Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:59 PM,
#52
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"अरे, चलो भी.. कितनी देर करोगी तुम दोनो.."



"कमिंग भाई, अब चलो नहीं तो भाई समझ जाएँगे कि ई हॅव फक्ड यू लेफ्ट , राइट आंड सेंटर.." कहके शीना ने ज्योति का हाथ छोड़ा और दौड़ के रिकी की तरफ पहुँच गयी.. ज्योति भी जल्दी से वहाँ पहुँच गयी और तीनो गोल्फ कोर्स की तरफ चल दिए. पूरे रास्ते में ज्योति सोचती रही कि आख़िर शीना को यह सब पता कैसे चला, और उसने सोचा था कि उन दोनो के रिश्ते की बात से वो उन्हे ब्लॅकमेल करेगी, लेकिन उससे पहले शीना ने खुद क़ुबूल किया, जिसका मतलब शीना को बिल्कुल डर नहीं है इस बात से.. मैं उन्हे अब्ज़र्व कर रही हूँ यह बात शीना भी देख रही है, और फिर मैं रिकी के करीब जाना चाहती हूँ... आख़िर शीना का दिमाग़ इतनी तेज़ी से कैसे चलने लगा.. ज्योति यह सोच सोच के पागल हो रही थी और बस खिड़की के बाहर ही नज़रें जमा के बैठी थी



"तो ज्योति, लाइकिंग मुंबई... ? रिकी ने उसकी तरफ मिरर से देख के कहा



"लविंग इट भैया.." ज्योति का ध्यान टूटा और उसने रिकी को कहा



"सो कहाँ जाना है तुम्हे घूमने, बताओ कुछ सोचा या नहीं.."



"गोआ बोल रही थी भाई, बोलो, " शीना ने बीच में कूद के कहा



"गोआ.. ना इट्स टू क्राउडेड, आइ डोंट लाइक दट प्लेस"



"कुछ और सोचती हूँ फिर भैया..." ज्योति ने सिर्फ़ इतना ही कहा और फिर खिड़की के बाहर देखने लगी



उधर स्नेहा जल्दी अपने कमरे से निकली और सुहसनी से छुपते छुपाते बाहर निकल गयी.. बाहर जाके टॅक्सी पकड़ी और रास्ते से प्रेम को फोन करके उसे मिलने के लिए बुलाया.. स्नेहा ने अपना मोबाइल बंद रखा था क्यूँ कि वो नहीं चाहती थी के शीना का कोई कॉल आए.. प्रेम और वो दोनो कोलाबा के एक कॉफी शॉप में मिले



"क्या हुआ दीदी, इतना अर्जेंट में बुला लिया" प्रेम ने स्नेहा के पास बैठ के कहा



स्नेहा ने उसे सब बातें बता दी, स्नेहा की बात सुन प्रेम भी थोड़ी देर के लिए चौंक गया, लेकिन अगर वो भी स्नेहा जैसे हैरान होता तो बात बिगड़ सकती थी, इस स्थिति में ज़रूरी था कि कोई एक अपना दिमाग़ शांत रखे और यह काम प्रेम ने चुना.. स्नेहा की बातें सुन कुछ देर दोनो खामोश रहे..



"उः, टू एस्परेससॉस प्लीज़.. नो क्रीम.." प्रेम ने वेटर को ऑर्डर दिया



"दीदी, वैसे आप का मोबाइल मिलेगा.. मैं कुछ देखना चाहता हूँ इसमे.." प्रेम ने स्नेहा की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा



"हां देख, बट फिर ऑन करेगा तू इसे और शीना का फ़ोन आया तो फिर मुझे मेंटली टॉर्चर करेगी यार.." स्नेहा अभी भी पसीना पसीना हो रही थी..



"रूको तो यार", कहके प्रेम ने मोबाइल ऑन किया और सब से पहले उसे फ्लाइट मोड पे डाल दिया ताकि किसी का कॉल ना आए.. फिर उसने मोबाइल में सब कुछ चेक किया कि शायद कोई ऐसा अप हो जिससे शीना को यह सब पता चल रहा हो.. लेकिन जब उसे ऐसा कुछ नहीं दिखा, उसने बिना स्नेहा को बोले मोबाइल को फ्लाइट मोड से हटाया और वेट करने लगा शीना के कॉल का.. वो देखना चाहता था कि शीना क्या कहेगी कॉल करके, उसने मोबाइल अपने पास रखा और स्नेहा की चिंता कम करने की कोशिश करने लगे.. इतने में कॉफी आ गयी और दोनो धीरे धीरे कुछ सोचते सोचते कॉफी का
आनंद लेने लगे... करीब एक घंटा होने आया था दोनो को, और 45 मिनिट हुए थे प्रेम को मोबाइल ऑन करके , लेकिन शीना की कॉल अब तक नहीं आई थी



"दीदी एक बात बताओ, आज की हमारी इस मुलाक़ात में और उस दिन जब शीना ने आपको परेशान किया था.. क्या डिफरेन्स है दोनो मुलाक़ातों में" प्रेम के दिमाग़ ने काम करना शुरू किया



"प्रेम मैं कुछ भी नहीं सोच सकती...तुम पहेलियाँ भुजाना बंद करो..." स्नेहा ने कॉफी ख़तम करके कहा



"दीदी, मैं आपके घर चलता हूँ, मुझे कुछ काम है, आपकी सास को कोई दिक्कत तो नहीं होगी.." प्रेम ने स्नेहा से फिर हँस के कहा



"नहीं, चलो, पर क्या काम है.." स्नेहा ने फिर परेशानी में कहा और प्रेम के चेहरे पे एक विजयी मुस्कान थी



दोनो ने जल्दी से बिल भरा, और टॅक्सी पकड़ के राइचंद'स की ओर चल दिए, जहाँ पूरे रास्ते में स्नेहा बार बार परेशानी के पसीने से भीग रही थी, वहीं प्रेम बार बार स्नेहा के मोबाइल को देखता , लेकिन शीना का कॉल अब तक नहीं आया था.. वो जान चुका था कि ऐसा क्यूँ.." करीन 20 मिनट में दोनो घर पहुँचे और प्रेम सुहसनी देवी से मिला.. फीके मन से ही सुहसनी ने उससे बात की और फिर वहाँ से चली गयी.. तब तक प्रेम के कहने पे स्नेहा ने ड्राइवर से गाड़ी की चाबी मँगवाई और प्रेम को दे दी.. प्रेम ने बिना वक़्त गँवाए गाड़ी अनलॉक की और बोनेट खोल के वीरिंग्स चेक करने लगा



"मेकॅनिकल इंजिनियरिंग पढ़ी है इसका मतलब यह नहीं कि तू मेरे ससुराल में आके गाड़ी बनाएगा, पहल से ही इनके नाटक कम हैं जो अब यह कर रहा है तू.." स्नेहा ने आस पास नज़रें फेर के कहा



"रूको यार.." कहके प्रेम ने फिर इग्निशन मारा और कुछ चेक करके बोनेट बंद किया...



"ह्म्म्मल, चलो अब मुझे छोड़ दो कहीं पे, और यह लो अपना मोबाइल..." प्रेम ने अपने हाथ सॉफ करके कहा



स्नेहा ने बिना मोबाइल को देखे अपने क्लच में डाल दिया और प्रेम को छोड़ने के लिए गाड़ी में निकल गयी.. दोनो भाई बहेन गाड़ी में सी लिंक क्रॉस करने लगे तभी प्रेम ने उसका क्लच खोला और उसमे से मोबाइल निकाला



"दीदी, करीब 2 घंटे हुए हैं आपके मोबाइल को ऑन किए हुए.. लेकिन अब तक शीना का फोन नहीं आया, और अब आएगा भी नहीं..." प्रेम की यह बात सुन स्नेहा ने अचानक गाड़ी साइड में रोकी और उसे गौर से देखने लगी.. स्नेहा ने अपने दिमाग़ पे ज़ोर लगाया और उसने देखा प्रेम सही कह रहा है.. जब सवालिया नज़रों से उसने प्रेम की ओर देखा, प्रेम के चेहरे पे फिर एक ऐसी मुस्कान टायर गयी जिसे देख स्नेहा को कुछ कुछ समझ आने लगा.
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