RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
तो दोनों औरतें में काफ़ी बातें एक जैसी थीं। दोनों ही खूभ पढ़ी-लीखी और अच्छे पैसे वाले घरों से होने के साथ-साथ खुद भी ऊँची पोस्ट पे काम करती थीं। दोनों ही काफी खूबसूरत और सैक्सी फिगर वाली चुदैल औरतें थीं और दोनों खूब बन-ठन कर अपनी-अपनी कारों से काम पे आती थीं। इसके अलावा दोनों सिर्फ़ गहरी सहेलियाँ ही नहीं थी बल्कि उनका आपस में जिस्मानी लेस्बियन रिश्ता भी था।
शाम के वक़्त अपना काम निपता कर सुनील अपनी कुर्सी पर आँखें मूँद कर बैठ गया और स्टेशन मास्टर अज़मल भी बाहर निकल गया था। अज़मल बाहर गया तो उधर दोनों औरतें शुरू हो गयी। नफ़ीसा अपने कैबिन में से निकल कर सुनील के सामने रशीदा के कैबिन में जा कर बैठ गयी। “और रशीदा कल तो तेरे हस्बैंड आये हुए थे... खूब चुदाई की होगी तुम लोगों ने...!” नफ़ीसा चहकते हुए बोली तो रशीदा ने उसे खबरदार करते हुए कहा, “शशशऽऽऽ अरे धीरे बोल... वो नया लड़का सुनील भी है... अगर उसने सुन लिया तो..!”
नफ़ीसा बोली, “अरे सुन लेगा तो क्या होगा... उसके पास भी तो लंड है... और सारी दुनिया करती है ये काम हम क्यों किसी से डरें..!”
“अरे नहीं यार अच्छा नहीं लगता... अगर सुन लेगा तो क्या सोचेगा बेचारा..!” रशीदा ने कहा तो नफ़ीसा उसे टालते हुए बोली, “तू वो छोड़.. बता ना... कल तो जरूर तेरी गाँड का बैंड बजाया होगा खुर्शीद साहब ने..!”
रशीदा मायूस से लहज़े में बोली, “अब उनमें वो बात नहीं रही यार... ऊपर से इतनी तोंद बाहर निकल लायी है.. दो तीन धक्कों में ही उनकी साँस फूलने लगती है..!”
“तो मतल्ब कुछ नहीं हुआ हाऽऽ...?” नफ़ीसा ने पूछा तो रशीदा बोली, “अरे नहीं वो बात नहीं है... पर अब वो मज़ा नहीं रहा... एक तो उनका मोटापा और अब उम्र का असर भी होने लगा है... कितनी बार कह चुकी हूँ कि जिम जाया करें... कसरत वसरत करने... पर मेरी सुनते ही कहाँ है वो..!”
“मतलब तेरी गाँड का बैंड नहीं बजा इस बार हेहेहे!” नफ़ीसा हंसते हुए बोली। “अरे कहाँ यार... चूत और गाँड दोनों मारी... पर बड़ी मुश्किल से चार पाँच धक्के में उनका पानी निकल जाता है... अब तो काफ़ी वक़्त से लंड भी ढीला पड़ने लगा है... तुझे तो मालूम ही है... जब तक लौड़ा इंजन के पिस्टन की तरह चूत को चोद-चोद कर पानी नहीं निकाले और गाँड मराते हुए से पुर्रर्र- पुर्रर्र की आवाज़ ना आये तो मज़ा कहाँ आता है और उसके लिये मोटा सख्त लंड चाहिये.... तू सुना तेरी कैसी चल रही है... तेरा भतीजा तो तेरी गाँड की बैंड तो बजा ही रहा होगा..!”
नफ़ीसा मायूस होकर बोली, “हम्म्म क्या यार... क्यों दुखती रग़ पर हाथ रखती हो यार... उसकी अम्मी ने एक दिन देख लिया था तब से वो घर नहीं आया...!”
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“चल पहले तो काफी ऐश कर ली तूने उसके साथ... देख कितनी मोटी गाँड हो गयी है तेरी...” रशिदा बोली।
“यार चूत तक तो ठीक था लड़का पर साले का पाँच इंच का लंड क्या खाक मेरी गाँड की बैंड बजाता... सिर्फ़ दो इंच ही अंदर जाता था... बाकी दो-तीन इंच तो चूतड़ों में ही फँस कर रह जाता था...!” नफ़ीसा की ये बात सुनकर रशीदा खिलखिला कर जोर से हंसने लगी। “रशीदा तुझे वो आदमी याद है... जो उस दिन इस स्टेशन पर गल्ती से उतर गया था...” नफ़ीसा की बात सुनते ही रशीदा की चूत से पानी बाहर बह कर उसकी पैंटी को भिगोने लगा और वो आह भरते हुए बोली, “यार मत याद दिला उसकी... साले का क्या लंड था... एक दम मूसल था मूसल..!”
“हाँ यार... मर्द हो तो वैसा... साले ने हम दोनों की गाँड रात भर बजायी थी... गाँड और चूत दोनों का ढोल बजा दिया था... कैसे गाँड से पुर्रर्र-पुर्रर्र की आवाज़ें निकल रही थी तेरी...” नफ़ीसा बोली तो रशीदा ने भी पलट कर हंसते हुए कहा, “और तेरी गाँड ने क्या कम पाद मारे थे... साले के धक्के थे ही इतने जबरदस्त कि साली गाँड हवा छोड़ ही देती थी पर हम दोनों ने भी मिलकर सुबह तक उसे गन्ने की तरह चूस डाला था।”
“हाँ रशीदा यार! मेरी तो अभी से गाँड और चूत में खुजली होने लगी है... कुछ कर ना यार... कहीं से लंड का इंतज़ाम कर!” नफ़ीसा ने आह भरते हुए कहा तो रशीदा बोली, “यार वैसे लौंडे तो बहोत पीछे है पर साला काम का कौन सा है... पता नहीं चलता!”
ये सुनकर नफ़ीसा भी बोली, “यार मेरा भी यही हाल है... कितनों के साथ कोशिश करके देख चुकी हूँ लेकिन वो मज़ा नहीं आया! पर मैं नज़रें जमाये हुए हूँ... तू भी देख शायद कोई काम का लौंडा मिल जाये... वैसे हम दोनों तो हैं ही एक-दूसरे के लिये..... आजा मेरे घर आज रात को...!”
उधर कैबिन के बाहर अपनी कुर्सी पे बैठा सुनील उनकी बातों को सुन कर एक दम हैरान था। उनकी बातें सुन कर उसका लंड एक दम तन चुका था और अब दर्द भी करने लगा था। सुनील इतना तो जान ही गया था कि ये साली दोनों हाई-क्लॉस और शरीफ़ दिखाने वाली औरतें कितनी चुदैल हैं और उसे अब उनकी दुखती रग का भी पता था। नफ़ीसा और रशीदा दोनों बेहद सैक्सी जिस्म वाली खूबसूरत औरतें थीं। दोनों करीब साढ़े पाँच फुट लंबी थीं। दोनों ज्यादातर सलवार-कमीज़ ही पहनती थीं और ऊँची पेन्सिल हील वाली सेन्डल पहनने से उनकी बड़ी-बड़ी गाँड बाहर की ओर निकली हुई होती थी। सुनील पहले भी अक्सर चोर नज़रों से इन दोनों औरतों को देखा करता था... खासतौर पर इसलिये कि उसे ऊँची हील के सैंडल पहनने वाली औरतें खास पसंद आती थीं। लेकिन ये दोनों औरतें काफी रोबदार और सीनियर ऑफ़िसर थीं और वो महज़ नया-नया कलर्क लगा था... इसलिये रोज़ सुबह की औपचारिक सलाम-नमस्ते के अलावा कभी उनसे कोई बात तक करने की हिम्मत नहीं हुई थी। डिपार्टमेंट भी अलग होने की वजह से सुनील का उनसे कोई काम भी नहीं पड़ता था कि कोई काम को लेकर ही बात हो पाती। लेकिन अब वो उन दोनों की असलियत जान गया था।
अगले दिन सुनील सिर्फ़ ट्रैक सूट का लोअर और टी-शर्ट पहन कर ही स्टेशन पर गया। ये सुनील ने पहले से प्लैन कर रखा था। जब सुनील स्टेशन पर पहुँचा तो अज़मल ने सुनील से पूछा, “अरे यार क्या बात है... आज नाइट सूट में ही चले आये हो... खैरियत तो है..?”
“हाँ सर सब ठीक है.. बस थोड़ी सी तबियत खराब थी... इसलिये नहाने और तैयार होने का मन नहीं किया... ऐसे ही चला आया..!” सुनील ने सफ़ाई पेश की तो अज़मल बोला, “यार अगर तबियत खराब थी तो फ़ोन कर देते... और आज घर पर आराम कर लेते..!”
सुनील बोला, “सर घर में पड़ा-पड़ा भी बोर हो जाता.. और वैसे भी यहाँ काम होता ही कितना है..!”
अज़मल ने कहा कि “हाँ वो तो है... वैसे दवाई तो ली है ना?”
“जी सर ले ली है..!” ये कहकर सुनील जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया और फाइल खोलकर अपने काम में लग गया। थोड़ी देर बाद नफ़ीसा और रशीदा भी आ गयीं और सुनील से ‘गुड मोर्निंग’ के बाद वो भी अपने-अपने कैबिन में जा कर अपने कामों में मसरूफ़ हो गयीं।
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