RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
सुनील ने धीरे-धीरे अपने मूसल लंड को ऊपर की ओर चूत के छेद पर दबाना शुरू कर दिया। सुनील का लंड सानिया की तंग चूत में धीरे-धीरे अंदर जाने लगा। लंड के सुपाड़े की रगड़ सानिया को अपनी चूत की दीवारों पर मदहोश करती जा रही थी। उसके पैर खड़े-खड़े काँपने लगे और आँखें मस्ती में बंद होने लगी थी। सुनील ने सानिया को थोड़ा सा धक्का देकर ठीक एक पेड़ के नीचे कर दिया और उसकी पीठ को दबाते हुए उसे झुकाना शुरू कर दिया। सानिया ने अपने हाथों को पेड़ के तने पर टिका दिया और झुक कर खड़ी हो गयी। सानिया की बाहर की तरफ़ निकाली गाँड देख कर सुनील एक दम से पागल हो गया। उसने ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर दिये। सुनील की जाँघें सानिया के चूतड़ों से टकरा कर थप-थप कर रही थी और सानिया बहुत कम आवाज़ में सिसकारियाँ भरते हुए चुदाई का मज़ा ले रही थी। उसके पैर मस्ती के कारण काँपने लगे थे। सुनील ने सानिया की चूत से लंड बाहर निकाला और फिर से एक झटके के साथ सानिया की चूत में पेल दिया। सानिया एक दम से सिसक उठी। सुनील ने फिर से अपने लंड को रफ़्तार से सानिया की चूत के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। पाँच मिनट बाद सानिया और सुनील फिर से झड़ गये। सुनील ने अपना लंड सानिया की चूत से बाहर निकाला और तिरपाल पर पड़ी हुई पैंटी को फिर से उठा कर अपना लंड साफ़ करने लगा।
सानिया पेड़ के तने से अपना कंधा टिकाये हुए मदहोशी से भरी आँखों से ये सब देख रही थी। उसकी कैप्री अभी भी उसके एक पैर में फंसी हुई ज़मीन पे पड़ी हुई थी। सुनील ने अपना लंड साफ़ करने के बाद अपना अंडरवियर और पैंट पहनी और सानिया के पास आकर झुक कर बैठ गया और उसकी जाँघों को फैलाते हुए उसकी चूत को पैंटी से साफ़ करने लगा। सानिया बेहाल सी ये सब देख रही थी। फिर सानिया ने अपने कपड़े ठीक किये और दोनों घर वापस चल दिये।
सानिया की ताई अज़रा और उसकी सौतेली अम्मी रुखसाना ने जिस तरह सुनील को लड़के से मर्द बनाया था वैसे ही सुनील ने आज रुखसाना को कली से फूल बना दिया था। सुनील ने उसे घर से थोड़ा पहले ही उतार दिया। सफ़ेद कैप्री के नीचे बगैर पैंटी पहने सानिया धीरे-धीरे चलती हुई घर पहुँची। उसके मन में अजीब सा डर था। जब रुखसाना ने दरवाज़ा खोला तो सानिया को बाहर खड़ा देखा। सानिया की हालत कुछ बदतर सी नज़र आ रही थी। "क्या हुआ सानिया... तुम ठीक तो हो ना?" रुखसाना ने सानिया की ओर देखते हुए पूछा। "हाँ अम्मी... ठीक हूँ बस थोड़ा सिर में दर्द है..!" ये कहकर सानिया सीधे अपने कमरे में जाने लगी। "ठीक है... तुम फ्रेश होकर कपड़े चेंज कर लो.. मैं चाय बना देती हूँ!" रुखसाना ने कहा और उसके बाद सानिया अपने कमरे में चली गयी। वहाँ से अपने कपड़े लेकर वो बाथरूम में घुस गयी और नहाने के बाद सलवार कमीज़ पहन कर बाहर आ गयी।
रुखसाना को बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि उसकी जवान बेटी सानिया आज कली से फूल बन चुकी थी। सुनील घर नहीं आया था तो उन दोनों ने खाना खाया और सानिया अपने कमरे में जाकर सो गयी। वो कहते है ना कि सैक्स का नशा जो भी इंसान एक बार कर ले तो फिर तो जैसे उसे उसकी लत्त सी लग जाती है... सानिया भी जवान लड़की थी... घी में लिपटी हुई उस रुआनी की तरह जिसे आग दिखाओ तो जल उठे... सानिया भी अपनी उम्र के ऐसे ही मकाम पर खड़ी थी। दूसरी तरफ़ सुनील भी उम्र के उसी मोड़ पर था और अपने से दुगुनी उम्र की चार-चार चुदैल औरतों के साथ नाजायज़ संबंध बना के जवानी के नशे में इतनी बुरी तरह बिगड़ चुका था कि उसे कुछ होश नहीं था कि वो किस राह पर चल निकला है।
रुखसाना को खबर नहीं थी कि सानिया और सुनील के बीच इतना कुछ हो चुका है। सानिया ने भी कुछ ज़ाहिर नहीं होने दिया था और रुखसाना को पता चलता भी कैसे... वो तो खुद हर वक़्त सुनील के लंड से अपनी चूत की आग को मिटाने के लिये बेकरार रहती थी और उससे चुदवाने के मौकों की फ़िराक़ में रहती थी। पर सानिया की मौजूदगी और फिर फ़ारूक के भी वापस आ जाने के बाद मौका मिलना दुश्वार हो गया था... दरसल इसकी सबसे बड़ी वजह खुद सुनील था क्योंकि अब नफ़ीसा और रशीदा सुनील से बाकायदा तौर पे चुदवाती थीं। सुनील हफ़्ते में कम से कम तीन रातें नफ़ीसा और रशीदा के घर पे बिताता था। इसके अलावा दिन में स्टेशन पर भी कभी टॉयलेट में तो कभी किसी दूसरी मुनासिब जगहों पर और कभी-कभी तो अपनी कारों की पिछली सीट पे भी दोनों चुदक्कड़ औरतें सुनील से अपनी चूत और गाँड मरवाने से बाज़ नहीं आती थीं। रुखसाना को तो इस बात की बिल्कुल भी खबर नहीं थी और वो समझ रही थी कि सुनील की जॉब में मसरूफ़ियत बढ़ गयी है। अब तो सुनील ने पहले की तरह रुखसाना को चोदने के लिये दोपहर में भी घर आना बंद कर दिया था। अब तो तीन-तीन चार-चार दिन निकल जाते थे और रुखसाना को सुनील के साथ चुदवाना तो दूर उसके साथ लिपटने-चिपटने और चूमने-चाटने तक के लिये तरस जाती थी। रुखसाना का तो बुरा हाल था ही पर सानिया जैसी जवान लड़की जो एक बार लंड का मज़ा चख ले और वो भी सुनील जैसे जवान लड़के के लंड का मज़ा जो किसी भी औरत की चूत का पानी छुड़ा सकता हो... उसकी बुरी हालत थी। सानिया भी अक्सर सुनील को खा जाने वाली नज़रों से घुरती रहती और सुनील के करीब होने का मौका तलाशती रहती पर ना तो सानिया को मौका मिल पा रहा था और ना ही उसकी अम्मी को।
ढाई-तीन हफ़्ते बाद की बात है... एक दिन फ़ारूक और सुनील अपनी ड्यूटी पर जा चुके थे लेकिन सानिया की छुट्टी थी। उस दिन सानिया दोपहर में पड़ोस में नज़ीला के घर गयी हुई थी। उस दिन नज़ीला और उसके बीच में एक अजीब सा रिश्ता बनने वाला था। सानिया नज़ीला के कमरे में बैठी उसके साथ चाय पी रही थी और नज़ीला का बेटा सलील बाहर हाल में टीवी देख रहा था। नज़ीला ने चाय की चुसकी लेते हुए सानिया से कहा, "सानिया देख ना... क्या ज़माना आ गया है... आज कल किसी पर कोई ऐतबार नहीं क्या जा सकता..!"
सानिया: "क्यों क्या हुआ आँटी?"
नज़ीला: "अब देखो ना... ये जो हमारी पड़ोसन शहला है ना...?"
सानिया: "हाँ क्या हुआ उन्हें..?"
नज़ीला: "अरे होना क्या है उसे... दो दिन से घर से लापता है..!"
सानिया: "क्या?"
नज़ीला: "हाँ और नहीं तो क्या... मुझे तो पहले से ही मालूम था कि यही होने वाला है एक दिन!"
सानिया: "पर हुआ क्या शहला आँटी को? और आप को क्या मालूम था?"
नज़ीला: "अरे कुछ नहीं अपने आशिक़ के साथ भाग गयी है... अपने शौहर को छोड़ कर..!"
सानिया: "आप को कैसे पता..?"
नज़ीला: "सानिया बताना नहीं किसी को... मैंने एक बार पहले भी उसके शौहर आसिफ़ और उनकी सास ज़ोहरा को ये बात बतायी थी कि शहला का चाल-चलन ठीक नहीं है पर वो दोनों उल्टा मुझ पर ही बरस पड़े... बोले कि मुझे दूसरों के घरों में ताँक-झाँक करने की आदत है और मैं अपने काम से काम रखा करूँ... उनके घर में मुझे दखल देने की जरूरत नहीं है... अगर मेरी बात पहले मान लेते तो आज मोहल्ले वालों के सामने यूँ जलील तो ना होना पड़ता!"
सानिया: "पर आप को पहले कैसे पता चल गया आँटी?"
नज़ीला: "अरे क्या बताऊँ तुझे सानिया... एक दिन मैं दोपहर को अपनी छत पर सुखे कपड़े उतारने के लिये गयी थी... तब मैंने पहली बार उस लड़के को छत पर देखा था... जब मैंने शहला की सास से पूछा तो उसने कहा कि ऊपर के रूम में किराये पर रह रहा है... मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर फिर एक दिन मैंने शहला को छुपते हुए उसके रूम में जाते हुए देखा तो मेरा दिमाग ठनक गया... मैंने उन दोनों पर नज़र रखनी शुरू कर दी... एक दिन मुझे याद है तब शायद आसिफ़ टूर पर गया हुआ था... और शहला की सास बाहर गयी हुई थी किसी काम से... तो मैंने उन दोनों को उस लड़के के कमरे के बाहर छत पे पानी की टंकी की पीछे रंग-रलियाँ मनाते हुए देख लिया था... अब तुझे क्या बताऊँ सानिया मैंने जो देखा... मुझे तो देखते ही शरम आ गयी...!"
सानिया के दिल के धड़कनें भी नज़ीला की बातें सुन कर बढ़ने लगी थी। उसने पूछा, "क्या... क्या देखा आप ने...?"
नज़ीला: "जाने दे तेरी उम्र नहीं है इन सब बातों को जानने की... कहीं गल्ती से तूने कहीं मुँह खोल दिया तो सारा मोहल्ला मेरा ही कसूर निकालने लग जायेगा...!"
सानिया: "नहीं आँटी मैं नहीं बताती किसी को.... मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ... आप बताओ ना क्या देखा आप ने..!"
नज़ीला: "पक्का ना... नहीं बतायेगी ना...?"
सानिया: "हाँ नहीं बताऊँगी प्रॉमिस!"
नज़ीला: "तो उस दिन जब मैं ऊपर छत पर गयी तो मैंने देखा कि दोनों उस लड़के के रूम के बाहर पानी की टंकी के पीछे खड़े हुए थे... दोनों ने एक दूसरे को बाहों में कस रखा था... शहला ने उस वक़्त सिर्फ़ कमीज़ पहनी हुई थी और उसने अपनी सलवार उतार कर एक तर्फ फेंक रखी थी... उस लड़के ने शहला को अपनी बाहों में उठा रखा था.... और वो भी किसी रंडी की तरह उसकी कमर में अपनी दोनों नंगी टाँगें लपेटे हुए थी... हाय-हाय सानिया... मैंने आज तक किसी को ऐसे करते नहीं देखा... वो तो उसकी खड़े-खड़े ही ले रहा था... और वो कमीनी भी उसकी गोद में चढ़ी हुई अपनी कमर हिला-हिला कर उसे दे रही थी!
नज़ीला की बातें सुन कर सानिया का दिल जोरों से धड़कने लगा... चूत कुलबुलाने लगी और ऐसे धुनकने लगी जैसे उसकी चूत में ही उसका दिल धड़क रहा हो। "हाय आँटी क्या खड़े-खड़े ही... वो भी गोद में उठा कर..?" सानिया ने धड़कते हुए दिल के साथ कहा। "हाँ और नहीं तो क्या... आज कल ये सब नये पैशन हैं..." नज़ीला उठ कर सानिया के करीब आकर बेड पर बैठ गयी।
सानिया: "पर आँटी ऐसे खड़े होकर कैसे कर सकते हैं...?"
नज़ीला: "अरे तूने अभी तो कुछ देखा ही नहीं है... आज कल के लोग तो पता नहीं क्या-क्या करते हैं.. तुम देख लोगी तो तौबा कर उठोगी!"
सानिया: "क्या... पर आप ने ये सब कहाँ देखा... क्या अंकल भी आपके साथ..?"
नज़ीला: "चुप कर बदमाश एक मारुँगी हाँ...!"
सानिया: "फिर बताओ ना... अगर अंकल ऐसे नहीं करते तो आपको कैसे पता कि क्या-क्या करते हैं?"
नज़ीला: "हमारे नसीब में कहाँ ये सब... ये तो आज कल के लड़के-लड़कियाँ करते हैं... तेरे अंकल की तो कईं सालों से दिलचस्पी ही नहीं रही इन सब में... वैसे भी उनको देखा है ना कितने सुस्त से रहते हैं... जब से उन्हें ब्लड-प्रेशर और डॉयबटीज़ हुई है... थोड़ा सा काम करते ही थक जाते हैं... वो चाहें तो भी उनसे कुछ होने वाला नहीं!"
सानिया: "तो फिर आप ने किया नहीं तो कहाँ देखा...!"
नज़ीला: "अरे वो आती है ना ब्लू फ़िल्में... उनमें देखा है...!"
सानिया ने अंजान बनते हुए पूछा, "ब्लू फ़िल्म! वो क्या होता है..?"
नज़ीला: "अरे वही जिसमें औरतों और मर्दों को सैक्स करते दिखाते हैं... कमाल है तुझे नहीं मालूम... वर्ना आज कल के लड़के-लड़कियाँ तो तौबा... पैदा बाद में होते हैं और ये सब उनको पहले से ही मालूम होता है..!"
सानिया: "आपका मतलब पोर्न मूवीज़ आँटी?"
नज़ीला: "हाँ वही... तूने देखी है..?"
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