Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:40 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सोनल…अपने होंठ अलग करती है…रूबी बहुत उदास और परेशान रहने लगी है ..इसीलिए ..उसके होंठ चूम उसे तसल्ली देने की कोशिश करी थी..

सुमन..मैं कल ही सिमिरन से बात करती हूँ..

सोनल..नही ऐसा मत करना…मुझे नही लगता अब रूबी किसी के साथ भी शादी करेगी…उसके दिल में बस सुनील रहता है…और वो जगह कोई और नही ले सकता….दीदी जानती हो ..उसके अंदर मुझे वो सोनल दिखाई देती है जो पहले सुनील के लिए तड़पति थी..जिसके प्यार को सुनील ठुकरा देता था…आज रूबी की भी वही हालत है…मेरी तो समझ में नही आ रहा क्या किया जाए…

सुमन…तू जानती है ना उनकी क्या हालत हुई थी मेरे और तेरे टाइम पर…क्यूँ फिर…

सोनल ..यही तो समझ नही आ रहा…मैं दोनो को बहुत प्यार करती हूँ..इसलिए दोनो को दुखी नही देख सकती…ज़रा सोचो…रूबी …सागर पापा की निशानी है..कितनी चिंता करते थे वो उसकी…अगर उसे कुछ हो गया तो उस वादे का क्या होगा…जब पापा ने सुनील को मेसेज भेजा था सेव रूबी…वो इस तरहा तड़पति रहेगी तो कहीं उसे कुछ हो ना जाए…..अगर वो सुखी नही रहेगी तो क्या पापा की आत्मा को शांति मिलेगी..

सुमन...इसका मतलब तू उनको शेयर करने का फ़ैसला ले चुकी है..

सोनल...नही दीदी ऐसा नही है..मैं बस उसकी तड़प नही सहन कर पा रही हूँ.. ..कॉन बीवी अपने पति को शेयर करती है..हम दोनो की बात और थी...करना तो आप भी नही चाहती थी..पर आपके अंदर जो माँ थी ...वो टूट गयी और मुझे अपना लिया ....ज़रा सोचो रूबी आपके सागर की बेटी है ..यानी आप उसकी माँ ही तो हुई चाहे वो आपकी कोख से नही जन्मी ...उफ़फ्फ़ मेरी तो कुछ समझ नही आ रहा....

सुमन...मैं रूबी को समझाने की कोशिश करूँगी....सुनील को मैं दर्द के सागर में नही धकेल सकती ..और उसे फिर से बाँटना तो मेरी कल्पना से परे है...वैसे भी वो बिल्कुल नही मानेगा ...अगर ऐसी कोई कोशिश भी करी गयी तो.. तू ज़्यादा मत सोच इस बारे में.....मैं देखती हूँ क्या करना है.


सोनल एक बार और सुनील को कॉफी दे कर आई ...तब तक सुमन सो चुकी थी...सोनल उसके पास लेट गयी और सुनील के आने का इंतेज़ार करने लगी...सोनल की आँखों के सामने बार बार रूबी का उदास चेहरा घूम जाता और वो खुद को बहुत असहाय समझती ...काश किसी तरहा वो रूबी के होंठों पे मुस्कान ला सकती ....बिना सुनील को कोई तकलीफ़ दिए...

कहते हैं की जब मश्तिस्क में अशांति होती है तो साइट वक़्त अवचेतन मष्टिशक सक्रिय हो जाता है और इंसान उस सक्रियता को स्वपन समझने लगता है...कुछ ऐसा ही सुमन के साथ हो रहा था..

सागर का चेहरा उसकी नज़रों के सामने था ...और दर्द से विकृत था....जैसे कह रहा था...मैने तुम्हें सुनील दे दिया...तुम्हारी खुशी के लिए ...पर तुमने मेरी रूबी को तड़पने के लिए छोड़ दिया.......क्या यही प्यार था तुम्हारा मुझ से......देखो उस फूल सी बच्ची को..जहाँ गुलाब की कलियाँ उसके चेहरे पे होनी चाहिए वहाँ बबूल के काँटे दिख रहे हैं...कैसे बर्दाश्त कर लेती हो तुम उसका तड़पना.....सोनल की तड़प तुम समझ गयी ..क्यूंकी ..वो तुम्हारा अपना खून थी...रूबी की तड़प तुम क्यूँ नही समझ पाती...एक माँ हो कर ये भेदभाव क्यूँ....

मैं एक बीवी हूँ अब...मेरे कल का भरोसा नही ..लंबे समय तक सुनील के साथ नही रह पाउन्गि...इसीलिए सुनील को मजबूर किया सोनल को अपनाने के लिए...दोनो की जोड़ी भी तो बहुत अच्छी है.......

हां अच्छी जोड़ी है ...और इस जोड़ी में अगर रूबी का प्यार जुड़ जाए तो और भी अच्छी हो जाएगी..भूल गयी क्या...प्यार बाटने से और भी बढ़ता है...उसकी मिठास और बढ़ जाती है..उसकी महक रूह तक को सकुन पहुँचाती है...

उफ्फ तुम्हें कैसे समझाऊ.....

सुमन का चेहरा सोते हुए बार बार दर्द की लहरों को दिखा रहा था...सोनल की नज़रें सुमन के चेहरे पे ही थी...उसने देखा की सुमन का जिस्म पसीना पसीना हुआ जा रहा है...यानी सुमन कोई बुरा सपना देख रही है...उसने सुमन को हिलाते हुए पुकारा...

दीदी...दीदी क्या हुआ..कोई बुरा सपना देख रही हो क्या.,

आन आन आन..हड़बड़ाते हुए सुमन उठी

सोनल...क्या हुआ दीदी..कैसा सपना देख रही थी...

सुमन..पता नही ..क्या था...उफ्फ ना जाने ये सपने क्यूँ आते हैं.. उन्हें कॉफी दे दी थी ?

सोनल..हां दे आई थी.....देखती हूँ जा कर उन्हें कुछ और तो नही चाहिए..

सोनल चली गयी और सुमन अपने सपने के बारे में सोचने लगी...सागर जो कह रहा था...वो ..वो उफ़फ्फ़ नही...

एक बार फिर सुमन के अंदर रहती माँ और बीवी में जंग शुरू हो गयी....

माँ ....देख मेरी दूसरी बच्ची कितना तड़प रही है..क्या गुनाह किया था उसने ..जो उसे समर के घर जैसा वातावरण मिला....

बीवी...तो इसमे मेरा क्या कसूर...बाँट तो लियाएक बार अपने पति को..तुम क्या जानो कितना दर्द होता है जब अपने पति को बाँटना पड़ता है..

माँ...दर्द..हुहम...मुझ से बेहतर दर्द को और कॉन समझ सकता है.......9 महीने तक एक रूह का पालन पोषण अपने उदर में करना..फिर अशहनिया दर्द को सहते हुए उसे जनम देना...फिर शुरू होती है असली दर्द की दास्तान..उसे पालने और पोसने में..उसकी हर इच्छा को पूरा करने में..अपनी इच्छा को घोंट उसके सुख को प्राथमिकता देने में.....जब तक वो खुद विवाह के बंधन में ना बाँध जाए ..ये दर्द और वत्सल्या का मिश्रण ही तो हर औरत की असल दास्तान है.......बीवी है तो क्या..है तो तू औरत ही...तू कैसे भूल सकती है..मैं तेरे अंदर ही तो रहती हूँ..

बीवी..हाँ हाँ हूँ मैं औरत ...जो अपने पति को बहुत प्यार करती है...नही देख सकती मैं अपने पति को फिर से दर्द सहते हुए ..बिखरते हुए..बड़ी मुश्किल से संभाला था मैने उसे सोनल के वक़्त..

माँ...जब से तू दुबारा बीवी बनी है तू भूल गयी के माँ क्या होती है..लगता है तू सागर को भी भूल गयी ...जिसने तुझे तेरा ये नया पति दिया..कभी सोचा तूने..वो तुझ से कितना प्यार करता था..अपने जाने के बाद तेरे पहाड़ से जीवेन में खुशियाँ लाने के लिए उसने क्या नही किया..अपने बेटे को हुकुम दे डाला तेरा दूसरा पति बनने को....कैसे भूल सकती है तू उसे..कैसे इतनी ख़ुदग़र्ज़ हो सकती है तू..

बीवी...नही नही मैं ख़ुदग़र्ज़ नही ...मैं तो प्यार का समुंदर हूँ.......जिसमे सोनल और सुनील दोनो गोते लगाते हैं..

माँ..मैं भी यही चाहती हूँ..उस समुंदर में रूबी को भी गोते लगाने दे...देख तुझे कितना सकुन मिलेगा....

बीवी...लेकिन सुनील...वो तो नही से पाएगा ना.....तूने ही तो संस्कार दिए उसे ...तेरे ही तो संस्कारों के पीछे अपनी जान देता है....कैसे जाएगा वो तेरे खिलाफ.

आँखों से नींद उड़ चुकी थी...

रात को जब सोनल फिर सुनील को कॉफी देने गयी ...तो उसने सोनल में कुछ बदलाव देखा..जैसे अंदर ही अंदर वो अपने आप से लड़ रही हो..

उसने सोनल को खींच अपनी गोद में बिठा लिया......'क्या बात है जान जबसे तुम वापस आई हो..कुछ परेशान सी दिख रही हो....मुझे लगता है रूबी के बारे में सोच कर परेशान हो....कोई बात हुई क्या उस से..'

सोनल....नही ऐसा कुछ नही ..तुम अपनी पढ़ाई पे ध्यान दो..

सुनील...तुम सोचती हो मुझ से कुछ छुपा पाओगि..तुम्हारा चेहरा तुम्हारा अईयना है ...सॉफ पता चल रहा है तुम किसी बात से परेशान हो.

सोनल...सुनील की आँखों में देखती है....हां हूँ..रूबी को लेकर ..दुख होता है उसे देख..जो भी हो रहा है ठीक नही हो रहा...उसकी क्या ग़लती है जो इतना सब उसे भुगतना पड़ रहा है ...कभी कभी तो अब ऐसा लगता है जैसे हम मतलबी बन गये हैं.....हम भूल गये जो पापा ने सिखाया था..प्यार बाटने से और बढ़ता है कम नही होता.....खैर छोड़ो अभी ..तुम बस अपनी पढ़ाई पे ध्यान दो ...मैं जा के दीदी को देखती हूँ..

सोनल सुमन के पास चली गयी ..लेकिन सुनील को कुछ सोचने पे मजबूर कर गयी..

सोनल जब कमरे में पहुँची तो देखा सुमन जाग रही थी ..उसकी आँखें नम थी...

सोनल उसके करीब जा कर लेट गयी ....'क्या सोच रही हो..'

सुमन..कुछ नही ..एक ठंडी सांस लेते हुए

सोनल...देखो अभी कुछ ज़्यादा मत सोचो..सब ठीक होगा ..हर काम का एक वक़्त होता है..जब सही वक़्त आता है ...सारे काम अपने आप ठीक हो जाते हैं...आप बस खुश रहा करो...वरना मेरा नन्हा मुन्ना उदास हो जाएगा......सुमन के पेट पे हाथ फेरते हुए बोली...

सुमन...बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगी..

सोनल...सब आपसे ही तो सीखा है........आप बस मेरे नन्हे मुन्ने का ख़याल रखो बाकी सब मुँह पे छोड़ दो..अब आप कोई काम भी नही करोगी..बस बिस्तर पे आराम करोगी..

सुमन...अरे तू तो ऐसे बोल रही है जैसे पाँचवा महीना लग गया हो..

सोनल.....मुझे मेरा गोलू गोलमटोल ..तंदुरुस्त चाहिए और वो तब होगा जब आप अच्छा खाओ..पियोगी...आराम करोगी और सुबह मॉर्निंग वॉक पे जाया करोगी ..रात को टाइम से सो जाया करोगी..

सुमन...ओए होए देखो तो...मेरी सास बन रही है..

सोनल...सास मैं कैसे बन सकती हूँ...वो तो आप हो ......आप मेरी सौतेन भी हो और मेरी सास भी .....ऐसी सास जो माँ से भी ज़्यादा प्यार करती है.....

सुमन....ना जी मैं सौतेन ही अच्छी...सास तो तब बनूँगी ...जब मेरा आनेवाला बच्चा बड़ा होगा और उसकी शादी होगी.....

दोनो की ये चुहलबाजी तब तक चलती रही जब तक सुनील नही आ गया और तीनो फिर सो गये...

लेकिन सुमन ने आँखें तो बंद कर रखी थी ...पर चाह कर भी सो नही पा रही थी...उसका पूरा वजूद एक जंग लड़ रहा था...रात सरक्ति जा रही थी...जाने कब उसे नींद आख़िर में आ ही गयी ..जब दिमाग़ पूरी तरहा थक चुका था.

दूसरे कमरे में रूबी बिस्तर पे लेटी करवटें बदल रही थी...कवि सो चुकी थी...

रूबी ने ये रात आँखों ही आँखों में गुज़ार दी...
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