Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:11 PM,
#97
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"अब चलना चाहिए हमे, प्रॉपर्टी के पेपर तुम्हे 3 दिन में ही दे दूँगा, लेकिन मेरे साथ अगर होशयारी करने की कोशिश की, तो याद रखना.." राजवीर ने उंगली दिखाते हुए कहा



"कोई बात नहीं स्वीट हार्ट, आप को विश्वास नहीं है, आप एक काम करो, वसीयत में आप भी एक कंडीशन डालो, कि आपकी जायदाद की अफीशियल मालकिन आपके बाद आपकी बेटी होगी, और आपकी बेटी की केर्टेकर मैं रहूंगी, इससे यह होगा के एक तो जायदाद आपकी आपके पास ही रहेगी आपका काम होने तक और बीच में मैं अगर कुछ नाटक करूँगी तो भी जायदाद ज्योति के पास सेफ है.. हां लेकिन काम होने के बाद प्रॉपर्टी मेरे नाम होनी चाहिए, और यह पेपर भी मेरे पास ही रहेंगे ओके..." स्नेहा की बात सुन राजवीर को विश्वास नहीं हो रहा था स्नेहा के दिमाग़ पे, उसने सिर्फ़ हां में गर्दन हिलाई और वहाँ से जाने लगा..



"जाते जाते सुनिए तो हुज़ूर, " स्नेहा की आवाज़ से वो फिर रुका और पीछे मूड के उसे देखने लगा



"इन सब चीज़ में एक बात नोटीस की, रिकी और शीना को बिना मेहनत के सब मिल रहा है, चाहे कोई भी मरे के नहीं, कोई कितनी भी मेहनत करे कि नही, उन दोनो को बैठे बैठे सब मिल रहा है...1 जन्वरी के बाद अगर अमर के साथ साथ यह दोनो भी नहीं रहेंगे तो किसे फरक पड़ेगा... आप प्रेमिका के साथ और ज्योति के साथ यहाँ से निकल लेना, मैं तो हूँ ही उठाई गिरी, आज यहाँ कल कहीं और...क्या ख़याल है इस बारे में" स्नेहा ने राजवीर के पास आते हुए कहा जिसके जवाब में राजवीर ने कुछ नहीं कहा और बस एक मुस्कान देके वहाँ से निकल गया



राजवीर के जाते ही स्नेहा भी कुछ देर में वहाँ से घर की तरफ निकल गयी.. घर जाते जाते स्नेहा ने काफ़ी बार कोशिश की कि प्रेम का फोन लग जाए, लेकिन हर बार स्विच्ड ऑफ..



"ऑफ... कहाँ है यह लड़का," स्नेहा ने परेशान होके कहा और फिर अपने फोन को देखा, शायद किसी के कॉल का इंतेज़ार कर रही थी, ठीक उसी वक़्त उसे फोन आया



"हेलो, प्रेम का नंबर नहीं लग रहा, वो कहाँ है, ठीक तो है.." स्नेहा परेशान हो चुकी थी



"हां वो ठीक है, फिलहाल उसे किसी दूसरे काम में लगाया हुआ है, जिस वजह से उसे बाहर जाना पड़ा है, उसका फोन नहीं लगेगा, मैं नहीं चाहता वो काम करे तो तुम उसे तंग करती रहो, और डॉन'ट वरी, यह जायदाद मिलने की जो पर्मनेंट खुशी है वो मैं उसे दे दूँगा.." सामने से फिर उस शक़्स की आवाज़ आई



"पर्मनेंट, मतलब कि..." स्नेहा ने इतना ही कहा के वो फिर बोल पड़ा



"हां पर्मनेंट, मुझे राजवीर या अमर या विक्रम की प्रॉपर्टी में कोई इंटेरेस्ट नहीं है.. जो भी तुम्हे मिलेगा, तुम रख सकती हो..मैं सिर्फ़ अपने काम से मतलब रख रहा हूँ इधर, और अगर अब प्रेम को कॉल करने की कोशिश की तो भूल जाओ यह जायदाद.. समझी तुम.." उस शक़्स ने झल्ला के कहा और फोन रख दिया



"इतनी जायदाद मेरी.. ईईए..." स्नेहा ने खुद से कहा और पागल सी होने लगी, गाड़ी चलाते चलाते ध्यान ही नहीं था, हर वक़्त बस सोच रही थी वो पैसा कहाँ खर्च करेगी, कैसे खर्च करेगी, इसी धुन में प्रेम के बारे में भूल ही गयी थी, प्रेम, उसका सगा भाई, जो पिछले कुछ दिनो से गायब था, उसके टच में नहीं था.. अमूमन स्नेहा और प्रेम रोज़ एक दूसरे से बात करते थे, लेकिन पिछले काफ़ी दिनो से दोनो में कोई बात नहीं हुई, हर बार जब स्नेहा फोन करती तो स्विच ऑफ, और आज उसे उसका रीज़न भी मिल गया था, लेकिन पैसो की बात सुन प्रेम की चिंता हवा हो गयी.. स्नेहा अब 1320 की करोड़ रुपये की मालकिन थी, या होने वाली थी..



"1320 करोड़...ह्म्म, कितने ज़ीरो हैं पहले वो तो पता करना पड़ेगा..हाहहहहहहहाहा" उस शक़्स ने खुद से कहा और शैतानी हसी हँसने लगा

..................................................

"शीना, मैं चाहता हूँ यह तुम अपने हाथों से रिकी को दो..." अमर ने शीना के हाथों में एक मीडियम साइज़ का गिफ्ट रॅप्ड बॉक्स पकड़ाते हुए कहा



"पर पापा, यह है क्या, और क्यूँ, भाई को सिर्फ़.. मुझे क्यू नहीं.." शीना ने बॉक्स को टटोलते हुए कहा



"अरे रे मेरी बेटी, पहले उसे दे दे, फिर तू ठीक होगी, तो तुझे भी सेम बॉक्स दूँगा..अब खुश" अमर ने शीना के सर पे हाथ फेर के कहा



"नर्स, क्या हम शीना को गार्डेन में ले जा सकते हैं, आइ मीन ईज़ इट पासिबल.." अमर ने नर्स को पूछा



"जी सर, बस मेडम को थोड़ा दर्द होगा बेड से चेर पे शिफ्ट होने में, एक बार चेर पे बैठ जाएँगी तो फिर इन्हे नीचे तो आप लोगों को ही ले जाना पड़ेगा.." नर्स ने जवाब दिया



"ठीक है, आइए इसे चेर पे बिताते हैं.." कहके अमर और नर्स के साथ साथ सुहसनी ने भी उनका हाथ बँटाया और शीना को धीरे धीरे चेर पे शिफ्ट किया



"मेडम, चेर पे भी पेर आपके लंबे रखिए, इन्हे नीचे झुकाना नही. सामने की तरफ हवा में रखिए.." नर्स ने हिदायत दी और शीना ने ठीक वैसे ही किया



"सर, इन्हे नीचे कैसे ले जाएँगे, आप दो आदमी होते तो नीचे ले जा सकते थे.." नर्स ने जैसे ही कहा, तभी पीछे से आवाज़ आई



"अरे भाई, दो होते नहीं, दो ही हैं... " राजवीर ने पीछे से हाथ दिखाते हुए कहा



"अरे कहाँ चले जाते हो राजवीर, शाम होने आई, आओ चलो, हाथ पाकड़ो कुर्सी का.." अमर ने कहा और राजवीर के साथ दोनो शीना को चेर से नीचे लाने लगे



"देखा पापा, इसलिए कहती थी, एक एलावाटोर लगवा लीजिए, आज आपको यह तकलीफ़ नहीं लेनी पड़ती.हिहिहीही"शीना नीचे उतरते उतरते राजवीर और अमर के साथ मज़ाक करने लगी



"यह लो , आ गये..देखो यह है रिकी की गिफ्ट.." अमर ने शीना को सामने की ओर इशारा करते हुए कहा



"ओह्ह्ह्ह माइ गोड्ड़.द..... " शीना की आँखें फटी की फटी रह गयी.



"सिर्फ़ भैया के लिए क्यूँ, मैं भी चलाउन्गी यह तो..." शीना ने अमर और रिकी को देखते हुए कहा जिसे सुन दोनो आदमी खड़े खड़े वहाँ खुश हुए और सुहानी भी उसकी मासूमियत देख खुश हुई



"भाई, व्हेयर आर यू... एग्ज़ॅम देके घर आए हो पर मुझसे मिले भी नहीं.. यस आम आंग्री,अब जल्दी आओ घर पे.." शीना ने थोड़ी तेज़ आवाज़ से कहा और फोन कट कर दिया..



कुछ ही देर में...




"शीना, शीना.... शीना..." रिकी घर के अंदर आके चिल्लाया और जल्दी से उसके कमरे की तरफ बढ़ा, कमरे में उसको ना पाके,उसकी चिंता बढ़ गयी.. फिर नीचे आके चिल्लाने लगा



"शीना... शीनाआ..."



"भाई, इधर पीछे की साइड आओ, " इस बार शीना ने उसे जवाब दिया.. शीना की आवाज़ सुन रिकी पीछे की साइड गया जहाँ राइचंद'स का गॅरेज या पार्किंग था.. रिकी जैसे ही वहाँ पहुँचा, वहाँ शीना के साथ अमर , सुहसनी और राजवीर भी थे...



"शीना, आर यू फाइन... क्या हुआ, इतनी टेन्षन में क्यूँ थी फोन पे.." रिकी पास आते हुए उसे बोलने लगा



"डॅड, क्या हुआ.. और यह नीचे क्यूँ, उपर होना चाहिए ना इसे, आप लोग खामोश क्यूँ है.." रिकी का चेहरा पसीना पसीना हो चुका था



"भाई, चिल मारो ना यार.. अब हाथ आगे बढ़ाओ" शीना ने रिकी से कहा



"हाथ क्यूँ, आंड बताओ ना आप सब, यह नीचे क्यूँ है, डॉक्टर ने इसे रेस्ट के लिए कहा है और यह नीचे.."



"आर्र्घह... भाई, अब हाथ आगे बढ़ाओ जल्दी, डॉक्टर नही बनो.." शीना ने भी चिल्ला के कहा.. रिकी कुछ देर के लिए खामोश हुआ और फिर हाथ आगे बढ़ाया



"विश यू आ वेरी हॅपी बर्तडे भाई..."शीना ने रिकी के हाथ में बॉक्स देते हुए कहा और उसे नीचे की ओर झुक के इशारा करके उसके गले मिल ली और हल्के से उसके गाल पे चूमने लगी



अमर सुहसनी और राजवीर तीनो ने भी उसे जनमदिन की बधाई दी.. शीना के हाथ से लिया हुआ बॉक्स एक पल के लिए देखा और ध्यान से गिफ्ट को अनरॅप करने लगा..



"रूको रूको... यह देखो पहले, फिर वो ओपन करो.." शीना ने उससे कहा और चारो लोग उसकी नज़रो के सामने से हट गये..



"वूऊ..... यह है मेरी गिफ्ट..." रिकी ने आँखें बड़ी करके कहा
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