Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:55 PM,
#39
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"डरो नही सर, मैने अपनी लाइफ में ऐसा केस नहीं देखा है.. गाड़ी ब्लास्ट हो चुकी है बुरी तरह से, स्क्रॅप आपके घर पहुँच जाएगा, लेकिन ड्राइवर को इतनी ज़्यादा चोट नहीं

लगी है, आइ मीन चेहरा इतना नहीं जला, आप उन्हे देख के डरेंगे नहीं... और प्लीज़ थोड़ा जल्दी कीजिए, आप के जवाब के बाद हमे रिपोर्ट देनी है और फिर केस की तहकीकात

करनी है..." निखिल ने अपनी घड़ी देख कर कहा.. निखिल की बात सुन रिकी अब धीरे धीरे बढ़ने लगा और जैसे ही स्टोरेज के पास पहुँचा, विक्रम की शकल उसके सामने थी,

कुछ देर तक उसे यूही देखते रहने के बाद रिकी की आँखें नम होने लगी




"हम इन्हे घर कब ले जा पाएँगे इनस्पेक्टर.." रिकी ने बड़ी रुआंसी से आवाज़ में कहा




"आप चिंता ना करें, हम मुर्दा घर की वॅन में यह बॉडी आपके घर भिजवा देंगे... कुछ फ़ॉर्मल्टीज पूरी करनी है, आप मेरे साथ आइए.." निखिल ने रिकी से कहा और दोनो

फ़ॉर्मल्टीज पूरी करने चले गये... जैसे ही फ़ॉर्मल्टीज पूरी हुई, रिकी भी मुर्दा घर की वॅन में बैठा और विक्रम की डेड बॉडी को देखता रहा. पूरे रास्ते रिकी खुद को कोस्ता

रहा कि उसने विक्रम को क्यूँ महाबालेश्वर वाली बात बताई, ना ही वो विक्रम को बताता और ना ही विक्रम उस दिन घर से जाता और ना ही आज उसके परिवार को यह दिन देखना

पड़ता.. पूरे रास्ते रिकी की आँखें नम थी और वो बस खुद को कोस्ता रहता, धीरे धीरे उसकी आँखें छलक पड़ी और वो रोने लगा... विक्रम की ज़िंदगी के आखरी दीनो में

ही दोनो भाई दोस्त बने थे, रिकी अपनी किस्मत को भी रो रहा था, कि मुश्किल से उसने एक दोस्त ऐसा बनाया जिसपे वो कभी भी भरोसा कर सकता था लेकिन वो भी अब उसके पास

नहीं था.. जैसे जैसे वॅन घर के पास पहुँच रही थी, वैसे वैसे रिकी कोशिश करने लगा के वो शांत रहे नहीं तो घर वालों को संभालना मुश्किल हो जाता.. घर से

कुछ दूरी पर ही रिकी ने अपना चेहरा ठीक किया और घर का इंतेज़ार करने लगा.. घर के बाहर सब मेंबर्ज़ खड़े थे इस आस में कि रिकी आएगा और उन्हे कहेगा के वो डेड

बॉडी विक्रम भैया की नहीं है.. लेकिन जैसे ही सब की नज़रें मुर्दा घर की वन पे पड़ी, सब के दिल बैठने लगे.. सुहसनी और स्नेहा फिर अपने पैरों को कमज़ोर महसूस करने

लगी, लेकिन शीना और ज्योति ने उन्हे संभाले हुए था.. वॅन रुकते ही जल्दी से दो करम्चारि पीछे भागे और दरवाज़ा खोलके स्ट्रेचर को बाहर निकाला.. डेड बॉडी की शकल

देख के स्नेहा से रहा नहीं गया और ज़मीन पे बैठ के सूबक सूबक के रोने लगी.. स्नेहा को बिल्कुल होश नहीं था, अपनी चूड़िया तोड़ने लगी, अपनी माँग का सिंदूर अपने हाथ से

मिटाने लगी , अपनी छाती पीट पीट के रोने लगी... स्नेहा को ऐसे देख सभी घबरा गये और उसे और सुहसनी को संभालने में लग गये... राइचंद'स का एक वारिस इस दुनिया में

नहीं रहा अब..




विक्रम की मौत की खबर सुनते ही राइचंद'स के परिवार और दोस्तों को काफ़ी झटका लगा.. शहर के बड़े से बड़ा आदमी उनके घर पे था, कमिशनर से लेके मेयर तक, मंत्री

से लेके संतरी तक.. सब अमर और उसके परिवार को हौसला देने आए थे.. स्नेहा ज़िंदा लाश जैसी लगने लगी थी, किसी से बात नही ना ही कुछ बोलना, बस गुम्सुम एक कोने में

बैठी थी और उसके साथ शीना भी थी.. सुबह से लेके शाम तक घर पे शुभ चिंतको का ताँता लगा रहा, विक्रम ने जिन दोस्तों के साथ कुछ दिन पहले दारू पी थी, वो लोग

भी आए थे, लेकिन उन्होने अमर या रिकी से कुछ नहीं कहा क्यूँ कि सवाल उनपे आता, वो भी जानते थे कि उस रात के बाद जब दूसरी सुबह वो उठे तो विक्रम वहाँ से गायब

था. अगर वो लोग उस का ज़िक्र यहाँ करते तो शक सबसे पहले उनपे आता , इसलिए उन्होने खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझी.. दिन ढलते ढलते लोगों की भीड़ कम होने

लगी और पंडित जी के हिसाब से अगली सुबह लाश का क्रिया करम करना था.. मेहमानो के रहते जैसे तैसे घरवालों ने खुद को रोके हुए था, लें उनके जाते ही एक बार फिर

आँसुओं की नदी छलकने लगी रचंद'स में.. स्नेहा और सुहसनी के साथ साथ अब शीना भी अपना आपा खोने लगी थी.. इस स्थिति में भी ज्योति मज़बूत बनी हुई थी और सब को

बाँधे हुए थी, भावुक वो थी लेकिन उससे ज़्यादा प्रॅक्टिकल लड़की थी.. उसे विक्रम के जाने का दुख था लेकिन उसने कभी विक्रम के साथ इतना वक़्त नहीं बिताया था, तो वो इतनी

दुखी नहीं थी कि वो वहाँ बैठ के आँसू बहाए, लेकिन उसके विपरीत उसने सोचा के सब का हौसला बढ़ाया जाए इसलिए वो अपने मन को काबू में रखे हुई थी.. पूरी रात कोई

सोया नहीं, बस राइचंद परिवार पूरा वहीं बैठा था, सब के चेहरे पे अलग ही खामोशी थी... वहाँ बैठे हर आदमी को झटका सा लगा हुआ था , किसी को अभी भी विश्वास नहीं

हो रहा था, के विक्रम उनके बीच नहीं है.. राइचंद'स की ज़िंदगी की सबसे लंबी रात यही थी.. जैसे तैसे रात गुज़री, वैसे वैसे सुबह से फिर लोगों का आना जारी हुआ,

विक्रमम को जलाने के लिए ले जाना था आज... जैसे ही विक्रम की लाश को चार कंधो ने उठाया, स्नेहा में फिर से पागलपन आ गया और वो फिर से लाश को पकड़ के रोने लगी और

सब को रोकने लगी.. लेकिन जैसे तैसे शीना और ज्योति ने उसे पकड़ा और उसे अपने कमरे में ले गये.. अमर और राजवीर की आँखें काफ़ी नम थी, राजवीर हमेशा से विक्रम में

खुद को देखता था, उसका चहेता था और हो भी क्यूँ नहीं, आख़िर हर साल में कम से कम 6 महीने वो साथ रहते, जब भी विक्रम को बेट्टिंग के मामले में राजस्थान जाना पड़े

वो राजवीर के वहीं रुकता था.... स्मशाण घर पहुँच के सब विधि शुरू हुई और अमर के साथ राजवीर और रिकी ने भी विक्रम की लाश को जलाया.. इस वक़्त राजवीर और रिकी को

देख अमर को लगा कि वो अकेला नहीं हुआ और उसके दिल में फिर एक उम्मीद की ल़हेर दौड़ने लगी.. चाहे कोई कितना करीबी क्यूँ ना हो, लेकिन जब वो गुज़र जाता है तो आज कल लोग

यह सोच के अपनी ज़िंदगी नहीं रोकते, बल्कि आगे बढ़ने का सोचते हैं क्यूँ कि वो जानते हैं जो हुआ सो हुआ, अब उसे पकड़ के आगे की ज़िंदगी खराब करने में कोई मतलब

नहीं है.. स्मशान से घर जाते वक़्त अमर ने दिल में काफ़ी चीज़ें सोच ली जिससे उसके दिल को एक अलग मज़बूती मिलने लगी..




राइचंद'स में अब एक हफ़्ता ही हुआ था कि सुबह को फिर से पोलीस वॅन और एक लंबी गाड़ी आगे रुकी.. कमिशनर के साथ निखिल भी लॉन की तरफ बढ़ा जहाँ अमर अकेला बैठे

बैठे कुछ सोच रहा था... निखिल को आते देख वो बोला




"आइए इनस्पेक्टर साब, इस बार क्या मनहूस खबर लाए हैं.."




अमर का यह वाक्य सुन निखिल ने कुछ नहीं कहा और उसने बस एक नज़र पास खड़े कमिशनर को देखा, कमिशनर ने उसे चुप रहने का इशारा किया और खुद बोलने लगा




"देखो अमर, मैं अभी जो कहने जा रहा हूँ या जो भी पूछूँगा वो एक दोस्त के नाते होगा ना के कमिशनर के नाते.. उम्मीद है तुम समझ रहे हो.." कमिशनर अमर की पास

वाली कुर्सी पे बैठ गया.. कमिशनर को देख शीना भी बाहर आई और उनके पास बैठ गयी..
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 03:55 PM

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