RE: vasna story इंसान या भूखे भेड़िए
अगले दिन....
पार्थ से मिले इन्फर्मेशन के हिसाब से नताली एक दलाल से मिलने चल दी, जो इन सारे मामलों मे डील करता था. यही दलाल हवाला के ज़रिए मंत्री जी का सारा पैसा बाहर भी करवाता था... इसलिए जितने भी मंत्री जी से जुड़े मामले थे उस पर
इस के अप्रूवल के बिना काम नही होता था.
नताली.... सुरेश जी आप को मेरे आने का पर्पस तो पता ही होगा...
सुरेश.... सुनिए मेडम आप को यहाँ किसने क्या कह कर भेजा है, मुझे सच मे नही पता... लेकिन एक बात मैं अभी क्लियर कर दूं, हम नये लोगों से कोई डील नही करते.
नताली.... बट मेरी बात तो सुनिए. कभी ना कभी सब नया ही होता हैं.
सुरेश.... हां होता है, पर वो आप की तरह इंडिपेंडेंट नही आता, किसी के साथ आता है...
नताली.... एक बार हमसे हाथ मिला कर तो देखिए, आप को नुकसान नही होगा...
सुरेश.... ह्म ! मैं सोचूँगा इस पर, अब आप जा सकती हैं...
नताली, खाली हाथ सुरेश के पास से चली आई, लेकिन उसे भरोसा था कि वो सुरेश से अपना काम निकलवा लेगी.
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कानपुर की सुबह....
आज की सुबह खुश्मयि थी, ड्रस्टी और मानस एक साथ जॉगिंग कर रहे थे. इधर-उधर की बातें चल रही थी, किस को कौन सा खाना पसंद है, क्या पह्न'ना पसंद है... वायग्रा-वायग्रा....
दोनो ने साथ जॉगिंग करते हुए एक अच्छा समय बिताए. ऐसा लग रहा था जैसे ड्रस्टी की सारी ग़लतफहमी मिटने के बाद वो मानस की ओर आकर्षित हो रही थी. वो मानस मे काफ़ी इंटरेस्ट ले रही थी. मानस उस से आराम से बातें कर रहा था और
बातों के दौरान ये जान'ने की कोशिस भी कर रहा था कि दीवान किधर है.
लेकिन पूरे बातों के दौरान कहीं भी पूर्वी और दीवान की कोई चर्चा नही हुई. ड्रस्टी को बाइ बोल कर जब मानस लौट रहा था
तो खुद पर ही गुस्सा था..... "हट यार.... आज भी पता ना लगा सका, वन मोर डे लॉस"
मानस इरिटेट हो कर मनु को कॉल लगाया....
मनु.... भाई कैसे हो...
मानस.... मनु, मैं हार रहा हूँ. हर बीत'ता हुआ दिन मुझे बेचैन करता है... मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा. खुद को नपुंसक
की तरह महसूस करता हूँ.... भाई, मैं खुद को हारा हुआ महसूस कर रहा हूँ....
मनु.... तुम ये सब बकवास सोचना बंद करो भाई, मैं कल आ रहा हूँ कानपुर.
मानस.... नही, मैं अपना हारा हुआ चेहरा किसी को नही दिखा सकता....
मनु.... भाई इसमे हार जीत वाली बात कहाँ से आ गयी. आप कुछ भी फालतू नही सोचो, मैं कल ही आ रहा हूँ कानपुर.
मानस.... तू मेरी खुशी चाहता है ना...
मनु.... कम ऑन भाई, अब प्लीज़ कोई फिल्मी सीन क्रियेट मत करो. तुझे मेरी कसम, ये और वो... वैसे भी पता नही तब से
कितने बड़े बड़े डाइलॉग बोल रहे हो.... बस बहुत हुआ मैं आ रहा हूँ, और ये फाइनल है.
मानस.... तू आया तो मैं फिर कभी कभी नही मिलूँगा, अब बता तू मेरी खुशी चाहता है कि नही.
मनु.... क्यों रुलाते हो यार, मैं यहाँ कैसे जीता हूँ तुम्हे पता भी है. घुट गयी है ज़िंदगी. कैसे पागलों की तरह ढूँढा था तुम्हे
भूल गये.... तुम मे कोई एमोशन्स है कि नही, क्यों मुझे परेशान करते हो बोलो क्या करूँ जो तुम ही खुश रहोगे...
मानस.... सॉरी यार डाइप्रेस था मुँह से निकल गया, अब तू मुझे क्यों रुला रहा है... चुप हो जा भाई. थोड़ी देर के लिए मैं
केवल अपना ही सोच रहा था... चुप हो जा...
मनु.... नही अब बताओ पहले बात क्या है... कौन सी बात पर ख़ुसी मिलेगी आप को. क्या इच्छा है बोलो...
मानस.... नही रहने दे, फिर कभी कहूँगा.... बट प्लीज़ अब रोना बंद कर. बहुत दिन हो गये तुझे देखे, चिढ़ गया था मैं अपनी नाकामयाबी से. मैं जितना जल्दी सब ख़तम कर के लौटना चाहता हूँ उतना ही देर हो रहा है... मुझे चोट करती हैं ये सारी
बातें. अब बर्दास्त नही होता जब लगता हैं यही सारे लोग होंगे जो हमे तबाह कर के फल फूल रहे हैं.... मैं बस उन्हे मरता देखना चाहता हूँ.
मनु.... बस इतना ही ना... आ जाओ वापस, अब ग़लत तो ग़लत ही सही..... नो मोरल. इनोसेंट है कोई या अक्क्यूस्ड अब सब पिसेंगे. काउंट-डाउन बिगेन.....
मानस.... हां... हां... हन... तू उधर शुरू कर, मैं इधर का काम ख़तम कर के आता हूँ.
मनु.... ये हुई ना बात, अब थोड़ा अच्छा लग रहा है. ये भागने वाला बात नही करो यार, तू ही तो मेरा सब कुछ है.
मानस.... मैं बड़ा हूँ या तू बड़ा. तू मेरी दुनिया है, तू मेरा सब कुछ. रोना बंद किया या अब भी रो रहा है. पागला खुद भी रोता है मुझे भी रुलाता है....
मनु की बात सुन कर जैसे मानस को अंदर से हिम्मत मिली हो. खुद पर विस्वास किया. काम को अगले मोड़ पर लाने के लिए ड्रस्टी के कॉलेज पहुँच गया... ड्रस्टी अपना एग्ज़ॅम ख़तम कर के निकली....
ड्रस्टी.... हाई, आज भी अपने दोस्त की मदद करने आए हैं....
मानस.... नही, बिल्कुल नही... आज तो मैं यहाँ तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ...
ड्रस्टी.... क्या ?????
मानस.... हां सच, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था.... लेकिन मैं वहाँ बैठ कर तुम्हे जाते देखता, कुछ भी ऐसा नही करता जिस से तुम्हे लगता की मैं तुम्हे परेशान कर रहा हूँ.
ड्रस्टी... धीमे बोलो ना, कॉलेज है बाबा. चलो चलते हुए बात करते हैं.
मानस और ड्रस्टी साथ-साथ चलने लगे. कभी-कभी जब दोनो की नज़रें मिलती तो ड्रस्टी मुस्कुरा देती और मानस बस उलझ कर रह जाता.
ड्रस्टी.... अच्छा आप ने बताया नही कि मेरा इंतज़ार क्यों कर रहे थे...
मानस.... बस मुझे कुछ खाली-खाली जैसे लग रहा था. आइ थॉट, आइ आम मिस्सिंग समथिंग.... सोचा यहाँ तो कोई मुझे
जान'ने वाला नही, इसलिए तुम से ही मिल लेता हूँ. तुम से बात कर के अच्छा लग रहा है.
ड्रस्टी.... थॅंक्स आ लॉट जो आप ने मुझे इस लायक समझा.... आज भी कॉफी पिला रहे हो क्या.
मानस और ड्रस्टी दोनो केफे पहुँचे, ड्रस्टी कॉफी की एक सीप ली, हल्की सी एक मुस्कान.... "मानस बताया नही तुम ने, तुम यहाँ किस काम से आए हो"
मानस.... क्या करोगी जान कर ड्रस्टी. मैं जिस काम के लिए आया हूँ वो काम जान गयी तो शायद तुम कन्फ्यूज़ हो जाओ...
ड्रस्टी... कैसा कन्फ्यूषन मानस...
मानस.... यही कि मैं अच्छा हूँ या बुरा. हालाँकि तुम मुझे जानती हो तो मेरी बातों पर ही यकीन करोगी, और उन्हे बुरा मनोगी जिसके बारे मे मैं कहूँगा. और मैं नही चाहता कि तुम किसी को बुरा या अच्छा समझो एक तरफ़ा की बात सुन कर.
मेरा वादा है जब हम आमने-सामने होंगे तो तुम्हे ज़रूर मैं बुलाउंगा... और तब तुम डिसाइड कर लेना कौन अच्छा है और कौन बुरा... आहह ! चुभन सी है दिल मे ड्रस्टी. सॉरी, चलता हूँ कुछ पुरानी बातें याद आ गयी....
मानस, मायूस सा उतरा चेहरा ड्रस्टी के सामने से ले कर गया. उसके चेहरे को देख कर ड्रस्टी के दिल मे कसक सी पैदा हुई.
ऐसा लगा जैसे कुछ दर्द सा वो खुद मे महसूस कर रही है... बड़ी ही खामोश वो अपने घर लौटी.
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