Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:47 PM,
#14
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
स्नेहा प्रेम से प्रेम लीला रचा के जल्दी से बाहर निकली और बाहर आके विक्रम को फोन किया...



"हां बोलो, " विक्रम ने स्नेहाके फोन का जवाब देते हुए कहा



स्नेहा :-विकी, मिस्सिंग यू आ लॉट..



"मिस तो मैं भी कर रहा हूँ जानेमन, बट काम से पुणे जा रहा हूँ, जल्दी निपटा के आता हूँ तुम्हारे पास.." विक्रम अंजान था स्नेहा की हरकतों से



"मैं तो पुणे में ही हूँ, मुझसे यह दूरी बर्दाश्त नहीं हुई, इसलिए मैं ही यहाँ आई तुमसे मिलने.." स्नेहा ने फिर मासूम आवाज़ में कहा



"अरे वाह, एक काम करो, मेरी फ्लाइट अभी थोड़ी देर में टेक ऑफ होगी, तुम तब तक नोवोटेल में चेक इन करो, मेरे नाम से रूम बुक्ड है, मैं होटेल में इनफॉर्म कर देता हूँ तुम्हारे लिए... और हां, जाम रेडी रखना मेरी रानी..." कहके विक्रम ने फोन कट किया और फ्लाइट बोर्ड करने लगा.. इधर स्नेहा भी टॅक्सी पकड़ के नोवोटेल की तरफ बढ़ गयी... कोई तकलीफ़ नहीं हुई उसे राइचंद खानदान के लोगों को चूतिया बनाने में.. सुहासनी से झूठ कहा, और अब प्रेम से चुदवा के अपने पति को झूठ बोला




उधर मुंबई पहुँच के सुहासनी अपनी रोज़ मरहा की ज़िंदगी में लग गयी और अमर भी अपने काम में व्यस्त था, लेकिन रिकी और शीना के मन थे कि खामोश ही नहीं हो रहे थे.. रिकी इस असमंजस में था कि वो लंडन जाए या नहीं, और बार बार उसे महाबालेश्वर के मार्केट वाली घटना याद आती. उसने अभी भी वो काग़ज़ संभाल के रखा था.. बॅग तो खोल के बैठा था, लेकिन उसके अंदर कपड़े भरूं कि नहीं, बस यही सोच रहा था.. उधर शीना भी महाबालेश्वर से आके गुम्सुम थी, वो नहीं चाहती थी कि रिकी लंडन जाए पर वो उसे रोकने के लिए कुछ कर भी नहीं सकती थी.. वो बस यही सोच रही थी कि काश रिकी के साथ बिताए हुए पल उसे वापस मिले और वक़्त वहीं थम जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था.. दिल ही दिल में पता नहीं कब रिकी के प्रति उसका महज़ एक अट्रॅक्षन प्यार में बदलने लगा था, रिकी उससे जितना दूर रहता उसका प्यार उतना ही बढ़ता जाता, हाला कि सच यह भी है के शीना आज की लड़की थी, उसके लिए सेक्स भी उतना ही ज़रूरी था जितना प्यार.. वो मानती थी "लव विदाउट सेक्स आंड सेक्स विदाउट लव" ईज़ नोट पॅशनेट.. अपने रूम में खिड़की के बाहर बाहर देखते देखते उसकी आँखों से बस एक आँसू छलकने ही वाला था कि तभी उसे रिकी का सुझाव याद आया.. उसने तुरंत ही अपना हुलिया ठीक किया और फ्रेश होके रिकी के रूम की तरफ चल दी.. रिकी के रूम में जाते ही उसने देखा तो रिकी बेड पे बैठे बैठे कुछ सोच में डूबा हुआ था.. शीना वहीं खड़ी हो गयी और रिकी को उसका एहसास भी नहीं था, वहीं खड़े खड़े शीना रिकी को निहारने लगी.. उसके सर से लेके पावं तक शीना उसकी कायल थी, रिकी स्मार्ट तो था, लेकिन सब से ज़्यादा शीना को जो चीज़ भाती थी वो था उसका रहम दिल, उसका स्वाभाव.. रिकी की यह चीज़े ही थी जिसने शीना के अट्रॅक्षन को उसके प्यार में बदला था... कुछ देर वहीं खड़े खड़े जब शीना ने देखा के रिकी उसे देख ही नहीं रहा तब वो ज़ोर से बोली



"अच्छा तो ठीक है , मैं चली जाती हूँ बस..." शीना की इस आवाज़ से रिकी अपनी सोच से बाहर निकला तो सामने शीना खड़ी थी..



"अरे क्या हुआ, कहाँ जा रही हो.." रिकी अपने ख़यालों से बाहर आते हुए बोला



"कहीं नहीं, मैं 10 मिनट से यहाँ खड़ी हूँ, और आप हो के बस बेड शीट को देखे जा रहे हो, ले जाओ यह भी लंडन.. इसे बहुत मिस करोगे ना.." शीना ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा



"अरे नहीं यार, ऐसी बात नहीं है... आंड मिस तो मैं तुम्हे भी करूँगा यार...कम हियर..." रिकी अपनी जगह से उठा और शीना के पास गया, उसका ख़त पकड़ के उसे बेड पे बिठाया और खुद भी उसके सामने बैठ गया... शीना उसी वक़्त पिघल गयी जैसे आग की तपन में बरफ.. वो नहीं चाहती थी कि रिकी उसका हाथ छोड़े इसलिए उसने भी रिकी के हाथों में अपने हाथ दबा दिए... रिकी बस शीना को देखता रहा..शीना उपर से तो खामोश थी लेकिन उसका दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था.. रिकी के हाथ को महसूस कर के जैसे समझो उसके अंदर की चिंगारियाँ भड़क गयी हो... रिकी ने धीरे धीरे अपना हाथ छुड़ाया और शीना के चेहरे पे बड़े प्यार से हल्के से घुमाया और फिर कुछ कह ही रहा था कि बीच में शीना बोल पड़ी



"भाई, मैं कुछ कहना चाहती हूँ आप से.."



"उससे पहले मैं कुछ कहूँ.. इजाज़त है मेरी स्वीटहार्ट की..." रिकी ने बड़ी शालीनता से पूछा



"पूछिए ना भाई.." शीना ने बड़ी कमज़ोर आवाज़ में कहा



"मैं लंडन नहीं जा रहा.. आइ विल स्टे हियर.."



रिकी के मूह से यह अल्फ़ाज़ सुन के जैसे शीना कहीं खो सी गयी थी, वो एक दम खामोश रही और सोच रही थी कि कहीं उसने कुछ ग़लत तो नहीं सुन लिया..



"हेलो...." रिकी ने चुटकी बजाते हुआ कहा



"हां... हां भाई, अच्छा है..आइ एम वेरी हॅपी... थॅंक यू.. यायययययी.." शीना बच्चों की तरह खुश होके रिकी से गले लगी और बहुत खुश हो रही थी..उसके ज़बान से शब्द नहीं निकल रहे थे , उसे समझ नहीं आ रहा था के वो क्या कहे




"थॅंक यू थॅंक यू वेरी वेरी मच भाई..." कहके आगे बिना कुछ सुने शीना रिकी के कमरे से बाहर निकली




उधर विक्रम पुणे पहुँच गया और सीधा पार्टी से मिलके उसे अपनी प्रॉपर्टी दिखाने ले गया.. राइचंद'स का फार्म हाउस पुणे लोनवाला हाइवे के पास उनकी प्राइम प्रॉपर्टीस में से एक थी.. विक्रम की ज़रा भी दिल नहीं था इस प्रॉपर्टी को बेचने का, लेकिन उसे अमर के दबाव के आगे झुकना ही पड़ा.. प्रॉपर्टी का मुआएना करते करते विक्रम का दिल जल रहा था, लेकिन वो मजबूर था.. विक्रम अमर के खिलाफ कभी नहीं जा सकता....




"वैसे अमर साब यह शानदार प्रॉपर्टी क्यूँ बेच रहे हैं.." पार्टी ने विक्रम से पूछा... और पूछता भी क्यूँ नहीं, 5 एकर में फैला हुआ फार्म हाउस हाइवे के ठीक पास की शोभा था, वहाँ हर अमेनिटी का बंदोबस्त किया गया था. लेकिन राइचंद फॅमिली में से वहाँ कोई कभी नहीं आता, बस अमर वो जगह कभी अपने दोस्तों को दे देता ताकि वो लोग वहाँ मौज काट सकें..



"पता नहीं साक्शेणा जी.. मुझे ज़रा भी दिल नहीं है बेचने का, लेकिन अब क्या कहूँ.. खैर सब छोड़िए, आप बताइए आपको फार्म हाउस कैसा लगा... आइए एक दो जाम हो जायें.." कहके विक्रम ने स्टडी के अंदर प्रवेश किया और साक्शेणा के साथ डील की बातें करने लगा.. साक्शेणा को प्रॉपर्टी अच्छी भी लगी थी, आख़िर ऐसी प्रॉपर्टी कोई कैसे छोड़ सकता है, लेकिन दोनो की बातें पैसों पे आके अटक गयी थी...



"ठीक है साक्शेणा साब, मैं पापा से डिसकस करके बताता हूँ.. अगर वो मान गये, तो हम पेपर्स जल्द ही साइन कर लेंगे..." कहके विक्रम और साक्शेणा दोनो बाहर आ गये..



"ठीक है विक्रम, मैं खुद अमर से बात करने आता हूँ, साथ बातें करेंगे उनसे मिले काफ़ी वक़्त भी हुआ है.." कहके साक्शेणा अपनी गाड़ी में बैठ निकल गया.. साक्शेणा के जाते ही विक्रम जैसे ही अपनी गाड़ी के पास बढ़ा तभी उसका ध्यान मोबाइल पे गया जो उसकी जेब में नहीं था.. विक्रम फिर अंदर की तरफ बढ़ा और स्टडी में घुसा जहाँ उसका मोबाइल पड़ा था.. क्यूँ कि यहाँ कोई नहीं रहता, विक्रम सब बत्तियाँ बुझा के बाहर निकला था, अब जब वो स्टडी में वापस खड़ा था, तो एक अंधेरा सा पसरा हुआ था कमरे में.. दोपहर के 2 बजे भी ऐसे अंधेरे में किसी को भी डर लग सकता है, ख़ास कर तब जब कोई अकेला हो... स्टडी सब से आख़िर के कोने में बनी हुई थी, वहाँ से नीचे जाने की स्टेर्स के लिए एक पतली पर लाबी सी लॉबी क्रॉस करनी पड़ती थी.. विक्रम ने बत्ती ओन करके मोबाइल लिया और फिर बत्ती बंद करके जाने लगा.. जैसे ही उसने अपना एक कदम बढ़ाया, उसे महसूस हुआ जैसे की कोई और भी है वहाँ. पीछे मूड के देखा तो सब वैसा ही था, उसे लगा शायद कोई बहम होगा और वो आगे बढ़ा, लेकिन जैसे ही दरवाज़े के पास पहुँचा उसे फिर ऐसा लगा जैसे कोई है वहाँ.. कभी कभी ऐसा होता है जब कुछ अनदेखा या अजीब ना हो, फिर भी एक बहुत ही अजीब चीस महसूस होती है, जैसे की किसी और का हमारे साथ होना या कुछ ऐसी घटना जिसे देख के लगे के हम यह पहले ही देख चुके हैं.. विक्रम के साथ ठीक वैसा हो रहा था, कुछ हरकत नहीं, कुछ अजीब नहीं, लेकिन उसे फिर भी ऐसा लग रहा था के वो वहाँ अकेला नहीं है.. दरवाज़ा बंद करने के पहले उसने फिर कमरे में नज़र डाली, सब कुछ शांत... उसने अपने ख़यालो को झटका और दरवाज़ा बंद करके बाहर आने लगा.. इधर जैसे ही विक्रम गाड़ी लेके निकला, स्टडी में एक बार फिर फिर बत्ती जली और एक किताब का पन्ना खुल गया




"रिकी, यह मैं क्या सुन रहा हूँ, तुम लंडन नहीं जा रहे" अमर ने रिकी के कमरे में अंदर आते हुए कहा



"जी पापा, आपने ठीक सुना.." रिकी ने खड़े होके जवाब दिया



"पर बेटा, पढ़ाई तो ख़तम करो, यूँ आधे में छोड़ना सही बात नहीं.." अमर ने उसे समझाते हुए कहा



"पढ़ाई ख़तम होगी पापा, मैने अपनी यूनिवर्सिटी मैल कर दिया है, और आगे का कोर्स मैं डिस्टेन्स से कर लूँगा... मैं जल्द से जल्द महाबालेश्वर वाला प्रॉजेक्ट स्टार्ट करना चाहता हूँ.." रिकी ने अपनी नॉर्मल टोन में कहा..



"ठीक है रिकी, जैसा तुम ठीक समझो, पर मैं तब तक तुम्हे प्रॉजेक्ट स्टार्ट करने नहीं दूँगा, जब तक मैं डिग्री नहीं देखता.. और हां ऐसा नही समझना डिग्री से तुम अकल्मंद होगे, मैं ऐसे जड्ज नहीं करता हूँ लोगों को.. हम में से कोई अगर आगे बढ़ने के लायक है तो वो तुम हो, इसलिए डिग्री ज़रूरी है तुम्हारे लिए... और हां, प्रॉजेक्ट रिपोर्ट पे तुम काम स्टार्ट कर दो, मैं तुम्हे काबिलियत के दम पे आगे बढ़ाउंगा, फाइनान्स का बंदोबस्त करो.. मैं पैसा नहीं देने वाला तुम्हे.." अमर ने थोड़ा सा हँसी के साथ यह बात कही



"कोई बात नहीं पापा, मैने वैसे भी सोच रखा था कि लोन ही लूँगा, आपका सपोर्ट चाहिए था बस.." रिकी ने अमर से कहा और दोनो में कुछ और बातें होने लगी..




विक्रम, जैसे ही नोवोटेल पहुँचा, रूम में सीधा घुस के स्नेहा से चिपक गया.. दोनो के अंदर बराबर की आग थी , भले ही स्नेहा कुछ देर पहले चुद चुकी थी लेकिन विक्रम से चुदाई का सोच के ही उसे गर्मी चढ़ती... दोनो अंदर की गर्मी में काफ़ी जल रहे थे, चूमते चूमते जल्दी कपड़े निकाल के बिस्तर पे आ गये और फिर एक बार इनकी चुदाई का घमासान चालू हुआ... स्नेहा विक्रम के साथ भी इतनी ही डॉमिनेंट जितनी प्रेम के साथ थी, शायद उसे झुकना पसंद नहीं था.. ना सेक्स में , ना लाइफ में... अच्छी ख़ासी चुदाई के बाद जब दोनो पति पत्नी हाँफने लगे तब स्नेहा बोली



"क्या हुआ प्रॉपर्टी का.. कुछ बात बनी.."



"हां शायद बन जाए.." विक्रम ने जवाब दिया और दोनो तक के नींद में जाने लगे





उधर फार्म हाउस पे... खुली किताब के एक खाली पन्ने पे कलम से लिखा जा रहा था..




"रिज़ॉर्ट नहीं बनेगा महाबालेश्वर में... बिल्कुल नहीं..."
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 03:47 PM

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