RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
यह लफ्ज़ सुन रिकी से रहा नहीं गया और उसके चेहरे पे एक मुस्कान तेर गयी... शीना को अपनी बाहों में खींच के उसका चेहरा अपने होंठों के पास ला दिया... शीना की आँखें बंद थी, उसके बालों की एक लट उसके आँखों पे आ गिरी थी, रिकी ने धीरे से उसकी ज़ुल्फो को सँवारा और उसकी लट को पीछे किया... दोनो के होंठ एक दूसरे के काफ़ी नज़दीक थे, दोनो एक दूसरे के चेहरे को अपनी साँसों की गर्मी दे रहे थे, रिकी ने धीरे से उसके चेहरे को अपने और पास खींचा, शीना के होंठ खुद ब खुद खुल गये रिकी को न्योता देने के लिए... रिकी ने बड़े चाव से शीना के लबों का न्योता स्वीकारा और दोनो एक दूसरे को चूमने में व्यस्त हो गये, लबों का लबों को काटना, जीभ का जीभ से टकराना, एक दूसरे की जीभ को चूसना, होंठों को काटना... दोनो अपने इस चुंबन का परम आनंद ले रहे थे, मौसम ने भी करवट बदल दी थी.. जहाँ लहरें उछल रही थी कुछ देर पहले, वहाँ सन्नाटा पसर चुका था, लहरें खामोशो हो गयी थी, चाँद की रोशनी भी काफ़ी कम हो गयी थी, बस आसमान के तारे शीना और रिकी के इस चुंबन के गवाह थे.... कुछ देर बाद दोनो एक दूसरे के होंठों की गिरफ़्त से मुक्त हुए, साँसें दोनो की तेज़ चल रही थी, रिकी ने अभी भी शीना का चेहरा अपने हाथों में थामा हुआ था और शीना की आँखें अभी भी बंद थी, दोनो अपनी टूटी हुई साँसों को समेटने की कोशिश कर रहे थे...
"वेट.." शीना ने अपनी साँसों को संभाल के रिकी के कानो में धीरे से कहा... शीना होश संभालते हुए अपने कमरे के अंदर गयी और दरवाज़े के उपरी बीच वाले हिस्से को एक ब्लॅक टेप से ढक दिया... शीना के रूम की कॅमरा यहीं पे थी, जिसे ज्योति कुछ दिन पहले ढूँढ रही थी... सुहसनी ने जो कॅमरा फिट करवाए थे शीना जानती थी कि सब कहाँ पे हैं, इसलिए उसने काफ़ी पहले ही उसकी जगह बदलवा दी थी जो सुहसनी नहीं जानती थी, अहेम यह था कि सुहसनी की लोकेशन से या इस लोकेशन से शीना के कमरे का फुल व्यू मिलना चाहिए, और वो अभी तक बरकरार था..उस रात जब रिकी उसे चूमने आया था तब भी उसने अपनी मर्ज़ी से ही सुहसनी को वो सब देखने दिया था.. शीना सब को ऐसा दिखाती रहती जैसे वो बहुत इग्नोरेंट है, लेकिन वो सब देखती थी, सब समझती थी और फिर उसका सामना करती थी... जब उसने ज्योति को खुद ही रिकी और अपने बारे में बताया वो समझ गयी थी कि वो सुहसनी को बताने में देर नहीं करेगी, अब जब उसने ज्योति को
बताने की हिम्मत की थी तो फिर अगर सुहसनी को भी पता चल जाए तो फ़ैसला उसी वक़्त हो जाएगा के इस रिश्ते की दूरी कितनी है, इसलिए उसने सोचा खुद ही बता दे, अब सीधा जाके तो वो सुहसनी को बता नहीं सकती थी, इसलिए उसने सोचा कि सुहसनी को कुछ दिखाया जाए, तभी उसने अपने कॅमरा को दरवाज़े के उपर फिट करवाया, जैसे ही दरवाज़ा खुलेगा कमरे का पूरा व्यू दिख जाएगा... बस उस दिन से शीना के दिल का डर निकल गया था, वो जान गयी थी कि सुहसनी उन्हे नहीं रोकेगी, कारण चाहे जो भी हो, लेकिन जब नहीं रोक रही थी तो शीना को क्या आपत्ति हो सकती थी... शीना अब तक यह नहीं समझ पाई थी कि सुहसनी ने उसे कहा क्यूँ नहीं कुछ इस बारे में, लेकिन साथ वो खुश भी थी कि आगे की आगे सोचेंगे फिलहाल तो उसे जो चाहिए था वो उसको मिल रहा था......
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"हां बेटी, बोलो क्या हो गया यूँ अचानक.." राजवीर ने ज्योति से कहा जो इस वक़्त उसके कमरे में थी
"नतिंग डॅड, ऐसे ही आई थी, अकेली बोर हो रही थी , सोचा आप के पास ही आ जाउ..." ज्योति ने बड़े कॅष्यूयली जवाब दिया जिसे सुन राजवीर ने भी कुछ नहीं कहा और बस हां में गर्दन हिला दी
"डॅड, मुझसे ड्रिंक नहीं पूछेंगे आज..." ज्योति ने अपनी आँखें बॉटल पे जमा के कहा
"ज्योति, हम घर पे हैं, गोआ की बात अलग थी, देअर ईज़ नो पॉइंट हियर... आंड अगर ऐसा है तो रिकी या ज्योति को बोलो कंपनी के लिए, " राजवीर ने अपना ग्लास ख़तम करते हुए कहा
"हुहह.. वो दोनो तो लगे होंगे अपनी चोंच लड़ाने में, उनके पास टाइम कहाँ होगा मेरे लिए.." ज्योति ने खुद को बहुत धीरे से कहा जैसे राजवीर ना सुन सके
"डॅड, आइ वॉंट तो टॉक यू..." ज्योति ने फिर अपनी आँखें राजवीर की तरफ की
"देन टॉक, व्हाट ईज़ इट, टेल मी" इस बार राजवीर भी आराम से पीछे टेका देके बैठा जैसे दिखा रहा हो वो तैयार है उसकी बातों के लिए
"पहले मुझे यह पता चलता है कि मैं आपकी बेटी नहीं हूँ, आप की अडॉप्टेड लड़की हूँ... फिर आप आके यह कहते हैं कि मैं आप ही की औलाद हूँ ना कि अडॉप्टेड, पर फिर से यह पता चलता है कि नहीं, मैं तो अडॉप्टेड ही हूँ.. राइचंद का खून तो हूँ ही नहीं मैं... तो डॅड, सच सच बताइए आख़िर हूँ कौन मैं, क्या मुझे यह जानने का भी हक़ नहीं है" ज्योति ने बड़ी गंभीरता से कहा
ज्योति की गंभीरता देख, राजवीर ने भी इस सवाल का मह्त्व समझा ज्योति के लिए.... उसको समझ आ गया कि भले वो उसे ग़लत बोले या सच, लेकिन इस जवाब के बाद ज्योति को हर चीज़ अलग लगेगी, पहले वो जो भी करती थी वो एक हक़ से करती थी, खुद को राइचंद समझ के करती थी, लेकिन अब जब उसे सच बता दे गा तो शायद ज्योति के बर्ताव में बदलाव आए
"डॅड, सोचने की ज़रूरत नहीं है, बताएँगे प्लीज़." ज्योति ने फिर थोड़ा उँचे स्वर में कहा
"ज्योति, मेरा जवाब सुनने के बाद एक वादा करोगी, अगर हां है तो बताउन्गा, नहीं तो रहने देते हैं" राजवीर खुद को तैयार कर रहा था
"मुझे मंज़ूर है डॅड, जो भी वादा है, जो भी शर्त है, सब मंज़ूर है अब बताइए" ज्योति ने बिना सोचे समझे कहा
"ठीक है... ज्योति, तुम मेरी सग़ी बेटी नहीं हो.... तुम्हे तुम्हारे ताऊ जी लाए थे मेरे पास, तुम तकरीबन 3 साल की थी जब तुमने पहली बार हमारी ज़िंदगी में कदम रखा था, हमारी ज़िंदगी में एक बच्चे की कमी थी, लाख कोशिशें की हम ने लेकिन कभी हमारा अपना बच्चा नहीं हो पाया, इसी गम में मेरी बीवी, यानी तुम्हारी माँ , काफ़ी बीमार होने लगी थी, जैसे जैसे दिन गुज़रते वैसे वैसे उसकी हालत और खराब होती जाती.. अमर भाई साब से यह देखा नहीं गया, इसलिए उन्होने यह सुझाव हमे दिया कि हम एक बच्चा गोद ले लें, मुझे ठीक नहीं लगा यह सुझाव, मैं सोचता था कि पता नहीं कैसे किसी को जाने बिना गोद ले सकता हूँ, लेकिन तुम्हारी माँ की हालत ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी, मजबूरी में मुझे अमर भाई साब को हां कहना पड़ा... राजस्थान के एक अनाथ आश्रम में हम गये और वहाँ से हमे तुम मिली.. सुलेखा यानी तुम्हारी माँ ने जैसे ही तुम्हे देखा उसकी आँखों में एक जीने की इच्छा दिखी हमे, वो अब जल्द से जल्द ठीक होना चाहती थी, कुछ दिन में वो ठीक हुई और तुमसे बेइन्तिहा प्यार करने लगी.... यह देख मुझे लगा कि तुम्हे यहाँ लेके आने का फ़ैसला ग़लत नहीं था.. जब तुम 10 साल की हुई तब आक्सिडेंट में सुलेखा की मौत हुई, मरते मरते उसने मुझसे वादा माँगा था कि तुम्हे कभी नहीं पता चलना चाहिए कि तुम हमारा खून नहीं हो..." राजवीर ने इतना ही कहा कि ज्योति
ने उसे टोक दिया
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