Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:24 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनील दुखी होता था ...तो सुमन उस से भी ज़्यादा दुखी हो जाती थी......उधर दूसरे कमरे में सोनल भी तड़प रही थी....वो जानती थी ...के सुनील की हालत इस वक़्त क्या है....पर किसी को तो कविता के पास रुकना था ....और वो अच्छी तरहा जानती थी ....कि सुमन सुनील की रग रग में बसी हुई है ...एक वही है जो इस वक़्त सुनील को शराब में नही डूबने देगी ...क्यूंकी सोनल में खुद इतनी अदा अभी नही आई थी ...कि वो वो काम कर सके जो सुमन बेहतर कर सकती थी...आख़िर सुनील था तो दोनो का ही प्यार ...अब ये वक़्त और दिलो की माँग थी कि इस वक़्त सोनल खुद पे काबू रख सुमन को ही सुनील के साथ रात बिताने दे...ताकि कल की सुबह सुनील तरो ताज़ा हो ...जिंदगी को नये सिरे से समझने के लिए ...उसकी रुकावटों को सही ढंग से तोड़ने के लिए ....अपनी आँखों से छलकते आँसू रोकने की कोशिश करती पर वो निकल ही पड़ते........

गाने के अल्फ़ाज़ ख़तम हुए .........तो सुनील ने सुमन को अपने साथ भींच लिया .....और पागलों की तरहा उसे चूमने लगा .......शराब की बॉटल टेबल पे पड़ी ...अपने वजूद को समझने की कोशिश करती रही....और शायद खुद भी इस बात को समझने के लिए मजबूर होने लगी ...गम की दवा तो प्यार है...गम की दवा शराब नही....

सुमन भी पागलों की तरहा सुनील को चूमने लगी ......उसका सुनील गम की गहराई से बाहर निकल आया था....और उसे क्या चाहिए था........दोनो एक दूसरे में इतना खो गये की पता ही ना चला की कब कपड़े उतर गये.....और जिस्म अपनी चिरपरिचित भाषा एक दूसरे को समझाने लगे ........

सुनील...सुमन को उठा के बिस्तर पे ले गया और उसके उरोजो का मर्दन करते हुए असली शराब पीने लगा ...जो सुमन के नशीले होंठों से निकल रही थी ....जिसके नशे का कोई तोड़ ना था...

कभी सुनील सुमन की ज़ुबान चूस्ता तो कभी सुमन उसकी ...दोनो खो चुके थे एक दूसरे में...दीन दुनिया से कोई वास्ता नही रह गया था .....काफ़ी देर हो गयी थी...सुनील सुमन के होंठ छोड़ ही नही रहा था .....जैसे आज ही सारी मदिरा होंठों की चूस जाना चाहता हो.....सुमन ने खुद ही उसे अपने उरोजो पे धकेला और अपना निपल उसके मुँह में दे दिया ....

हन्ंनणणन् अहह चूवसूऊ अच्छी तरहा चूस्सूऊ ...पी जाओ मुझे ....

सुनील के गर्म होंठ और उसकी लपलपाति ज़ुबान सुमन के निपल पे करतब दिखाने लगे ....और सुमन की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी ...

कभी सुनील एक निपल चूस्ता तो कभी दूसरा ....उसके दोनो हाथ सुमन के दोनो मम्मो का मर्दन कर रहे थे....सुमन के जिस्म में आग फैलती जा रही थी ....मचलने लगी थी वो ...और ज़्यादा फोर प्ले उसकी बर्दाश्त के बाहर था ....उसने सुनील को पूरा उपर खींच लिया और उसके लंड को पकड़ अपनी चूत से सटा दिया ......

सुनील भी उस जगह पहुँच चुका था की वापस नही लॉट सकता था ...उसने एक ही धक्के में अपना पूरा लंड सुमन की चूत में घुस्सा दिया...

आाआआईयईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई सुमन ज़ोर से चीखी....पर इस दर्द के अहसास में भी एक लुत्फ़ था जिसे सिर्फ़ वही महसूस कर सकती थी .
सुनील के धक्के अब लगातार स्टार्ट हो गये और सुमन मस्ती में सिसकते हुए चुदने लगी.......सुनील स्पीड पकड़ता गया और सुमन भी उसी तरहा अपनी गंद उछाल सिसकती हुई उसका साथ देती रही....
फिर कुछ देर बाद बिना अपना लंड बाहर निकाले सुनील ने पलटी मारी और सुमन को अपने उपर ले लिया ....

सुमन तेज़ी से अपनी चूत सुनील के लंड पे पटाकने लगी और नीचे से सुनील भी उचक उचक के उसकी चूत में लंड पेलता रहा ..............दोनो में पूरा पागलपन समा चुका था ....तप ठप जिस्मो के टकराने की आवाज़ कमरे में गूंजने लगी और सुमन की गीली चूत जो लगातार अपना रस छोड़ रही थी ....फॅक फॅक फॅक की आवाज़ निकलने लगी थोड़ी ही देर में ...सुमन का जिस्म अकड़ने लगा और वो ज़ोर ज़ोर से सिसकती हुई अपनी चूत सुनील के लंड पे पटाकने लगी.....

अहह सस्स्स्स्स्स्स्सुउुुुुुुुुुउउन्न्ञननननननन्न्निईीईईल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल

चीखते हुए वो सुनील पे गिर पड़ी और झड़ने लगी...........

सुनील ने उसे बाँहों में समेट लिया और शांत पड़ा रहा जब तक सुमन संभलती .......सुमन बुरी तरहा हाँफ रही थी...उसके चेहरे पे एक चमक आ चुकी थी ...जो बता रही थी इस चुदाई में उसे कितना लुत्फ़ मिला था ....जिस्म का पोर पोर आनंद की लहरों में खो चुका था ......

सुमन जब सम्भल गयी तो सुनील ने फिर पलटी मारी और उसे अपने नीचे ले लिया .....सुमन मुस्कुरा के उसे देख रही थी .....सुनील ने झुक के उसके होंठ चूमे और और फिर बिना रुके दे दनादन धक्के पे धक्के लगाने लगा ....

अहह ओह सी उफ़फ्फ़ सी इफफफफफफफ्फ़ उूुउउम्म्म्ममममम ह ह

सुमन की सियकियाँ निकलने लगी और सुनील के धक्के तेज होते चले गये .,...हर धक्के के साथ सुमन के उरोज़ मचल उठते और सुनील का जोश बढ़ा ते रहते .....

कुछ देर बाद सुमन चीखती हुई फिर झड़ने लगी पर इस बार सुनील नही रुका और भी तेज़ी से चोदते हुए कुछ ही धक्कों में सुमन की चूत में झड़ने लगा ....

दोनो हान्फते हुए एक दूसरे से चिपक गये .........और यूँ ही चिपके रहे जब तक आँख नही लग गयी.....
इधर..........................
रात धीरे धीरे सरक रही थी ....पर राजेश कुर्सी पे बैठा बिस्तर को निहार रहा था....कभी कविता उसे किसी पोज़ में नज़र आती तो कभी किसी पोज़ में दिल तड़प के रह जाता ...हाथ बड़ा उसे छूने की कोशिश करता तो वो गायब हो जाती ....

कितनी देर उसकी नज़रें उसके साथ ये लूका छुपी का खेल खेलती रही ......डर लगने लग गया उसे अपने आप से...घबरा के आँखें बंद कर ली ....पर फिर वो गोआ का सीन सामने आ गया ...जब उसने पहली बार कविता को देखा था ....शर्म-ओ-हया और सुंदरता का एक नायाब करिश्मा जिसे बनानेवाले ने बड़ी फ़ुर्सत से बनाया था.....

क्या वो बनाने वाला नही जानता था कि ये मेरी सौतेली बहन है ....कहते हैं उसकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नही हिलता ...तो उसने ये खेल क्यूँ खेला ...क्यूँ मेरी और उसकी शादी होने दी ...क्यूँ मेरे दिल की धड़कने उसे देख बढ़ गयी ....क्या अपने ही बनाई कयानात के साथ खिलवाड़ करना उसका शोक है ...अगर है तो में ही क्यूँ उस शोक को पूरा करने का पात्र बना ...और मेरे साथ कविता को क्यूँ इस खेल में उलझाया ......दर्द देना उसकी फ़ितरत है तो क्या मैं काफ़ी नही था...क्यूँ उस मासूम के दिल को चलनी छलनी कर दिया .....पहले सारी जिंदगी उसे पिता के प्यार के लिए तडपाया ....अब पति दिया तो चन्द दिनो में उसका वजूद बदल डाला...सौतेला भाई बना डाला.......क्या गुजर रही होगी उस पर ...कैसे झेल रही होगी इस तुफ्फान को...और डॅड कहते हैं मैं उसके पास ना जाउ...उसे तड़पने दूं.....क्या इस वक़्त उसे सुनील की ज़रूरत है या मेरी .....इसका फ़ैसला कॉन करेगा......

क्या वाक़्य में वो मुझ से मिलना नही चाहेगी ...क्या वो इतना नही समझी होगी ...अगर वो जो सबका मालिक है ..उसने हमारी शादी करवाई ..तो कुछ सोच के ही करवाई होगी....वरना भाई बहन होते हुए ...क्यूँ हम एक दूसरे को पसंद करते ...क्यूँ शादी करते ....

किसका फ़ैसला मानेगी वो ...कुदरत का ......जिसने हमे मिलाया ...या फिर इस खोखले समाज का ....जो नियम बनाता है और उन नियमों को तोड़ने वालों को बस देखता रहता है हां दिखाने के लिए कमजोर और लोगों की बलि चढ़ाता रहता है ......जो इस समझ के ठेकेदारों से लड़ नही सकते ....आए दिन लड़कियों का रेप होता है ...क्या करता है ये समझ ....आँखें..मुँह कान बंद कर लेता है ...कोई आवाज़ उठाता है तो उस मज़लूम की ही पहले खिंचाई होती है ...साबित करो के रेप हुआ ....और यही समझ उसकी दयनीय अवस्था पे चटकारे लेता है .....हिम्मत कर अगर साबित कर भी दिया की रेप हुआ ...तो बाद में उस लड़की को अपनाने से इनकार कर देता है ........क्या इस समझ की बात मानेगी वो ......या दिल में उठती हुई भावनाओं की बात .....उस कुदरत के फ़ैसले की बात......

मैं जाउन्गा उससे मिलने....एक बार तो ज़रूर मिलूँगा ....फिर जो वो कहेगी ...उसकी इच्छा का मान रखूँगा ....
******

रात तो इधर भी सरक रही थी ......आँखों से आँसू टपक रहे थे ...दिल खून के आँसू रो रहा था...दिमाग़ अपने ही वजूद को कोस रहा था......कहाँ हो माँ ....बताओ ना क्या करूँ......जानती हो माँ ...मेरी शादी...मेरे ही सौतेले भाई से हो गयी .....ये क्या हुआ मा ....ये क्या हुआ.......अब क्या करूँ......मुझे रास्ता दिखाओ ..कहाँ हो तुम......ना तुम मुझे छोड़ के जाती ..ना ये सब होता ...क्यूँ मुझे अकेले छोड़ दिया....सुनील भाई बहुत अच्छा है..पर वो भी मुझे इस दल दल में गिरने से नही बचा पाया .....

कविता जार जार रोए जा रही थी ......कोई रास्ता नही सूझ रहा था ...बार बार हाथ मन्गल्सुत्र पे जाता और जैसे एक बिजली का करेंट लग जाता और हाथ छिटक के परे हो जाता.......
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