में होगी.

दोनो किसी को बिना कुछ कहे घर की तरफ निकल पड़े. गलियारे में एक तरफ खड़े सुनील ने उन्हें जाते हुए देख लिया पर रोका नही. इस वक़्त वो भी गुस्से में था और यहाँ बात नही बढ़ाना चाहता था.

कुछ देर बाद सूमी और सोनल दोनो आ जाती हैं, सुनील पे नज़र पड़ते ही सूमी को समझते देर ना लगी कि दोनो भाइयों में कहा सुनी हो गयी है. सोनल भी उसके दिल का हाल समझ जाती है.

सोनल में अभी कमज़ोरी थी इसलिए उसे व्हील चेयर पे लाया ले जाया जा रहा था, उसे अभी भरपूर आराम और खुराक की ज़रूरत थी, सोनल ने सूमी की तरफ देखा और सूमी ने सुनील को आवाज़ लगा दी.

सूमी की आवाज़ सुन सुनील ख़यालों की दुनिया से वापस आया और चेहरे पे मुस्कान लाते हुए दोनो की तरफ बढ़ गया जो कमरे में चली गयी थी, सोनल को बिस्तर पे लिटा दिया गया था.

कमरे में घुसते ही सुनील ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और सोनल के पास जा के बैठ गया, उसके चेहरे को हाथों में ले उसके लबों पे चुंबन करते हुए बोला 'लव यू डार्लिंग तुमने मुझे जीवन की सबसे बड़ी खुशी दे दी.'

सूमी : और मुझे भी आज मेरी बेटी और बेटा फिर से मेरे पास आ गये, माँ बनने का ये सुख, अब तुम समझ गयी होगी.

सोनल : हाँ दीदी, आज पता चला, माँ क्या होती है, ओह आइ आम सो हॅपी.

तीनो एक दूसरे से लिपट गये जैसे कभी जुदा ना होंगे और तीनो के जिस्म एक दूसरे में घुल जाएँगे. पति और पत्नियों का ये मिलन भी अनोखा था क्यूंकी अब उनके बीच कभी ना टूटने वाला पुल बन गया था एक नया रिश्ता जनम ले चुका था, एक नया अहसास जनम ले चुका था मातृत्व और पितृित्व का. एक प्यार भरी ज़िम्मेदारी नये जीवन को राह दिखाने की.

कुछ देर बाद सुनील दोनो से अलग हुआ अब वो कुछ सीरीयस सा हो गया था.

सुनील : सोनल तुम्हारे लिए सुनेल भाई ही रहेगा, कभी उसे देवर मत बुलाना.

सोनल ने चोंक के उसकी तरफ देखा.

सुनील : और सूमी तुम्हारे लिए वो बेटा ही रहेगा और मेरे लिए भाई. हमारे बदले रिश्तों की परछाई भी उसपर नही पड़नी चाहिए, वरना वो बिखर जाएगा. मैं महसूस कर चुका हूँ उस दर्द को जिसे वो अब झेल रहा है, बिल्कुल वही जो कभी मैने झेला था. वो अपनी माँ, भाई और बहन के पास आया है, उसे वही अहसास दो, ये बदले रिश्तों का थप्पड़ उसके मुँह पे मत मारो.

सूमी : सुनील को देखती रही, गर्व हो गया उसे और भी सुनील पर, मन ही मन सागर को धन्यवाद देने लगी, जिसने उसके लिए एक नायाब हीरे को जीवन साथी के रूप में चुना था.

सोनल : ये क्या कह रहे हो आप, कैसे मुमकिन है ये, जो कड़वी सच्चाई है उसका असर तो रिश्तों पे पड़ेगा ही ......मान लिया मैं उसके लिए बहन और दीदी माँ का रूप रखें गे पर आप कैसे भाई रह पाओगे क्या वो कोई दूध पीता बच्चा है जो सच को सहन नही कर पाएगा.

सुनील : मेरा वजूद चाहे उसके लिए ख़तम हो जाए, पर मैं उससे उसकी माँ और बहन को नही छीनना चाहता.

सोनल : सब कितना कॉंप्लिकेटेड हो गया ना अचानक. कल तक सब सही चल रहा था, आज एक नया रिश्ता उभर आया और एक सैलाब साथ ले आया.

सुनील : शायद यही जिंदगी का असली रूप है, खैर तुम आराम करो सूमी तुम्हारे पास रहेगी, मैं घर चलता हूँ...रूबी और सवी अकेली पड़ रही होंगी.

सोनल और सूमी दोनो के होंठों को चूम सुनील घर की तरफ बढ़ गया.

सुनेल और मिनी जब घर पहुँचे तो देख रूबी हॉल में एक कोने में सहमी और दुब्कि बैठी थी, घर का मेन दरवाजा खुला था.

मिनी दौड़ के रूबी के पास गयी जो थर थर कांप रही थी.

मिनी : क्या हुआ रूबी तुम ऐसे क्यूँ.....

रूबी मिनी से लिपट गयी और बिलख पड़ी ' भाभी वो वो आवाज़ें कमरे से.....'

रूबी की ये हालत देख सुनेल अपने मन में बसे दर्द को भूल गया. उसके चेहरे पे कठोरता आती चली गयी, जैसे उसने कुछ निर्णय ले लिया हो. वो सोफे पे एक जगह बैठ गया और आँखें बंद कर ली. इस वक़्त वो प्रोफ़ेसर. सीद्देश्वर से रब्ता करने की कोशिश कर रहा था और रब्ता हो भी गया. उसे मानसिक तरंगों के द्वारा प्रोफ़ेसर. ने कुछ समझाया कि सूमी से भी उनकी बात हुई थी और वो शाम तक पहुँच जाएँगे. कुछ समान जो उन्होंने मँगवाया था उसे कैसे इस्तेमाल करना है वो समझाया.

सुनेल ने जब आँखें खोली उसकी आँखें भट्टी की तरहा दहक रही थी.

सुनेल : रूबी घबराओ मत मैं आ गया हूँ ना. अच्छा ये बताओ सुनील जो समान लाया था वो कहाँ है.

रूबी ने सुनील के कमरे की तरफ इशारा किया जो इस वक़्त तीनो का कमरा था (सुनील/सोनल/सूमी) . सुनेल उस कमरे में घुसा तो उसके कदम जम गये. सामने हँसती हुई तस्वीरें थी सुनील और उसकी दोनो बीवियों की .......एक में सुनील ने सूमी को गले लगाया हुआ था और एक में सुनील सोनल के गाल पे किस कर रहा था.

दिल यूँ धड़का जैसे अभी जिस्म से बाहर निकल पड़ेगा. अपने आप को संभाला और सुनील का लाया हुआ समान जो एक कोने में पड़ा था उसे खोल कर देखने लगा.

उसमें से उसने एक डिबिया निकाल जिसमें हुनमान का सिंदूर था और ले कर बाहर आ गया फिर उसने उस कमरे के बाहर उस सिंदूर से एक लकीर बना दी, ऐसा उसने हर कमरे के दरवाजे के बाहर किया और फिर उस कमरे के पास पहुँचा जहाँ सवी अंदर थी, वहाँ उसने उस सिंदूर से तीन लकीरें खेंच डाली,

फिर वो रूबी और मिनी के पास गया.

सुनेल : तुम्हें अब चाहे कैसी भी आवाज़ आए चाहे तुम्हें ये लगे कि मैं पुकार रहा हूँ या किसी और अपने की आवाज़ सुनाई दे तुम दोनो उस कमरे के पास नही आओगी.

सुनेल दोनो को हॉल में छोड़ सवी के कमरे के पास गया अंदर से आवाज़ें आना शुरू हो गयी ......हाहहाहा हीही ही ही उूुउउऊऊऊऊओउुुुउउ अजीब अजीब आवाज़ें कभी किसी औरंत के रोने की आवाज़ें, काबी जंगल में सियार के रोने की आवाज़ें

और कभी सवी की चीखती हुई आवाज़ें.

सुनेल ने सिंदूर से सवी के कमरे की खिड़की के चारों तरफ लकीर खींच दी और खिड़की के बीच एक कोने से दूसरे कोने तक क्रॉस बना डाला.

फिर सुनेल ने दराज के आगे झुक वहाँ खिसी गयी लकीरों को प्रणाम किया और कमरे के अंदर घुस्स गया.

आवाज़ें एक दम बंद और सवी बिस्तर पे ऐसी लेटी हुई थी जैसे गहरी नींद सो रही हो.

कमरे में बिस्तर के पास सूमी ने शिव की एक तस्वीर रख दी थी. सुनेल ने उसे प्रणाम किया और बिस्तर के चारों तरफ उसने हनुमान के सिंदूर से रेखा खींच डाली कुछ दूरी बना के रखते हुए ताकि कोई अंदर जाए तो रेखा पे पैर ना पड़े.

अब सुनेल को सवी के गले में एक रुद्राक्ष की अभिमंत्रित माला डालनी थी, जैसे ही सुनेल सवी के करीब पहुँच तो सवी की दाहकती हुई आँखें खुली और और कमरे में एक ज़लज़ला आ गया.

सुनेल उड़ता हुआ सामने दीवार से टकराया.

सवी के हाथ इधर उधर घूमने लगे और कमरे की एक एक चीज़ उड़ उड़ के सुनेल पे गिरने लगी . सुनेल खुद को बचाते हुए बिस्तर की तरफ बढ़ने लगा जैसे ही उसने सवी को छूने की कोशिश करी सवी किसी छिपकली की तरह से उछल के छत से चिपक गयी .

सुनेल हार मान गया और कमरे से बाहर निकल आया. चीज़ों के गिरने से उसे काफ़ी चोट भी आई थी.

उसने उस रूह को सवी के साथ कमरे में बंद कर डाला था. पर वो उस रूह का कुछ बिगाड़ नही पा रहा था.

जब वो हाल में आया तो उसकी हालत देख मिनी दौड़ती हुई उसके पास आई उसे सोफे पे लिटाया और उसकी तिमार दारी शुरू कर दी.

कुछ देर ही हुई थी कि सूमी का फोन रूबी को आया सूमी ने कुछ कपड़े मँगवाए थे जो सूमी के कमरे में थे. रूबी ने सारा समान जमा किया जो सूमी ने कहा था और हॉस्पिटल निकल पड़ी.

वहाँ पहुँच उसने देखा कि सुनील बहुत ही गंभीर मुद्रा में एक कोने में खड़ा था, रूबी ने कभी सुनील का ये रूप नही देखा था, एक टीस सी उठी उसके दिल में जो केवल एक प्रेमिका के दिल में ही उठ सकती है. सूमी को सारा समान देने के बाद वो सुनील के पास गयी.

'आप इतने परेशान अच्छे नही लगते, सब ठीक हो जाएगा.'

उसकी बात से सुनील यथार्थ में वापस आया.

रूबी का सुनील से बात करने का तरीका बदल चुका था अब वो एक बीवी की तरहा ही बात करती थी और उसी तरहा उसके दिल में सुनील के लिए चिंता रहती थी. सुनेल और सुनील के बीच अब क्या होगा ये सोच सोच कर वो भी परेशान थी, पर अपनी तरफ से सुनील को हिम्मत दे रही थी, क्यूंकी जानती थी कि सुनील ग़लत नही ग़लत हालत हुए थे और वो उन हालातों में पिसता चला गया था.

क्या एक बिछड़ा बरसों बाद मिला भाई अपने भाई के दिल की हालत समझेगा या फिर मर्यादा को रोना रोएगा. माना रूबी और सुनील की अभी शादी नही हुई थी लेकिन वो दिल से सुनील की थी और अब तो उसके दिल पे सुनील की ना मिटने वाली मोहर लग चुकी थी.



काश सवी के साथ ये सब ना होता तो उसकी अपनी सुहागरात भी जल्द होती. कितने सपने सज़ा रखे थे उसने और कितनी बेसबरी से उस रात का इंतजार कर रही थी जब दो बदन एक दूसरे में खो कर दो रूहों का मिलन करवा देते हैं. और अब तो ये एक ना टूटने वाला प्यार का अमित सागर बन जाएगा जहाँ सूमी,सोनल,सवी और रूबी अपने प्यार की बरसात से सुनील को सराबोर करती रहेंगी. रूबी को उस पल का इंतजार था.

सुनील : तुम घर जाओ, सुनेल और मिनी को तुम्हारी ज़रूरत पड़ सकती है. यहाँ सूमी है ना मैं भी कुछ देर में आ जाउन्गा.

तभी सूमी के फोन पे प्रोफ़ेसर. का फोन आता है कि वो एक घंटे में पहुँच जाएगा.

सूमी - सुनील और रूबी को वापस घर भेज देती है ताकि प्रोफ़ेसर को सुनील रिसीव कर सके और सारी बात डीटेल में बता सके. सुनील रूबी के साथ घर चले जाता है.
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