RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"मुझे नींद नहीं आती, पता नहीं क्यूँ.. उपर से आपने जबसे डाइयरी दी है तबसे तो 4 घंटे की नींद भी 2 घंटे में
तब्दील हो चुकी है.."
"हहा.. अच्छा है, जागेगा तभी तुझे वो मिलेगा जिसकी तुझे तलाश है.." बाबा ने फिर पहेली कही और मैने कुछ पूछे बिना
उसके साथ आगे बढ़ना सही समझा
"वैसे, आप यह कहाँ ले आए हैं आज.." बाबा और मैं इस वक़्त एक छोटे से रूम में बैठे थे, जहाँ सिर्फ़ दो तीन लॅपटॉप्स
और 5 या 6 मोबाइल पड़े थे
"क्या हाल हैं भाई जान.. आज कल याद नहीं करते.." हमारे सामने का दरवाज़ा खुला तो उसमे से दो आदमी एक साथ निकले जो बाबा को देख खुश हुए और गले मिलने आगे बढ़े
"बस आप लोगों की दुआ है.. वैसे यह है सन्नी, " बाबा ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा
"और यह है संतोष और वो है समीर.." बाबा ने फिर मुझे उनके नाम बताए
"सही टाइम पे आए भाई जान.. आज वर्ल्ड कप का पहला मॅच है, और आप की एंट्री इतनी लेट.. लगता है कुछ बड़ा हाथ
मारेंगे हाँ.." समीर ने हँस के कहा
ओह तेरी.. हां यार, आज से तो वर्ल्ड कप है.. और इंडिया होस्ट कर रही है... शिट, मैं कैसे भूल गया यह.. अभी जाके
वानखेडे की टिकेट्स ले लेता हूँ, सचिन तो फाड़ ही देगा साला सब की इस बार, और यह न्यू कॅप्टन भी अच्छा है, काश इस बार इंडिया जीते, तो मज़ा आ जाए.... समीर की बात सुन मैं सोचने लगा कि वर्ल्डकप के बारे में मैं कैसे भूल गया..
"समीर.. क्या भाव चल रहा है.." बाबा ने अपनी सिगरेट जलाई और समीर से एक काग़ज़ लेके मुझे पकड़ाया
"मैं क्या करूँ, मुझे कुछ पता नहीं चलता सर.." मैने लिस्ट वापस वहीं रख कहा
"तू बता, कौनसी टीम ले जाएगी वर्ल्ड कप.." बाबा ने अपनी सिगरेट से धुआँ छोड़ कहा
"हाउ डू आइ नो.. मेरा मतलब, मुझे अगर पता होता तो मैं खुद इनको पैसे लगाने को देता, और वैसे भी मेरे पास इतने
पैसे नहीं है कि मैं यह सब कर सकूँ.." मैने नज़रें नीची कर कहा
"बेट्टिंग के लिए पैसा बाद में, सबसे पहले जिगरा चाहिए.. कलेजा चाहिए, जो तेरे पास नहीं, लेकिन मेरे पास तो है..
अब तू बता, कौन जीतेगी.. " बाबा ने कुर्सी पे फेल के कहा
"भाई जान, इस बार आफ्रिका का भाव सबसे कम है.. और उसके बाद न्यू ज़ीलॅंड.. वैसे कंगारू भी हैं फेवोरिट्स.." समीर
ने अपने लॅपटॉप में कुछ देख कहा
"क्या बोल रहे हैं, ऑस्ट्रेलिया तो स्पिन खेल ही नहीं पाएगी इंडियन पिचस पे.. और इस बार क्वॉर्टर फाइनल नॉक आउट्स हैं, तो ऑस्ट्रेलिया अगर भूल से भी क़फ में पहुँची, और इंडिया के सामने आई तो आगे नहीं बढ़ेगी, और सेम प्राब्लम हर
फॉरिन टीम की है.." मैने सब कुछ भूल अपनी बात कही समीर को
"तेरे हिसाब से कौन जीतेगा.." बाबा ने फिर वोही सवाल दोहराया जिसे सुन मैं खामोश ही रहा
"भाई जान, बच्चे को छोड़ो, मैं आपको ग़लत नहीं कहूँगा, न्यू ज़ीलॅंड.. बेस्ट है, सेमाइस तक जाती ही है, इस बार फाइनल
तक जाने की उम्मीद है हमे.." समीर ने फिर अपनी बात कही
"एशियन टीम्स.. इंडिया, श्री लंका और पाकिस्तान.. इन तीन के अलावा कौन पहुँचेगा सेमाइस में आपके हिसाब से.." मैने समीर की आँखों में देख कहा तो वो समझ गया उसे बाबा से नहीं, क्रिकेट में मेरे साथ बात करनी है.. क्रिकेट तो हम मुंबई
वालों के रगों में दौड़ता है, मुंबई के हर ग्राउंड में एक सचिन, एक सहवाग होता है.. शिवाजी पार्क हो या जॉगर्स पार्क..
बात पकड़ हम कहीं भी घुस जाते हैं, तो इस खेल में तो हम किसी के बाप को भी हरा सकते हैं, फिर यह समीर क्या
चीज़ है.. इतना विश्वास मैने आज तक खुद में कभी नहीं देखा था..
"न्यू ज़ीलॅंड और आफ्रिका फाइनल है इस बार.." समीर ने आँखों से आँखें मिला के जवाब दिया
"सर.. इंडिया.." मैने बाबा की तरफ रुख़ करके कहा
"सन्नी, आज तक कोई भी होम टीम वर्ल्डकप नहीं जीती..." बाबा ने अपनी सिगरेट फेंक कहा
"इस बार जीती तो.. और वैसे भी कल आप मेरी वजह से 6 लाख हारे ना.. आज 4 लाख लगाइए.. पूरे 10 लाख" मैने बाबा
से उँची आवाज़ में कहा
"अबे सत्केले, एडे.. ख़ामाखाँ बाबा के पैसे लुटवा रहा है, भाई यह किस चूतिए को ले आए हो इधर.." संतोष ने जवाब
दिया इस बार
इस बार भी अगर मैं ग़लत हुआ तो गाड़ी बेच के बाबा के पैसे दे दूँगा, लेकिन इतनी गाली सुनने के बाद तो इंडिया पे ही
लगाउन्गा, आगे जो होगा देख लूँगा.. इनसे अपनी बेज़्ज़ती क्यूँ सहुं, अब तो चाहे जो हो, इंडिया ही लगानी है..
"यह लीजिए मेरी गाड़ी की चाबी.. होंडा की एसयूवी है, शायद आपके सब पैसे निकल जाएँगे अगर यह बार भी हारे तो.. लेकिन इंडिया मीन्स इंडिया ही..." मैने ताव में आके बाबा की तरफ हाथ आगे बढ़ाया और चाबी उन्हे देने लगा
"इंडिया इंडिया कहके तो आ गया.. लेकिन कौन्से बेस पे कहा यह भी तो बता दे, जबसे मिला हूँ तुझसे, इतना विश्वास आज तक नहीं देखा.. आज इतना कॉन्फिडेंट था तो उसकी कोई ख़ास वजह.." बाबा ने मुझसे पूछा जब हम दोनो क्रॉफर्ड मार्केट के पास बने ईरानी रेस्तरो में बैठ के खाना खा रहे थे.. 3 दिन से मोम डॅड के कॉल भी काफ़ी कम आए थे, घर पे हूँ कि नहीं, या कॉलेज जाता हूँ कि नहीं, यह सब पूछने का टाइम ही नहीं था.. डॅड को न्यू क्लाइंट मिला था तो उसके चक्कर में दौड़ रहे थे, और मोम पुशी की बर्तडे पार्टी प्लान कर रही थी.. बर्तडे पार्टी पुशी की और प्लॅनिंग मेरी मोम की.. इससे ख़तरनाक कॉंबिनेशन क्या हो सकता था मेरे लिए, शायद यह भी एक वजह थी कि बाबा से मिलके अभी मुझे डर नहीं लगता था..
"ज़्यादा से ज़्यादा क्या करेगा... मार डालेगा और क्या, वैसे भी जी के क्या कर लिया है साला.." मैने खुद से कहा लेकिन यह भूल गया कि बाबा ने भी सुना होगा..
"कौन मारेगा तुझे..." बाबा ने मुझे फिर चुटकी बजा के होश में लाया
"कोई नहीं, वैसे आप बताओ, हमेशा मुझसे पूछते हो, लेकिन आप तो बताओ.. आप इतने मेहेरबान हैं मुझ पे, 6 लाख वैसे भी हार चुके हैं मेरे कारण, उपर से 4 लाख और लगा दिए, और हां, कोई कारण नहीं है मेरा,बस ऐसे ही कह दिया, वो सचिन है ना, तभी.. अगर आप यह भी हार गये ना, तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाउन्गा.." मैने चाइ की चुस्की लेते हुए कहा
"अरे लड़के, तेरी सुई हर बार पैसे पे आके क्यूँ अटक जाती है.. क्या मैने कभी कहा तुझे, या अब तक तुझे कोई तकलीफ़ हुई है मेरे कारण, और रही बात 10 लाख की, तो कोई प्राब्लम नहीं है.. तेरे लिए मेरे पास 1 करोड़ तक है, तू 1 करोड़ तक हार सकता है.. समझा" बाबा ने फिर मेरे गाल थपथपा के कहा
"1 करोड़ क्यूँ.. इससे अच्छा किसी अच्छे काम में लगाओ, और मेरे पे इतनी मेहेरबानी क्यूँ, आज मैं जान के ही रहूँगा.." मैने बाबा से आँखें मिला के कहा
मेरी इस बात का बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया और ना ही मैने उस बात पे इतना ज़ोर दिया, शांति पूर्वक खाना ख़ाके हम वहाँ से निकले, अभी शाम के 4 ही बज रहे थे और घर पे कुछ ख़ास नहीं था, इसलिए मैने अपनी गाड़ी ली और बाबा मेरे साथ बैठ के मेरे साथ चलने लगा.. क्रॉफर्ड मार्केट की भीड़ से निकलते निकलते कुछ वक़्त लगा, लेकिन जब मंज़िल पता ना हो तो रास्ता कभी ख़तम होने का नाम नहीं लेता.. मेरे साथ भी ठीक वैसा ही था, जाना कहाँ है पता नहीं, तभी तो गाड़ी बस रोड पे भगाए जा रहा था, वॉरली दादर माहिम, फिर से नरीमन पॉइंट, बांद्रा जुहू पारला, आधा मुंबई चक्कर मार के जब हम चर्च गेट पहुँचे तब बाबा ने गाड़ी घुमाने का इशारा किया और मराइन लाइन्स चलने को कहा.. शाम के 6 बजे, 2 घंटे और साथ ही कितना डीसल वेस्ट, खैर अब क्या कर सकते हैं, मैने भी बिना कुछ कहे गाड़ी मराइन लाइन्स पे जाके रोकी और बाहर उतर के मरीन लाइन्स पे बने पत्थरों पे जाके बैठ गये... जैसे जैसे वक़्त ढलता, वैसे वैसे वहाँ भीड़ भी बढ़ती जाती, 6 से 7 हुए ही थे कि नरीमन पॉइंट पे काम करने वाले लोग, चर्च गेट से लोकल पकड़ने के लिए दौड़े जा रहे थे... वैसे मुंबई तो जाना ही जाता है फास्ट लाइफ के लिए, लेकिन कभी कभी अपनी लाइफ देख के डाउट होता था उसपे, नॉर्मल वीक डे और मैं इधर वेला बन के बस समंदर की लहरों को देख रहा हूँ और वो भी उस आदमी के साथ जिससे मिले मुझे ख़ास वक़्त नहीं हुआ.. बाबा और मैं हमारे पैरो से टकराती समंदर की लहरों को महसूस कर उसका आनंद उठाते और बहती हवाओं की नमी जब हमारे चेहरे को छूति, तब ऐसा लगता कि बस यह वक़्त ऐसे ही चलता रहे और हवायें बहती रहें, क्यूँ कि इसमे जो सुकून था, वो कहीं और नहीं..
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