Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 10:00 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सूमी ने सुनील से सुनेल के बारे में कोई बात ना करी. लेकिन सवी और रूबी के साथ जो हो रहा था वो बड़ी चिंता की बात थी, उसे याद आ गया कि बहुत साल पहले उसका एक साथी डॉक्टर इस विषय पे काफ़ी रूचि रखता था और वो मरीजों को पिछले जन्मों तक ले जाया करता था उनका इलाज करने के लिए.

सूमी उसका नाम याद करने की कोशिश करने लगी. बहुत सोचने के बाद उसे नाम याद आ गया सिद्धेश्वर. कहाँ होगा इस वक़्त. सूमी अपना मोबाइल ले उसका नंबर खोजने लगी और मिल भी गया. एक पल की देरी ना करते हुए उसने फोन मिला डाला.

सिड : हेलो.

सूमी : हाई सिड, सुमन कैसे हो.

सिड : श्श्श्शुउउउउउम्म्म्म्म्माआअन्न्न्न्न वाउ लोंग टाइम. कैसी हो, माफ़ करना मैं आ नही पाया जब सागर........

सागर का नाम सुनते ही सूमी के दिल में एक हुक सी उठी. पर खुद को संभाल लिया.

सिड : सॉरी यार!!!!!

सूमी : जो होना होता है वो तो होता ही है, इसमे किसका क्या बस.

सिड : अरे तुमने सही टाइम पे फोन किया, तुम्हारे घर पहुँच रहा हूँ आज शाम, तुम्हारे बेटे का मेसेज आया था. पर तुमने उसका नाम सुनील से सुनेल कब कर दिया.

सूमी को समझते देर ना लगी कि उसके जुड़वा बेटे का नाम सुनेल है और सिड सुनेल से मिला था.

सूमी : तुम कब मिले उससे, अरे जब वो मुंबई आया था एक्सचेंज प्रोग्राम में. उसने मुझे सारी परेशानी बता दी है. चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा.

सिड : अच्छा सुनो जैसा कह रहा हूँ वैसा करो ......

कुछ देर तक सिड सूमी को कुछ बताता रहा और सूमी ध्यान से सुनती रही. जब कॉल कट हुई तो सूमी ने सब कुछ सुनील को बताया. कुछ समान लाना था सुनील उसे लेने निकल पड़ा.

सूमी सिड की बातों के बारे में सोचने लगी. सुनेल एक दम सुनील जैसा दिखता है. सूमी सुनील की यादों में सुनेल को देखने लगी और उसके मातृत्व को कुछ सकुन सा मिला पर दिल में बहुत दर्द उठा उसका बचपन, उसकी अल्हाड़ता, उसके नखरे सब कुछ तो खो दिया था सूमी ने. सूमी मन ही मन उस इंसान को कोसने लगी जिसने सुनेल को उससे दूर किया.

सुनील से शादी के बाद सूमी के अंदर की माँ कहीं किसी कोने में दबी रह गयी थी आज उसमें जान आ गयी, वो सर उठाने लगी, उसका मातृत्व उसे वापस मिलने वाला था, उसका बेटा सुनेल उसके पास आ रहा था. दिल तड़पने लगा, बांहें आतुर हो गयी उसे अपने सीने से लगाने को, ये दर्द वो औरत ही समझ सकती है जिससे उसके बच्चे को जुदा कर दिया गया हो, जिसे ये बताया गया हो कि वो मर चुका है और सालों बाद उसे पता चले कि वो जिंदा है.

माँ की ममता खुद को रोक ना पाई और सूमी फुट फुट के रोने लगी. यही वो वक़्त था जब सवी नहा धो के कपड़े बदल हॉल में दाखिल हुई.

सवी को नही मालूम था कि एक बड़ा तूफान आ चुका है और वो उस में फसने वाली है. सालों पहले सागर को सब बता उसने अपने दिल का बोझ तो हल्का कर लिया था पर एक बहन को जो धोखा दिया अब वो सामने आने वाला था. वो बहन जिसने अपने पति को उसके साथ बाँट लिया था, जो दिल से उसे माफ़ कर चुकी थी, वो एक औरत थी, पर एक माँ जब घायल हो जाती है उसकी ममता पे जब चोट पड़ती है वो कभी माफ़ नही करती.

ये तूफान जाने क्या क्या करवाने वाला था.

सवी यही सोच रही थी कि सूमी रात जो हुआ उसकी वजह से टूट गयी है.

इस से पहले सवी कुछ बोलती कुदरत ने रंग दिखाना शुरू किया.

आसमान पे काले काले बदल छाने लगे, सूरज बादलों के पीछे छुप गया. दिन रात में बदल गया. और तभी रूबी की ज़ोर दार चीख सुनाई दी...मम्मीयीईयीयैआइयैयाइयैआइ

रूबी की चीख ने सूमी के आँसुओं को रोक लिया और वो उछल के खड़ी हो गयी. सुनील अभी तक समान लेकर नही आया था.

रूबी की चीख सुन सवी और सूमी उस कमरे की तरफ दौड़ी और यही ग़लती हो गयी दोनो से.

जैसे ही सूमी ने दरवाजा खोला रूबी जो छत से लटकी हुई थी नीचे गिरी और और उसके अंदर से एक सफेद धुआँ निकल सवी के अंदर समा गया और सवी खींचती हुई बेड पे जा गिरी और उसका जिस्म उपर नीचे उछलने लगा.

सूमी ये सब देख घबरा गयी और रूबी को किसी तरहा उठा कमरे से बाहर निकली और कमरा बंद कर दिया.

कमरे के बंद होते ही सवी का उछलना गिरना बंद हो गया.

रूबी की चीख सोनल के कानो में भी पड़ी और वो घबरा गयी. बिस्तर से हिलना उसे मना किया गया था सिर्फ़ बाथरूम ही जा सकती थी. सोनल की तबीयत बिगड़ने लगी शायद शॉक की वजह से जो रूबी की चीख से उसे मिला था या फिर कुदरत अपना कोई दूसरा करिश्मा खेल रही थी. सुनेल और मिनी की फ्लाइट लॅंड कर चुकी थी और वो टॅक्सी में सूमी के घर की तरफ आ रहे थे. जैसे जैसे उनकी टॅक्सी नज़दीक आती जा रही थी, सोनल के पेट में दर्द बढ़ना शुरू हो गया था. सुनेल कोई 100 कदम के फ़ासले पे जब रह गया तो सोनल का दर्द तीव्र और असहनीय हो चुका था सॉफ निशानी थी लेबर पेन की . अब सुनील समान घर ले के पहुँच चुका था और गाड़ी निकल रहा था सोनल को हॉस्पिटल ले जाने के लिए जो बस 5 मिनट की दूरी पे था.

सुनेल की टॅक्सी ट्रॅफिक में फस गयी और जब तक ट्रफ़िक खाली हुआ सुनील सोनल को हॉस्पिटल ले जा चुका था और सोनल को ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया.

यहाँ जैसे ही सुनेल के कदम घर की लॉबी पे पड़े वहाँ सोनल ने दो प्यारे बच्चों को जनम दिया. एक लड़का और एक लड़की - लड़का सोनल और सुनील का था क्यूंकी उसमे सोनल की छवि ज़्यादा थी और लड़की सुनील और सुमन की थी क्यूंकी उसमे सुनील की छवि के साथ सुमन की भी छवि थी. दोनो बच्चों को इंक्यूबेट्र में रखना पड़ा क्यूंकी समय से पहले पैदा हो गये थे. सोनल की हालत ठीक थी. बच्चों के जनम से सुनील बहुत खुश हुआ था बस दुआ माँग रहा था कि सही सलामत रहें.
यहाँ सुनील ने सूमी को फोन कर खुशख़बरी दी उसी वक़्त मिनी ने घर की बेल बजा दी.

सूमी ने दरवाजा खोला और सामने मिनी थी, सूमी की नज़रें शायद सुनेल को ढूंड रही थी, क्यूंकी उसे नही पता था कि मिनी सुनेल की पत्नी है. मिनी को यूँ अचानक देख सूमी हैरान हुई और हॉल में बैठी रूबी सकते में आ गयी. अभी वो उसके और सवी के साथ हुए घटनाकरम को नही समझ पाई थी, मिनी का यहाँ आना उसे एक भुंचाल का संकेत देने लगा.




सूमी को शायद इस वक़्त मिनी का आना पसंद नही आया था वो इस वक़्त भाग के अपने बच्चे को अपनी गोद में लेना चाहती थी, पर जैसे ही मिनी उसके पैर छूने को झुकी तो पीछे खड़ा सुनेल उसे नज़र आ गया.

एक बेटा जो बरसों से बिछड़ा हुआ था वो सामने था और एक बेटी जिसने अभी जनम लिया था वो इंतेज़ार कर रही थी माँ की गोद में समाने को, सूमी के उरोजो से दूध रिसने लगा था और पल भर तो वो पत्थर बनी खड़ी सुनेल को देखती रही ये भी भूल गयी कि मिनी झुकी उसके आशीर्वाद का इंतेज़ार कर रही थी.

भावनाओं के समुंदर में फसि सूमी अपने अश्रु रोक ना पाई लड़खड़ाने को हुई तो उसके हाथ अपने आप मिनी के सर पे चले गये जैसे आशीर्वाद ही दे रहे हों.

'माँ!' एक दर्द था सुनेल की पुकार में जिसे सिर्फ़ वही माँ पहचान सकती थी जिसने उस आवाज़ को जनम दिया हो.

सूमी के कान तरसने लगे फिर से उस आवाज़ को सुनने को

'माँ!'

सुनेल मेरा बच्चा - सूमी जैसे चीख ही पड़ी और सुनेल को बाँहों में ले उसके चेहरे को बोसो से दागने लगी - 'माँ! - ओह माँ'

दोनो माँ बेटे एक दूसरे की बाँहों में समाए अपने आँसुओं से उन सालों की दूरी को मिटा रहे थे.

सुनील फिर फोन करता है तो मोबाइल की बेल दोनो माँ बेटे को होश में लाती है.

सूमी अपना मोबाइल उठा कॉल रिसीव करती है.

'हां जी बस आ रही हूँ....ओह कितना दिल तरस रहा है अपनी बेटी को सीने से लगाने को, कैसे हैं मेरे दोनो बच्चे, उनको कहना मम्मी आ रही है बस थोड़ी देर में'

नयी नयी बनी माँ ये भूल गयी थी कि सामने खड़े सुनेल पे वज्रपात हो गया था.

उसकी माँ फिर से कैसे माँ बन सकती है ....क्या हो रहा है यहाँ.......ओह गॉड कहीं जो ख़यालात उस दिन मन में आए थे कहीं वो सच तो नही.....ना ही...नही...नही...ये ये नही हो सकता.

सूमी - सुनेल चल तुझे तेरे भाई बहन से मिलाती हूँ'

सुनेल तो कहीं खो चुका था.

सुनेल दीवार से सट गया था. मिनी की नज़रें उसपे ही गढ़ी हुई थी, सुनेल को जैसे सूमी की आवाज़ सुनाई ही ना दे रही थी - यूँ लग रहा था जैसे बरसों बाद माँ मिली और पल भर में छिन भी गयी. बड़ी मुश्किल से उसने अपने आँसू रोके और खुद को समझने लगा कि जो सोच रहा है ग़लत सोच रहा है.

माँ नानी या दादी भी होगी और वो भी तो मम्मी ही होती है.

मिनी ने उसे हिलाया.

सूमी : अरे मैं भी कितनी बेवकूफ़ हूँ. तुम लोग थक गये होगे. मिनी तू इसे सुनील के कमरे में ले जा मैं कुछ देर मे आती हूँ. तब तक तुम लोग आराम कर लो.

सुनेल जो सच तक जल्दी पहुँचना चाहता था, बोला 'माँ मैं भी साथ चलूँगा'

मिनी ने इशारे से उसे रुकने को कहा पर सुनेल गुस्से से उसे देखने लगा तो मिनी बस सर झुका के रह गयी.

सूमी : अच्छा चलो, सुनील और सोनल तुम लोगो से मिल बहुत खुश होंगे, मिनी को तो जानते ही हैं पर असली खुशी तो सुनेल से मिल के होगी.

तीनो हॉस्पिटल की तरफ निकल गये घर में रूबी रह गयी, रास्ते में भी सूमी को इस बात का ख़याल ना आया कि सुनेल के सामने उनकी कड़वी सच्चाई यकायक खुल जाएगी, वो तो बस अपने बच्चों को अपने गोद में लेने को आतुर थी, उन्हें अपना दूध पिलाने को तड़प रही थी.

सुनेल रास्ते भर दुआएँ माँगता रहा जो महसूस वो कर रहा है वो सच ना निकले.

जैसे ही ये लोग हॉस्पिटल पहुँचे सूमी के कदम तेज हो गये जैसे उसे मालूम था कहाँ जाना है - सुनेल और मिनी उसके पीछे थोड़ी दूरी बना चल रहे थे. सूमी ने एक दरवाजे पे नॉक किया सुनील ने खोला और उसे अपनी बाँहों में समेट लिया जैसे कोई अपनी बीवी को समेटता है - बस पीछे आते सुनेल के कदम वहीं जाम हो गये, आँखों के आगे अंधेरा छा गया - ये नज़ारा उसके दिल के टुकड़े टुकड़े कर गया .

मिनी ने उसे हिलाया सुनेल की ये हालत देख वो भी दुखी हो रही थी.

मिनी : सुनो जिस काम के लिए आए हो उसपे ध्यान दो, बाकी सब पे नही.

सुनेल ने भीगी आँखों से उसे देखा - बरसों बाद माँ मिली पर लगता है खो चुका हूँ मैं अपनी माँ को .

मिनी : देखो, इंसान की बहुत मजबूरियाँ होती हैं. तुम्हें क्या पता पीछे क्या हुआ, क्यूँ हुआ, कैसे हुआ, कोई ग़लत धारणा मन में मत पालो. माँ माँ ही होती है.

तभी सुनील की नज़र सुनेल पे पड़ती है वो सूमी को छोड़ देता है...सूमी भी जैसे यथार्थ में वापस आती है.

सूमी : देखो कॉन आया है और सुनेल और मिनी की तरफ इशारा करती है.

सुनील के कदम सुनेल की तरफ खुद ब खुद बाद जाते हैं और सुनेल भी खुद को रोक नही पाता. एक भाई की कशिश एक भाई को पुकार रही थी.

दोनो भाई एक दूसरे के गले लग गये और दोनो एक दूसरे को अपने आँसुओं से भिगोने लगे. आह दिल दिल को पहचानने लग गया और सुनील को सुनेल के दर्द का अहसास हो गया.

सुनील चुप ना रह पाया और बोल ही पड़ा 'तेरा दर्द समझता हूँ मैं भी इसी दर्द से गुजरा था पर होनी ने हो कर रहना था, डॅड के हुकुम को नही टाल सका.'

सुनेल उससे अलग हो गया और गुस्से से उसे देखने लगा.

सुनील : भाई आराम से घर पे बात करेंगे चल सोनल से मिल.
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