RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"ओके, चलो.. अब यह जवान पीढ़ी कहीं जा रही है तो हम ओल्ड ग्रूप भी कहीं चलें क्या.." अमर ने सुहसनी और राजवीर को देख के कहा और सब बैठे बैठे ठहाका मारके हँसने लगे, लेकिन ज्योति बस खामोश थी.. और उसके दिमाग़ ने एक और चीज़ अब्ज़र्व की जो शायद कोई और कभी ना कर पाता.. लेकिन उसने बिना कुछ सोचे अपना खाना ख़तम किया और शॉपिंग के बारे में सोचने लगी.. ज्योति और राजवीर ने वक़्त डिसाइड करके जाने का फ़ैसला किया और अपने अपने कमरे में रेडी होने के लिए गये.. जाते जाते ज्योति बार बार सोचती कि राजवीर के साथ उसे मज़ा आएगा कि नहीं, उसका मूड बिल्कुल भी नहीं था राजवीर के साथ शॉपिंग पे जाने का, पिछले कुछ दिनो से जैसे उसकी कोई भी बात ठीक से नहीं हो पा रही, यह सोच के बार बार उसका दिमाग़ गरम हो जाता.. इसलिए जैसे ही वो अपने रूम में पहुँची उसने कमरा लॉक किया और सिगरेट के कश लगाने लगी और सोचने लगी कि क्या किया जाए.. लेकिन उसके दिमाग़ में कुछ नहीं आया.. जैसे उसे लगा कि यह शॉपिंग बहुत बेकार होने वाली है, उसके आँखों के आगे कुछ कुछ झलकियाँ और कानो में कुछ आवाज़ें सुनाई देने लगी
"आहहाहा..कितने बड़े चुचे हैं मेरी बेटी के अहहा उफ़फ्फ़..." यह वोही लाइन थी जो उस रात राजवीर ने सुहसनी को चोदते हुए कही थी और ज्योति ने कॅमरा में देख लिया था.. बार बार यह आवाज़ उसके कान में गूँजती.. जैसे जैसे यह आवाज़ बढ़ती वैसे वैसे उसकी आँखों के आगे वो दृश्य आ जाता जहाँ उसका बाप सुहसनी की फोटो देखते हुए अपने लंड को हिला रहा था... राजवीर का मूसल अपनी आँखों के आगे आते ही ज्योति पैरों से कमज़ोर पड़ने लगी और बेड पे लेट के गहरी गहरी साँसें लेने लगी
"आहहहहा उफफफ्फ़....." ज्योति ने हल्की सिसकारी मारी और अपने बालों को पकड़ के खीचने लगी जैसे वो उस चीज़ के लिए तड़प रही थी और उसे अपने पास ना पाके तकलीफ़ में हो.. ज्योति ने अपनी चूत की आग पे कंट्रोल किया और खुद से कहने लगी
"अगर पापा मुझे बिस्तर पे ले जाना चाहते हैं तो मैं क्यूँ पीछे रहूं.. आख़िर मेरी चूत का ख़याल भी तो कोई रखेगा ना, जब एक बहेन अपने भाई से प्यार कर सकती है, और उससे आगे जाके चुदवाने वाली है तो फिर बाप बेटी क्यूँ नहीं... और जैसे ही यह ख़याल उसके दिल में आया, उसके कानो में फिर उस रात की एक बात गूंजने लगी
उस रात जब चुदाई करके दोनो देवर भाभी थक के पसर चुके थे, दोनो हान्फ्ते हुए बातें करने लगे, लेकिन कुछ वक़्त बाद सुहानी ने अपनी साँसें संभाली और अपने कपड़े पहनने लगी... तब राजवीर ने उसे कहा
"कहाँ जा रही है मेरी प्यारी भाभी, अभी एक घंटे में फिर तैयार हो जाएगा यहाँ.. उस वक़्त क्या करूँगा.." राजवीर ने अपने मुरझाए हुए लंड को हाथ में लेके कहा
"मैं क्या जानूँ, अब अमर उठ गया तो तुम नहीं जानते क्या होगा, इसलिए मैं तो जा रही हूँ,.. और तुम्हारे इस साँप की बात रही तो कहा ना उसे अपनी बेटी के बिल में घुसा दो, दोनो को अच्छा लगेगा" सुहसनी ने कपड़े पेहेन्ते हुए जवाब दिया
"ऐसा कैसे होगा भाभी, बाप और बेटी.. नहीं, ठीक नहीं लग रहा.." राजवीर ने होश में आकर कहा, चुदाई के वक़्त सब बातें चलती हैं, उस वक़्त जिस्म की गर्मी दिमाग़ को रोक देती है और आदमी कुछ भी बोल सकता है..
"क्यूँ नहीं, जब मेरा बेटा मेरी बेटी को प्यार कर सकता है तो आगे वो भी उसे चोदेगा ही.. जब देवर भी भाभी को चोद सकता है, तो फिर बाप क्यूँ नहीं बेटी को.. मैने कहा ना हम रईस लोग कुछ भी कर सकते हैं, ऐयाशी हमारे कतरे कतरे में है..." सुहसनी ने पूरे कपड़े पहेन लिए और राजवीर को देखते हुए कहा, कुछ कहने के लिए राजवीर ने मूह खोला ही था कि सुहसनी फिर बोल पड़ी
"और तुझे क्या फरक पड़ेगा, वैसे भी ज्योति कौनसा तेरा खून है.. है तो अनाथ ही, गोद ली हुई है वो.. तो मज़े ले उसके, वैसे भी एक अनाथ के हिसाब से उसकी ज़िंदगी काफ़ी सँवरी हुई है.. इतना पैसा, रुतबा , शानो शौकत.. यह सब हर किसी के नसीब में नहीं होता..." सुहसनी ने अपनी बात इतनी बेरूख़ी से कही कि राजवीर को समझ नहीं आया कि वो क्या रिएक्ट करे.. सुहसनी के जाते ही राजवीर भी कुछ सोचने लगा और फिर नींद के आगोश में चला गया.. यह बात जब ज्योति ने पहली बार सुनी तो उसको यकीन नहीं हुआ कि वो सही है, लेकिन फिर जब उसका ध्यान सुहसनी की उस बात पे गया कि ऐसी लाइफ कम लोगों को नसीब होती है, अनाथ होने के बावजूद राजवीर ने कभी उसे किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी... उस रात ज्योति ने भी फ़ैसला कर लिया कि वो कभी इस बात को ज़हेन में नहीं लाएगी और अपनी ज़िंदगी जैसे चल रही है वैसे ही चलने देगी...
"अब जब सब बातें खुल गयी हैं, तो फिर मैं क्यूँ ना ज़िंदगी के मज़े लूँ, घर पे सही तो घर पे ही, " ज्योति ने खुद से कहा और शॉपिंग के लिए तैयार हो गयी.. तैयार होते ही ज्योति ने एक नज़र खुद को देखा और उसके चेहरे पे हल्की मुस्कान तेर गयी .. वो जल्दी से अपने कमरे से निकली और राजवीर के कमरे की ओर बढ़ी,
"पापा.. आइ आम रेडी, चलें.." ज्योति ने दरवाज़ा नॉक करके बाहर से ही कहा
"यस बेटा, कमिंग.. " राजवीर ने अंदर से ही आवाज़ लगाई और जल्द ही बाहर बढ़ने लगा.. जैसे ही उसने कमरे का दरवाज़ा खोला, सामने खड़ी ज्योति को देख उसके होश ही उड़ गये.. राजवीर एक दम सकपका गया, ज्योति खड़ी ही ऐसे तरीके से और ऐसे कपड़ों में थी..
ज्योति को देख राजवीर की आँखें उसे उपर से लेके नीचे तक अच्छी तरह स्कॅन करने लगी.. उसके चुचों से लेके धीरे धीरे उसकी नाभि, उसकी चूत और फाइनली उसकी जांघों तक पहुँचा जो बहुत चमक रही थी, ऐसा लग रहा था अच्छे से आयिल लगा के आई हो ज्योति उसपर... ज्योति ने भी यह अब्ज़र्व किया और अंदर ही अंदर हँसने लगी, लेकिन उसने राजवीर की इस हरकत को रोका नहीं.. कुछ सेकेंड्स में जब राजवीर होश में आया
"ज्योति, यह क्या पहना है.." राजवीर ने अपनी आँखें बड़ी करके कहा
"क्या हुआ पापा... सही तो कॉंबिनेशन है, डार्क ब्राउन स्कर्ट आंड वाइट शर्ट.." ज्योति ने अपने दाँतों से उंगली निकाली और ग्लासस उतार के राजवीर की आँखों में देख के कहा
"वव.व.वववव.. वो तो त्त थ्ह्ह्ह ठीक है बेटी पर ऐसे कपड़े.." राजवीर ने उसके स्कर्ट की तरफ इशारा करके कहा जो उसकी नंगी और कातिल जांघों को एक्सपोज़ कर रही थी..
"पापा यह एन्वेलप स्कर्ट है, लेटेस्ट फॅशन... अब चलिए ना, कपड़े यहाँ डिसकस करेंगे क्या." ज्योति ने फिर अपने ग्लासस पहने और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी.. ज्योति थोड़ी आगे गयी और हल्के से अपनी गान्ड ठुमका के चलने लगी, उसकी गान्ड को ऐसे हिलते देख राजवीर भी पसीना पसीना होने लगा.. नीचे जाके ज्योति ने राहत की साँस ली कि अमर नहीं है नहीं तो वो ऐसे कपड़ों में उसे बाहर जाने ही नहीं देता.. ज्योति ने जल्दी घर के बाहर कदम रखा और ड्राइवर से चाबी लेके गाड़ी में जा बैठी.. राजवीर आते ही साइड में बैठ गया और ज्योति को ड्राइव करते देख उसने कुछ नहीं कहा.. पूरे रास्ते में राजवीर नज़रें चुरा चुरा के ज्योति की टाँगों को घूरता तो कभी उसके चुचों को जो शर्ट में इतने टाइट लग रहे थे कि ऐसा लग रहा था कि एक बटन खोलो तभी साँस ले पाएँगे.. उसके गोल गोल चुचे, नंगी टाँगें देख राजवीर के जीन्स में भी हलचल होने लगी और उसके उभार धीरे धीरे दिखने लगा... राजवीर इस बारे में कुछ नहीं कर सकता था, इसलिए सिग्नल पे जब गाड़ी रुकती तो वो बाहर देखता और ज्योति उसके जीन्स में उसके लंड को... कुछ देर में दोनो लोवर परेल फीनिक्स माल पहुँचे... राजवीर जब मुंबई आता तो अमर के साथ या सुहसनी के साथ टाइम बिताता और कुछ चीज़ें देख पाता, लेकिन ज्योति शीना के साथ इतनी शॉपिंग करती कि वो यहाँ के हर रास्ते हर माल को पहचान चुकी थी.. माल के अंदर घुसते ही राजवीर ने नज़र घुमाई तो उसे यकीन नहीं हो रहा था, अल्डो, बोब्बि ब्राउन, ब्रुक्स ब्रदर्स.. और हर ऐसी ब्रांड की दुकानें थी जो उसने कभी नहीं सुनी थी..
"चलें पापा... " ज्योति ने उसके पास आके कहा और दोनो एक एक कर हर दुकान में गये और ज्योति के लिए कपड़े देखने लगे.. ज्योति लेने तो वेस्टर्न कपड़े आई थी लेकिन राजवीर के ज़ोर देने पे उसने कुछ इंडियन ड्रेसस भी लिए.. हर एक कपड़े को ज्योति ट्राइ करके दिखाती राजवीर को.. वेस्टर्न कपड़े और उनकी फिटिंग ज्योति के बदन पे देख राजवीर तो हलक से सूखने लगा था... राजवीर जैसे किसी फॅशन शो में बैठा था और ज्योति किसी मॉडेल की तरह उसे अपने कपड़े दिखाती, उसकी फिटिंग दिखती, बदन के हर कोने से, हर आंगल से ज्योति राजवीर को अपने कपड़े दिखाती और साथ साथ अपने जिस्म की नुमाइश भी करती...
"हो गया... चलें.." ज्योति ने जैसे ही यह शब्द कहे, राजवीर की जान में जान आई और वो बाहर की तरफ जाने लगा..
"अरे पापा, कहाँ जा रहे हैं.." ज्योति ने आगे बढ़ते हुए कहा, उसकी यह बात सुन राजवीर ने आँखों से बाहर का इशारा किया
"अरे चलें मतलब आगे चलें, अभी तो बीच वेअर लेना बाकी है, बीच पे क्या यह कपड़े पहनुँगी" ज्योति ने इतना ही कहा कि राजवीर केदिमाग़ के अंदर जैसे किसी ने न्यूक्लियर बॉम्ब फोड़ दिया हो.. बिना कुछ कहे राजवीर आगे बढ़ा और ज्योति के पिछवाड़े पे आँखें सेकता उसके पीछे चलता रहा, ज्योति को यह एहसास था कि राजवीर ठीक उसके पीछे है, इसलिए वो अपनी गान्ड को कुछ ज़्यादा ही थिरकन से हिला के चल रही थी.. ज्योति एक डिज़ाइनर शॉप में घुसी और पीछे पीछे उसके बॅग्स लिए राजवीर भी अंदर घुस गया.. राजवीर को यह डर था कि कपड़ों की तरह कहीं यह सब भी ज्योति ट्राइ करके ना दिखाए... दोनो बाप बेटी अंदर गये और करीब एक घंटे बाद बाहर दो बॅग्स लेके और निकले.. गाड़ी में बैठ के ज्योति नॉर्माली अपनी गाड़ी ड्राइव कर रही थी, लेकिन गाड़ी की ठंडक भी राजवीर के पसीने को नहीं कम कर पा रही थी.... बार बार उसके सामने ज्योति की वो तस्वीरें आ जाती जब उसे वो बिकिनी दिखा रही थी ट्राइ कर कर के...
बिकिनीस में से उभरते ज्योति के चुचे, उसकी गान्ड राजवीर के लंड पे ऐसे वार कर रही थी जिसे राजवीर रोक नहीं पा रहा था, हर बिकिनी के साथ ज्योति सिर्फ़ इतना पूछती "पापा हाउ ईज़ दिस वन.." और राजवीर बस इतना ही कह पाता.." नाइस बेटा.." जहाँ ज्योति खूब समझ रही थी कि उसकी चाल कामयाब हो रही है, वहीं राजवीर काफ़ी मेहनत कर रहा था कि उसका उभरा हुआ लंड ज्योति ना देख पाए, लेकिन वो ना कामयाब रहा.. जैसे जैसे गाड़ी घर की ओर बढ़ती राजवीर के दिल को सुकून मिलता.. गाड़ी की ब्रेक लगते ही राजवीर ने बिना कुछ कहे बॅग्स उठाए और अंदर की ओर जाने लगा... यह देख ज्योति समझ गयी कि उसका काम मुश्किल नहीं है, "आख़िर हैं तो मर्द ही.. बाप हो या भाई, " ज्योति ने खुद से यह शब्द कहे और गाड़ी की चाबी सेक्यूरिटी गार्ड को देके अंदर बढ़ गयी..
अपने कमरे में जाके ज्योति ने देखा कि उसके बॅग्स वहीं पड़े हैं.. इसलिए वो समझ गयी कि राजवीर कहाँ होगा.. उसने जल्दी से अपने कमरे को लॉक किया और अपने मोबाइल में नेट कनेक्ट करके राजवीर के कमरे को देखने लगी... बड़े से कमरे में जब राजवीर नहीं दिखा तो वो मायूस हो गयी, लेकिन फिर उसकी नज़र बाथरूम के दरवाज़े पे गयी जहाँ राजवीर नंगा खड़ा अपने लंड को हिलाए जा रहा था.. उसके मोटे और लंबे लंड को देख ज्योति के मूह में पानी आने लगा, उसने भी जल्द से अपने कपड़े खोले और नंगी लेट के अपने बाप को लंड हिलाते देखने लगी.. जैसे जैसे वो अपने बाप के लंड के सुपाडे को आगे पीछे होता देखती वैसे वैसे उसकी चूत भी गीली होने लगती.. धीरे धीरे उसके हाथ उसकी चूत की तरफ गये और अपने बाप के लंड को देख वो भी अपनी चूत रगड़ने लगी... बाप बेटी एक
दूसरे के नाम से मुठियाने लगे, राजवीर ज्योति के बदन के बारे में सोच सोच के और ज्योति राजवीर के मूसल को देख देख के.. राइचंद'स में अब वो रिश्ता बनने जा रहा था जो किसी ने सोचा तक नहीं था उनके घर में से..
कुछ देर में जब राजवीर और ज्योति के बदन की गर्मी ठंडी पड़ी, तो दोनो नींद की आगोश में जाने लगे... राजवीर तो कुछ पल में सोफे पे लेट गया, लेकिन ज्योति को होश आते ही वो बाथरूम में जाके फ्रेश हुई और ढंग के कपड़े पहेन के फिर आज सुबह की बातों पे दिमाग़ लगाने लगी.. आख़िर ऐसा क्या अब्ज़र्व किया था ज्योति ने सुबह की बातों में...
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