RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
सुबह राजवीर और अमर की नज़रें जब टकराई तो दोनो की आँखों में अलग भावनाएँ उमड़ आई.. अमर जहाँ अब तक क्रोध में डूबा हुआ था वहीं राजवीर की नज़रों में कम से कम माफी के भाव तो नहीं थे, राजवीर खुश था कि उसने अपने दिल की भडास अमर के आगे निकली... दोनो का ध्यान तब टूटा जब उनका नौकर देशपांडे को उनके सामने लाया
"आइए आइए देशपांडे जी..." अमर ने अपनी बाहें खोल के कहा जिससे दोनो लोग गले मिले , देशपांडे ने राजवीर से भी हाथ मिलाया और तीनो लोग बातें करने में लग गये
"तो चलते हैं, एक बार फिर ज़मीन देख लेते हैं और काग़ज़ात वहीं साइन कर लेंगे.." अमर ने कहा और तीनो लोग फिर उस ज़मीन की ओर निकल गये.. ज़मीन पे पहुँचते ही अमर ने अपनी नज़र दौड़ाई तो उसकी आँखें चमक उठी.. रिकी का सपना सच होने वाला था, अमर ने अपने दिल में सोचा
"ठीक है देशपांडे जी... काग़ज़ात पे साइन कर लेते हैं, उम्मीद है आप सब काग़ज़ लाए हैं अपने साथ..." अमर ने गाड़ी की तरफ बढ़ते हुए कहा
"बिल्कुल राइचंद जी, बस एक एनओसी पेंडिंग है मुनिसीपलटी से..जैसे ही वो आती है, काग़ज़ पूरे हो जाएँगे.." देशपांडे ने कहा
"कितना वक़्त लगेगा हाथ में एनओसी आने के लिए.."
"2 दिन.. उससे ज़्यादा नहीं, मेरी अभी वहाँ के ऑफीसर से बात हुई है" देशपांडे ने रुक के जवाब दिया
"ह्म्म्मक... तो एक काम करते हैं.. आप वो एनओसी लेके मुंबई आइए और साथ ही सब काग़ज़, लेकिन इस बार काग़ज़ रिकी राइचंद के नाम के बनाईएगा.." अमर की इस बात से राजवीर को झटका लग गया...लेकिन वो खामोश रहा
"ठीक है अमर जी.. जैसी आपकी मर्ज़ी, लेकिन..." देशपांडे ने इतना कहा कि अमर बोल पड़ा
"मैं जानता हूँ देशपांडे जी... 80-20 का रेशियो रहेगा, 80 % कॅश आपको मैं उसी दिन दे दूँगा, और 20% आपके बॅंक में ट्रान्स्फर कर दूँगा..."
"थॅंक यू अमर जी..." कहके तीनो वहाँ से चल दिए.. देशपांडे को ड्रॉप करके, अमर और राजवीर मुंबई की तरफ निकल गये.. रास्ते में राजवीर कुछ नहीं बोल रहा था, कल रात की बात तो ठीक है, लेकिन यह ज़मीन पूरी रिकी के नाम होगी, यह सुन के उसका सर चकराने लगा... कम से कम 40 करोड़ की ज़मीन.. और अगर अमर ऐसा कर सकता है तो रिज़ॉर्ट भी पूरा उसी के नाम होगा, रिज़ॉर्ट की लागत कम से कम 50-60 करोड़ पकड़ता तो भी उस प्रॉपर्टी की वॅल्यू 100 करोड़ हो जाएगी.. राजवीर बस इसी आँकड़े में घूम रहा था, लेकिन उसके भाव चेहरे पे नहीं आने दिए.. अमर राजवीर को देख देख के समझने की कोशिश कर रहा था पर वो समझ नहीं पा रहा था
"कुछ कहना चाहते हो राजवीर.." अमर ने सरलता से पूछा
"नहीं भाई साब, जिस काम का कोई फ़ायदा नहीं उस काम को करने में कोई मज़ा नहीं आता मुझे.." राजवीर ने उतने ही कठोर भाव से जवाब भी दिया जिसे देख अमर समझ गया के ज़रूर कोई बात है, लेकिन वो खामोश रहा और फिर कुछ नहीं कहा.. कुछ ही देर में दोनो मुंबई पहुँचे, और यह बात सब को बताई... शीना और रिकी के साथ सुहसनी भी काफ़ी खुश थी कि अमर ने अपने बच्चों को सोच के यह फ़ैसला किया, ज्योति भी खुशी दिखा रही थी लेकिन अंदर ही अंदर वो इस सुनहेरे मौके को हाथ से जाता हुआ देख काफ़ी दुखी थी... अगर अमर ने ज़मीन रिकी के नाम की है तो रिज़ॉर्ट बनने के बाद वोही प्रॉपर्टी भी शीना और रिकी के नाम करेगा, लेकिन अगर शीना की जगह मैं होती तो मुझे ही वो हिस्सा मिलता.. यह सोच सोच के ज्योति के घाव और हरे होते रहते.. यह सोच दोनो बाप बेटी के दिमाग़ में आई..
"कंग्रॅजुलेशन्स...." शीना ने रिकी के रूम में जाके एक बहुत ही मधुर आवाज़ में कहा
"सेम टू यू स्वीटहार्ट.." रिकी ने जवाब में शीना के नाज़ुक बदन को अपने आलिंगन में लिया और उसके माथे को चूम लिया
शीना और रिकी बातें ही कर रहे थे कि ज्योति भी वहाँ आके उनके साथ जुड़ गयी और उनके साथ बातें करने लगी...
"गुड भैया, अट लीस्ट अब आप फुल फोकस के साथ काम कर पाएँगे.." ज्योति ने रिकी के सामने बैठते हुए कहा
"हां यार, खाली बैठ बैठ के आइ गॉट बोर्ड यार, अब जल्द से जल्द काम शुरू करना है.." रिकी ने ज्योति से कहा और अगले ही पल उसने अपनी आँखें शीना की तरफ मोड़ के कहा
"तुम एक काम करो, तुम्हारी आर्किटेक्ट फ्रेंड है ना, उसी को बोलो हमारे साथ जुड़ जाए इस काम में.. वी नीड प्रोफेशनल्स राइट.. आंड उसने सब काम सब कॉन्सेप्ट देखे हुए हैं, तो उसे कुछ अलग एक्सप्लेन नहीं करना पड़ेगा..."
"मैने वो कबका कर दिया है, इन फॅक्ट वो जब चलने के लिए तैयार हुई मैने उसे उसी दिन कहा था, फीस की बात भी साथ में कर लेंगे.." शीना ने आराम से रिकी की आँखों में देख जवाब दिया
"अरे वाह, हर काम पहले ही कर दिया है... एनीवेस, ज्योति, हम कब जा रहे हैं...आइ मीन तुमने टिकेट्स और सब बुक कर दिया.." रिकी ने फिर अपनी आखें ज्योति की तरफ घुमा के कहा
"हां, टिकेट्स कर दिए हैं, हम 5 दिन के बाद जाएँगे, होटेल फिलहाल बुक नहीं किया है..वो भी जल्दी से कर दूँगी..आप फाइन हो आफ्टर 5 डेज़.." ज्योति ने फिर सवाल पूछा और एक नज़र शीना को देखने लगी
"हां, जल्दी जाएँगे तो ही जल्दी लौटेंगे ना.. और जल्दी रिज़ॉर्ट का काम भी शुरू हो जाएगा"
"भैया, तो फिर मैं कहती हूँ कि शॉपिंग एक साथ चलें, इसी बहाने मैं बोर भी नहीं होउंगी और कंपनी भी रहेगी.. और साथ में आप भी शॉपिंग कर लेना.." ज्योति ने इतना ही कहा कि उन्हे स्नेहा बुलाने आ गयी खाने के लिए..
"आइ डोंट थिंक पासिबल है ज्योति, मुझे कुछ और काम भी हैं, और मेरी शॉपिंग 20 मिनट में होगी तो मैं लास्ट मिनिट भी कर सकता हूँ, यू कॅरी ऑन.. शीना के साथ जाओ" रिकी ने ज्योति के साथ सीढ़ियाँ उतरते हुए कहा
"मैं भी मेरी फरन्ड के पास जा रही हूँ आज, और कल से कुछ दूसरा काम है यार.. वेरी सॉरी ज्योति..." शीना ने इतना कहा कि ज्योति अंदर से आग बाबूला होने लगी और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गयी दोनो से अलग होके
"चलो, मैं अपनी बात टेबल पे ही कहूँगी ओके.." शीना ने रिकी के कान में फुसफुसाया और रिकी ने हां में सर हिला दिया
सब खाना खाने बैठे बातें कर रहे थे, आज अमर काफ़ी खुश था के उसके बेटे के सपने की ओर पहला कदम बहुत कामयाब रहा..सुहसनी भी इस खबर से काफ़ी खुश थी और आज पहली बार उसकी खुशी फूले ना समा रही थी, ज़मीन की बात सुन स्नेहा शॉक थी कि आख़िर उसका क्या किया जाए, खैर वो उसके लिए मायने नहीं रखता था शायद इसलिए उसने इस बात को हवा कर दिया.. ना रिज़ॉर्ट के प्रॉजेक्ट में काम करने का हिस्सा, ना पैसों का हिस्सा और अब रिकी का शॉपिंग करने से भी इनकार... ज्योति के दिल को चोट पे चोट मिल रही थी, उसने काफ़ी कोशिश की कि टेबल पे उसके यह भाव ना आए लेकिन फिर भी अमर ने उसे ऐसे देख लिया
"क्या हुआ ज्योति बेटा, इतनी गुम्सुम क्यूँ हो.. कोई बात है तो बताओ बेटा मुझे.." अमर ने ज्योति को देखते हुए कहा... जैसे ही अमर ने इस बात को कहा, शीना को समझते देर ना लगी कि अगर ज्योति ने उसकी उदासी का कारण बताया तो फिर उसके किए कराए पे पानी फिर जाएगा, वो रिकी के साथ शॉपिंग करेगी यह पहले से ही तय था इसलिए दोनो ने उसे मना कर दिया था, अब अमर ने जब पूछा तब बिना वक़्त गवाए शीना बीच में बोल पड़ी
"पापा, ज्योति शॉपिंग पे जाना चाहती है, लेकिन उसने हम से पूछा, वक़्त नहीं होने के कारण हम ने उसे मना किया इसलिए हम से नाराज़ हो गयी है.. हम ने उसे काफ़ी मनाने की कोशिश की लेकिन देखिए ना अब तक नाराज़ है हमारी प्यारी बहन हम से.." शीना ने जान बुझ के ऐसी टोन में कहा जैसे उसे काफ़ी दुख हो इस बात का
"अरे बेटा, हर छोटी बात पे नाराज़गी.. क्या है यह, कोई नहीं, चलो मैं चलूँगा तुम्हारे साथ शॉपिंग में..हॅपी.." राजवीर ने अमर के बीच में जवाब दिया
"लो, और बोलो.. इसमे नाराज़गी वाली क्या बात है बेटा, पापा के साथ जाओ, क्या है ताऊ ज़रा बूढ़े हो गये हैं, नहीं तो वो भी आते तुम्हारी हेल्प करने में.." अमर ने ठहाका लगाते हुए कहा.. ज्योति कुछ कह पाती उससे पहले सब अपनी बात कह गये, वो राजवीर को मना नहीं कर सकती थी क्यूँ कि शायद उसे बुरा लग जाता, इसलिए वो खामोश रही और बस एक हल्की सी मुस्कुराहट दे दी..
"एनीवेस, पापा..और बाकी सब भी सुनिए, अगर यह दोनो घूमने जा रहे हैं , तो प्रॉजेक्ट पे तो मैं भी काम करूँगी ना, तो आपको ऐसा नहीं लगता कि मुझे भी घूम के आना चाहिए.." शीना ने अमर को देखा और फिर एक एक कर बैठे हुए सब को देखने लगी.. अमर कुछ कहता इससे पहले वो फिर बोल पड़ी
"डोंट वरी पापा, मैं इन दोनो के साथ नहीं जाउन्गी, और मैं इन दोनो से काफ़ी दूर भी जाउन्गी घूमने के लिए" शीना ने खुशी से अमर को कहा
"कोई बात नहीं बेटा, लेकिन जाओगे कब तुम लोग...यह तो बताओ, और कहाँ.." सुहसनी ने शीना से कहा
"माँ, यह दोनो बलि जाएँगे इंडोनेषिया.. 5 दिन बाद, और मैं गोल्ड कोस्ट ऑस्ट्रेलिया.. 3 दिन बाद निकलूंगी.. मेरे सब फरन्डस रेडी हैं, इसलिए तो मैं इसके साथ शॉपिंग पे नहीं जा रही, मेरी फरन्डस और मैने सब पहले ही कर लिया है.." शीना ने ज्योति को देखते हुए कहा
"वाह शीना, आज कल तू सब काम अड्वान्स में कर रही है...कोई बात नहीं, तीनो घूम आओ...रिकी, कार्ड्स और पैसे वगेरह" अमर ने इतना कहके रिकी को देखा
"सब है पापा, चिंता ना करें, टिकेट्स भी आ गये हैं.." रिकी ने अपना खाना ख़तम करते हुए कहा
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