Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:02 PM,
#66
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
राइचंद'स के लोनवाला वाले फार्म हाउस में सुबह सुबह उनका सेक्यूरिटी गार्ड पूरे घर का राउंड ज़रूर मारता.. निखिल को यहाँ आए दो दिन हुए थे लेकिन उसको इन्वेस्टिगेशन में अब तक कुछ नहीं मिला था, इसलिए जब भी वो अपने कमरे से बाहर निकलता अपने कुछ साथियों के साथ तब सेक्यूरिटी गार्ड से कुछ बातें कर लेता... आज तीसरी सुबह थी, पिछली रात जब निखिल ने कमिशनर को फोन करके सब बताया तब कमिशनर ने उससे कहा



"मैं जानता हूँ निखिल, उस फार्म हाउस में ऐसा कुछ नहीं है जो अमर कह रहा है, मेरा दोस्त है तभी मैने तुम्हे वहाँ भेजा था, मैं जानता था वक़्त ज़ाया होने वाला है, खैर एक काम करो, तुम आज की रात रुक जाओ उधर, लेकिन अपनी टीम को भेज दो उनके रिपोर्टिंग स्टेशन्स में... तुम चाहो तो 2 दिन की छुट्टी ले सकते हो.." कमिशनर ने सामने फोन पे कहा



कमिशनर के कहने पे निखिल ने अपनी टीम को रवाना किया और खुद वहीं रात गुज़ारने रुक गया.. उसकी टीम के जाने के बाद निखिल एक बार फिर विक्रम के कमरे में गया , मतलब जिस कमरे में विक्रम ने आखरी बार दोस्तों के साथ शराब पी थी... रात के करीब 11 बज रहे थे, निखिल अपने कुछ कपड़े बॅग में डाल के सुबह लौटने की तैयारी में लगा हुआ था कि अचानक उसकी नज़र खिड़की पे पड़ी जहाँ से उसे लगा किसी का साया उसने देखा है.. जब आगे बढ़ के देखा तो कुछ नहीं था, खिड़की बंद ही थी... निखिल को लगा शायद उसका वेहम होगा इसलिए वो फिर अपना काम करने के लिए पलटा ही कि उसके पीछे से फिर एक साया गुज़रा, निखिल को यह महसूस होते ही दिल में एक अजीब सा डर लगने लगा.. उसने अपने पॉकेट से रेवोल्वेर निकाली और धीरे धीरे कर उस खिड़की के पास बढ़ने लगा..खिड़की के पास जाके, कुछ सोचा और धीरे धीरे खिड़की खोल दी, खिड़की खुलते ही एक ठंडी हवा का झोंका उसके शरीर पे महसूस हुआ, कुछ देर बाद जब उसे कुछ अजीब ना लगा, थोड़ा आगे बढ़ के उसने अपने चेहरे को बाहर की तरफ किया, सामने घुप
अंधेरा छाया हुआ था, आँखों से मीलों दूर उसे कुछ रोशनी दिख रही थी, शायद हाइवे से थी..नीचे घना जंगल, वैसे तो वो भाग भी राइचंद के हिस्से में आता था, लेकिन किसी ने उसकी सफाई नहीं करवाई और ना ही कभी लोकल मुनिसीपलटी ने उसपे ध्यान दिया...



"कौन है.... चुप चाप मेरे सामने आओ नहीं तो.." निखिल ने एक साइड अपना चेहरा रख के कहा



"बाहर आओ.. नहीं तो.." यह कहके जैसे ही निखिल ने अपना चेहरा दूसरी तरह घुमाया, उसके चेहरे पे एक ज़ोरदार मुक्का पड़ा, और वो भी साधारण हाथ का नहीं, किसी ने उसे तेज़ धार वाले नकाल्स पहेन के मारा था, इसलिए मुक्का पड़ते ही जैसे निखिल के चेहरे का रंग फीका पड़ गया, दिमाग़ सुन हो गया.. जब तक उसे होश था तब तक वो सामने खड़े चेहरे को देखता रहा, पर नकाल्स का असर था कि उसे सब धुँधला धुँधला दिखाई दे रहा था, जैसे जैसे सामने खड़ा शक्स उसके पास आ रहा था, वैसे वैसे निखिल का सर चकराते चकराते वो बेहोशी की आड़ में चला गया...



अगली सुबह जब सेक्यूरिटी गार्ड पूरे फार्म हाउस के राउंड पे निकला तब सब कुछ नॉर्मल था, खामोशी छाई हुई थी चारो तरफ, वो अपने डंडे को घुमा घुमा के टेहल रहा था, हर रूम चेक करके उसने आश्वासन किया कि सब लॉक्ड हैं और आख़िर में वो विक्रम के रूम के पास पहुँचा... रूम को खुला देख समझ गया कि शायद निखिल यहीं सोया था रात को, इसलिए वो रूम के अंदर गया निखिल से बक्शीश लेने के चक्कर में.. जब रूम में उसे निखिल कहीं नहीं दिखा तब उसे लगा शायद बाथरूम में हो, इसलिए उसने सोचा कि निखिल को डिस्टर्ब नहीं करता, और आगे खिड़की के पास पहुँचा जो अब भी खुली थी..



"उम्म्म... सुबह सुबह का ठंडा हवा.. अहहहहा.." सेक्यूरिटी गार्ड ने खुद से कहा और एक अंगड़ाई लेते हुए चारो तरफ देखने लगा, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र नीचे पड़ी उसका मूह खुला का खुला रह गया, जैसे एक पल के लिए उसका दिल ही रुक गया था, काटो तो खून ना निकले...



"खून्न्न.... खून......" चिल्लाता हुआ वो कमरे के बाहर निकला और अपनी कॅबिन की तरफ भागा...






"ह्म्म्म.... तुमने सबसे पहले क्या देखा.." कमिशनर ने सेक्यूरिटी गार्ड से पूछा और उसके साथ अमर भी था



"साब सबसे पहले मैं अपने मॉर्निंग राउंड पे निकला था, रोज़ की तरह रूम्स चेक किए और सब को लॉक देख आगे बढ़ा, जिस कमरे में विकी बाबा रुकते थे, उसी कमरे में यह साब भी रुके हुए थे, इसलिए उनका दरवाज़ा खुला पाकर मैं अंदर गया, जब अंदर रूम में नहीं दिखे तब मैने सोचा शायद बाथरूम में हो.. इसलिए खिड़की बंद करने आगे बढ़ा कि मेरी नज़र नीचे पड़ी, नीचे इन साब का शरीर पड़ा था झाड़ियों के बीच... मैने तुरंत मालिक को फोन किया, और उसके बाद से मैं यहीं खड़ा हूँ.." सेक्यूरिटी गार्ड ने कमिशनर से हाथ जोड़ते हुए कहा



"लेकिन तुमने साब से कहा कि उसका खून हुआ है, तुम यह कैसे कह सकते थे उस वक़्त, कि वो खून है.. उनके शरीर पे कोई घाव तो नहीं है"



"साब, यह साब तीन दिन से यहाँ थे, मैने कभी उन्हे शराब पीते नहीं देखा, इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि वो लड़खड़ा कर उधर गिरे हो, कल रात तकरीबन 11 बजे तक साहब नीचे ही थे और अपने दोस्तों के साथ बातें कर रहे थे, मैने सब को देखा, कोई भी दारू के नशे में नहीं था.. इसलिए अगर वो वहाँ नीचे थे तो किसी ने उन्हे वहीं फेंका होगा.." सेक्यूरिटी गार्ड ने फिर रोने जैसी आवाज़ में जवाब दिया



"ठीक है.. तुम जाओ.." कमिशनर ने सेक्यूरिटी गार्ड से कहा और अमर के साथ बाहर की तरफ चल पड़ा, कुछ पोलीस वाले और फोरेन्सिक वाले वहाँ घूम रहे थे और साथ ही कुछ कुत्ते भी थे



"शरीर पे कोई भी घाव नहीं है, लेकिन फिर कैसे कोई मर सकता है" अमर ने अपने मन में उठ रहे सवाल को कमिशनर के सामने रखा



"कोई बड़ी बात नहीं है अमर... इनिशियल रिपोर्ट्स की माने तो सब से पहले किसी ने निखिल के चेहरे पे एक ज़ोरदार मुक्का मारा है, उसकी आँखों के नीचे कुछ निशान हैं, जो फोरेन्सिक वालों के हिसाब से नकाल्स के होते हैं.. उसके बाद खूनी ने बहुत सावधानी बरती है, कोई गोली, पिस्टल या हथियार नहीं.. उसके हाथ ही उसके हथियार थे, नकाल्स को अपने हाथ में पहन के निखिल की छाती पे, उसके लेफ्ट साइड में जहाँ दिल होता है, उस साइड में कई बार मुक्के मारे गये हैं, वो सेम निशान जो उसकी आँखों के नीचे थे वोही उसकी छाती पे भी पाए गये हैं.. वार कई बार हुआ है, इसलिए शायद निखिल के दिल की धड़कन ही रुक गयी.. देखो, मुझे यह नोट भी वहाँ से मिला है, इसमे तुम्हारे लिए अच्छी खबर नहीं है" कमिशनर ने एक पर्चा उसे पकड़ाते हुए कहा



"इस बेचारे की कोई ग़लती नहीं थी, इसलिए इसे मैने आसान मौत दी है.. इसे मार के खिड़की से नीचे फेंका भी नहीं है क्यूँ कि इसके सर को चोट लग सकती थी.. राइचंद'स ही मेरे शिकार हैं.. यह फार्महाउस नहीं बिकना चाहिए" उस नोट में यह शब्द लिखे थे जिन्हे पढ़ के अमर के चेहरे पे पसीना सा आ गया



"अमर, कोई दुश्मनी निकाल रहा है अपनी.. विक्रम की मौत के लिए मैने अपना एक होनहार अफ़सर खोया है.. बेहतर होगा कि मैं विकी की फाइल बंद कर दूं, अब तक हमें उसकी मौत में कुछ ठोस नहीं मिला, हां निखिल सही था कि विक्रम की मौत का कुछ हिस्सा इस फार्महाउस से जुड़ा है, लेकिन अगर मैं वो पता करने यहाँ अपने अफ़सर भेजता रहूँगा तो मेरे सब ऑफिसर्स का शायद यही हाल हो, और चालाकी भी देखो, जिस दिन निखिल अकेला था उसी दिन उसपे यह हमला हुआ, जब उसकी टीम साथ थी तब कुछ नहीं था ऐसा, मेरी निखिल से रोज़ बात होती थी.. इसलिए मुझे लगता है अगर यहाँ कुछ है तो शायद तुम्हे ही पता लगाना पड़ेगा.." कमिशनर ने एक साँस में सब बोल दिया और अमर के जवाब का इंतेज़ार करने लगा..



"ठीक है, जैसा तुम ठीक समझो.. इस फार्महाउस की मनहूसियत जाने कब ख़तम होगी.." अमर ने कमिशनर से कहा



"ठीक है अमर, मैं कुछ पेपर्स भेजूँगा, उनपे साइन कर देना, हम यह केस फॉर्मली क्लोज़ कर देंगे, फिर तुम अपना फार्महाउस भी बेच पाओगे"



"नहीं, मैं किसी की जान की जवाबदारी नहीं ले सकता पर इसे बेच के अब मैं किसी की जान का नुकसान नहीं करूँगा.." अमर ने एक नज़र फार्महाउस पे डाली और वहाँ से रवाना हो गया






उधर बलि में रिकी कुछ आर्किटेक्ट्स से मिलने गया था, अब जब अमर को यह कहा है तो उसे वो करना ही था, पहले उसने सोचा के किसी भी लोकल आर्किटेक्ट को मिलेगा लेकिन फिर कुछ ख़याल दिमाग़ में आया और बेस्ट ऑफ दा टीम ढूँढने इंडोनेषिया की राजधानी जकार्ता के लिए निकला.. बलि में पीछे शीना अकेली अपने रिज़ॉर्ट में आराम कर रही थी, अपने रूम में जब उसे ख़ालीपन लगने लगा, तो वो रिकी के रूम में गयी, बेडरूम में जाके उस बिस्तर पे गयी जिसे उसने पहली बार अपने भाई के साथ गरम किया था... शीना और रिकी की ज़िंदगी का पहला सेक्स, इन दोनो के साथ फिज़िकल जो भी हुआ सब पहली बार था और एक दूसरे के साथ ही था.. बार बार यही बात शीना के ज़हेन में आती और उसके खून में एक रोमांच की ल़हेर दौड़ जाती.. वो जाके उस बिस्तर पे पीठ के बल लेट गयी और अपनी आँखें उपर की ओर करके उस शाम को याद करने लगी...



"उम्म्म.....आइ लव यू रिकी.... आ लॉट....आहहमम्म्म" शीना ने रिकी को शवर के नीचे गले लगते हुए कहा और रिकी की गरम साँसों को अपने बदन पे महसूस करने लगी, ठंडे पानी के साथ अपने आशिक़ की गरम साँसें, शीना जैसे सब कुछ भुला चुकी थी, उसकी ज़िंदगी के वो पल ही थे उसके लिए अब सब कुछ... रिकी अपने दोनो हाथ पीछे ले गया , एक हाथ से उसने शीना के उस पारदर्शी कपड़े को निकाला जो उसके चुचों को ढके हुए था और एक हाथ से उसकी पैंटी को नीचे उतारने लगा... थोड़ी सी अपनी टाँगें खोल दी शीना ने जिससे उसकी पैंटी सरक्ति हुई नीचे आई और उसके शरीर से अलग हुई...शीना के नंगे चुतड़ों पे रिकी के हाथ पड़ते ही शीना के शरीर में जैसे 440 वॉल्ट का
झटका लगा और वो रिकी की बाहों में धँसने सी लगी, उसके शरीर में जैसे जान ही नहीं थी, आज शीना ने खुद को रिकी के पास समर्पित कर दिया था... कुछ देर शीना यूही खड़ी रही और अपने चुतड़ों पे रिकी के हाथों का मज़ा लेने लगी...शीना ने अभी भी अपना चेहरा रिकी की छाती में छुपाया हुआ था, लेकिन हाथों को धीरे धीरे काम पे लगाया और नीचे ले जाके रिकी के इन्नर को निकालने लगी... रिकी ने जब यह देखा तो उसने शीना के चेहरे को अपने हाथ में लेके उसके होंठों को चूसने लगा और एक हाथ आगे ले आके अपने नखुनो से शीना की चूत को कुरेदने लगा, उधर शीना ने भी रिकी के अंडरवेर को उसके शरीर से अलग किया और धीरे धीरे उसके लंड को सहला रही थी, कभी उसके टट्टों को दबोचती तो कभी उसके लंड के टोपे पे अपने नाख़ून से सहलाती.. दर्द और मज़े का यह अनुभव रिकी के लिए पहली बार था



"उम्म्म्माहहहाहा उइम्म्म्मम..... अहहः शीनाअ आअहह..." रिकी ने बस इतना ही कहा और मज़े से उसका चेहरा खुद ब खुद उपर उठ गया जैसे बस उसे यही चाहिए था



"रिकी... आइ वॉंट टू मेक दिस आस डर्टी, आस किकी आस पासिबल...." शीना रिकी के लंड को हाथ से छोड़ते हुए कहा और साथ ही उसके हाथ भी अपने शरीर से हटा के अपने हाथों में थाम लिए



"आइ वॉंट टू मेक दिस आस स्पेशल आस पासिबल फॉर यू शीना.." रिकी ने वासना भरी टोन में कहा और फिर अपने होंठ उसके होंठों से जोड़ दिए... दोनो चूमते चूमते बाथरूम के बाहर आए और उसी पूलसाइड पे चले गये जहाँ उन्होने यह काम अधूरा छोड़ा था... पूलसाइड पे आते ही शीना ने रिकी को रेक्लीनेर चेअर पे धक्का देके सुला दिया और खुद उसकी छाती के उपर बैठ के उसे बेतहाशा चूमने लगी...



"उम्म्म्म... अहहाहा उम्म्म रिक्कययययहहहा... लव यू आ लॉट बेबी अहहहाहा उम्म्म्म.... यॅ अहहहः सक मी हार्ड उफ़फ्फ़ अहहहहा..." शीना पूरे जोश में रिकी को चूमे जा रही थी और रिकी ईक्वल पॅशन से उसका साथ दे रहा था.... शीना जब थकि, तब अपने होंठों को अलग कर के थोड़ा नीचे झुकी और उसकी आँखों के सामने रिकी का तना हुआ लंड था... आने वाले पल को महसूस करते ही रिकी के शरीर में एक सिरहन से दौड़ गयी और मज़े में आके उसने अपनी आँखें बंद कर के कुर्सी पे टेका लगा लिया... शीना ने अपनी जीभ निकाली और हल्के से अपनी जीभ की टिप सिर्फ़ रिकी के टोपे पे रखी



"आआहहहसिईईईईई..." रिकी ने शीना की जीभ को महसूस करके सिसकारी ली और उसके हाथ खुद बा खुद नीचे गये और शीना के चेहरे को पकड़ने लगे, मानो कह रहा था ऐसे ही करती रहो.... शीना ने जब रिकी को देखा तो वो समझ गयी कि रिकी एक आनंद के सागर में डूबा हुआ था, इसलिए उसने उसे बिना तडपाए अपनी जीभ का प्रहार उसके लंड के टोपे पे चालू रखा और रिकी के लंड पे मीठे वार करती रही, आनंद की शीत ल़हेर में रिकी को कुछ सूझ नहीं रहा था, वो बस हवा में अपनी गान्ड उठाता और फिर उसे नीचे रख देता, रिकी को यूँ तड़प्ता देख शीना को मज़ा आ रहा था



"रिकी.. मुझे देखो, तभी मैं आगे बढ़ूंगी.." कहके फिर शीना ने अपनी जीभ की टिप रिकी के टोपे पे घुमा के छोड़ दी जैसे कोई शेर को मास का टुकड़ा उसकी नाक के पास लाके फिर दूर कर देता था.. जब रिकी से यह बर्दाश्त नहीं हुआ, तब उसने अपनी आँखें खोली और अपनी नज़रें थोड़ी नीचे की तो शीना उसे ही घूर रही थी...



"इफ़ यू वॉंट टू मेक इट स्पेशल, वी बोथ विल नोट क्लोज़ अवर आइज़...." शीना ने एक हल्की सी वासना भरी मुस्कान लाके रिकी की आँखों में देख के कहा और धीरे धीरे कर उसके लंड को मुट्ठी में लेने लगी... दोनो हाथों से रिकी के लंड को पकड़ के शीना ने धीरे धीरे अपना मूह खोला और उसके लंड को अपने मूह के अंदर लेने लगी... यह करते वक़्त दोनो भाई बहेन एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे, दोनो की आँखों में कोई शरम, कोई भाव नहीं थे... वासना ही थी जो उनकी आँखों में तैर रही थी... धीरे धीरे कर शीना ने रिकी के लंड को अपनी हलक में उतारा और फिर हल्के हल्के से उसे अंदर बाहर करने लगी पर अपनी आँखें रिकी की आँखों में ही डाल के रखी थी.. शीना चाहती थी कि वो आज जो भी करे, दोनो एक दूसरे की आँखों में देख के ही करे और रिकी भी शायद ऐसा ही कुछ चाहता था.. देखते देखते शीना ने अपनी गति तेज़ कर दी और रिकी के लंड को पूरा बाहर निकालती और फिर पूरा अंदर निगल जाती लेकिन आँखें अभी भी वहीं थी जहाँ होनी चाहिए थी
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 04:02 PM

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