RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
"अगर इधर कोई आ गया तो?" सानिया ने पूछा तो इधर-उधर देखते हुए सुनील की नज़र थोड़ी आगे घनी झाड़ियों पर पड़ी। वो झाड़ियाँ कोई दस फीट ऊँची जंगली घास की थी। "तुम उन झाड़ियों के बीच में चली जाओ... वहाँ ऐसे बैठना जैसे पेशाब करते हुए बैठते हैं... मैं तुम्हारे पीछे आता हूँ..!" सुनील ने उसे समझाया। सानिया बिना कुछ बोले खड़ी हुई और झाड़ियों के तरफ़ जाने लगी। सुनील वहीं खड़ा इधर-उधर देख कर जायज़ा लेटा रहा। तभी उसकी नज़र दूसरी तरफ़ की झाड़ियों पर लटक रहे तिरपाल के टुकड़े पर पढ़ी। शायद किसी ट्रक के ऊपर रखे सामान को ढकने वाली तिरपाल का फटा हुआ टुकड़ा था। सुनील ने आगे बढ़ कर उस तिरपाल को उठाया और उसे लपेट कर इधर उधर देखने लगा। उसके दोस्त रवि ने बताया था कि इधर कोई नहीं आता। थोड़ी देर बाद वो भी झाड़ियों की तरफ़ बढ़ने लगा। झाड़ियाँ बहुत घनी और ऊँची थीं। सुनील जगह बनाता हुआ आगे बढ़ा। तभी उसे सानिया उकड़ू बैठी नज़र आयी। सुनील को देखते ही उसके चेहरे का रंग लाल सेब जैसा हो गया। सुनील उसके पास जाकर खड़ा हुआ और उसने वहाँ की झाड़ियों को जल्दी से हटा कर थोड़ी जगह बनायी और उस तिरपाल को बिछा दिया। सानिया अब खड़ी होकर ये सब देख रही थी।
आगे क्या होने वाला है ये सोच-सोच कर उसकी चूत में तेज सरसराहट होने लगी थी। सुनील तिरपाल पर घुटनों के बल बैठ गया और सानिया को पास आने का इशारा किया। सानिया धड़कते हुए दिल के साथ सुनील के करीब आ गयी। "पक्का सिर्फ़ देखोगे ना..? प्लीज़ कुछ और मत करना..!" उसने सुनील की तरफ देखते हुआ कहा। "हाँ-हाँ... कुछ नहीं करुँगा... सिर्फ़ देखुँगा... जल्दी करो उतारो अपनी कैप्री..!" सानिया फिर से बुरी तरह शरमा गयी। सानिया वैसे तो काफ़ी तेज तर्रार लड़की थी लेकिन इस तरह पब्लिक प्लेस में कपड़े उतारने में उसे घबराहट और शर्म महसूस हो रही थी। उसने अपनी कैप्री के आगे का बटन खोल कर धीरे से नीचे अपनी गोरी रानों तक कैप्री सरका दी और अपनी सफ़ेद रंग की लेस वाली पैंटी के इलास्टिक में उंगलियाँ फंसा कर धीरे-धीरे नीचे सरकाना शुरू कर दिया। सुनील ने उसे कैप्री और पैंटी बिल्कुल उतार देने को कहा तो सानिया ने झिझकते हुए दोनों निकाल दीं। सानिया की गोरी चिकनी टाँगें और जाँघें देख कर सुनील का लंड उसकी पैंट में कुलांचे भरने लगा। सानिया की चूत और चूतड़ उसके कुर्ती-टॉप से ढंके हुए थे। सुनील ने सानिया के हाथ से कैप्री और पैंटी को लेकर तिरपाल पर रख दिया और सनिया को कमर से पकड़ कर बैठने को कहा। सानिया थोड़ा डरी हुई सी नीचे अपने चूतड़ों के बल बैठ गयी। अब वो सिर्फ़ अपने गुलाबी कुर्ती-टॉप और ऊँची वेज हील वाली सैंडल पहने हुई थी। सुनील ने उसकी टाँगों को उसकी पिंडलियों से पकड़ कर फैला दिया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, "अब दिखाओ भी!" सानिया ने अपने काँपते हुए हाथ से अपनी कुर्ती को नीचे से पकड़ा और धीरे-धीरे ऊपर करने लगी और अगले ही पल सुनील का मुँह खुला का खुला रह गया। सानिया की गुलाबी चूत देखते ही सुनील का लंड झटके पे झटके खाना लगा। झाँट तो दूर... बाल का एक रोआँ भी नहीं था। एक दम चिकनी और गुलाबी चूत... बिल्कुल अपनी अम्मी रुखसाना की तरह। चूत की दोनों फाँकें आपस में कसी हुई थी। सुनील से रहा नहीं गया और उसने अपनी उंगली को उसकी चूत की फ़ाँकों के बीच रख कर फिरा दिया। "श्श्शहहह ऊँहहह... ये क्या कर रहे हो सुनील तुम..!" सानिया ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा और सुनील का हाथ पकड़ कर उसका हाथ हटाने की कोशिश करने लगी। लेकिन सुनील ने धीरे-धीरे उसकी चूत की फ़ाँकों के दर्मियान अपनी उंगली रगड़ते हुए पूछा, "इस पर तो एक भी बाल नहीं है... कैसे साफ़ किया इसे?" सानिया को जवानी का ऐसा मज़ा पहली बार मिल रहा था। उसका पूरा जिस्म काँप रहा था और उसके हाथ में इतनी ताकत नहीं बची थी कि वो सुनील का हाथ हटा पाये। "आआहहह स्स्सीईई उईईईई... ऐसे ना करो आआहहह..." सुनील ने जैसे ही अपनी उंगली को उसकी चूत की फ़ाँकों के बीच में दबाया तो उसकी उंगली उसकी चूत के रस टपका रहे छेद पर जा लगी। सानिया का पूरा जिस्म थर्रा उठा। "बोलो ना कैसे साफ़ की तुमने अपनी झाँटें..." इस बार सुनील ने अपनी उंगली को सख्ती से रगड़ा तो सानिया की चूत पिघल उठी। "उईईईईई.... याल्लाहहह.... ऊँऊँहहह क्रीम से..!"
"क्यों?" सुनील ने पूछा तो सानिया मस्ती में आँखें बंद करके सिसकते हुए बोली, "हाइजीन के लिये... मुझे साफ़-सफ़ाई पसंद है इसलिये...! तभी सानिया को कुछ सरसराहट सुनायी दी तो उसने अपनी आँखें खोल कर देखा तो सुनील अपनी पैंट और अंडरवियर उतार रहा था। सानिया ये देख कर एक दम से घबरा गयी। "ये... ये तुम क्या कर रहे हो ऊँहहह!" वैसे तो कितने दिनों से वो सुनील से चुदने के ख्वाब देख रही थी लेकिन आज जब असल में उसका ख्वाब पूरा होने जा रहा था तो पता नहीं वो क्यों घबरा रही थी। "कुछ नहीं मेरी जान... तुम्हारी चूत का उदघाटन करने की तैयारी कर रहा हूँ!" सुनील ने कहा तो सानिया उसे रोकते हुए बोली, "नहीं ये ठीक नहीं है.... प्लीज़ मुझे जाने दो..!" लेकिन सानिया ने कोई मुज़ाहिमत नहीं की और उसकी आवाज़ में भी ज़रा सी भी मज़बूती नहीं थी।
"प्लीज़ सानिया एक बार!" सुनील ने कहा और घुटनों के बल नीचे झुक कर उसने सानिया की तमतमा रही सुर्ख चूत की फ़ाँकों पर अपने होंठ रख दिये। जवान सानिया को जैसे ही जवानी का मज़ा मिला वो एक दम से पिघल गयी। वो पीछे के तरफ़ लुड़क गयी और उसकी कुर्ती उसकी कमर पर इकट्ठी हो गयी। "नहीं ओहहहह येऐऐऐ तुम हायऽऽऽ आँहहह ऊँहहफ़्फ़्फ़..." सानिया जैसी जवान गरम लड़की के लिये ये सब बर्दाश्त से बाहर था। आज तक उसे किसी लड़के ने छुआ तक नहीं था और कहाँ आज वो अपनी जवानी के बेशकीमती खज़ाने को सुनील के सामने खोल कर बैठे थी। सानिया की आँखें मस्ती में बंद हो चुकी थी। उसने सिसकते हुए दोनों हाथों से सुनील के सिर को पकड़ लिया और उसके चेहरे को पीछे हटाने की हल्की सी कोशिश करने लगी। सानिया की चूत मैं तेज मचमचाहट और मस्ती की लहरें दौड़ने लगीं... चूत फक-फक करने लगी। आखिरकार उसने चूत की आग के आगे हथियार डाल दिये और बुरी तरह काँपते सिसकते हुए पीछे के तरफ़ लेट गयी। सानिया की कमर अब उसके काबू में नहीं थी। रह-रह कर उसकी कमर झटके खाती और उसकी गाँड ऊपर की ओर उछल जाती। चूत से चिपचिपा रसीला रस बह-बह कर बाहर आने लगा।
सुनील ने सानिया की चूत को चूसते हुए उसकी कुर्ती में कैद दोनों कबूतरों को पकड़ लिया और धीरे-धीरे मसलने लगा। सानिया ने एक दम से अपने हाथ सुनील के हाथों के ऊपर रख दिये पर सुनील नहीं रुका। उसने सानिया की कमर में हाथ डाल कर उसकी कुर्ती के हुक एक-एक करके खोलने शुरू कर दिये। "स्स्सीईईई ऊँऊँहहह स्स्सीईईई ना करो... नाआआ... मुझे कुछ हो रहा है...!" सानिया सिसकते हुए बोली और फिर सानिया की कुर्ती के हुक खोल कर उसे निकालते ही सुनील ने उसकी ब्रा के कपों को पकड़ कर ऊपर खिसका दिया और सानिया की मोटी और कसी हुई चूचियाँ उछल कर बाहर आ गयीं। एक दम सख्त और तनी हुई चूंचीयों पर हाथ लगते ही सानिया फिर से सिसकारियाँ भरने लगी। सुनील ने अपना मुँह सानिया की चूत से हटाया और ऊपर की ओर आते हुए सानिया के एक मम्मे को मुँह में भर लिया और उसके निप्पल को होंठों और जीभ से चुलबुलाने लगा। सानिया का बुरा हाल हो रहा था। सानिया का पूरा जिस्म आग की तरह तपने लगा था। सुनील अपने नीचे जवान लड़की के एक दम तने हुए मम्मों को देख कर पागल सा हो गया था। वो जितना अपने मुँह में उसकी चूचियों को भर सकता था उतना भर कर जोर-जोर से उसके मम्मों को चूसने लगा।
सुनील ने देखा कि अब सानिया पूरी तरह से गरम हो चुकी है तो उसने उसकी चूत से मुँह हटाया और सानिया की जाँघों के बीच में घुटनों के बल बैठ गया। उसने सानिया की चिकनी टाँगों को उठा कर हल्के गुलाबी सैंडलों में उसके गोरे-गोरे पैरों को एक-एक बार चूमा और फिर उसकी टाँगों को अपने कंधों पर रख के अपने लंड का मोटा सुपाड़ा उसकी चूत की फ़ाँकों के बीच में दो-तीन बार रगड़ा। जैसे ही सानिया को अपनी चूत के छेद पर सुनील के लंड के गरम सुपाड़े के छूने का एहसास हुआ तो सानिया बुरी तरह से मचल उठी। इससे पहले कि सानिया कुछ कर पाती सुनील ने अपने लंड को जोर से सानिया की चूत पर दबा दिया। गच की आवाज़ से सुनील के लंड का मोटा सुपाड़ा सानिया की जवान अनचुदी चूत को फाड़ता हुआ अंदर जा घुसा।
|