Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-19-2019, 01:20 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुमन और सुनील….जब हॉस्पिटल पहुँचे तो आइसीयू के बाहर खड़ी दौड़ती हुई सुनील से चिपक के रोने लगी…’भैया इन्हे बचा लीजिए’

‘शांत हो जाओ…कुछ नही होगा उसे…….उपरवाले पे भरोसा रखो….’

सुमन डॉक्टर्स से बात करने लगी…….आक्सिडेंट सीरीयस हुआ था….रमण को कोई होश नही था…उसकी एक टाँग बुर्री तरह टूटी थी और दायां हाथ भी पास्टर में था….सारा जिस्म चोटों से भरा हुआ था. सर पे भी काफ़ी चोट आई थी.

सुनील : आक्सिडेंट हुआ कैसे …तुम लोग तो आज मुंबई नही जानेवाले थे क्या?

मिनी …….नही हमारी फ्लाइट कल की है…आज रात तो यही सोच के आए थे कि आपलोगो के साथ रुकेंगे…पर…….हमने होटेल कर लिया और ये बस रूम में पहुँच पीते रहे….बहुत मना किया इन्हें पर मेरी कोई बात नही सुनी….रोने लगते और पीते रहते……..रात को बोले टहलने बाहर जा रहे हैं…नशे में इतना थे कि मैं सड़क पे चले गये और आ ट्रक इन्हें कुचालता हुआ भाग गया रुका ही नही…वो तो होटेल के कुछ स्टाफ की नज़र इन्पे पड़ गयी….फटाफट होटेल वालों ने ही आंब्युलेन्स बुलवाई और यहाँ अड्मिट कर दिया गया…….कहते कहते मिनी फिर रो पड़ी…….

मिनी मानने को तयार नही होती पर सुनील उसे ज़बरदस्ती सुमन के साथ घर भेज देता है….और फोन पे सोनल और रूबी को समझा देता है…कोई बदतमीज़ी नही होगी मिनी के साथ.

4 दिन गुजर जाते हैं रमण को होश नही आता…डॉक्टर्स के हिसाब से उसे गहरा सदमा पहुँचा होता है….जीने की इच्छा ही ख़तम हो गयी थी.

तब सुनील को एक ही रास्ता नज़र आता है…वो रूबी को हॉस्पिटल बुलाता है और उसे समझाता है कि रमण बदल चुका है…और पश्चाताप में जल रहा है..उसे दिल से माफ़ कर दो…..जो भी था …आख़िर रमण था तो उसका पहला प्यार…चाहे रमण ने उस से प्यार ना किया हो..पर रूबी ने दिल से प्यार किया था……सुनील के समझाने पे वो टूट जाती है और आइसीयू में जा के रमण के हाथ को अपने हाथों में ले…..उसे माफ़ कर देती है….’भाई वापस आ जाओ…मैने तुम्हें माफ़ किया….दिल से बोल रही हूँ भाई……वापस आ जाओ…अपनी बहन को छोड़ के मत जाओ……तुम्हें मेरी कसम.’

रूबी रोज आती और घंटों रमण के हाथ को अपने हाथों में ले उस से बात करती …4 दिन और ऐसे ही चलता रहा …..फिर रमण को होश आ गया….उसकी आँखों में आँसू थे…उस वक़्त रूबी उसके पास थी और मिनी, सुनील बाहर बैठे थे.

रूबी ने रमण की आँखों को चूमा….’भाई भाभी के साथ हँसी खुशी रहो…..और भूल जाओ जो पहले हुआ था….मेरा भाई वापस आ गया और कुछ नही चाहिए…….भाभी का रो रो के बुरा हाल है…मैं उसे भेजती हूँ…..’ रूबी बाहर निकल आई और मिनी को ये खुशख़बरी दी कि रमण को होश आ गया है …..मिनी रोती हुई अंदर चली गयी और जा के रमण के चेहरे को चुंबनो से भर दिया.

एक हफ़्ता लग गया रमण को आइसीयू से बाहर निकलने में और फिर 15 दिन और लगे रूम में उसके बाद सुनील रमण को घर ले आया और अपना कमरा रमण और मिनी को दे दिया. अभी कम से कम 4 महीने लगने थे रमण को अपने पैरों पे खड़े होने में…..मिनी उसकी देखभाल में जुट गयी .

सुनील ने रूबी का ध्यान पढ़ाई में डाइवर्ट कर दिया. और खुद तो वो पढ़ाकू था ही. सोनल एमडी में अड्मिशन की तैयारी में बिज़ी हो गयी…..सवी ने अपने बेटे को माफ़ कर दिया….पर सख्ती से मना कर दिया कि भूल के भी अपने बाप का नाम नही लेगा….ठीक होने के बाद अगर अपने बाप के पास जाना चाहता है तो बेशक चला जाए.

मिनी ने मुंबई के पड़ोसी को फोन कर सारी डाक यहाँ देल्ही फॉर्वर्ड करने की रिक्वेस्ट दे दी और रमण ने फोन से बॅंक को इन्स्ट्रक्षन दे दी कि उस हॉस्पिटल में जहाँ समर अड्मिट था हर महीने एक रकम भेजते रहें ….कुछ भी हो ….बाप तो बाप ही होता है….अब चाहे माँ बाप अलग हो गये हों….रमण समर को ऐसे कैसे छोड़ देता.

अभी एक हफ़्ता भी नही हुआ था रमण को यहाँ सुनील के घर आए हुए …कि जिंदगी में एक और बॉम्ब फट गया……..एक औरत की चिट्ठी जो समर के नाम थी….वो मिली …….और जिंदगी में भुंचाल आ गया.

वो चिट्ठी कुछ इस प्रकार थी……

समर,

चाहती तो नही थी कि तुम्हें ये चिट्ठी लिखूं…पर हालत ने मजबूर कर दिया.
तुमने तो मुझे अपनी जिंदगी से बाहर निकाल दिया मेरे रूप रस को अच्छी तरहा पीने के बाद…..और जब मैं प्रेग्नेंट हुई तो सॉफ सॉफ मुकर गये.
खैर तुमपे भरोसा करनी की सज़ा भी मुझे कुदरत ने दे दी है.

हमारी बेटी कविता …फोटो भेज रही हूँ……*** कॉलेज में एमबीबीएस कर रही है……..मुझे कॅन्सर हो गया है और बस चन्द दिनो की मेहमान हूँ…मेरे बाद कविता की देखभाल करने वाला कोई नही है…..उम्मीद करती हूँ ….अब अपनी बेटी को लावारिस नही छोड़ोगे …और एक बाप का फ़र्ज़ निभाओगे….

जब तक तुम्हें ये चिट्ठी मिलेगी…मैं जा चुकी हूँगी…क्यूंकी तुम्हारी शक्ल कभी नही देखना चाहती….अगर बेटा होता…तो कभी नही लिखती …पर बेटी को इस दरिंदे समाज में बिना सहारे कैसे छोड़ दूं…इसलिए मजबूर हो गयी तुम्हें ये खत लिखने को……..

अलविदा
समीरा

ये चिट्ठी पढ़ रमण और मिनी को समझ ही नही आया कि क्या करें…….सवी को बताएँ या नही…….आज रमण बस एक इंसान पे भरोसा करता था…और वो था सुनील.
रमण ने वो चिट्ठी सुनील को दी और उसे पढ़ जहाँ वो समर के लिए खुंदक से भर गया ….वहीं अपनी उस अनदेखी बहन के बारे में सोच तड़प उठा…जो सारी जिंदगी बाप के प्यार को तरसती रही…

सुनील वो चिट्ठी ले कर सुमन के पास गया और पूछा क्या करना चाहिए.

सुनील चिट्ठी ले के चला गया और रमण अपना सर पीटने लगा बिस्तर की पुष्ट से…….

‘अरे क्या कर रहे हैं…..अभी मुस्किल से जख्म भरे हैं आपके सर के’ मिनी ने फट से अपनी बाँह रमण के सर के नीचे रख दी.

‘क्या करूँ मैं…..क्या करूँ…घिंन आने लगी है अपने जनम पे……कॉन से पाप किए थे पिछले जनम में जो ऐसा बाप मिला …..’ रमण रो पड़ा.

‘बस कीजिए…ये सब होनी का खेल है……उस उपरवाले ने आपको एक बहन और देनी थी…ज़रिया चाहे कोई भी हो….’

‘क्या मतलब तुम्हारा …’

‘वो आपकी बहन है….चाहे सौतेली ही सही……है तो बहन…उसे क्या दर दर भटकने देंगे….अब जब उसकी माँ का साया भी सर से उठ गया’

‘कल ऐसी कोई और चिट्ठी आ गयी तो…और फिर एक और….और फिर एक और……डर लगने लग गया है अपने ही वजूद से……..’

‘भाई गया है ना मासी माँ से बात करने…वो जो फ़ैसला करेंगी …वो ठीक ही होगा….’

सुनील ने जब वो चिट्ठी सुमन को दिखाई उसकी आँखें फटी रह गयी….वो तो ये सोचती थी कि समर ने जाल बुना था उसे पाने के लिए…पर समर का ये रूप उसकी रूह तक को कड़वाहट से भर गया …जिसका अहसास सुनील को उसी वक़्त हो गया और सुनील ने उसे अपनी बाँहों में भरते हुए कहा ….’उस कुत्ते के बारे में मत सोचो…ये सोचो इस लड़की का क्या करें….देखा जाए तो मेरी नाजायज़ सौतेली बहन है……पता नही ऐसे और कितने किस्से सामने आएँगे वक़्त के साथ’……..इस वक़्त अगर समर सुमन के सामने पड़ जाता तो शर्तिया उसके खून की नदियाँ बहा डालती…..

‘ मुझ से क्यूँ पूछ रहे हो…इस घर के सर्वेसर्वा अब आप हो….आप ही डिसाइड करो …..’

‘ये मेरे अकेले का फ़ैसला नही हो सकता ….मैं बाकी सब को भी बुला लेता हूँ….’

‘रूबी को मत बुलाना …..बड़ी मुस्किल से संभली है …मैं नही चाहती कि फिर एक तूफान उसे लप्पेट ले ….उसे अपने करियर पे ही ध्यान देने दो…’

‘हां मैने ही ठेका ले रखा है…हर तूफान को झेलने का….’ एक कड़वी मुस्कान के साथ सुनील ….सोनल और सविता को बुलाने चला गया.

सोनल और ….सविता दोनो आ जाती हैं और सुमन वो लेटर उनके सामने रख देती है….सोनल कोई प्रतिक्रिया नही करती पर सविता ज़मीन पे ऐसे थुक्ति है जैसे समर के मुँह पे थूक रही हो.

‘ये वक़्त रंजिश जताने का नही….एक लड़की की जिंदगी का सवाल है ……इस लिए इस बात को सीरियस्ली लो …..अगर कोई लड़का होता तो जैसा लेटर में लिखा है समीरा खुद उसे उसके हाल पे छोड़ देती….हमे पता भी नही चलता….और शायद कभी पता नही चलता अगर समर कुछ करने की हालत में होता….सवाल एक लड़की का है ..उसकी जिंदगी का है….इसलिए रिश्ते भूल जाओ…और एक औरत की तरहा सोचो….’

‘आप फ़ैसला ले चुके हो ना….’ सोनल बोली

‘मेरे फ़ैसला लेने या ना लेने से क्या होगा …जब तक ये परिवार एक फ़ैसला नही लेता.’

‘भाड़ में जाए वो और समर साथ में….हम क्यूँ सर दरदी मोल लें’ सविता बोली.

‘ये तस्वीर देखो…..’ वो कविता की तस्वीर सवी के सामने रखता है …..’अब अपनी आँखें बंद करो …….एक लंबी साँस छोड़ो ….गुड…फिर एक बार छोड़ो….गुड…अब अपने दिमाग़ को बिल्कुल खाली कर दो…..भूल जाओ …सब कुछ….अब अपने कानो पे ध्यान दो……क्या कविता की आवाज़ सुनाई दे रही है…..माँ ….कहाँ हो तुम…. वो माँ को पुकार रही है या बाप को...'

सविता की बंद आँखों में आँसू आ जाते हैं.....वो अपनी आँखें खोल देती है......

‘दुनिया के दर्द की परवाह है ….और अपनो के दर्द की तरफ ध्यान ही नही देते’ एक रोश था सवी की ज़ुबान पे .

‘है ना अपने सभी के दर्द की परवाह….पर क्या आपने कभी सोचा …कि आपका ये भांजा कितना अकेला पड़ गया है …..आपने भी रिश्ता बदल लिया ….और नयी कामनाएँ जगा ली…ये भूल गयी …इस भानजे को माँ की भी ज़रूरत है……मासी भी तो माँ ही होती है…..तभी तो माँ की बहन को मासी कहते हैं…मतलब माँ जैसी …..आप तो रिश्ते बदलते ही साली बनने पे उतारू हो गयी थी…..एक बार ये नही सोचा …..आपका ये बेटा…क्या क्या भुगत रहा है…….कितनी बार आपको समझाने की कोशिश करी ……एक साथ कड़वा निकला तो क्या…आगे बढ़ो जिंदगी में ….एक नया सहारा अपनाओ…पर आप तो मेरे ही पीछे पड़ गयी …..साली का जो नया रिश्ता बन गया था……अगर इस घर में मैं अच्छा निकल आया तो इसका मतलब ये तो नही कि इस घर की हर औरत के साथ मेरे जिस्मानी संबंध बने …फिर हममे और जानवर में क्या फरक रह जाएगा……क्या आदमी …इतनी तरक्की के बाद भी …वही जानवर का जानवर ही है ….जो पहले हुआ करता था….जब कोई रिश्ता नही होता था…..बस जिसपे दिल आया उसके नीचे बिछ गये या उसको ठोक दिया ….क्या उसी दुनिया में वापस जाना चाहती हो….या इस भान्जे के सर पे प्यार भरा हाथ रख उसे लड़ने की ताक़त दोगि ‘

सविता बिलख बिलख के रोने लगी

उसे समझ नही आ रहा था …इस जलेबी में कॉन सा किरदार निभाए…मासी का या साली का जो अपने जीजा को हसरातों भरी नज़रों से देखती है.

कमरे में सन्नाटा छा गया था …सिवाए सवी की रोती हुई हिचक़ियों के.

सुमन ने सवी को अपने गले लगा लिया……….
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