Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:56 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
घर के दरवाजे की बेल बजी - शाम का वक़्त था - रूबी गयी दरवाजा खोलने और खोलते ही देखा तो सामने सवी खड़ी थी. आज कितने दिनो के बाद दोनो माँ बेटी एक दूसरे के सामने थी .......रूबी को कुछ पल तो समझ ही ना आया कि क्या करे, क्या कहे, पर एक बेटी चाहे कितनी भी नाराज़ क्यूँ ना हो वो अपने से दूर कैसे रह पाती - रूबी लपक के सवी के गले लग गयी और दोनो माँ बेटी फफक के रोने लगी.

रूबी : क्यूँ माँ क्यूँ? क्या मैं ...मैं...

सवी : बस कर मेरी जान, कुछ फ़र्ज़ बड़ी बड़ी कुर्बनियाँ ले डालते हैं, माफ़ कर देना अपनी इस माँ को.

दोनो माँ बेटी एक दूसरे से ऐसे चिपटि थी जैसे अब कभी अलग ना होंगी.

दोनो का क्रन्दन इतने ज़ोर से हो रहा था कि सूमी हाल में आ गयी और उसके कदम वहीं जम गये.

जिंदगी के कुछ गुज़रे पल आँखों के सामने फिर से लहराने लगे, कभी इन आँखों में एक बहन का प्यार छलकने लगता, कभी उन आँखों में एक कड़वाहट आ जाती और और वही बहन एक दुश्मन नज़र आने लगती, इस उथल पुथल में फसि सूमी अपने सर को झटकती है और दोनो माँ बेटी को वहीं छोड़ अपने कमरे में चली जाती है जहाँ सोनल अपने उभरे हुए पेट को लिए बिस्तर पे आराम कर रही थी.

रूबी सवी को अपने कमरे में ले गयी उसके सामान को एक जगह सेट किया फिर आराम करने का बोल किचन में चली गयी और सवी के लिए कॉफी बना लाई. थोड़ी ही देर बाद सोनल की दवाइयों का वक़्त था, रूबी ने ये ज़िम्मेदारी अपने सर ले रखी थी और वो खुद सोनल को अपने हाथों से दवाइयाँ खिलाती थी. सोनल को दवाइयाँ दे कर रूबी किचन मे चली गयी और सोनल की मनपसंद डिश बना के ले आई जिसे सूमी ने अपने हाथों से सोनल को खिलाया.

रूबी के कमरे में बिस्तर पे लेटी सवी सोच रही थी अभी तक ना वो सूमी से मिलने गयी और ना ही सूमी उससे मिलने आई. क्या दीवारें इतनी बड़ी हो चुकी हैं?

सोनल को खिलाने के बाद सूमी वहीं सोनल के पास लेट गयी और उसकी नज़रों के सामने माँ बेटी का वो क्रन्दन मिलन लहराने लगा.

जिस कारण से सवी घर छोड़ के गयी थी वो फिर उसके सामने आ गया और दिमाग़ में हथोडे बजने लगे. इतना वक़्त दूर रहने के बाद सवी का यूँ इस तरहा आना बिना कोई इत्तिला दिए कहीं फिर से वो सब ...नही नही ऐसा नही हो सकता . पल पल सूमी परेशान होती जा रही थी हालाँकि उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थी लेकिन वो परेशानी सोनल को छूने लग गयी थी ...जिसे नही मालूम था कि सवी आ गयी है पर उसका दिल उसे कह रहा था कि सूमी किसी बात को लेकर परेशान है.

वहाँ दूसरे कमरे में लेटी सवी सोच रही थी जिंदगी उसे कहाँ से कहाँ ले गयी और कहाँ कहाँ नही पटका. कभी सोचा नही था कि विजय से दुबारा मुलाकात होगी हुई भी तो कैसे एक समधी के रूप में, जो नफ़रत सालों से दिल में चिंगारी से शोलों का रूप ले चुकी थी उन्हीं शोलों पे उसे पानी डालना पड़ा अपने आँसुओं से क्यूंकी कवि की जिंदगी का सवाल खड़ा हो गया था. बार बार एक ही सवाल कोंध रहा था दिमाग़ में - मेरा कसूर क्या था?

क्या प्यार पाने का हक़ सिर्फ़ सूमी का ही है ..क्या मुझे कोई हक़ नही...माना ये जिंदगी बहुत रंग बदलती है ....माना इस जिंदगी में बहुत इम्तिहान देने पड़ते हैं....आँखों के आगे सुनील और सुनेल दोनो के चेहरे लहराने लगे. जो ख्याल सुनील के लिए जन्मे थे वो उसके दूसरे रूप को सामने पा नही जनम ले पाए ...उस दूसरे रूप को देख बस एक ममता की ही लहर जनम लेती थी ...लेकिन सुनील के लिए क्यूँ प्यार की कोंप्लें फिर से सर उठाने लगती थी.

क्या सूमी को सुनील मिला इसलिए ...या सुनील था ही ऐसा की कोई भी उसपे दिल-ओ-जान न्योछावर कर दे. अपने दिल में उठती हुई टीस को उसने कुचल डाला क्यूंकी आज उसने अपनी कोख जाई की आँखों में बसे वीराने पन को देख लिया था उसके दर्द को महसूस कर लिया था. जिंदगी में बस अब दो ही मक़सद रह गये थे सही वक़्त पे सुनेल और सुमन का मिलन करवाना - एक बेटे को उसकी असली माँ से मिलवाना और रूबी की जिंदगी से काँटों को निकाल फेंकना. औलाद के आगे हर माँ अपनी निजी खुशी भूल जाती है और आज यही एक फ़ैसला सवी ले चुकी थी.. चाहे खुद की जिंदगी मात्र एक खंडहर ही क्यूँ ना बनी रह जाए अपने ये दो फ़र्ज़ अब वो हर कीमत पे पूरा करना चाहती थी.

सवी और सूमी दोनो ही अपने ख़यालों की दुनिया में डूबी हुई थी और रोज की तरहा सही वक़्त पे सुनील घर पहुँच गया. घर में घुसते ही उसे कुछ अजीब सा लगा.

सुनील एक दम ठीक समय पे घर लोटा करता था, और हमेशा सूमी ही उसके लिए दरवाजा खोलती थी.

घर के अंदर घुसते ही सुनील हॉल में सोफे पे बैठ गया कुछ ज़्यादा ही थका हुआ लग रहा था सूमी भी उसके पास बैठ गयी और इतने में रूबी उसके लिए कॉफी ले आई. 'थॅंक्स गुड्डिया' रूबी के हाथ से कॉफी का कप लेते हुए बोला वो.

सूमी : सुनो सवी आई है.

सुनील के होंठों तक कॉफी का कप जाता हुआ रुक गया और वो सूमी को देखने लगा. पहले कितना कहा साथ चलो तो नही आई अब यूँ अचानक. कहीं कोई बात तो नही हुई उसके साथ. सुनील ने कॉफी का कप टेबल पे रख दिया. 'कहाँ है'

रूबी : माँ मेरे कमरे में है.

सुनील : थकि हुई होगी सफ़र से , आराम करने दो, रात को खाने पे मिलेंगे.

सुनील कॉफी का कप ले सोनल के पास चला गया और रूबी अपनी माँ सवी के पास. सूमी हॉल में ही बैठी रही. पता नही क्यूँ उसे अपनी शांत चलती हुई जिंदगी में फिर से कुछ उथल पुथल होने का आभास लग रहा था.

कमरे में घुस सुनील ने कॉफी का कप साइड में रख दिया और सोनल के पास बैठ गया.

सोनल के माथे और उसके होंठों को चूमने के बाद सुनील अपने चेहरे को उसके पेट पे रख चूमते हुए बोला 'पापा आ गया' तभी दोनो बच्चों ने सोनल के पेट में जैसे खलबली मचा दी और और दोनो की लात अंदर चली.
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