Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:52 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"बधाई हो पापा जी..." रिकी जब शीना को अपने कमरे में सुला के आया तो उसे फोन आया




"हां बोल..." रिकी ने बस इतना ही कहा और अपने चेहरे पे आए आँसुओं को सॉफ करने लगा




"तू खुश नहीं है इस काम से.."




"मैं अभी कोई बात नहीं कर सकता तुझसे.. कल मिलता हूँ शाम को, और अभी एक लफ्ज़ भी आगे नहीं बोलना.." रिकी ने गुस्से में कहा और बिना कुछ सुने फोन काट दिया




"मैं कुछ नहीं करूँगा.." सामने वाले ने फोन रखा और अपनी आँखों में आए खुशी के आँसुओं को रोकने लगा





अगली सुबह :-





"क्या हमारा काम हुआ.." सामने वाले ने फोन पे स्नेहा से पूछा




"हां..." स्नेहा ने अपने हाथ में प्रेग्नेन्सी टेस्ट डिवाइस पकड़े कहा




"गुड..तुमसे जल्द मुलाक़ात होगी.." सामने वाले ना जवाब दिया




"वो सब ठीक है, पर प्रेम कब आएगा.." स्नेहा ने फिर प्रेम की चिंता जताते हुए कहा




"प्रेम से उस दिन तो बात करवाई थी तुम्हारी, वो ठीक है कहा ना.. यकीन नहीं है तो उसे फोन करो, उसका मोबाइल है उसके पास अभी" सामने वाले ने जैसे ही यह कहा,
स्नेहा ने आगे बिना कुछ सुने फोन कट किया और प्रेम का नंबर मिलाने लगी... फोन लगते ही, प्रेम ने तीसरी रिंग में ही फोन रिसीव कर लिया




"हां दीदी, आप कैसे हो.." प्रेम ने जवाब देते हुए कहा




"थॅंक गॉड... तू ठीक है.." स्नेहा ने चेन की साँस लेते हुए कहा




"क्यूँ दीदी, मुझे क्या हुआ, अभी कुछ दिन पहले तो बात की थी जब आप अपने देवर के साथ रंगीन होने जा रही थी.." प्रेम ने हँस के जवाब दिया




"हाहहाहाहा... हां वो तो है, खैर तुम कब आ रहे हो मुंबई..." स्नेहा ने प्रेम से पूछा




"बहुत जल्द दीदी, आके फिर आपको भी तो खुश करना है ना मुझे..."




"हां भाई, जल्दी आजा.. तुझे एक दूसरी गुड न्यूज़ देनी है, लेकिन फिलहाल अभी जाती हूँ नहीं तो फिर दस सवाल पूछेंगे यह लोग.." स्नेहा ने कहके फोन कट किया और अपनी
प्रेग्नेन्सी कीट को फेंक दिया




"प्रेग्नेंट माइ फुट.. हुह्म..." स्नेहा ने खुद से मन में कहा और नीचे चली गयी




"वैसे ज्योति, पार्टी तो तेरी भी बनती है हाँ, एक बार रिज़ॉर्ट देख आयें फिर तू नहीं बचेगी मुझसे ..." शीना ने ज्योति को गले लगाते हुए कहा और दोनो डाइनिंग टेबल की
तरफ बढ़ने लगी जहाँ सब लोग तीनो बच्चों का इंतेज़ार कर रहे थे




"यह लो.. हमारी दो राक स्टार तो आ गयी.. लेकिन तीसरा आज के दिन का सितारा कहाँ है... कहाँ है रिकी..." अमर ने ज्योति और शीना को देख कहा और सभी को देख मुस्कुराने लगा..





"मैं इधर हूँ पापा..." मेन गेट से आई आवाज़ को सुन सभी लोग उस दिशा में मुड़े और सामने खड़े शक्स को देख सब लोग चौंक उठे..




"पापा, मम्मी.. कैसे हैं आप..." लंडन से लौटा रिकी आगे बढ़ने लगा और सीधा अमर और सुहासनी के गले लगा.. अमर और सुहसनी के साथ वहाँ मौजूद हर शक्स को यकीन नहीं हो रहा था कि वो क्या देख रहे हैं... ज्योति, शीना स्नेहा और राजवीर, सब की आँखें और मूह खुले के खुले रह गये थे..




"अरे शीना, कैसी हो तुम, कितने दिन से फोन नहीं किया हाँ.. आज तेरे कान खीचुँगा मैं... और ज्योति, तुम ठीक हो ना..." रिकी ने उन दोनो से पूछा लेकिन वहाँ खड़ा कोई
शक्स कुछ नहीं बोल रहा था.. शीना के पैरों तले तो ज़मीन खिसकने लगी थी, वैसा ही हाल वहाँ मौजूद राइचंद परिवार के हर शक्स का था..




"अरे कोई कुछ बोल क्यूँ नहीं रहा.. क्या हुआ है, सब ठीक है ना... चाचू, आप कैसे हैं, कुछ बोलते क्यू नहीं..." रिकी राजवीर की तरफ गया जो हक्का बक्का होके बस रिकी को देख रहा था..




"कोई कुछ बोलता क्यूँ नहीं, प्लीज़ कुछ तो बोलो.." रिकी पागल हो रहा था सब का ऐसा बिहेवियर देख




"तूमम्म.... तूमम्म्मम कौन हहूऊओ..." अमर ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए कहा




"पापा, मैं कौन हूँ... मैं, आप मुझे नहीं जानते.. मैं आपका बेटा हूँ... रिकी... रिकी राइचंद पापा..." रिकी फिर अमर की तरफ गया और अमर के कंधे पकड़ सब को देखने लगा लेकिन सब की आँखें अभी तक शॉक के मारे बड़ी हो रही थी






"अगर तुम रिकी हो... तो फिर मैं कौन हूँ.." सीडीयों से उतरता हुआ पहले वाला रिकी बोलने लगा




उसको देख सब लोग अपनी आँखें मलने लगे.. रिकी 1 सीडीयों से उतरा और दूसरे रिकी से आँखें मिलाने लगा...




"व्हाट !!! यह..... यह कौन..." दूसरे रिकी ने रिकी 1 को देख कहा




"रिकी राइचंद.. " पहले वाले रिकी ने हाथ आगे बढ़ा के कहा




"रिकी राइचंद मैं हूँ..." दूसरे रिकी राइचंद को यकीन नहीं हो रहा था कि वो क्या करे, क्या कहे




"तो फिर मैं कौन हूँ.." रिकी 1 ने ठंडे दिमाग़ से कहा




"तू कोई भी बहरूपिया हो सकता है.. डेड्ड... मैं रिकी हूँ, शीना, मेरी बहेन, तू तो मेरी बात का यकीन कर प्लीज़... चाचू, आप ही देखो... मैं मैं हूँ, रिकी..." रिकी 2 फिर से सब को कन्विन्स करने लगा...




"चल मान लिया, कि तू रिकी है... है इस बात का कोई सबूत कि मैं बहरूपिया हूँ.." रिकी 1 अभी भी ठंडे दिमाग़ से काम ले रहा था




"सबूत कैसा... यह मेरा घर है... यह मेरे माँ बाप है... यह सब मेरे परिवार वाले हैं, इससे बड़ा सबूत क्या दूं मैं..." रिकी 2 चिल्लाने लगा था




"रिकी राइचंद, कभी इतना गुस्सा नहीं करता.. हम दोनो में से गुस्सा कौन है, वो सब देख रहे हैं..." रिकी 1 ने एक दम शांत लिहाज़ से काम लिया




"यू शट्ट अवुपप्प्प्प... तेरे पास क्या सबूत है कि तू असली रिकी है.." रिकी 2 ने अपने गुस्से को शांत करने की कोशिश की लेकिन उसकी साँसें अभी भी फूली हुई थी




"शीना...." रिकी 1 ने शीना की ओर देखा जो अब तक सब कुछ समझने की कोशिश कर रही थी कि अचानक रिकी 1 की आवाज़ सुन होश में आई




"शीना.. "




"हहा...हाआंणन्न् भ्ााईइ..." शीना ने हिचकिचाते हुए कहा
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