RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"आप मुझे बताओगे कि नहीं.." शीना ने रिकी से गुस्से भरी आवाज़ में पूछा.. रिकी इस वक़्त शीना के साथ ही बैठा हुआ था और उसे अपने हाथ से खाना खिला रहा था
"क्या बताऊ स्वीटहार्ट, वो तो समझाओ पहले.." रिकी अंजान बनते हुए बोला
"आप नहीं जानते मैं क्या कह रही हूँ.. अच्छा, सुनो, आज दोपहर को जो मेरे यहाँ बैठ के रो रहे थे, उसका क्या.. क्यूँ रो रहे थे, और सॉरी क्यूँ कहा मुझसे.." शीना ने मुद्दे की बात पे आके कहा
"अरे ऐसे ही, तुमको इस हालत में देख थोड़ा एमोशनल हो गया यार, नतिंग एल्स..." रिकी ने दबी हुई मुस्कान के साथ जवाब दिया
"अच्छा.. तो एमोशनल होके लोगों को सॉरी बोलते रहते हो आप.." शीना ने रिकी को आँख दिखाते हुए कहा
"देखो शीना.."
"आप देखो, अगर नहीं बताना तो ना बताओ, लेकिन यूँ बातें नहीं घूमाओ..और खाना वाना नहीं चाहिए मुझे, थॅंक यू.." शीना को इतना गुस्सा होते देख रिकी घबरा गया और शीना को बताने लगा उसके दोपहर के बिहेवियर का कारण
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"सो, आर वी कूल हियर मिस राइचंद.." विलसन की टीम के बंदे ने ज्योति से पूछा जो महाबालेश्वर में रिज़ॉर्ट के काम में थी
"यस.. वी आर पर्फेक्ट्ली फाइन विद थी...एनीवेस रिकी विल बी हियर टुमॉरो, सो ही विल हॅव दा फाइनल से ऑन दिस.." ज्योति ने एक पेपर को देख के कहा और सामने नज़र डाल के देखा तो ठीक वैसा ही काम चल रहा था जैसा वो लोग चाहते थे... महाबालेश्वर में काम शुरू होते ही राइचंद'स की खबर चारो दिशाओं में फेलने लगी, वैसे हिल स्टेशन्स पे खबर फेलना बड़ी आम बात ही है, पर आज से पहले इतने बड़े रिज़ॉर्ट के बारे में कभी किसी ने नहीं सुना था.. जहाँ लोकल होटेल्स वाले अपने बिज़्नेस के सामने इतना बड़ा कॉंपिटेशन देख घबरा गये थे, वहीं जो दूसरे कुछ रिज़ॉर्ट्स थे खुद को सेक्यूर करने के लिए राइचंद से बात करने लगे...
"नो नो, देयर ईज़ नो पॉइंट ऑफ आ पार्ट्नरशिप.. मैने आज तक कभी भागीदारी में काम नहीं किया, " अमर ने किसी को फोन पे जवाब देते हुए कहा
"राइचंद जी, यह सब ठीक है, पर आपके रिज़ॉर्ट के सामने हमारे रिज़ॉर्ट्स इतने बड़े नहीं है, हमारा घटा होने से अच्छा है कि आप कुछ करें इस बात का.."
"देखिए, अच्छा रुकिये.. यह लीजिए, रिज़ॉर्ट का मालिक आ गया, आप इसी से बात कर लीजिए.." अमर ने जब यह बात कही, सामने वाला थोड़ा चौंक सा गया, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं
"रिकी, यह लो बात करो.." अमर ने उसे फोन दिया और सारी बात उसे बता दी..
"ठीक है, एक काम करते हैं, मैं कल महाबालेश्वर आ ही रहा हूँ..हम मिलके बात करते हैं.." रिकी ने सामने वाले को फोन पे जवाब दिया
"थॅंक यू वेरी मच मिस्टर रिकी." सामने वाले की आवाज़ में पहली बार थोड़ी ताक़त दिखी थी
"अरे, कोई बात नहीं.. लोग एक दूसरे के काम आते रहेंगे उसी से यह दुनिया ठीक तरीके से चलेगी..मिलते हैं कल.." रिकी ने जवाब दिया और फोन कट कर दिया
"जब सीधे ना कर सकते हैं, तो कल मिलने में क्या फ़ायदा है रिकी.." अमर ने रिकी के फोन कट होते ही कहा
"नहीं डॅड, मना तो मैं भी कल करूँगा, लेकिन मेरे मना करने का तरीका आप से काफ़ी अलग होगा..." रिकी ने अमर को जवाब दिया जिसे सुन वहाँ बैठी सुहसनी और राजवीर के साथ स्नेहा भी चौंक गयी
"मतलब..." अमर ने आँखें छोटी करके कहा
"डॅड, मैं चाहता हूँ कि यह रिज़ॉर्ट भाभी के नाम पे बने, लाइक, भाभी इसकी मालकिन होनी चाहिए.. 100 % ..." रिकी के यह शब्द जैसे स्नेहा के कानो में किसी मधुर संगीत की तरह पड़े, वहीं बैठे बाकी के तीनो लोगों के नीचे से ज़मीन खिसकने लगी, राजवीर और स्नेहा एक दूसरे को ही घुरे जा रहे थे, जैसे पूछ रहे हो, क्या तुमने भी वही सुना जो मैने सुना... अमर को भी झटका लगा यह बात सुन के, लेकिन तीनो में से कोई कुछ कहता उससे पहले रिकी फिर बोल पड़ा
"डॅड, मोम चाचू... इसमे शॉक होने की कोई बात नहीं है प्लीज़.. मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्यूँ कि विकी भैया के बाद भाभी काफ़ी अकेली हो गयी हैं, आज अगर विकी भैया होते तो यह प्रॉजेक्ट देख काफ़ी खुश होते.. आप बताइए डॅड, अगर विकी भैया होते तो क्या आप उन्हे रिज़ॉर्ट में इन्वॉल्व नहीं करते.." रिकी ने धीरे ही सही, लेकिन एक ऐसा सवाल अमर के सामने रखा जिसे सुन अमर कुछ नहीं कह पाया
"आप भी जानते हैं डॅड, मैं भी जानता हूँ, के भैया हम से अच्छी तरह इस प्रॉजेक्ट को हॅंडल करते.. इन चीज़ो में उनको आज तक ना कोई मॅच कर पाया है और ना ही कोई आगे भी कर पाएगा.. अट लीस्ट मैं तो कभी नहीं डॅड, लेकिन अब विकी भैया नहीं है, डजन'ट मीन कि उनके अस्तित्वा को ही भूल जायें, भाभी कब तक उनकी यादों के सहारे यूँ अकेली ज़िंदगी काटेगी.. आक्सेप्ट इट डॅड, भैया के जाने के बाद या उनके रहते भाभी को इस घर में कितनी इंपॉर्टेन्स मिली है.. कुछ भी नहीं.. मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्यूँ कि अभी भी मानता हूँ कि विकी भैया हमारे साथ इस घर में मौजूद हैं, उनका शरीर नहीं तो क्या हुआ, लेकिन उनकी रूह अभी भी हम सब के साथ है.. और उनके सामने होते हुए भी हम ऐसा कैसे कर सकते हैं.." रिकी बोलता रहा और अमर उसे सुनता रहा
"रिकी, तुम जज़्बाती हो रहे हो, और रही इंपॉर्टेन्स की बात तो वो तुम ग़लत कह रहे हो.." सुहसनी ने उसे बीच में टोकते हुए कहा
"सच को छुपाया नहीं जा सकता मोम.. सब जानते हैं इस बात को.." रिकी ने सुहसनी को जवाब दिया तो सुहसनी को विश्वास नहीं हो रहा था कि रिकी को आख़िर क्या हुआ है आज
"खैर, मोम, डॅड, चाचू, यह सब बातें नहीं करना चाहता मैं.. मैने जो आपसे कहा वो मुझे ठीक लगा इसलिए कहा, आप बड़े हैं, आप फ़ैसला कीजिए के मेरी सोच सही है या ग़लत, आप हां बोलेंगे तभी रिज़ॉर्ट भाभी के नाम पे होगा नहीं तो नहीं.. मैं इतना बड़ा भी नहीं हुआ हूँ कि आपसे पूछे बिना कोई कदम लूँ.. अगर आप हां कहेंगे तो यह पेपर्स हैं, मैं इन्पे फिर साइन लूँगा भाभी के.. अगर आपकी ना है तो यह पेपर्स अभी के अभी जल जाएँगे.." रिकी ने तैश में आके पेपर्स टेबल पे रखे
रिकी को यूँ देख, उसकी बातें सुन सुहसनी और राजवीर के तो जैसे कानो में किसी ने गरम तेल डाल दिया हो, दोनो के मूह खुले के खुले रह गये थे , अमर ने ध्यान से रिकी की बातें सुनी और मन ही मन उन्हे टटोलने लगा, अमर सोच रहा था रिकी ने अभी जो भी कहा वो ग़लत नहीं था, लेकिन रिज़ॉर्ट स्नेहा के नाम कर देना, उसे भी ठीक नहीं लग रहा था, पर अगले ही पल यह ख़याल भी आया कि अगर ऐसा वो कर भी देता है तो कोई नुकसान नहीं है, अगर स्नेहा के पास रिज़ॉर्ट रहेगा तो भी क्या, मॅनेज तो रिकी और शीना ही करेंगे... अमर इसी कशमकश में चल रहा था, स्नेहा मन ही मन मिलने वाले इस तोहफे की गिनती में लगी हुई थी, कितने की प्रॉपर्टी उसके पास चलके आई है खुद, कितनी वॅल्यू आगे होगी...
"अरे वाह, यह क्या हो रहा है, लगता है किस्मत एक साथ मेहेरबान हो रही है, पहले राजवीर की जायदाद, फिर मेरे प्यारे ससुर की मौत के बाद और अब यह रिज़ॉर्ट.. मेरी ज़िंदगी सेट है.. पर यह अचानक रिकी इतना मेहेरबान क्यूँ हुआ है मुझ पे.. आज से पहले तो ठीक से बात भी नहीं करता था, लेकिन आज यह.. कुछ गड़बड़ तो नहीं है...नहीं नहीं, इसमे क्या गड़बड़, विक्रम के नाम से एमोशनल हो गया है, होने दो, मेरा तो फ़ायदा ही है ना.. ईयीई .." स्नेहा अंदर ही अंदर खुद से बातें करने लगी
"बहू, तुम्हारी क्या विचार धारा है इस मे.." अमर ने स्नेहा को देख के कहा जो अपने ही ख़यालों में खोई हुई थी..
"बहू..." अमर ने फिर थोड़ा उँची आवाज़ में कहा जिसे सुन स्नेहा अपने ख़यालों से बाहर आई
"ज.ज.ज.ज. जीई पापा.." स्नेहा ने हकला के कहा
"तुम मॅनेज कर पओगि रिज़ॉर्ट को.." अमर ने स्नेहा से पूछ के एक नज़र फिर रिकी की तरफ घुमाई और फिर सुहसनी और राजवीर को देखा
"पापा, आप बड़े हैं.. आप सब लोग को जो भी ठीक लगे, वैसे मैं तो मॅनेज नहीं करूँगी, नाम चाहे किसी का भी हो, मॅनेज तो देवर जी और शीना ही करेंगे.." स्नेहा ने बड़ी चालाकी से यह बात कही, क्यूँ कि वो सीधे हां कहती तो शायद सब को वो जवाब खटकता, और ऐसा जवाब देके उसने अमर को ख़यालों को और मज़बूती दे दी
"मुझे खुशी है बहू तुम्हारी सोच जान के..ठीक है, आओ इन पेपर्स पे साइन कर दो.." अमर ने स्नेहा से कहा और पेपर्स उसकी तरफ बढ़ा दिए.. यह पल ऐसा था जहाँ स्नेहा के दिमाग़ ने काम करना बिल्कुल बंद कर दिया था, पिछले कुछ दिनो में इतनी दौलत अपने नाम पे होते देख वो बौखला चुकी थी.. पैसे की कमी उसे नहीं थी वैसे, पर अपने नाम पे इतना पैसा सोच के, उसके दिल की धड़कने किसी डर्बी के घोड़े की तरह तेज़ भाग रही थी जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.. स्नेहा ने पेपर्स को हाथ में लिया और उसे पढ़ने लगी..
"इसमे क्या पढ़ रही हो.." सामने बैठे राजवीर ने कहा , उसकी ठंडी और कड़क आवाज़ सुन स्नेहा सकपका गयी
"हां बहू, रिकी ने पेपर्स बनवाए हैं, इसमे पढ़ना क्या.. " अमर ने राजवीर का समर्थन करते हुए कहा
"नही पापा, वो तो बस ऐसे ही.. पेन दीजिए प्लीज़.." स्नेहा ने राजवीर से कहा
राजवीर से पेन लेके स्नेहा ने रिकी के कहे अनुसार साइन करना चालू किया और हर एक काग़ज़ पे साइन करने लगी..
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