Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:59 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
अब मिनी में हिम्मत नही थी वो सुनेल को इस सपने के बारे में बताती, आँखें बंद कर सुनेल के कंधे पे सर टिका लिया.

और इधर सूमी और सुनील सवी के कमरे में बिस्तर से थोड़ी दूर साइड काउच पे बैठे हुए थे. सूमी का सर सुनील के कंधों पे था. रूबी वहीं बिस्तर के दूसरी तरफ एक कुर्सी पे बैठी सोच रही थी कि ये सब क्या हो रहा है.

सूमी : सुनील वो हमारे सच को स्वीकार तो कर लेगा ना.

सुनील : अगर अकल्मंद हुआ तो कर लेगा, थोड़ा झटका तो लगेगा ही, क्यूंकी हमारा रिश्ता समझ कभी स्वीकार नही करेगा. क्या पता वो किस महॉल में पला बढ़ा है. आने दो फिर देखते हैं. मैं हूँ ना. क्यूँ परवाह कर रही हो सब ठीक हो जाएगा.
और सुनील ने सूमी के होंठों पे अपने होंठ जड़ दिए.

जब दो प्यार करनेवाले एक ही वजह से परेशान होते हैं तो शायद कुदरत उन्हें और करीब ले आती है...यही इस वक्त सुनील और सूमी के साथ हो रहा था. दोनो इस वक़्त सवी को भी भूल गये और भूल गये कि सामने बैठी रूबी भी सब देख रही है. दोनो इस वक़्त एक दूसरे में खोते चले जा रहे थे दिल दिल को समझा रहा था जैसे कह रहा हो ...आने दो इस तूफान को भी झेल लेंगे.....कोई और होता तो इस वक़्त परेशानी के आलम में कमरे में इधर उधर चक्कर काट रहा होता, लेकिन इन्दोनो का प्यार इतना मजबूत था जो अब हर बाधा हर तूफान से लड़ने की शक्ति पा चुका था.

और शायद यही वक़्त का तक़ाज़ा भी था.

दीन दुनिया से बेख़बर दोनो एक दूसरे में खोते चले जा रहे थे उसी वक़्त कमरे में एक नशीला सा धुआँ फैलने लगा और रूबी की आँखें बंद होती चली गयी. सवी की आँखें खुल गयी और वो अपनी नज़रों के सामने सुनील और सूमी को एक दूसरे से लिपटे देख रही थी...उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे...सुहाग रात उसकी लेकिन हो क्या रहा था.

वो नशीला धुआँ सिमटने लगा और एक गोलाकार बन कर सवी के सामने आ गया , एक रोशनी सी कमरे में फैली जिसका आभास सुनील और सूमी को ना हुआ. और एक आकृति जिस्म का रूप इकतियार कर सवी के सामने बैठ गयी. सवी की नज़रें उसपे पड़ी तो आँखें फटी की फटी रह गयी....तुउुुुउउम्म्म्मममममम! उसके मुँह से बस इतना निकला.

उस आकृति के चेहरे पे असीम दर्द था, एक तड़प थी, उसकी नज़रों में एक अन्भुजि प्यास थी.

वो आकृति बोली - सवी अब तो मेरा प्यार कबुल कर लो - देखो उन दोनो को (वो सूमी और सुनील की तरफ इशारा करता है ) ये है असली प्यार. क्यूँ इनके प्यार के बीच आ रही हो. क्यूँ खुद को दॉखा दे रही हो? सागर गया! समर गया! विजय तुम्हें पहले ही छोड़ गया था. और मैं जिसने तुम्हारे गम में दुनिया छोड़ दी...क्या अब भी मुझे तड़पना पड़ेगा.

उसकी आवाज़ सिर्फ़ सवी के कानो तक पहुँच रही थी.

सवी : तुमने जो किया उसके ज़िम्मेदार तुम खुद हो. मैने कभी नही कहा कि मैं कभी भी तुम से प्यार करूँगी. चले जाओ मेरी जिंदगी से, मैं सुनील से बहुत प्यार करती हूँ. मेरी रूह तक उसकी हो चुकी है. कोई हमारे बीच नही आ सकता. मिट जाओगे तुम . क्यूँ खुद को तकलीफ़ दे रहे हो. चले जाओ, वरना तुम्हारा वजूद ख़तम हो जाएगा.

'मेरा वजूद ख़तम हो जाएगा.....हाहहाहा..'.वो बड़ी भयानक हँसी हंसा

उसकी हँसी से सवी बूरी तरहा हिल गयी पर कोशिश करते हुए हिम्मत रखी ' मैं सुनील की हूँ वो मेरे रूम रोम में बस चुका है किसी और की नही हो सकती, मैने तुम्हें कभी प्यार नही किया, जाओ और अपनी मुक्ति का रास्ता खोजो'

'एक साल से मैं तुम्हारे जिस्म में रह रहा हूँ पर मैने तुम्हें कभी कोई तकलीफ़ नही होने दी मैं अपना प्यार पा के रहूँगा अब कुछ भी करना पड़े मैं किसी और को अब तुम्हें छूने नही दूँगा.'

'ह्म्म ख्वाब देखते रहो,मेरा जिस्म मेरी रूह सुनील की है और उसकी रहेंगी तुम कुछ नही कर पाओगे.'

'मेरे सब्र का इम्तिहान मत लो वरना जो तबाही होगी उसकी ज़िम्मेदार तुम होगी'

'बस यही प्यार है तुम्हारा, प्यार दूसरे को सुख देता है दुख नही और तुम मुझे मेरे प्यार से दूर रखना चाहते हो'

' ये सब मैं नही जानता मैं अपना प्यार पा के रहूँगा तुम्हारी रूह अब मेरे क़ब्ज़े में रहेगी और अमावस्या की रात को मैं तुम्हें अपने साथ ले जाउन्गा'

'ह्म्म तब तक तो तुम्हारा विनाश हो जाएगा, मेरा प्यार मुझे कुछ नही होने देगा, तुम अभी सुनील को जानते नही.'

'सुनील....हाहहहाहा, उसे तो जब चाहूं मसल के रख दूं'

इन बातों के चक्कर में वो आकृति ये भूल गयी कि सुबह की पहली किरण कमरे में प्रवेश करने वाली थी जो उसके लिए घातक थी उसकी शक्ति कम होजाति और वो सवी के जिस्म में फिर ना समा पाता.

सूमी ने सवी के पास शिव त्रिशूल का लॉकेट रखा हुआ था जो इस वक़्त सवी के हाथ में आ गया था. सूरज की पहली किरण जैसे ही उस आकृति पे पड़ी वो चीखा और सवी में सामने की कोशिश करने लगा पर सवी के हाथ में पड़े त्रिशूल ने ये ना होने दिया तो वो रूबी के जिस्म में समा गया. उसे इंतेज़ार था रात होने का जब वो रूबी के जिस्म से निकल सवी के जिस्म में दुबारा प्रवेश कर पाता.

वो धुआँ एक दम गायब हो गया और रूबी की नींद और भी गहरी हो गयी. सवी की नज़र अब सुनील और सूमी पे पड़ी जो एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे में खोए पड़े थे.

सवी बिस्तर से उठ उन दोनो के पास गयी और सुनील की गोद में अपना सर रख दिया.

उसी पल रूबी की कुर्सी सरक्ति हुई कमरे के उस कोने में पहुँच गयी जहाँ सूरज की किर्ने नही पड़ रही थी और रूबी की आँखें खुल गयी गहरी लाल सुर्ख और सवी को यूँ लगने लगा जैसे उसे कोई खींच रहा हो और सुनील से दूर कर रहा हो. सवी ने कस के सुनील को पकड़ लिया और उसकी इस हरकत से सुनील और सूमी होश में आए .

सवी : सुनील मुझे बचाओ.....मुझे बचाओ

सवी सुनील से चिपकी बार बार यही दोहरा रही थी और उसके बाल ऐसे पीछे हो गये थे मानो उसे कोई बालों से पकड़ के खींच रहा हो.

तबी सूमी ने कमरे के सारे पर्दे हटा दिए और कमरे में सूरज की किर्ने चारों तरफ फैल गयी. रूबी के मुँह से चीख निकली और उसकी गर्दन लूड़क गयी.

सूमी ने झट से सुनील और सवी को कमरे से बाहर निकलने को कहा और फट से घर में बने अपने मंदिर गयी हाथ जोड़ वहाँ से हुनूमान और शिव की प्रतिमा उठा के उसने उस कमरे में रख दी और रूबी को बिस्तर पे लिटा कमरे से बाहर निकल आई और कमरे को बाहर से बंद कर दिया.

कमरे से बाहर निकलते ही सवी के अंदर जो बोखलाहट थी वो ख़तम हो गयी थी और अब वो नॉर्मल थी.

ये रात किस तरहा गुज़री तीनो अपने अंदर सोच रहे थे. सूमी उठ के किचन चली गयी उसका दिमाग़ ये सोचने में व्यस्त था कि इस बला से कैसे छुटकारा पाया जाए.

किचन में चाइ बनाती सूमी रात में हुई घटनाओं के बारे में सोच रही थी कि अचानक उसके दिमाग़ में सुनील का जुड़वा आ गया जो घर आ रहा था और वो सर से पाँव तक हिल गयी. जब उसे घर की कड़वी सच्चाइयों का पता चलेगा तब क्या होगा.

अब दो बवाल उसके सामने थे एक उसका बरसों से बिछड़ा बेटा क्या सोचता है और दूसरा वो आत्मा जो इस वक़्त रूबी के जिस्म में समा चुकी थी.

सूमी को अभी तक नही मालूम था कि उसके जुड़वा बेटे का नाम सुनेल है, चाइ बनाते बनाते उसका दिल बार बार धड़क रहा था कैसा दिखता होगा वो, क्या बिल्कुल सुनील की कॉपी होगा, या कुछ अंतर होगा. अगर बिल्कुल एक जैसा हुआ तो क्या वो दोनो में फरक रख सकेगी , ना जाने क्या क्या सूमी सोचती जा रही थी. चाइ उफनने लगी तब जा कर उसका ध्यान टूटा. सर झटका और चाइ ले कर पहले सोनल के पास गयी, उसे चाइ दी और फिर हॉल में चली गयी जहाँ सुनील और सवी दोनो सोचों में गुम थे.

सवी का चेहरा उतरा हुआ था, खुशियाँ उसके दामन तक आई पर वो उन्हें हासिल ना कर सकी, अभी तक वो दुल्हन के लिबास में थी. चाइ ख़तम करने के बाद.

सवी : दीदी अपने कुछ कपड़े दो में फ्रेश हो जाउ, मेरे तो कमरे में बंद हैं जहाँ इस वक़्त रूबी है.

सूमी : चल, .......उसे अपने साथ अपने कमरे में ले गयी, जहाँ इस वक़्त सोनल भी सोती थी.

सोनल फ्रेश हो चुकी थी. पेट उभर के सामने आ चुका था 7 वाँ महीना ख़तम होने को आया था. इस वक़्त वो ढीले कपड़े ही पहनती थी.

सूमी ने अपने कुछ कपड़े दिए सवी को और वो बाथरूम में घुस गयी.

सोनल ने सवालिया नज़रों से सूमी को देखा तो सूमी ने उसे बाद में बात करने का इशारा किया और हॉल में सुनील के पास चली गयी.
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