Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:46 PM,
#12
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"मेरा कट इस बार दुगना चाहिए मुझे.." विक्रम के ठीक सामने बैठे शाकस ने उसकी आँखों में देख के कहा और साथ ही अपनी शराब की चुस्की लेने लगा.. बीसीसीआइ का बाप उसके सामने बैठा था, पिन स्ट्रिपेस सूट, बाल चप्पट बने हुए, आँखों पे चश्मा.. शकल से एक दम सीधा दिखने वाला आदमी, आज इंडियन क्रिकेट चला रहा था.. चला रहा था या उसका सौदा कर रहा था भी कह सकते हैं.. आज इंडियन क्रिकेट की हर चीज़ कमर्षियल थी, टेलएकास्ट राइट्स, प्लेयर आड्स, मर्चेनडाइज़.. जितने पॉपुलर खिलाड़ी, उतने ही पैसे मिलते बीसीसीआइ को.. लेकिन बीसीसीआइ के बाप को इतना पैसा भी बहुत कम लगने लगा.. आइपीएल एक मन की उपज आज महज़ एक सौदा बन गया था, टीम ओनर्स जितना बाप के करीब उतना ही उन्हे पैसा मिलता... षेडूल से लेके रिज़ल्ट तक, सब तय होता रहता.. खिलाड़ी महेज़ आक्टिंग करने आते फील्ड पे.. सभी इंटरनॅशनल खिलाड़ी जानते थे यह ड्रामा, लेकिन पैसों ने सब का मूह बाँध रखा था.. बीसीसीआइ की लॉबी आइसीसी में भी मज़बूत थी फिलहाल, जिस टीम के साथ इंडिया खेलती उसको भी पैसों का एक हिस्सा मिलता तो कोई कैसे मना करेगा...



"दुगना बहुत ज़्यादा है.. पिछले साल की फाइनल में हुआ नुकसान अब तक हम रिकवर नही कर पाए.. आपके बेटे ने तो हमे हरा ही दिया, अगर दुगना चाहिए तो वो नुकसान की भरपाई आप करेंगे या आपका बेटा ?" विक्रम का इशारा उसी की टीम के कॅप्टन की तरफ था.. दुनिया जानती थी कॅप्टन और बीसीसीआइ के बाप साथ में थे..



"आखरी वक़्त के बदलाव के ज़िम्मेदार हम नहीं हैं.. अगर डील डन है तो हां बोलो, अगर नहीं तो मुझे यहाँ वक़्त बर्बाद करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.." बीसीसीआइ के बाप ने अपना ग्लास ख़तम किया और फिर विक्रम के जवाब का इंतेज़ार करने लगा



"सब वेन्यूस, हर मॅच के प्लेयिंग 11, पिच कैसी बनेगी, कौन किस नंबर की टीशर्ट पहनेगा.. यह सब फ़ैसले मैं करूँगा, और मॅच के एक दिन पहले बता दिया जाएगा कि टॉस जीत के बॅटिंग करनी है या बोलिंग.. प्लेयिंग 11 में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए बिना मेरे कहे, और अगर कोई घायल है वो फिर भी खेलेगा फिर चाहे उसको बीच मॅच से निकाल दो.. इसके अलावा टीम ओनर्स से मेरी मुलाक़ात सीरीस के पहले.. सिर्फ़ उनके और मेरे बीच में.." अगर यह सब मंज़ूर है तो दुगना डन है, नहीं तो मेरा वक़्त भी ज़ाया ना करें आप..




"विक्रम, तुम शायद भूल रहे हो मैं कौन हूँ... मेरे सामने इतनी शर्त रखना ठीक बात नहीं.. अगर मैं ना कर दूं तो.." बीसीसीआइ के बाप ने फिर एक दूसरा जाम उठा लिया




हाः..विक्रम ने एक हरामी मुस्कान के साथ कहा " मुझे कोई फरक नहीं पड़ेगा, शायद आप भूल रहे हैं कुछ दिनो में बीसीसीआइ के एलेक्षन्स हैं, अगर हमारी मुलाक़ात के बारे में मीडीया या आपके विरोधी को पता लग गया तो ?"




"इससे तो तुम्हारा नुकसान भी होगा विक्रम, खोखली धमकी किसी और को देना.." सामने से जवाब आया




"खोखली धमकी नहीं, अपना मोबाइल चेक कीजिए आपको पता चल जाएगा.." विक्रम ने अपने मोबाइल से उसके मोबाइल पे एक MMएस भेजा... कुछ ही देर में जब वो म्मएस प्ले हुआ तो बीसीसीआइ का बाप हक्का बक्का रह गया.. उसके माथे पे शिकन बन गयी, पसीना बहने लगा... वीडियो में वो और विक्रम पिछले सेमी फाइनल की बातें कर रहे थे जिसमे उसकी आवाज़ और शकल क्लियर थी.. "तुम बोलो वो स्कोर होगा" यह लाइन उसके मूह से निकली हुई वीडियो में थी उसकी चिंता का कारण




"मैने पहले ही कहा था मैं खोखली धमकी नहीं देता.. अब मंज़ूर है या नहीं.." विक्रम ने जिस नंबर से म्ममस भेजा था उसका सिम कार्ड निकाल के तोड़ दिया और दूसरा सिम कार्ड लगा लिया.. उसके लिए यह आम बात थी, सिर्फ़ परिवार वाले ही जानते थे उसके पर्मनेंट नंबर.. उनके अलावा किसी को भी विक्रम से बात करनी होती तो या तो वो अमर के थ्रू करते या घर आके मिलते....




"इसमे तुम भी पकड़े जाओगे विक्रम..." फिर उसने धमकी दी, लेकिन आवाज़ इस बार दबी हुई थी




"इस देश में भेल से जल्दी बैल मिलती है , रही बात मेरी, मैं तो बुक्की हूँ छूट जाउन्गा बदनामी से कोई फ़र्क नही पड़ेगा.. लेकिन आपका क्या होगा, बीसीसीआइ के साथ साथ आइसीसी की चेर्मनशिप जो मिलने वाली है वो भी नहीं लगेगी.. इंटरनॅशनल लॉबी भी गँवा देंगे एक डोमेस्टिक लालच के चक्कर में.." विक्रम ने उसके सामने प्रस्ताव के काग़ज़ फेंकते हुए कहा... जैसे ही बीसीसीआइ के बाप ने काग़ज़ उठाए धीरे धीरे उसका डर एक गुस्से में बदलने लगा




"यह क्या है, दुगना देने के लिए तैयार थे, और अब यह. पिछले टाइम से आधा, " उसने काग़ज़ फेंकते हुए कहा




"गुस्सा नही करो, पहले मान जाते तो दुगना देता, अब मुझे वीडियो भेजने की मेहनत करवाई उसका पेनाल्टी है यह.. जो सब इन्फर्मेशन माँगी है वो चाहिए मुझे पिछले साल के आधे रेट पे.." विक्रम ने उसे अपना फोन दिखाते हुआ कहा...




बीसीसीआइ का बाप पहली बार दीवार के कोने पे आ गया था, ऐसा नहीं है के इससे पहले विक्रम और उसकी कभी पैसों पे लड़ाई नहीं हुई, लेकिन इस बार पता नहीं क्यूँ विक्रम ने उसे बिल्कुल बोलने का मौका नहीं दिया.. जब पेपर साइन हुए तब विक्रम फिर बोला




"आज की मुलाक़ात के वीडियोस भी हैं.. इसलिए ध्यान रखना.. पहली मॅच के पाँच दिन पहले सब डीटेल्स चाहिए, और शेड्यूल बनते ही पहली कॉपी मेरे पास आएगी.. अब आप जा सकते हैं.." विक्रम बीसीसीआइ के बाप को प्यार से गेट आउट बोलने लगा




"मुझे अच्छी तरह याद है, फाइनल में तो हमने बहुत जीता था, फिर कौन्से नुकसान की बात कर रहे थे आप.. " विक्रम के एक बुक्की ने उसे पूछा




"अगर तू यह समझता तो आज मेरी जगह पे होता, चलो निकलो काम करते हैं.." विक्रम ने कहा और एक एक कर सब लोग धीरे धीरे रूम से निकलने लगे.. सब के निकलते ही विक्रम ने भी अपना बॅग निकाला, कपड़े बदल के चेक आउट मारा और पुणे के लिए रवाना हो गया....





उधर रिकी अपनी माँ और बाकी लोगों के साथ मुंबई के लिए निकल ही रहा था के तभी स्नेहा का फोन आया.. नंबर देख के उसके चेहरे पे मुस्कान आ गयी...




"हेलो, हां जी कैसे हैं.." स्नेहा ने मुस्कुरा के कहा



"ओह... एक मिनिट आप मम्मी को बोल दीजिए तो ज़्यादा सही रहेगा...." कहके स्नेहा ने फोन सुहासनी को देने के लिए आगे किया



"कौन है... क्या हुआ" सुहासनी ने फोन को बिना हाथ लगाए पूछा




"यह हैं, कह रहे हैं कि पुणे उन्हे कुछ काम है और अकेले हैं तो बोर हो रहे हैं, इसलिए मुझे भी बुला रहे हैं.. मैने कहा आप मम्मी को बोल दीजिए" स्नेहा ने फिर फोन आगे करके कहा




"इसमे मैं क्या बात करूँ, तुम कर लो.. हम तुम्हे पुणे ड्रॉप कर देते हैं" सुहासनी ने गाड़ी में बैठ के कहा और स्नेहा भी अंदर बैठ गयी.. सब लोग पुणे की तरफ बढ़ने लगे.. गाड़ी चलाते वक़्त फिर से रिकी किन्ही ख़यालों में खो गया, सुहासनी आगे बैठे बैठे हल्की नींद में खोने लगी.. शीना और स्नेहा भी अपनी अपनी खिड़कियों से बाहर देख रहे थे. कहते हैं कि जब सफ़र शुरू होता है तो सब के मन बहुत खुश होते हैं और लोग उतने ही उत्साही होते हैं.. और सफ़र ख़तम होने लगे तो सब लोगों की उत्तेजना ठीक उसी स्पीड से नीचे भी आ जाती है.. अभी यहाँ भी यही हो रहा था, रिकी यह सोच रहा था वो लंडन जाए या नहीं.. क्यूँ कि महाबालेश्वर में हुई घटना ने उसके अंदर एक अजीब सी झिझक पैदा कर रखी थी.. क्यूँ की वो यह घटना किसी को बता भी नहीं सकता था और ना ही उसके बारे में आगे कुछ कर सकता था.. उपर से शीना ने भी उसको दुविधा में डाल रखा था... इसी कशमकश में गाड़ी पुणे के नज़दीक आ गयी... उधर स्नेहा के दिमाग़ में भी कुछ चल रहा था, लेकिन क्या.. शीना रिकी के बारे में सोच रही थी, उसके साथ बिताए हुए कुछ घंटे उसकी ज़िंदगी के सबसे यादगार लम्हे थे.. उसने कभी नहीं सोचा था कि वो रिकी के साथ इतना खुल के बात कर पाएगी कभी.. पर दिल ही दिल में वो सोच रही थी के काश रिकी लंडन ना जाए..
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 03:46 PM

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