Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:22 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनील कमरे की तरफ बढ़ जाता है .....अंदर घुसता है तो देखता है की सोनल सुमन की गोद में बिलख रही थी माफी माँग रही थी ......सुमन उसे चुप करने की कोशिश कर रही थी पर सोनल पे तो माफी माँगने का दौरा चढ़ चुका था.

सुनील पास जा के बैठ गया .....सुमन की नज़रों में गुस्सा भी था और नमी भी थी ......

सुनील ने सोनल को सुमन की गोद से उठाया .....बस और नही ....

सोनल सुनील से लिपट गयी .....प्लीज़ मुझे ......

सुनील ....कहा ना बस .........और अपने होंठ सोनल के होंठों पे रख दिए ............सुनील के होंठों का अहसास पा सोनल शांत होती चली गयी ...

सुनील.......क्या चल रहा है तुम्हारे दिमाग़ में ......अपने होंठ हटा के उसने सोनल से पूछा .........

सुमन को एक तूफान उठता हुआ नज़र आया क्यूंकी वो भी सोनल को कुछ दिनो से देख रही थी ...मिनी के बदले हुए रवैये का असर पड़ रहा था उसपे ........

सुमन.......मत पूछो उस से कुछ .....सम्भल्ने दो उसे अपने आप .....लड़ने दो ...उन बेतुकी भावनाओं से ....


सुनील.........मतलब.......सुनील का दिमाग़ चकराने लगा .......सर में हथौड़े बजने लगे ....कुछ दिनो से घर में जो हो रहा था ...एक एक पल उसकी नज़रों से गुजरने लगा ......और उसके मुँह से निकल गया मिनी........

सोनल ज़ोर से चिपक गयी सुनील के साथ ...जैसे डर रही हो की कोई उसके सुनील को उस से खींच के ले जा रहा हो ....वो शेरनी आज एक भीगी बिल्ली से भी नाज़ुक बन गयी थी ......


सुनील.......आइ लव यू डॉल .......आइ लव ओन्ली यू टू ........

सोनल को सुनील की बाँहों में जो सुख मिलता था वो सारी दुनिया की नैमतों से भी बहुत ज़्यादा था .....जो प्यार करता है वो डरता भी है ....ये बात आज सोनल को समझ में आई थी .........मिनी की पीड़ा को महसूस कर वो अपने पुराने दिनो में चली गयी थी ....और एक डर उसके दिल-ओ-दिमाग़ को दस्तक देने लग गया था........


सुमन...बस बहुत हुआ...अब चलो खाना खा लें...वो दोनो भी वेट कर रही होंगी....
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कविता ने अपनी आँखें बंद कर ली ......जैसे जैसे राजेश उसके करीब आ रहा था वैसे वैसे ......उसकी दिल की धड़कन और तेज होती जा रही थी .
कमान की तरहा तनी हुई भवें, आँखों में काजल ....माथे पे लाल बिंदिया सोने के टीके से धकि हुई ...माँग में चमकती सिंदूर की लाली ....होंठों पे लाल लिपस्टिक ....हाथों में कंगन और सुहाग चूड़ीयाँ, गले में दमकता हुआ कुंदन का हार......कानों में लटकते झुमके ...हाथों में मेंहदी ...पैरों पे मेंहदी और महावर ...अप्सरा भी देख ले तो शरमा जाए ....तो बेचारे राजेश की क्या हालत होती ....दिल उछलने लगा था....साँसों की रफ़्तार बढ़ने लगी थी .......दोनो ही बेचैन हो रहे .......एक की बेचैनी तो खूबसूरती की मूरत को देख बाद रही थी और दूसरे की बेचैनी में घबराहट मिली हुई थी ...आयेज आनेवाले पलों का सोच कर .....

राजेश थोड़ा और आगे बढ़ा ...बड़ा नही जैसे धीरे धीरे उसे कोई खींच रहा था उसकी नज़रें तो कविता के चेहरे से हट ही नही रही थी .......कविता की पलकें पल भर को खुली ....अपनी तरफ बढ़ते राजेश को देख सिहर गयी और फट से घुँगत कर लिया .......

उफफफ्फ़ क्यामत ही टूट पड़ी राजेश पर .....

अपने रुख़ पे निगाह करने दो,,खूबसूरत गुनाह करने दो....रुख़ से परदा हटाओ जाने हया...आज दिल को तबाह करने दो.......अपने आप ही अल्फ़ाज़ राजेश के होंठों पे आ गये .....घूँघट ओढ़े सुहाग सेज पे बैठी कविता के चेहरे की लालिमा और भी बढ़ गयी ....

राजेश धीरे से उसके पास बैठ गया और कविता मारे लाज के और भी खुद में सिमटती चली गयी ........घबराहट में पैरों के टख़नों से बिस्तर नोचने लगी .....दोनो हाथों की उंगलियाँ एक दूसरे में फस गयी और झुक के अपना सर अपने घुटनो से टिका लिया .......

तभी राजेश को याद आया कि दुल्हन को पहले मुँह दिखाई देनी है जो उसकी माँ ने उसे दी थी .......उसने अपनी जेब में हाथ डाला और एक चमकते हुए हीरों का हार निकाला .......

कविता.......राजेश ने धीरे से पुकारा .....पर कोई जवाब नही .....

कविता मेरी तरफ देखो ना ....देखो बेचारे ये पत्थर भी मेरी तरहा जीने की लिए कितना तड़प रहे........राजेश हार को वहीं उसके पैरों पे रखता है और आगे बढ़ उसे उठाने की कोशिश करता है उसके चेहरे को दोनो हाथों में थाम .......कविता राजेश के हाथों के सहारे अपना सर उठा लेती है और राजेश धीरे से उसकी घूँघट को हटा देता है .........चोंधिया जाती हैं राजेश की आँखें........अगर कोई कविता की खूबसूरती का बखान करने बैठता तो कसिदो पे कसीदे लिखता चला जाता ......

अपनी आँखें खोलो हज़ूर .....

कविता ना में गर्दन को हल्की जुम्बिश देती है

राजेश कविता के हाथ को पकड़ लेता है .....अहह सिसक पड़ी कविता ............जानेमन आँखें नही खॉलॉगी तो अपना तोहफा कैसे देखोगी ............राजेश वो हीरे का हार उठा कविता के हाथ में रख देता है और उसे हाथ को चूम लेता है . म्म्म्मा आहह कविता उसके होंठों को अपने हाथ पे महसूस कर लरज गयी .....

देखो बेचारे ये पत्थर तड़प रहे हैं.....जब ये तुम्हारे गले को छुएँगे तो इनके अंदर जान आजाएगी और तुम्हारी चमक से इनको नयी जिंदगी मिल जाएगी....

कविता धीरे से पलकें खोलती है और अपने हाथ में एक सुदार चमकता हुआ हीरों का हार देखती है ..........होंठ काँपने लगते हैं...दिल में एक मुस्कान की लहर उठ जाती है ..........और इस पल को अपनी यादों के खजाने में महफूस करने के लिए अपनी आँखें फिर बंद कर लेती है ........उसके पति का ये पहला तोहफा उसके लिए जान से भी बढ़ कर था.......

राजेश ....पहन कर दिखाओ ना .....देखो कितना तरस रहे हैं ये पत्थर ........वो बार बार हीरों को पत्थर बोल रहा था ....और कविता उसकी बात पे हैरान थी पर कुछ बोल नही पा रही थी .....जो हीरे हार में जड़े हुए थे उनकी लशक ही बता रही थी कि वो कितने कीमती हैं......

कविता तो आँखें बंद रख छुई मुई की तरहा बैठी रही .....राजेश हार उठा उसके गले में डाल दिया ....उफ़फ्फ़ क्या चमक थी ...यूँ लग रहा था जैसे कविता के बदन को छू कर उन हीरों में जान आ गयी हो ......

जब राजेश के हाथों का अहसास अपनी गर्दन पे हुआ तो कविता के जिस्म में हलचल मच गयी .......पहली बार कोई मर्द उसे छू रहा था .....उसका पति उसे छू रहा था ...ये अहसास एक रोमांच उसके बदन में जागृत कर रहा था .....उसके होंठ कमकपाने लगे थे ......

राजेश ......देखो तुम्हारे पहनने से इनमे कितनी जान आ गयी है वरना ये पत्थर ...पत्थर ही रह जाते ............चलो एक बार शीशे में देखो तो सही .....


कविता फिर अपनी गर्दन को ना में हल्की जुम्बिश देती है .....

कवि.....चलो ना उठो .....राजेश उसे पहली बार कवि कह के बुला रहा था और कविता को ये नाम उसके कानो में रस घोलता हुआ लग रहा था......राजेश उसका हाथ पकड़ खींचता है और वो खिंची चली जाती है .....पर अपनी आँखें बंद ही रखती है .........राजेश के साख हाथों में उसका नाज़ुक हाथ चरमरा रहा था .....जिस्म में अंजनी तरंगों की लहरें उठने लगी थी .........

राजेश उसके कंधे पे अपनी बहन फैला उसे खुद से सटा लेता है और धीरे धीरे उसे कमरे में रखी ड्रेसिंग टेबल के सामने ले जाता है .......

आँखें खोलो ........कविता धीरे से अपनी पलकें उठाती है .....और अपने गले में चमकते हुए हार को देख एक भीनी सी मुक्कान उसके अधरो पे लहर जाती है .....वो अपना सर फिर झुका लेती है और राजेश उसके पीछे हो उसकी बाँहों को सहलाते हुए अपने दोनो बाजू उसके बाजुओं से चिपकते हुए अपनी उंगलियों को उसकी उंगलियों में फसाते हुए उसकी गर्दन पे अपनी नाक रगड़ते हुए पूछता है........पसंद आया मेरी जान को ये मामूली तोहफा .......
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