Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:54 PM,
#34
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
अमर की बात सुन के जैसे शीना के अरमानो पे ट्सुनामी सा आ गया था, वो यह तो जानती थी के ज्योति यहाँ रहने का सोच रही है, लेकिन रिकी के प्रॉजेक्ट की बात.. यह उसे पिछली रात ही स्नेहा ने कही थी, और सुबह ऐसी न्यूज़... शीना ने जैसे ही स्नेहा को देखा, स्नेहा ने उसे एक हरामी कातिल मुस्कान दी और वहाँ से निकल गयी और शीना को मेसेज किया






"मेरी बात मानती तो ऐसा नहीं होता, अब भुग्तो बस... "






जैसे ही स्नेहा ने उसे यह मेसेज किया, उसके पास एक कॉल आया...




"ह्म्म , बोलो." स्नेहा ने कॉल रिसीव करके कहा





"क्या, विक्रम तुम्हारे पास है..." स्नेहा ने फिर जवाब दिया, और जैसे ही स्नेहा ने यह कहा, पीछे से एक और आवाज़ से स्नेहा चौंक गयी





"आख़िर आप क्या कर रहे हो यह सब.."

नाश्ते की टेबल पे बैठे बैठे राजवीर और ज्योति एक दूसरे से आँख नहीं मिला पा रहे थे, बीती रात जो वाक़या हुआ उसमे ग़लती चाहे किसी की भी ना हो, लेकिन बाप बेटी के बीच ऐसी घटना होना कोई आम बात नहीं है.. इसलिए तो ज्योति काफ़ी देर तक बस खामोश रहती और जब कुछ कहना होता तो बस ह्म्म्म बोलके चुप हो जाती और फिर अपनी आँखें नीची रखती... उधर राजवीर का भी यही हाल था, ज्योति को नज़र अंदाज़ करने के लिए वो अमर की छोटी सी छोटी बात को भी लंबा तूल दे देता और ज्योति को छोड़ बाकी लोगों से चर्चा में पड़ जाता ताकि किसी को ऐसा ना लगे के इसके बर्ताव में कोई बदलाव है...




"भाईसाब, मैं सोच रहा हूँ कि मैं भी यहीं रुक जाउ.. अकेले वहाँ इतनी बड़ी हवेली में मन नहीं लगेगा,वैसे भी हम दो लोग ही हैं उधर, लेकिन अगर ज्योति भी यहाँ रहेगी तो फिर मुझे अकेले में अच्छा नहीं लगेगा, इतनी बड़ी कोठी मुझे काटने को आएगी.. और आप लोग वैसे भी वहाँ नहीं आने वाले मैं जानता हूँ.." राजवीर ने शिकायत अंदाज़ में अमर से यह बात कही



"मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ राजवीर, जब यहाँ हमारी इतनी प्रॉपर्टी है तो फिर तुम लोग वहाँ रहते ही क्यूँ हो... यह घर क्या किसी हवेली से कम है, तुम्हारे लिए और ज्योति के लिए यहाँ सब फेसिलिटीस मोजूद हैं, और रही बात जगह की, तो 10 कमरे हैं , जो अच्छा लगे तुम बाप बेटी ले लो, 6 कमरे वैसे भी खाली हैं.. और बाकी वहाँ जो काम काज है वो सिमटा लो, और यहीं शिफ्ट हो जाओ...बल्कि मैं तो कह रहा हूँ तुम अभी अपने भरोसे मंद आदमी को कॉल करो और उसे बता दो यह खबर, ताकि हम दोनो वहाँ जाकर जल्द से जल्द तुम्हारा काम काज वहाँ जाके निपटा सकें और हमेशा के लिए यहीं रहें साथ साथ..क्यूँ ज्योति, ठीक कह रहा हूँ ना मैं.." अमर ने पास बैठी ज्योति से कहा जो अब तक बीती रात के बारे में सोच सोच के कहीं खो सी गयी थी, लेकिन अमर की आवाज़ यूँ अचानक सुन के वो होश में आई और बोली




"हां... जीए ज्जीई जीए ताऊ जी... ठीक कह रहे हैं आप.." ज्योति ने हकलाके जवाब दिया और फिर अपनी आँखें नीची कर ली




"ठीक है भाईसब...जैसा आप कहें, मैं अभी जाके मेरे मॅनेजर को कॉल कर देता हूँ.." कहके राजवीर वहाँ से निकल गया और कुछ देर में अमर भी अपना नाश्ता ख़तम करके अपने मीटिंग रूम में गया और जाके अपने बुक्कीस को फोन करने लगा... उधर रिकी अपने कमरे में गुम्सुम सा बैठा हुआ था , उसे जब पता चला कि ज्योति उसके साथ महाबालेश्वर वाले प्रॉजेक्ट में काम करेगी तो उसे अच्छा नहीं लगा.. उसने सोच रखा था कि पहले वो शीना के साथ अकेले कहीं घूमने जाएगा फिर आके महाबालेश्वर का प्रॉजेक्ट स्टार्ट करेगा और उसमे भी शीना को इन्वॉल्व करेगा, लेकिन अब वो ऐसा नहीं कर सकता था.. यह सोच सोच के वो उदास हो रहा था.. धीरे धीरे रिकी महाबालेश्वर वाला किस्सा भूलने लगा था, कुछ देर मे उसने अपना मूड ठीक किया और अपनी पढ़ाई के बारे में सोचने लगा.. कुछ देर पढ़ाई करके फिर अपने लॅपटॉप पे बैठा और ग्रॅफिक्स की मदद से अपने रिज़ॉर्ट का लेआउट बनाने लगा...





उधर अपने मॅनेजर से बात करके राजवीर गार्डेन में जाके बैठा और फिर बीती रात के बारे में सोचने लगा.. पिछली रात जब ज्योति नाम की युवती जो हाइ प्रोफाइल कॉल गर्ल थी, उसके जाने के बाद फिर राजवीर अपने कमरे में आया और वापस उसी के बारे में सोचने लगा.. वो बार बार यही सोच रहा था कि आख़िर अपनी बेटी के चेहरे की तस्वीर आते ही वो क्यूँ झाड़ गया... क्या वो अपनी बेटी के प्रति सेक्षुयली अट्रॅक्ट हो रहा था.... " नहीं नहीं, यह मैं क्या सोच रहा हूँ.." राजवीर ने खुद से कहा और ध्यान भंग करने के लिए अपने लिए शराब का पेग बनाया और धीरे धीरे से मज़े लेके पीने लगा.. चूत या दारू, राजवीर के मज़े लेने का तरीका अलग था, वो अपना वक़्त लेता ताकि उसे ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा मिल सके.. इसलिए तो एक पेग भी वो कम से कम 20-25 मिनट तक चलता.. एक के बाद एक जब राजवीर ने तीन पेग चढ़ा लिए, शराब का सुरूर हल्के से उसके दिमाग़ पे चढ़ने लगा.. जैसे एक और पेग अंदर गया, राजवीर का दिमाग़ अब उसके काबू में नहीं था, वक़्त देखा तो काफ़ी बीत चुका था, वो यह भूल ही गया था कि ज्योति घर पे नहीं है.. उसके हिसाब से सब सो गये थे इसलिए उसने रिलॅक्स होने का सोचा और एक एक कर अपने कपड़े निकाल दिए और सोफा पे आराम से पेर खोलके बैठा और फिर एक और पेग बनाया... जैसे जैसे दारू अंदर जाती उसका लंड खड़ा होता जाता, अब आलम यह था कि दारू तो पूरी कर दी उसने, लेकिन इस लंड का क्या करे जो बस खड़ा हो गया था, इसलिए उसने धीरे से अपने लंड को मुट्ठी में भरा और हल्के हल्के से हिलाने लगा.. जैसे जैसे वो लंड हिलाता, धीरे धीरे कर उसकी आँखें बंद होती और वो फिर ज्योति, अपनी बेटी के ख़यालों में खो जाता... लेकिन अगले ही पल उसने फिर अपनी आँखें खोली और सोचने लगा बार बार उसके साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है.. उसने फिर अपने लिए एक और दारू का पेग बनाया पर फिर भी कुछ देर तक यूँ बैठे बैठे उसका लंड और कड़क हो गया इसलिए अब उससे रहा नहीं गया.. उसने अपना मोबाइल उठाया और एक सेकेंड में अपनी मन पसंद फोटो निकाल के उसे देख कर अपना लंड हिलाने लगा... जैसे जैसे वो फोटो ज़ूम करता वैसे वैसे उसके लंड में उभार आता और वो ज़्यादा कड़क होता जाता.. राजवीर चरण सीमा के पास पहुँच चुका था, अब उसके लंड की नसें सॉफ दिख रही थी, जैसे जैसे उसकी गति बढ़ती उसकी आँखें मस्ती में बंद होती जाती, लेकिन अचानक पीछे से जैसे ही ज्योति की आवाज़ आई, राजवीर ने मूड के देखा और तभी उसके लंड ने अपना पानी छोड़ दिया... एक के बाद एक इतनी लंबी पिचकारियाँ छोड़ी राजवीर के लंड ने कि वो देख ज्योति हैरान तो हो ही गयी पर साथ साथ राजवीर भी कुछ नहीं कर पाया और वो बस लंड हल्के होने का मज़ा लेने लगा.. ज्योति वहाँ से निकल कर अपने कमरे की तरफ गयी और राजवीर भी नशे में होने के कारण कुछ नहीं बोल पाया, जैसे उसे हल्का महसूस हुआ उसने सब बतियां भुजा दी और जाके बेड पे सो गया, इतने सुरूर में वो भूल ही गया था कि उसने कपड़े भी नहीं पहने... सुबह जब उठा तो उसने अपनी हालत देखी और बीती रात की घटनाए उसके दिमाग़ में दौड़ने लगी.. जब उसे याद आया कि बीती रात क्या हुआ था, उसे बहुत शरम आने लगी के ज्योति उसके सामने आई फिर भी उसने अपनी बेशर्मी नहीं छोड़ी...बार बार राजवीर के दिमाग़ में यह ख़याल आता कि अब वो कैसे सामना करेगा अपनी बेटी का, मोबाइल देखा तो वहीं अपनी जगह पे पड़ा था.. उसने झट से फोन उठाया और कुछ देर चेक किया फिर उसे लगा कि चलो ज्योति ने ऐसा कुछ चेक करने की कोशिश नहीं की, नहीं तो उसकी चोरी पकड़ी जाती.. काफ़ी देर तक अपने कमरे से जब बाहर नहीं निकला राजवीर, तब उसे अमर बुलाने आया और मजबूरी में उसे सब के साथ नाश्ता करने जाना पड़ा...
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 03:54 PM

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