RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
आगे बढ़ें इससे पहले एक छोटा सा रीकॅप दे देता हूँ ताकि जो लोग फिलहाल कॉंप्लिकेटेड फील कर रहे हैं उन्हे थोड़ी क्लॅरिटी मिले. 1985 में हुए हादसे के बाद 31 दिसंबर 2013 को राइचंद'स की पार्टी में उनके बेटे के साथ एक बड़ा ही हसीन किस्सा हुआ, अब तक रिकी को पता नहीं चला कि उस रात उसको चूमने वाली कौन थी, लेकिन वक़्त के साथ यह बात उसके दिमाग़ से निकल गयी पर अब जब शीना का प्यार उसके सामने आया है तो वो सेफ्ली अस्यूम कर सकता है कि शायद उस रात शीना ही होगी.. लेकिन इसके अलावा उसकी घर वापसी कुछ ख़ास नहीं थी, महाबालेश्वर में हुआ एक अजीब हादसा जिसमे उसने पाया कि कोई है जो चाहता है वो लंडन ना जाए, लेकिन इससे ज़्यादा शीना के प्यार ने उसे हमेशा के लिए मुंबई में ही रोक दिया था.. महाबालेश्वर से आके रिकी विक्रम से उस हादसे के बारे में बात करता है और विक्रम उसकी तलाश में घर से निकल जाता है, लेकिन वापस आती है तो सिर्फ़ उसकी मौत की खबर.. राइचंद'स में अमर के छोटे भाई और उसकी बेटी राजवीर और ज्योति भी आके साथ रहने लगते हैं, ज्योति का मुख्य कारण मुंबई में रुकना तो पढ़ाई के लिए था, लेकिन वक़्त के साथ तब्दीलियाँ हुई और उसने अपनी पढ़ाई छोड़ बाकी सब बातों को ज़हन में उतारना शुरू किया, फिर चाहे वो स्नेहा और शीना का रिश्ता हो, शीना रिकी का रिश्ता हो या राजवीर और सुहसनी का रिश्ता हो.. इन सब के बीच उसे लगा रिकी के साथ प्रॉजेक्ट का हिस्सा बन सकती है, लेकिन वो भी उसको हासिल नहीं हुआ, तब से ज्योति एक घायल शेरनी जैसी बन गयी है, और उसपे जब अब उसे पता चल गया है कि वो राजवीर की गोद ली हुई बेटी है, तब से उसने बाप बेटी के बीच का लिहाज़ भूल के रिश्ते को नया नाम देने की सोची है, पर वो कैसा नाम देगी यह वो अब तक समझ नहीं पाई, फिलहाल तो बस अपने जिस्म की गर्मी दूर करने की फिराक में वो ऐसी ऐसी हरकतें कर रही है जो शायद ही कोई बेटी करती हो अपने बाप के साथ.. राजवीर के रुकने से खुद राजवीर को और सुहसनी दोनो को जैसे एक जड़ीबूटी मिल गयी है, मौका मिलते ही बस अपने जिस्मो की ख्वाहिश पूरी करने पे लग जाते हैं और इसमे जब सुहसनी ने अपनी और उसकी बेटियों का नाम बीच में लाया तो वो जैसे तड़के का काम कर गयी.. राइचंद'स में काफ़ी जगह सीसीटीवी लगे हुए हैं जो सुहसनी ने फिट करवाए हैं जिसे लगता है कि उसके अलावा इस घर में कोई नहीं जानता कॅमरास के बारे में लेकिन शीना सब जानती है.... सुहसनी रिकी और शीना के अलावा किसी पे नज़र नहीं रखना चाहती क्यूँ कि विक्रम है नहीं, स्नेहा में उसे को दिलचस्पी नहीं, ज्योति ने ऑलरेडी अपने रूम का कॅमरा बंद किया है और सुहसनी को यह पता है लेकिन वो इस्पे कुछ कर नहीं सकती.. ज्योति चाहती है शीना पे नज़र रखना लेकिन शीना ने उसके इस अरमान पे पानी फेर रखा है.. रिकी, अमर और स्नेहा केमरे के बारे में जानते हैं कि नहीं वो तो आगे पता चल जाएगा, लेकिन शीना सब कुछ जानती है, वो जानती है कि सुहसनी उसके कमरे पे नज़र रखती है, तो भी उसने इसके बारे में कुछ नहीं किया, क्यूँ ?????? इसका जवाब शायद आगे जल्द ही मिल जाए.....इसी बीच अमर ज़मीन की डील कर लेता है जिसपे रिकी महाबालेश्वर का सबसे बड़ा और आलीशान रिज़ॉर्ट बनाना चाहता है, देखें अब आगे क्या क्या होता है राइचंद'स में
कंटिन्यू.. करेंट अपडेट
शॉपिंग निपटा के जब ज्योति अपने कमरे में आराम कर रही थी, तब उसकी आँखें तो बंद थी लेकिन दिमाग़ था जो शांत होने का नाम नहीं ले रहा था.. रह रह के उसका दिमाग़ जैसे एक झटके से दूसरे झटके पे जा रहा था.. जब उसका दिमाग़ थका तो उसने अपनी आँखें खोली और सिगरेट लेके कश मारने लगी..
"आख़िर शीना ऑस्ट्रेलिया क्यूँ जा रही है.. वो भी हम से 3 दिन पहले..." ज्योति ने खुद से कहा और दिमाग़ पे ज़ोर देने लगी..लेकिन कुछ भी नहीं आया कि ऐसा क्यूँ, और वो भी अचानक ऑस्ट्रेलिया... ऐसी ट्रिप के बारे में सोच सोच के ज्योति परेशान होने लगी, ज्योति ऐसी राह पे खड़ी थी जहाँ उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, क्या नहीं और जो भी वो कर रही है वो क्यूँ कर रही है... उसकी लाइफ सिंपल होती अगर वो अपनी पढ़ाई पे ही ध्यान देती, लेकिन उसे छोड़ सब कुछ कर रही थी, अपने बाप को सिड्यूस करके उसके करीब जाना, अपने भाई पे डोरे डालना वो भी सिर्फ़ इसलिए क्यूँ कि उसकी सग़ी बहेन उसके करीब ना जाए, यह सब मकसद कभी नहीं था उसके यहाँ रुकने का.. एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी, सिगरेट पे सिगरेट जलती रही लेकिन उसका दिमाग़ था जो कुछ समझ ही नहीं पा रहा था, ज्योति के लिए यह चीज़ इतनी ज़रूरी हो गयी थी कि वो इन सब में भूल गयी थी के दो दिन में उसके प्रॉजेक्ट सबमिशन की डेट है..
"कहीं ऐसा तो नहीं कर रही शीना , कि यहाँ से ऑस्ट्रेलिया बोल के निकले लेकिन हमारे पीछे इंडोनेषिया ही आ जाए.. और वहाँ पे रिकी के साथ टाइम स्पेंड करे.." जब ज्योति ने छठी सिगरेट सुलगाई तब जाके दिमाग़ कुछ कुछ काम करने लगा
"ह्म्म्म्म , यह हो सकता है, कि यहाँ से वो बोलेगी ऑस्ट्रेलिया जा रही है, लेकिन हम से पहले बलि पहुँच जाए, अगर ऐसा करेगी तो फिर मेरा जाना कोई काम का नहीं होगा..." ज्योति ने खुद से कहा और सोचने लगी कि अब वो क्या करे....
"ठीक है शीना जी, मेरी प्यारी बहेन.. तुम जाओ बलि.. ऊप्स.... आइ मीन ऑस्ट्रेलिया..." ज्योति ने मुस्कान के साथ खुद से कहा , लेकिन फिर अगले ही पल उसने दूसरी बात पे ध्यान दिया, बात आज सुबह की जब टेबल पे सब लोग नाश्ता कर रहे थे, ज्योति ने यह अब्ज़र्व किया कि शीना ने जितनी भी बातें खुद के लिए या रिकी के लिए की, उसमे उसने भाई शब्द यूज़ नहीं किया... ह्म्म्म्म , अब यह तो सही है, जिस दिन से रिकी ने उसे प्रपोज़ किया और जब से शीना ने उसका प्रपोज़ल आक्सेप्ट किया, शीना ने उसे भाई कहना बंद कर दिया था.. रिकी को शीना सिर्फ़ आप कहके बुलाती, आज नाश्ते की टेबल पे भी शीना ने अमर से जो कुछ भी कहा उसमे भाई शब्द नहीं था.. फिर चाहे वो शॉपिंग वाली लाइन हो या अपनी ऑस्ट्रेलिया की बात.. इन दोनो वाकयो में शीना ने रिकी भाई बिल्कुल नहीं कहा था, यह दोनो या हम दोनो... सिर्फ़ यही शब्द इस्तेमाल हुए थे.. रह रह के ज्योति सोचती के भाई कहना कब से बंद किया.. एक मिनिट भी शीना अपने होंठों से भाई शब्द दूर नहीं करती थी, और आज अचानक ही उसने भाई कहना बंद कर दिया...
"कहीं ऐसा तो नहीं के इन दोनो ने एक दूसरे को प्रपोज़ कर दिया हो... अगर ऐसा होगा तो फिर यह दोनो नज़दीक हो जाएँगे, और फिर मुझे हार का सामना करना पड़ेगा.." शीना ने अपने पास रखे एक ब्लॅंक पेपर को नोचते हुए कहा
"मैं ऐसा बिल्कुल नहीं होने दूँगी..." ज्योति ने खुद से कहा और कमरे से बाहर निकल गयी.. ज्योति सही में क्या करना चाहती थी यह वो खुद नहीं समझ रही थी, जलन और ईर्ष्या की वजह से अब वो बस रिकी को हासिल करना चाहती थी, वो नहीं जानती थी कि जब से शीना ने प्यार का मतलब समझा है तब से उसकी आँखों में बस रिकी का चेहरा ही समाया है.. जहाँ ज्योति इस आग में जल रही थी, वहीं रिकी और ज्योति अपने प्यार की ठंडी हवा में सेर कर रहे थे.. शाम के 6 बजे जब सूरज ढल रहा हो और एक हल्की सी पवन चल रही हो तो फिर एक इंसान को क्या चाहिए, अपने महबूब के सामने बैठ के उसकी आँखों में खुद को देखते रहना.. शीना और रिकी ठीक वोही कर रहे थे.. ढलते हुए सूरज के सामने दोनो आमने सामने बैठे एक दूसरे को बस देखते ही जा रहे थे गार्डेन में.. उन्हे बिल्कुल होश नहीं था या कहें तो किसी के आने का या मौजूदगी का डर नहीं था..
"आपकी कॉफी ठंडी हो रही है....देखना बंद भी करो प्लीज़.." शीना ने हल्की आवाज़ में रिकी से कहा, शीना की ज़ूलफें खुली हुई, उसपे डूबते सूरज की लालिमा उसके चेहरे पे पड़ रही थी, इतना खूबसूरत नज़ारा देख रिकी मनमोहित से हो गया था, बिना ज्वाब दिया रिकी थोड़ा आगे की ओर झुका और शीना की आँखों के पास गिरती उसकी एक लट को थोड़ा पीछे किया जिससे वो उसकी आँखों को अच्छे से देख सके.. ऐसी हरकत से शीना पूरी लाल हो उठी, वहीं पे बैठे बैठे शीना बस एक तक अपनी नज़रें ज़मीन पे लगाए हुई थी और अपने दुपट्टे के एक कोने को अपने हाथ में लिए उसे गोल गोल घुमाने लगती..
"क्या मैं इतना खराब लग रहा हूँ जो मुझे ना देख नीचे ही देखे जा रही हो.." रिकी ने माहॉल को हल्का करने के लिए कहा जिससे शीना के चेहरे पे एक हल्की सी मुस्कान आई और फिर उसकी वोही लट उसकी आँखों के सामने आ गयी... शीना कुछ कहती उससे पहले रिकी ने उसका एक फोटो अपने मोबाइल में लिया
"फोटो क्यूँ.." शीना ने फाइनली अपनी नज़रें उँची कर रिकी को देख के कहा
"शीना राइचंद कभी नहीं शरमाती, इसलिए ऐसा नज़ारा कौन मिस करना चाहेगा, अब जब भी तुम्हे शरमाते हुए देखना होगा, तब इसे देख लूँगा" रिकी ने फोटो दिखाते हुए कहा
"बातें बहुत बनाने लगे हो" शीना ने बस इतना ही कहा और एक पल के लिए फिर उसके गालों पे डिंपल स्माइल आ गयी जिसे देख रिकी का दिल झूम उठा...
"सच ही कह रहा हूँ..." रिकी ने सिर्फ़ इतना ही कहा और फिर जब उसकी नज़र उपर बाल्कनी पे गयी तो एक पल के लिए हल्का सा झटका लग गया, लेकिन होशयारी से उसने अनदेखा किया और शीना से कहा
"शीना, डॉन'ट गेट शॉक्ड, नो इन्स्टेंट रिक्षन्स ओके.. उपर से ज्योति हमें ही देख रही है आंड आइ फील , वो काफ़ी टाइम से वहीं खड़ी है.."
रिकी की बात सुन शीना एक पल के लिए अपनी गर्दन उँची कर ही रही थी कि वो रुक गयी...
"ओह यार, मैं क्या करूँ इस लड़की का.. " कहके शीना ने अपनी कॉफी उठाई और जान बुझ के रिकी से ऐसे बात करने लगी जैसे सब नॉर्मल हो... कुछ ही सेकेंड्स में उसने अपनी नज़र उँची की तो ज्योति अब भी वहीं थी..
"हे ज्योति.. आओ ना नीचे, अकेली क्यूँ खड़ी हो.. कम कम..." शीना ने उसे देख के चिल्ला के कहा और दोनो फिर अपनी अपनी कॉफी पीने लगे
"नीचे क्यूँ बुलाया यार, वी कुड हॅव गॉन सम्वेर एल्स.." रिकी ने दबे हुए होंठों के साथ कहा
"चिल मारो ना आप... अगर कहीं बाहर जाते या कहीं और भी घर में, तो भी यह पीछा करती, जानते नहीं हो, जेम्ज़ बॉन्ड की सीरीस में इसे रोल मिलने वाला है इस बात के लिए.." शीना ने हल्के से हँस के कहा और रिकी भी अपनी हँसी नहीं रोक सका शीना की इस बात पे.. दोनो यूही हल्की हल्की बातें कर रहे थे कि ज्योति भी उनके पास आके बैठ गयी
"आओ ज्योति, हॅव सम कॉफी.." कहके रिकी ने उसके लिए भी एक कप बनाया और तीनो आराम से बैठ के शांत वातावरण को एंजाय करने लगे..
"वैसे ज्योति, हाउ वाज़ युवर शॉपिंग.. फीनिक्स गयी थी ? " शीना ने ज्योति को देख पूछा
"हां, फीनिक्स ही जाउन्गी ना यार तू नहीं आई तो.. इट वाज़ गुड.." ज्योति ने जवाब दिया
"कूल, वैसे कितनी बिकीनिस और स्विम सूट्स लिए.." शीना के इस सवाल से ज्योति की आँखें बड़ी हो गयी और वो उसे ही देखने लगी, और रिकी भी कॉफी पीते पीते खाँसने लगा, उसके मूह से कॉफी बाहर निकल गयी..
"भैया, पानी लीजिए.." ज्योति ने जल्दी से ग्लास उठा के दिया
"नो नो....आइ अम फाइन, एक्सक्यूस मी प्लीज़.." रिकी ने खाँसते हुए कहा और रिकी वहाँ से चला गया
"व्हाट दा फक ईज़ युवर प्राब्लम हाँ.." ज्योति ने रिकी के जाते ही गुस्से से शीना को देख के कहा
"अरे व्हाट'स युवर प्राब्लम, क्यूँ इतनी जासूसी कर रही है, कितनी देर से उपर बाल्कनी में खड़ी थी, यह तो रिकी के पहले मैने तुझे देख लिया लेकिन मैने फिर भी उन्हे कुछ नहीं कहा, हद है, मतलब एक तो चोरी उपर से सीना ज़ोरी.." शीना ने भी सेम टोन में जवाब दिया
शीना का ज्वाब सुन ज्योति का दिमाग़ फिर उसी बात पे अटक गया, शीना ने रिकी भाई नहीं, सिर्फ़ रिकी कहा.. आख़िर यह चक्कर क्या है, कहीं जो मैं सोच रही हूँ वोही तो नहीं.. ज्योति खामोश होके यही सोच रही थी तभी शीना बोली
"अरे सुन, कहीं खो मत जाना.. जानती हूँ तू क्या सोच रही है.." शीना की यह बात सुन ज्योति जैसे फिर सोचने लगी, आज कल यह दिमाग़ भी पढ़ लेती है
"हम एक दूसरे को प्रपोज़ कर चुके हैं.." शीना ने फाइनली ज्योति के सर पे ऐसा बॉम्ब फोड़ा जिसका धमाका ज्योति का होश ही नहीं, बल्कि उसकी जान ले गया हो.. बैठे बैठे ज्योति जैसे ज़िंदा लाश हो गयी, जिस चीज़ को वो प्यार समझ रही थी, उसमे भी उसके हाथ हार लगी.. ज्योति इतनी कमज़ोर नहीं थी कि वो रो पड़ती, लेकिन उसकी आँखों में देख शीना समझ गयी कि यह बात उसे अच्छी नहीं लगी, इसलिए शीना खामोश रही ताकि ज्योति यह बात हजम कर सके.. दोनो के बीच करीब 10 मिनट तक की खामोशी छाई रही, शीना आराम से अपनी कॉफी की चुस्कियाँ ले रही थी, वहीं ज्योति भी रेक्लीनेर पे लेट के अपनी आँखें बंद किए हुए अपने दौड़ते दिमाग़ को काबू में करने की कोशिश कर रही थी... एक लंबी साँस छोड़ के ज्योति ने अपनी आँखें खोली
"सो व्हाट शुड आइ डू विद दिस शीना... मुझे कोई फरक नहीं पड़ता इन सब बातों से.." ज्योति चेहरे पे झूठी मुस्कान लाते हुई बोली
"अरे तो व्हाई चेसिंग अस यार, मैं भी तो यही कह रही हूँ, जब से आई है तब से बस जेम्ज़ बॉन्ड की बेटी की तरह हर जगह नज़र घुमा रही है... दिक्कत क्या है, पढ़ाई में ध्यान दे ना, मैं क्या करती हूँ, रिकी क्या करता है, भाभी क्या कर रही है.. व्हाट्स इट टू यू यार, चिल मार, एक काम कर, अभी आराम से बलि घूम आ, फिर ध्यान लगा के पढ़, और चिंता नहीं कर... तेरे लिए हम एक रिज़ॉर्ट नया खुलवा देंगे, एक्सक्लूसिव्ली फॉर यू बस... बट प्लीज़ डोंट क्राइ फाउल नाउ..." शीना इतनी उत्तेजित थी मानो यह सब कहने के लिए मौका ढूँढ रही हो और वो मौका उसे अब मिला.. ज्योति कुछ कह ही रही थी के फिर शीना ने टोक दिया
"सॉरी फॉर दट लेम जेम्ज़ बॉन्ड जोक... बट काम कर ना अपना यार, ऐसे नज़र रखेगी तो मैं और रिकी टाइम कैसे स्पेंड करेंगे, अभी भी आराम से बैठे थे, मेरी आँखों की तारीफ़ हो रही थी, कि सडन्ली तू आ गयी.. तुझे चाहिए कोई लड़का, नंबर दूं.. पटाएगी, बोल तू मैं वो करूँ, लेकिन प्लीज़ हम पे नज़र रखना बंद कर यार, " इतना कहके शीना ने एक लंबी साँस ली और अपनी कॉफी पीने लगी.. ज्योति को कुछ समझ नहीं आ रहा थे कि वो क्या सुन रही है, और वो भी कैसे... शीना ऐसे बात कर रही थी जैसे रिकी उसका भाई नही, बस एक कॅषुयल बाय्फ्रेंड हो..
"इतना नहीं सोच, कहीं दिमाग़ ना फट जाए.. हियर इट ईज़.. टेक आ ब्रेक, जा लोंग ड्राइव पे हो आ, मेरी पोर्स्चे में आज.. तू भी क्या याद रखेगी इस बहेन को" कहके शीना ने अपना हाथ आगे बढ़ाया लेकिन ज्योति बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गयी...
"अजीब लड़की है, समझ नहीं आती इसकी प्राब्लम भी, अब लगता है इसका कुछ करना पड़ेगा.." शीना ने कॉफी पीते हुए खुद से कहा के तभी उसके कानो में किसी की आवाज़ पड़ी
"हेलो.."
शीना ने जैसे ही यह आवाज़ सुनी, उसे लगा किसी ने उसे सुन लिया हो, उसकी चोरी पकड़ी गयी हो.. नज़रें उठा के उसने साइड में देखा तो निखिल खड़ा था
"हेलो मॅम..." निखिल ने फिर कहा शीना को देख के
"हेलो इनस्पेक्टर..." शीना ने सहमी हुई आवाज़ में कहा
"उः मॅम, कॅन आइ प्लीज़ सी मिस्टर अमर राइचंद.."
"पापा.."
"जी ?" निखिल ने उसकी बात को ना समझ के पूछा
"पापा हैं वो मेरे.. अमर राइचंद नहीं." शीना ने फिर कड़क आवाज़ में कहा, वो डरी हुई थी कि निखिल ने कहीं उसकी बात सुन तो नहीं ली इसलिए वो जान बुझ के ऐसी बातें कर रही थी
"ओके मॅम, आपके पापा से मिल सकता हूँ प्लीज़.." निखिल ने ज़्यादा बहस करना ठीक नहीं समझा
"लीजिए मिल लीजिए इनस्पेक्टर.." इस आवाज़ से शीना और निखिल दोनो सहम गये और मूड के देखा तो अमर सामने से आ रहा था
"गुड ईव्निंग सर." निखिल ने बस इतना ही कहा और अमर वहाँ आके शीना के सामने बेत गया
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