RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"सन्नी, चलो सो जाओ, ज़्यादा नही सोचो अब..." ऋतु ने मेरे सर पे हाथ फेर कहा और बिना कुछ कहे वहाँ से सोने चला गया.. पूरी रात बस मॅच की रिज़ल्ट के बारे में सोचता रहा, टाइ हुआ ही क्यूँ, बट साला अभी क्या कर सकते हैं.. सोचते सोचते जब नींद आई तो सब चिंता गायब, पहली बार इतने वक़्त के बाद मैं 10 घंटे की नींद से जागा था..
"10 बज गये हैं, घर नहीं जाना क्या तुझे.." बाबा ने रूम में आके कहा
"हां, बस नहा लिया है, 10 मिनट में निकल रहा हूँ.."
"घर जाके कॉलेज की बात का ज़िक्र करना, नहीं समझेंगे जानता हूँ, पर झूठ नहीं बोलना, समझा.." बाबा ने मुझे कहा और बिना कुछ सुने अपनी बात बोलते चला गया
"चलिए, मैं जाता हूँ, और आपका नंबर भी सेव किया है, अब से इन से कोई बात नहीं , डाइरेक्ट आपको कॉल करूँगा ओके.." मैने ऋतु से गले लग के कहा और दोनो से अलविदा कहके घर चला गया
"बताऊ कि नहीं, और बताऊ तो कहाँ से शुरू करूँ बात... यार खोटा गुस्सा किया, साला.. पर ठीक है, अच्छा किया उनको मार के, लेकिन अब घर पे क्या करूँ.."
सोचते सोचते रास्ता ख़तम हो गया लेकिन कुछ जवाब नहीं मिला
"नहीं बताता फिलहाल.." मैने खुद से कहा और डोर बेल बजा दी
"आओ..." डॅड ने कहा और दरवाज़ा छोड़ अंदर आने का रास्ता दिया
"तेरी माँ का.... " मैने खुद से कहा जब अंदर आके यह देखा कि प्रिन्सिपल सर सामने वाले सोफे पे बैठा है और मोम और डॅड दोनो के चेहरे लाल लगे पड़े हैं
"यह सब क्या है सन्नी.." पापा ने मुझ से चिल्ला के पूछा जब प्रिंसी ने उन्हे बताया था कॉलेज में हुए हादसे के बारे में
अब मैं क्या बोलता, वो भी प्रिन्सिपल के आगे, इसलिए बस खामोश रहा और कभी एक नज़र प्रिन्सिपल को देखता तो कभी पापा को तो कभी मम्मी को.. वैसे मोम डॅड दोनो गुस्सा तो थे ही, लेकिन प्रिन्सिपल भी कुछ कम गुस्से में नहीं लग रहा था, हां, उसे गाली दी थी ना, तभी शायद..
"सन्नी, कुछ कहोगे तुम कि नहीं..." डॅड ने फिर चिल्ला के पूछा लेकिन मैने कोई जवाब नहीं दिया क्यूँ कि मैं प्रिंसी के आगे कोई सीन नहीं बनाना चाहता था
"उः, वेल आइ गेस आइ मस्ट टेक आ लीव नाउ.." प्रिंसी ने सोफे से खड़े होके कहा
"ओह, ओके मिस्टर रस्तोगी, आंड आइ अपॉलज्ज़ फॉर हिज़ बिहेवियर, आम सो सॉरी फॉर ऑल दिस मेस.."
"बट आइ आम नोट सॉरी..." मैने डॅड को बीच में काट के कहा
मेरी यह बात सुन डॅड और प्रिंसी दोनो हैरानी से मुझे देखने लगे, लेकिन कहा कुछ नहीं, शायद सोच रहे थे कि क्या कहे
"सन्नी, ईज़ दिस दा वे यू टॉक वित युवर्ज़ सीनियर्स इन कॉलेज..." इस बार मोम ने कहा, लेकिन मैने उन्हे कोई जवाब नहीं दिया
"आइ गेस आइ नीड टू लीव.." इस बार प्रिंसी ने फिर कहा और ज़्यादा कुछ सुने या बोले बिना वहाँ से निकल गया..
"यह सब क्या है सन्नी, तुम्हे पता भी है कि यह सब क्या किया तुमने, पोलीस ले गई थी तुम्हे, मेरी इज़्ज़त की धज़िया उड़ा दी तुमने..." पापा प्रिंसी के जाते ही बरसना चालू हुए
"लोगों को पता चलेगा तो क्या कहेंगे, और यह सब किया क्यूँ.. पंकज और अजय तुम्हारे इतने अच्छे दोस्त हैं, फिर यह सब क्यूँ.. और कॉलेज से रेसटिगेट किया तो खुद निकल आए.. तुमसे ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी सन्नी.." मम्मी ने फिर कहा
"यह सब तुम्हारे लाड प्यार की वजह से ही है, और चढ़ाओ सर पे, मैने बचपन में ही कहा था इसे बोरडिंग स्कूल भेजो, लेकिन तुम मेरी कोई बात कहाँ सुनती हो.." इस बार पापा ने मम्मी से कहा
"यह सब आपका कसूर है, शुरुआत से ही इसे पैसों की आदत लगा दी, अब भुगत लो.. अब खुद की ग़लती दिखी तो मुझ पे पूरा ब्लेम डालो.." मम्मी ने फिर पापा से कहा
"समझ नहीं आ रहा था आख़िर जवाब किसे दूं, मम्मी को या पापा को, और क्या जवाब दूं.. कॉलेज के बिहेवियर की वजह बताऊ या अभी जो यह लोग एक दूसरे पे हमला कर रहे थे उसका जवाब दूं, मैं बस मन में सोच ही रहा था शुरू कहाँ से करूँ, लेकिन फिर जब बाबा के वहाँ से निकला था तो ऋतु ने जाते जाते एक बात कही
"सन्नी.. कुछ भी हो जाए, तुम अपने मम्मी पापा से कुछ नहीं कहना, तुम्हारे लिए वो लाख बुरे होंगे लेकिन दुनिया में कोई माँ बाप अपनी औलाद का बुरा नहीं चाहते,
अगर उन्होने तुम्हे वक़्त नहीं दिया है तो इसकी वजह भी शायद तुम खुद हो, शायद उन्हे लगा हो कि वो तुम्हारा भविश्य सुरक्षित करके फिर तुम्हे वक़्त देंगे, या कुछ और भी, मैं उनकी साइड नहीं ले रही पर फिर भी, माँ बाप की फीलिंग्स को तुम्हे समझने में काफ़ी वक़्त लगेगा.. और जब तुम यह समझोगे उसके बाद तुम अपने मम्मी पापा से बात करना.. तब तक उन्हे पलट के कुछ मत कहना प्लीज़... अगर कमज़ोर पडो और गुस्सा आए तो चुप करके अपने कमरे में चले जाना.."
"अब कुछ कहोगे कि नहीं, तुम्हारी वजह से ही यह सब हुआ है..और यह बताओ, एग्ज़ॅम तो दिए नहीं, और पंकज अजय से लड़ाई कर ली, फिर इतने दिन कहाँ थे और किसके साथ थे.." पापा ने इस बार फिर सवाल किया जिसका जवाब मैं नहीं देना चाहता था
"सन्नी जवाब दो हमें, हम क्या पूछ रहे हैं, किसी ग़लत संगत में तो नहीं फस गये हो ना.." मम्मी ने उंगली दिखा के पूछा
"नहीं मोम.. वो दूसरा दोस्त है कॉलेज का, उसके साथ था.." बाबा और ऋतु की बात के साथ ग़लत शब्द सुन नहीं सका तभी मुझे मूह खोलना पड़ा
"कौनसा दोस्त, बात करवाओ मेरी उससे... और अभी क्या सोचा है, क्या करोगे ज़िंदगी में.. कॉलेज से तो निकाले गये.." डॅड ने बस इतना ही कहा कि मैने अपना बॅग उठाया और खामोशी से अपने कमरे की तरफ पलटा और वहाँ जाने लगा
"सन्नी, आइ आम नोट डन एट.. सन्नी इधर आओ... देखो बहुत बुरा होगा सन्नी, सन्नी..." पापा की आवाज़ तब मेरे कानो में पड़ना बंद हुई जब मैने कमरे में जाके दरवाज़ा पटका और उसे लॉक कर दिया
काफ़ी देर तक अपने कमरे में बैठे बैठे बोर हुआ तो गेम खेलने लगा और फिर मोबाइल चेक करने लगा, लेकिन कोई फोन नहीं, कोई एसएमएस नहीं.. देखते देखते शाम हुई तो नहा के फिर गेम खेली, काफ़ी भूख लगी थी, अगर बाहर जाउन्गा फिर सवाल पूछेंगे इसलिए बाहर वापस नहीं गया..
"तुम्हे कबाब बहुत पसंद हैं ना, यह लो, घर जाके खाना, इससे तुम मुझे भूलोगे तो नहीं कम से कम.." ऋतु की यह लाइन जैसे ही दिमाग़ में आई, मैं बेड से उछल के उठा और बॅग चेक किया तो उसमे एक राउंड बॉक्स पड़ा था.. फटाफट उसे ओपन किया तो ऋतु के हाथ के बने मस्त कबाब्स थे, ठंडे हो गये थे लेकिन भूख में तो क्या फरक पड़ेगा..
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