RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
“तुम क्यों? मैंने तुम्हें थोड़ा ना कहा है!” सानिया ने कहा। “कहा तो नहीं पर मुझे उनकी बातें सही लगी... अगर तुम सुनोगी तो तुम्हें लगेगा कि मैं भी उनकी तरह ही कमीना हूँ क्योंकि मैं भी उनके बातों से सहमत हूँ..!” सुनील की ये बात सुन कर सानिया बोली, “अरे तौबा मैं तुम्हें ऐसा नहीं कह सकती..!”
“चलो छोड़ो सब... तुम बेकार ही परेशान हो गयी!” सुनील ने कहा लेकिन सानिया बोली, “नहीं एक बार पता तो चले वो हरामजादे कह क्या रहे थे..!” सानिया बेझिझक कमीने और हरामजादे जैसे अल्फ़ाज़ बोल रही थी। सुनील ने कहा, “अभी नहीं... अभी तुम्हारा कॉलेज आने वाला है!” थोड़ी देर बाद सानिया का कॉलेज आ गया। सानिया सुनीळ की तरफ़ देख कर एक बार मुस्कुरायी और फिर कॉलेज की तरफ़ जाने लगी। “सानिया तुम्हारा कॉलेज कितने बजे खतम होता है..?” सानिया ने सुनील की तरफ़ मुड़ कर देखा और बोली, “साढ़े तीन बजे... क्यों?” सुनील ने एक बार गहरी साँस ली और फिर हिम्मत करते हुए बोला, “मेरे साथ घूमने चलोगी..?” जैसे ही सुनील ने सानिया से ये बात कही तो सानिया के दिल धड़कन बढ़ गयी। आज तक सानिया किसी लड़के के साथ डेट पर नहीं गयी थी। “बोलो ना... चलोगी..?” सुनील ने फिर पूछा तो सान्या बोली, “अगर अम्मी को पता चला तो..!” सुनील बोला, “नहीं पता चलेगा... तुम बारह बजे छुट्टी लेकर आ सकती हो?” सानिया ने हाँ में सर हिला दिया और बोली, “पक्का ना... घर पर तो किसी को पता नहीं चलेगा..?” सानिया तो खुद ही सुनील के साथ वक़्त बिताने को बेताब थी पर थोड़ी शरम-हया और घर वालों का डर अभी तक उसे बाँधे हुए थे। अब जब कि उसके ख्वाबों का शहज़ादा उसे खुद साथ में चलने को कह रहा था तो वो भला कैसे इंकार कर सकती थी! “ठीक है मैं बारह बजे आ जाऊँगी!” सानिया ने मुस्कुराते हुए कहा।
उसके बाद सुनील स्टेशन पर आ गया। सुनील ने ग्यारह बजे तक वहाँ काम किया और फिर वो उठ कर रशीदा के कैबिन में चला गया। “आओ सुनील... बैठो... कैसे हो?” रशीदा ने कहा तो सुनील बैठते हुए बोला, “मैं ठीक हूँ मैडम... मेरा एक काम करेंगी..?” ये सुनकर रशीदा कमीनगी से मुस्कुराते हुए बोली, “हाय मैं तो हमेशा तैयार हूँ... चल आजा टॉयलेट में?”
“नहीं-नहीं... वो काम नहीं... दर असल एक और जरूरी काम है... मुझे थोड़ी देर बाद निकलना है और आज अज़मल साहब भी नहीं हैं पर्मिशन लेने के लिये... अगर कोई और पूछे या अज़मल साहब कॉल करें तो क्या आप संभाल लोगी?” सुनील ने कहा तो रशीदा बोली, “हाँ-हाँ क्यों नहीं... ये भी कोई बात है... अरे तुम जान माँग लो तो वो भी हम हंसते हुए दे देंगे..!”
उसके बाद सुनील साढ़े ग्यारह सानिया के कॉलेज के लिये निकल गया। सुनील ठीक बारह बजे सानिया के कॉलेज के बाहर पहुँच गया। थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद उसे सानिया कॉलेज के गेट से बाहर आती हुई नज़र आयी। सानीया बेहद खूबसूरत और सैक्सी लग रही थी। उसने बेबी पिंक कुर्ती-टॉप के साथ सफ़ेद कैप्री और बेबी पिंक रंग की ही ऊँची वेज हील वाली सैंडल पहनी हुई थी। अपने बाल उसने पीछे पोनी टेल में बाँधे हुए थे और होंठों पे हल्की गुलाबी लिपस्टिक थी। कॉलेज के गेट से बाहर आकर सानिया बिना कुछ बोले सुनील के पीछे बाइक पर दोनों तरफ़ पैर करके बैठ गयी। सुनील बाइक चलाने लगा पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो सानिया को लेकर कहाँ जाये। “कहाँ चलें...?” सुनील ने आगे रास्ते पर देखते हुए पूछा तो सानिया उसके दोनों कंधों पे अपने हाथ रखते हुए बोली, “कहीं भी... जहाँ तुम्हारा दिल करे वहाँ ले चलो!”
“तुम्हें कोई ऐसी जगह पता है जहाँ पर हम दोनों अकेले कुछ देर तक बातें कर सकें?” सुनील ने पूछा। सानिया का दिल सुनील की बातें सुन कर मचलने लगा। सानिया की कईं सहेलियाँ अपने बॉय फ्रेंड्स के किस्से उसे सुनाया करती थीं कि कैसे उनके बॉय फ़्रेंड ने उन्हें बाँहों में भरा... कैसे किस किया… कहाँ-कहाँ हाथ लगाया... एक दो सहेलियों ने तो अपने बॉय फ्रेंड के लौड़े चूसने और चुदने के किस्से भी बयान किये थे। ये सब बातें सुन-सुन कर सानिया का दिल भी मचलने लगता था पर सानिया अपने खूंसठ बाप फ़ारूक से डरती थी और खासतौर पर बदनामी के डर से भी उसने खुद पे काबू रखा हुआ था और रोज़ाना खुद-लज़्ज़ती करके अपनी हवस की आग बुझानी पड़ती थी। सानिया बोली, “मालूम नहीं पर मेरी एक सहेली ने बताया था कि शहर के बाहर हाईवे पर एक बहोत बड़ा नेश्नल पार्क है... जंगल सा है... पर काफ़ी लोग वहाँ घूमने जाते हैं!”
उन्होंने वहीं जाने का फ़ैसला किया। दोनों थोड़ी देर में ही शहर से बाहर आ चुके थे। रास्ता एक दम विराना था और कुछ अगे जाने पर वो उस जंगल में पहुँच गये। जैसे ही वो उस जंगल में पहुँचे, तो वहाँ सुनील को एक बाइक स्टैंड नज़र आया। उसने सानिया को नीचे उतरने के लिये कहा और उसे उतार कर वो बाइक पार्क करने के लिये स्टैंड में चला गया। जैसे ही वो बाइक स्टैंड पर पहुँचा तो उसे वहाँ उसका कॉलेज का एक पुराना दोस्त मिल गया। उसने सुनील को देखते ही पहचान लिया। उसका नाम रवि था। रवि ने सुनील को पीछे से आवाज़ लगायी, “अरे सुनील तुम यहाँ?” तो सुनील ने घूम कर रवि को देखते हुए कहा, “अरे रवि तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो?”
“कुछ नहीं यार... मुझे यहाँ पर पार्किंग का ठेका मिला है... बस यही अपनी रोजी रोटी है... और तू सुना... तू यहाँ क्या कर रहा है...?” रवि ने कहा। सुनील ने कहा, “यार मुझे रेलवे में जॉब मिल गयी है... और मेरी पोस्टिंग यहीं हुई है...!”
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