Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-19-2019, 01:18 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
एक दिन इनकी क्लासमेट रजनी आई थी…वो इन्हें प्यार करती थी..मैने उसे इन्हें किस करते हुए देख लिया था…बस पता नही क्यूँ मेरे तन बदन में आग लग गयी …उस दिन मुझे अहसास हुआ …ये मेरे हीरो ही नही मेरे सब कुछ बन चुके हैं…मेरा दिल, मेरी आत्मा सब इनकी हो चुकी थी …..फिर मैने रजनी को कभी कोई मोका नही दिया इनके साथ एक पल भी अकेले बिताने का…….मैं इनसे प्यार करने लगी थी…पर भाई –बहन का रिश्ता हमेशा बीच में आता और मैं इन्हें कभी कुछ नही बोल पाती थी…मेरा प्यार मेरे अंदर ही दम तोड़ रहा था….बात तब की है जब मोम डॅड हॉलिडे पे गये थे …तब मैं और ये अकेले घर रह गये थे…..मैं रोज सोचा करती थी कि आज इन्हें बोल दूं…आज इन्हें बोल दूं…पर इनको देख के डर जाती थी…इनके चेहरे की मासूमियत ..इनका रिश्तों पे भरोसा …मेरी हिम्मत तोड़ देता था….लेकिन उस दिन हम फिल्म देखने गये थे…मैने इन्हें रिझाने के लिए भड़कीले कपड़े पहन लिए थे…पर जनाब पता नही किस मिट्टी के बने हुए थे…शायद कुछ असर तो हुआ ही था इन्पर…पर इनकी मर्यादा की दीवार तो बॅंकर से भी मजबूत थी…..फिल्म देख के जब हम वापस आए तो मैं ना रह सकी मैने अपना प्यार इन्पर जाहिर कर दिया….ये ऐसे बिद्के जैसे मैं कोई लड़की नही भूत हूँ…और मुझे मर्यादा का पाठ पढ़ा अकेला छोड़ दिया….लेकिन मैं वहाँ पहुँच चुकी थी..जहाँ से मेरा वापस लोटना नामुमकिन था…बस मोत ही मुझे इनको चाहने से रोक सकती थी……ये मुझ से दूर होते चले गये और मैं तड़पति रही…मेरा दिल रो रो कर गुहार करता पर ये कुछ सुनने को तयार ना थे. मैं अपनी हर बात अपनी डाइयरी में लिखा करती थी.

मेरे हर सपने में ये होते थे..मेरी हर साँस बस इनकी तमन्ना में चल रही थी.

जिस दिन मैं कान्फरेन्स छोड़ वापस आई ….उस दिन …मैने सविता मासी को फिंगरिंग करते हुए देखा …उनके ख़यालों में ये थे….वो बार बार बोल रही थी…सुमन को अपना लिया ..हनीमून मनाने चले गये..मुझे क्यूँ तड़प्ता छोड़ दिया…..

मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया…मैं भूल,गयी कि मैं एक बेटी भी हूँ…वो लड़की जिसके अरमान कुचले हुए थे वो विफर उठी …उसे दीदी अपने प्यार पे डाका डालते हुए दिखी और मैं फट पड़ी…

इसके आगे जो हुआ तुम जानती ही हो….एक दिन दीदी मेरे कमरे में आई और बोली…मेरी सौतेन बनोगी….उस दिन…उस दिन मुझे तीसरी बार नयी जिंदगी मिली थी….पहली बार…जब मेरा जनम हुआ था…दूसरी बार जब इन्होने मुझे बचाया था…तीसरी बार जब दीदी ने मुझे अपनी सौतेन बनाना स्वीकार किया था…..

कमरे में सन्नाटा छा गया था……..

कुछ देर ऐसे ही सन्नाटा छाया रहा...जिसे सुनील ने तोड़ा....

'ब्लॅक कॉफी मिलेगी क्या ??' इस बार उसने ना सूमी को कहा ना सोनल को ...क्यूंकी बात खुल चुकी थी...उसके लिए दोनो में से कोई भी लाती एक ही बात थी.

सोनल हैरानी से उसे देखने लगी ....वो ब्लॅक कॉफी तब ही माँगता था..जब बहुत टेन्षन में होता था...यानी अब भी कुछ बाकी था सुनील के जेहन में..

इस से पहले वो उठती सूमी उठ गयी ....और जाने से पहले सबसे पूछ लिया....'एनी बॉडी केर फॉर सम्तिंग' ......कोई इस हालत में होता तो कुछ बोलता.....उसको हँसी आ गयी ...जिंदगी क्या क्या झटके देती है...वो चली गयी सबके लिए कॉफी बनाने.....



सूमी कुछ ही देर मैं सवी के लिए चाइ और बाकी सबके लिए कॉफी ले आई …सुनील के लिए ही ब्लॅक कॉफी थी.

कॉफी के दो घूँट लेने के बाद सुनील ने गर्देन ऐसे हिलाई जैसे बहुत थक गया हो…..

सोनल और सूमी दोनो ही उसके पास जाने को खड़ी हो गयी ….इशारे से सुनील ने रोक दिया…मन मसोस के दोनो बैठ गयी…..

सुनील ने बोलना शुरू किया …..

‘रूबी ना मैं समर बन सकता हूँ (इशारा सवी को था…मुझे भूल जाओ) ना ही मैं रमण बन सकता हूँ ( इशारा रूबी को था मेरे ख्वाब देखना छोड़ दो)
परसों जब तुमने अपने प्यार का इज़हार मुझे किया था ( सवी के हाथ से कप गिरते हुए बचा…..ये एक और बॉम्ब फटा था उसके लिए….माँ बेटी दोनो एक ही शक्स को चाहने लगी थी)

(रूबी तो बगले झाँकने लगी …उसके प्यार की खुली नुमाइश उसे पसंद ना आई ….सुनील इस बात को दबा के भी तो रख सकता था…..अब मोम क्या सोचेंगी…वो और मैं दोनो एक ही आदमी से प्यार करती हैं. फिर उसे सुनील के अल्फ़ाज़ याद आए …मैं एक खुली किताब हूँ……और मन मसोस के रह गयी.)

मुझे ऐसे लगा था कि मैं फिर पाताल की गहराइयों में गिरता चला जा रहा हूँ…मेरा दम घुटने लग गया था…..ज़िम्मेदारी उठाने का मतलब ये निकल आएगा…मैने ख्वाब में भी नही सोचा था…..तुम्हें खुद समझाने की मुझ में हिम्मत नही थी…इसलिए सोनल तुम्हें समझाने आई थी …..और कल जब तुमने मुझे दिल से भाई कहा था …तुम नही जानती मुझे कितना सकून मिला था…

लेकिन आज सुबह वो हो गया जिसकी मैं कल्पना नही कर सकता था …या फिर लापरवाह हो गया था…कल ऐसे ही छोटी बात पे मैने सूमी का दिल दुखा दिया था…तो आज सुबह नींद जल्दी तो खुलनी ही थी..क्यूंकी मैं सोया नही था…सारी बोतल गुस्से में आ कर एक सांस में चढ़ा गया था…अब नशे से आँखें तो बंद होनी ही थी..वही हुआ..नशा उतरा आँखें खुली और अपनी ग़लती का अहसास हुआ…..इसलिए आज इनके लिए कॉफी बना के ले गया था…. जो तुमने देखा वो मैं एक माँ से नही ..एक बहन से नही अपनी दोनो बीवियों को किस कर के उन्हें मना रहा था….हमारे बीच में ना कोई सॉरी बोलता है ना कोई थॅंक यू…..ये सब हमारी डिक्षनरी में नही हैं.

उम्मीद करता हूँ….आज सुबह जो तुमने देखा वो तुम्हारी उन भावनाओं को हवा नही देगा …जो परसों थी.


अब ये इशारा था रूबी के लिए .....जो भी सवाल तुम्हारे दिमाग़ में हो ...पूछ लो.....

‘भाई आज मुझे इस बात का बहुत अफ़सोस होता है …मैं अपने पापा (सागर) ----के साए तले क्यूँ नही पली….मुझे रमण की जगह आप मिलते….एक दिल से प्यार करनेवाला भाई मिलता …ना कि शोसन करने वाला ……आज मैं एक झूठी पत्तल हूँ…जो मैं चाह कर भी अपने देवता के चरणों में नही चढ़ा सकती ‘

सुनील कुछ बोलने को हुआ…….

‘नही भाई …..अब आप तब बोलोगे…जब मैं चुप हो जाउन्गि….तब तक आप कुछ नही बोलोगे …ना कोई और बीच में बोलेगा’

‘माँ अकेली क्या कर लेती जब डॅड ही ऐसे थे…..जो परवरिश आपको मिली अगर वो हमे मिली होती तो…तो…आपकी ये बहन इतनी ज़ख्मी नही होती……. हालाँकि आप उम्र में मेरे बराबर हो…लेकिन फ़र्ज़ एक बड़े का ही निभा रहे हो….इसलिए अब आपको पहले की तरहा नाम से नही बुला सकती ……मैं तो हर तरहा से आप से छोटी ही हूँ …….’

बोलते बोलते रूबी रो पड़ी……..


सुमन उसके पास आ के बैठ गयी और प्यार से उसका सर सहलाने लगी ‘बस गुड़िया…रोते नही’

रूबी ने खुद को संभाला…..वहाँ घर में तो वासना का वास होता था…ना कि सरस्वती का जो यहाँ होता है….मैं छोटी उम्र में …किस से क्या बात करती….कितनी बार मोम डॅड को …ऐसी हालत में देखा….जो दिमाग़ पे अंकित होती चली गयी …और जब रमण ने हाथ बढ़ाया तो पके हुए फल की तरहा गिर पड़ी….दो साल…दो साल तक उसने मुझे भोगा …और एक दिन मुझे भोगते हुए ….वो सोनल भाभी का नाम ले बैठा. ( सोनल ने एक दम उसकी तरफ देखा ) चोंकों मत भाभी …अब जब रिश्ते बदल ही चुके हैं तो मुझे मेरे भाई की छत्र छाया में जीने दीजिए…जितना भी जीवन बाकी है.

(रूबी का एक एक शब्द हथौड़े की तरहा सब के दिल-ओ-दिमाग़ पे पड़ रहा था.) उस दिन मुझे पता चला मैं तो प्यार करती थी…पर वो मुझे भोगता था बस…..अगर रोल प्ले होता…तो पहले बोल देता…पर ऐसा रोल प्ले तो मैं कभी ख्वाब में भी स्वीकार नही करती….उस दिन मुझे पता चला …कि मेरे साथ क्या हो रहा है…और जब भी मुझे तकलीफ़ होती थी …मेरा एक ही .सहारा था….मेरे सागर अंकल …..जो आज पता चला मेरे पापा थे……मैं रमण से दूर हो गयी…उसकी शक्ल से नफ़रत हो गयी थी मुझे…ये वही वक़्त था …जब मोम डॅड पर्सनल हॉलिडे पे आए थे….मैं बहुत डर गयी थी और अपनी सहेली के घर चली गयी…..रमण ने बहुत बार कॉल किया..मैने कभी जवाब नही दिया…एक दिन…..उसने एमएमएस भेजा….जो ग़लती से पापा के पास भी चला गया….क्यूंकी मैं पापा को वो एमएमएस कभी नही भेज सकती थी……मैने बस एक एसएमएस भेजा था…सेव मी.
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