Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:03 PM,
#70
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
गोआ से लौटने के बाद ज्योति और राजवीर की आँखें ही नहीं मिल पा रही थी.. जब जब दोनो साथ में बैठते तो एक बहुत ही अजीब किस्म की शांति से रहते, ना कोई बात ना कुछ.. राजवीर के साइड से यह मुनासिफ था, लेकिन ज्योति की तरफ से ऐसा कुछ नहीं था क्यूँ कि वो जब भी राजवीर को देखती तो बस उसे मुस्कान दे देती और उसे रिझाने की कोशिश करती, जब उसके पास बैठती तो सब के सामने उसे अपने हाथ से नाश्ता खिलाती और हँस खेल के बातें करती.. राजवीर समझ नहीं पा रहा था कि वो आख़िर इन सब से कैसे डील करे, सब के सामने तो वो ज्योति का साथ देता लेकिन अकेले में कभी नहीं.. जब जब ज्योति उसके कमरे के पास जाती तो राजवीर उसे अंदर नहीं आने देता और बाहर से ही कुछ कह के टाल देता.. ज्योति समझती थी कि ऐसा क्यूँ है इसलिए वो नाराज़ नही होती..



"स्वीटहार्ट.. इतनी परेशन क्यूँ हो.." रिकी ने शीना से पूछा जब दोनो घर के गार्डन में बैठे बातें कर रहे थे



"नोथ्न... यू से, कल से चाचू के साथ जाओगे विकी भाई के काम को देखने.. और रिज़ॉर्ट का काम कब स्टार्ट करना है.. आइ मीन आर्किटेक्ट्स की टीम कब आएगी" शीना परेशानी छुपाने की कोशिश कर रही थी रिकी के सामने



"हां कल से चाचू के साथ जाना है, आज तक समझ नहीं आया विकी भाई क्या करते थे.. कहने के लिए कन्स्ट्रक्षन कंपनी है , मॅन्यूफॅक्चरिंग यूनिट है लेकिन आज तक मैने उन्हे कभी बिज़ी नहीं देखा.. आइ मीन जब जब मैं यहाँ आया हूँ तब तब वो मुझे घर पे ही मिले हैं, कभी बिज़ी नहीं.... वेरी स्ट्रेंज, बट कल पता चल जाएगा क्या करते थे..देखें अब.." कहके रिकी शीना को ही घूर्ने लगा, जो उस वक़्त थी तो रिकी के साथ लेकिन उसका दिमाग़ वहाँ नहीं था..



"क्या हुआ.. बताओ भी अब, ऐसे छुपाने कब से लगी तुम मुझसे बातें.." रिकी ने थोड़ा ज़ोर देते हुए कहा



"कुछ नहीं, बस कल के बारे में सोच रही थी.. आप चले जाओगे फिर बिज़ी रहोगे, जब तक आर्किटेक्ट की टीम नहीं आती, तब तक तो हम एक दूसरे को कम टाइम दे पाएँगे.. यही सोच सोच के थोड़ा सा अच्छा नहीं लग रहा" शीना ने मासूमियत से जवाब दिया



"झूठी... नहीं बताओ, आंड नतिंग लाइक दट.. आराम से मिलेंगे हम, डॉन'ट वरी... आंड स्वीटहार्ट, इट्स नोट अबाउट हाउ मच टाइम वी स्पेंड... क्वालिटी मॅटर्स, भले ही हम सिर्फ़ साथ 2 मिनिट गुज़ारें, लेकिन वो 2 मिनिट ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत 2 मिनिट होने चाहिए..." रिकी ने शीना को कहा, लेकिन शीना अब भी ठीक नहीं लग रही थी, रिकी बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया, वो जानता था अगर शीना नहीं बताना चाहती तो नहीं ही बताएगी.. शीना की नज़रों से जब रिकी दूर चला गया तब शीना ने फोन उठाया और फिर कॉल किया, लेकिन नतीजा कुछ नया नहीं था.. पिछले 2 दिनो में शीना ने 200 बार इस नंबर पे फोन किया था लेकिन कोई काम का नहीं



"कहाँ यार, कहा था मैने पहले ही इनस्पेक्टर को इन्वॉल्व कर देते हैं...अब तो वो भी मर गया है पर..." शीना ने खुद से कहा और फोन टेबल पे पटक के अपना सर पकड़ के बैठ गयी..


.....................
"हे, अंदर आ जाउ.." रिकी ने ज्योति के खुले हुए दरवाज़े को नॉक करके पूछा



"अरे, प्लीज़ आइए ना भैया.. हाउ आर यू, हाउ वाज़ युवर ट्रिप.." ज्योति ने रिकी के हाथों को अपने हाथ में लिया और उसे बेड पे बैठा दिया



"अमेज़िंग...यू से, गोआ वाज़ गुड..." रिकी ने धीरे धीरे कर ज्योति के हाथों से अपने हाथ छुड़ा के पूछा



"लव्ली, नेक्स्ट टाइम वी ऑल विल गो टुगेदर.." ज्योति ने खुशी से उछल के कहा



"अरे, मैने कुछ बुक्स कही थी, वो लाई हो कि नहीं.."



"यस, यहीं पे रखी है..." कहके ज्योति ने साइड टेबल के नीचे वेल छोटे से कपबोर्ड को खोला और उसमे से सब बुक्स निकाल दी



"वूहहू.." रिकी ने खुशी से कहा और एक एक बुक को देखने लगा.. ज्योति खामोशी से रिकी के रियेक्शन को, उसके हाव भाव को देख रही थी, ज्योति रिकी को ध्यान से देखने लगी, उसके हाव भाव से लेके उसके शरीर को, उसके चेहरे से लेके उसके बर्ताव को.... जैसे ही ज्योति की नज़र उसके हाथों पे पड़ी, उसकी आँखें बड़ी हो गयी.. जैसे ही वो उससे कुछ कहती , उसे स्नेहा की बात याद आ गयी



"कभी कभी चुप रहने में ही भलाई है, कभी कभी ऑब्ज़र्वेशन्स को अपने तक ही रखो, और उसे किसी बड़ी चीज़ के लिए यूज़ करो.." जैसे ही ज्योति के दिमाग़ में यह बात आई, उसने अपने दिमाग़ को शांत किया और रिकी के साथ बातें करने लगी



"वैसे भैया.. टेल मी , आप तो प्रॉजेक्ट मॅनेज्मेंट में मेजर कर रहे हो.. आंड ऐज फार अस आइ आम अवेर तो किंग'स में माइनर सब्जेक्ट होता ही नहीं है राइट.. तो फिर यह एकनॉमिक्स की बुक्स क्यूँ.." ज्योति ने अपने मन का सवाल आख़िर रिकी के सामने रख ही दिया



"अरे सॉरी, आइ फर्गॉट टू इनफॉर्म यू...मेरा मेजर चेंज कर लिया था मैने, आंड कब का किया है वो, हाउ आर यू नोट अवेर... प्रॉजेक्ट मॅनेज्मेंट में आइ डिड नोट फाइंड एनितिंग इंट्रेस्टिंग, सो आइ चेंज्ड टू फाइनान्स.. अब तुझे पता है फाइनान्स आंड एकनॉमिक्स गो हॅंड इन हॅंड.. सो.. आंड यह बुक्स यहाँ की यूनिवर्सिटी में अवेलबल ही नहीं थी, सो आइ थॉट तू ला सके तो.." कहके रिकी ने फिर बुक्स अपने हाथ में ली और वहाँ से चला गया



"ह्म्‍म्म... इंट्रेस्टिंग.. कब मेजर चेंज किया, कब नहीं...उम्म्म्म, ज्योति जी.." ज्योति ने खुद से कहा और कुछ सोच के अपनी तब पे कुछ सर्च करने लगी



,,,,,,,,,,,,,,,,

"ओके रिकी.... ऑल सेट फॉर आ रोल चेंज.." राजवीर ने रिकी को देख के कहा, सब लोग ब्रेकफास्ट टेबल पे बैठे थे... शीना अभी भी कहीं गुम्सुम थी लेकिन छुपाने की कोशिश करने में व्यस्त थी और दिखावे की हँसी हँस रही थी.. उसे छोड़ बाकी सब लोग खुश थे टेबल पे, काफ़ी टाइम बाद स्नेहा के चेहरे पे हँसी लौट आई थी, शायद ज्योति की वजह से उसे नयी उर्जा मिली थी, और काफ़ी टाइम से शीना भी खामोश थी.. इसलिए उसे कोई दिक्कत नहीं थी..



"यस अंकल, और कुछ दिन में रिज़ॉर्ट का प्रॉजेक्ट भी स्टार्ट होगा... रेडी फॉर मल्टिपल रोल्स आइ मस्ट से..." रिकी ने हँस के जवाब दिया और एक नज़र शीना की तरफ देखा तो वो फिर से किसी सोच में डूबी हुई थी.. कुछ देर में राजवीर और रिकी एक साथ घर से निकल गये.... और घर के बाकी सब लोग अपने अपने कामो में लग गये, शीना अभी भी टेबल पे अकेले बैठे कुछ सोच रही थी.. इतनी निराश हो चुकी थी वो कि अब फोन को देख ही नहीं रही थी, शायद उसके कानो में हिम्मत नहीं थी फिर से सेम चीज़ सुनने की.. शीना को ऐसे देख स्नेहा और ज्योति दोनो बहुत खुश हुई...



"चाचू, भैया की ऑफीस तो बीकेसी के पास है ना, फिर आप इधर क्यूँ ले रहे हैं.." रिकी ने राजवीर को देखा जो आगे देख बस गाड़ी चलाने में व्यस्त था...



"आज सब पता चल जाएगा तुझे.. बस एक ध्यान रखना. जहाँ चल रहे हो, जिन लोगों से मिलोगे, वहाँ जज़्बातों पे काबू रखना ओके.. कोई भी सवाल हो, वो बाद में मुझ से पूछना, बस सब को अब्ज़र्व करना, ज़्यादा बात फिलहाल नहीं करना.. विक्रम इसी बात के चलते काफ़ी कामयाब था, कुछ ना कहके भी वो अपनी बात कह देता था.. तुम विक्रम नहीं बन पाओगे और वो मैं चाहता भी नहीं.. लेकिन धीरे धीरे कर जब तुम पुराने हो जाओगे इस काम में, तब तुम जो चाहे कर सकते हो.. पर फिलहाल के लिए आइ आम युवर फ्रेंड आंड फिलॉसफर..." राजवीर ने गाड़ी चलाना जारी रखा और कुछ देर में दोनो एक अंडर कंट्रक्षन बिल्डिंग के पास पहुँचे, बिल्डिंग देख रिकी को अजीब लगा, कि पहले दिन उसे यहाँ क्यूँ लाया गया जब ऑफीस है तो..यह सोच के रिकी कुछ कहना चाहता था लेकिन राजवीर की कही हुई बात याद आ गयी और खामोशी से उसके पीछे चलता रहा.. स्टेर्स
चढ़ते चढ़ते दोनो 15थ फ्लोर पे पहुँचे, लिफ्ट नहीं थी तो पैदल के अलावा कोई ऑप्षन नहीं था दोनो के पास...15थ फ्लोर पे दो फ्लॅट्स आमने सामने बन रहे थे, जिस फ्लॅट में राजवीर गया उस फ्लॅट का एरिया काफ़ी बड़ा था, मानो कोई आलीशान अपार्टमेंट बनने वाला था वहाँ.. मैं हॉल से लेके कम से कम 5 रूम्स थे दूसरे.. रिकी और राजवीर दोनो चलते चलते आखरी कमरे में घुस्से जहाँ पहले से ही कुछ 10 जैसे दूसरे आदमी बैठे थे.. राजवीर के आते ही सब लोग अपनी अपनी कुर्सियों से खड़े हुए और एक एक कर उससे गले मिलने लगे, राजवीर भी उनसे ऐसे मिला जैसे बरसों बाद दूसरे दोस्तों से मिला हो.. राजवीर से मिल के सब ने नज़र रिकी पे डाली , सब जानते थे कि अब उन्हे इसके साथ ही काम करना है और यह अमर का दूसरा बेटा है.. रिकी सब को देख थोड़ा सहम सा गया था, सब लोग अलग अलग किस्म के कपड़े पहने थे, इन सब में रिकी ही बस फॉर्मल कपड़ों में था, जिसकी वजह से उसे अलग अलग लुक्स मिल रहे थे...



"लिस्ट तैयार है, आप देख लीजिए.." एक बंदे ने काम की बात पे आते कहा और राजवीर के हाथ में तीन काग़ज़ थमा दिए.. राजवीर के साथ रिकी उसके पास बैठ गया और कभी काग़ज़ को देखता तो कभी वहाँ बैठे लोगों को...



"तो अभी आशस, फिर इंडिया न्यूज़ेलॅंड जा रही है और फिर ऑस्ट्रेलिया आफ्रिका जाएगी.." राजवीर ने काग़ज़ पलट के कहा



"अशेस में तो काफ़ी नुकसान हुआ है, विकी भाई की खबर सुन के काफ़ी सौदे तो हम ले ही नहीं पाए ना.. और जितने सौदे गये उसमे भी काफ़ी उल्टे पड़ गये, विकी भाई के बाद कोई टिप देने वाला था ही नहीं.." उसी बंदे ने जवाब दिया पर इस बार थोड़ी उँची आवाज़ में



"इससे पहले जब जब फ़ायदा हुआ है तब तो किसी के सामने आवाज़ उँची नहीं की, खून को ठंडा कर.." राजवीर ने काग़ज़ से आँख निकाले बिना उसे जवाब दिया, राजवीर की आवाज़ में एक अलग ही कर्कश पन था, इतना रूखा, इतना भारी... यह सब सुन रिकी सोचने लगा क्या बात कर रहे हैं, अशेस के बारे में वो जानता था कि क्रिकेट है, लेकिन क्रिकेट का इन सब से क्या लेना देना.. लेकिन फिलहाल उसने अपने दिमाग़ को बंद रखा और कान खुले रखे



"रिकी... अब से तुम इन सब के साथ काम करोगे.. जैसा कि मैने पहले कहा कि शुरू में मैं तुम्हारे साथ रहूँगा, जब तक तुम सब सीख नहीं जाते.." राजवीर ने अपनी आँखें काग़ज़ से बाहर निकाली और रिकी की आँखों में देखने लगा जिसमे कई सारे सवाल थे... राजवीर अच्छे से जानता था के रिकी क्या सोच रहा है और क्या पूछना चाहता है, लेकिन राजवीर सब के सामने उसे जवाब नहीं देना चाहता था..



"समझता हूँ बच्चे, तुम बाहर जाओ और गाड़ी में मेरा इंतेज़ार करो...मैं 10 मिनट में आता हूँ.." राजवीर ने धीरे से रिकी से कहा जिसे कोई सुन ना सका.. बिना सवाल किया रिकी वहाँ से चला गया.. रिकी के जाते ही राजवीर और विक्रम के नेटवर्क के सब लोग आपस में बातें करने लगे कि रिकी को कैसे सीखाना है सब और सब की भूमिका क्या रहेगी



"ठीक है, अगर यह विकी भाई की जगह आएँगे तो हमें क्या दिक्कत हो सकती है..वैसे भी फॅमिली बिज़्नेस तो इनका ही है ना.." एक आदमी ने कहा और उसकी बात सुन के सब हँसने लगे और सहमति जताने लगे, राजवीर खामोश बस उस काग़ज़ को ही देख रहा था



"बारिश में गोरे यहाँ आ रहे हैं.. खाली हाथ नहीं जाने चाहिए" राजवीर ने फिर सामने बैठे लोगों से कहा



"वीर साब, अगर गोरे ले जाएँगे तो बीसीसीआइ नाराज़ हो जाएगा, आप जानते हैं हर भारत की जीत पे उन्हे पैसा मिलता है हम से, ताकि आगे वो हमें इन्फ़ॉर्मेशन देते रहें, अगर गोरे ले जाएँगे तो फिर उन्हे पैसा कहाँ से मिलेगा.. और सुना है राइट्स 50 करोड़ में बिके हैं, यहाँ उन्हे पहले ही नुकसान है, उपर से हम गोरों को जितवाते हैं तो हमें कुछ नहीं मिलेगा, मौजूदा फॉर्म पे गोरे मज़बूत हैं.. उनका भाव इंटरनॅशनल मार्केट में कम खुलने वाला है, इसलिए जो भाव यहाँ खुलेंगे वो भी उनके पक्ष में ही खुलेंगे, इस हाल में अगर गोरे ले जाएँगे तो.." दूसरे आदमी ने कहा के राजवीर ने उसे फिर टोक दिया



"मैं यहाँ बीसीसीई को खुश करने नहीं बैठा, उन्हे पैसे मिल जाएँगे... रही बात इंटरनॅशनल मार्केट की तो वो मैं देख लूँगा कि वहाँ पे भी इंडिया ही फेवोवरिट रहे.. गोरे यहाँ आए उससे पहले लंका गोरों के वहाँ जाएगी.. गोरों को बोलो वो सीरीज़ हार जाए, जैसे ही गोरे वो सीरीस हारेंगे, उनका भाव खुद ब खुद नीचे आ जाएगा.. गोरों को पैसा पहुँचाओ, लेकिन बहुत कम.. जैसे ही गोरों का भाव नीचे आता है, मैं बीसीसीआइ से कह के यह खबर फैला दूँगा कि घरेलू मैदानो पे टूटी हुई पिचस बनेंगी.. जैसे ही यह खबर इंटरनॅशनल मार्केट में जाएगी, वहाँ इंडिया खुद ब खुद फेव बनेगी.. इंडिया फेव है बोल के सबको इंग्लेंड खिला दो.. हमारा काम हो जाएगा.. सीरीज़ मार्जिन बाद में बताता हूँ..." राजवीर ने सब से कहा और उसकी बात पे सब ने सहमति जताई..



उधर रिकी गाड़ी में बैठा राजवीर का वेट कर रहा था, पर बार बार उसके मन में शीना का ख़याल आ रहा था, उसने तुरंत अपने फोन से शीना को एसएमएस किया



"आइ नो यूआर हाइडिंग सम्तिंग, वॉटेवर इट ईज़, डॉन'ट टेल मी, बट डॉन'ट रिमेन सो स्ट्रेस्ड... प्लीज़.."



"एवेरितिंग ईज़ फाइन... सी आइ आम स्माइलिंग " शीना ने तुरंत जवाब दिया.. इससे पहले रिकी कुछ टाइप करता उसे राजवीर आता हुआ दिखा, इसलिए उसने फोन अंदर रख दिया..

राजवीर जैसे ही गाड़ी में बैठा, रिकी से बिना कुछ कहे बस गाड़ी स्टार्ट की और फिर आगे बढ़ने लगा.. राजवीर की एनर्जी आज देखते ही बन रही थी, 15 फ्लोर्स उतरना और चढ़ना कोई आम बात नहीं है, लेकिन राजवीर का जोश रिकी को हैरान कर रहा था, लेकिन इससे ज़्यादा उसे जो चीज़ हैरान कर रही थी वो थी उपर की बातें.. क्रिकेट से क्या लेना देना भैया का या चाचू का, जब तक बात कुछ खोपड़ी में घुसती तब तक गाड़ी फिर एक बिल्डिंग के नीचे खड़ी थी.. रिकी जैसे ही अपने ख़यालों से निकला उसने नज़रें उपर की तो वो लोग अभी होटेल रॅडिसन ब्लू के बाहर खड़े थे.. राजवीर ने गाड़ी वलेट को दी और तेज़ी से लिफ्ट की तरफ बढ़ रहा था, रिकी के लिए मुश्किल हो रहा था राजवीर से कदम मिलाना, आज राजवीर के सामने रिकी की उमर ज़्यादा लग रही थी..



"अब तुम जिसे देखोगे, उसे देख के हैरान नहीं होना.. रूल्स वही सेम हैं जो कुछ देर पहले कहे थे.." राजवीर ने इतना कहा और अपनी आँखों पे ब्लॅक ग्लासस पहेन लिए



"अंदर आ जाओ भाई, तुम कब से दरवाज़ा नॉक करने लगे." राजवीर को जवाब मिला जब दोनो लिफ्ट से निकल के होटेल के 10थ फ्लोर के रूम नंबर 1010 के सामने नॉक करने लगे



अंदर से आवाज़ आते ही राजवीर और रिकी दोनो धीरे से अंदर गये... रूम में रोशनी ना के बराबर थी, और वहाँ पड़ी कुर्सियों पे दो लोग बैठे हुए थे... जब दोनो को रिकी ने देखा तो वो अपने दिमाग़ पे ज़ोर देने लगा, के शायद उसने इन दोनो को कहीं देखा है... कहीं मीडीया में, या किसी पेपर में...



रिकी को यूँ सोचते देख उनमे से एक ने कहा



"हमें अमर ने बताया था, कि उसका छोटा बेटा बहुत सोचता है.. लेकिन अभी तो काम शुरू हुआ ही नहीं है और अभी से सोचने लगे... वेलकम टू ग्लॅमरस वर्ल्ड ऑफ क्रिकेट रिकी.." उस बंदे ने हाथ आगे बढ़ाया



"मिस्टर रेडी... ऑनरबल चेर्मन फॉर बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल इन इंडिया..." रिकी को नाम याद आया और हैरानी से हाथ आगे बढ़ाया.. शायद अब उसे आइडिया आ गया था कि विकी और राजवीर क्या करते हैं..
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 04:03 PM

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