RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
सुनील ने रुखसाना की चूत से अपने लंड को बाहर निकाला और फिर गाँड के छेद से उंगली को निकाल कर चूत में पेल दिया और चूत में अंदर-बाहर करते हुए घुमाने लगा। “हाआआय मेरे जानू ये क्या कर रहे हो तुम ओहहह... अपना लंड... मेरा प्यारा दिलबर... उसे मेरी चूत में वापस डाल ना...!” अपनी चूत में अचानक से मोटे लंड की जगह पतली सी उंगली महसूस हुई तो रुखसाना तड़पते हुए बोली। सुनील ने फिर से उसकी चूत में से उंगली बाहर निकाली और चूत में अपना मूसल लंड घुसेड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिये। उसकी उंगली रुखसाना की चूत के पानी से एक दम तरबतर हो चुकी थी। उसने फिर उसी उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद पर लगाया और रुखसाना की चूत के पानी को गाँड के छेद पर लगाते हुए तर करने लगा। रुखसाना को ये सब थोड़ा अजीब सा तो लग रहा था लेकिन मस्ती में उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सुनील ने फिर से अपनी उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में घुसेड़ दी लेकिन इस बार सुनील ने कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी दिखायी और अगले ही पल उसकी पूरी उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में थी।
रुखसाना दर्द से एक दम कराह उठी। भले ही दर्द बहोत ज्यादा नहीं था पर रुखसाना को अब तक सुनील के इरादे का अंदाज़ा हो चुका था और वो सुनील के इरादे से घबरा कर वो कराहते हुए बोली, “हाय सुनील... ये... ये क्या कर रहा है जानू... वहाँ से उंगली निकाल ले... बहोत दर्द हो रहा है!” पर सुनील ने उसकी कहाँ सुननी थी। सुनील अब उस उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद में अंदर बाहर करने लगा। रुखसाना को थोड़ा दर्द हो रहा था पर कुछ ही पलों में उसकी गाँड का छेद नरम और फिर और ज्यादा नरम पड़ता गया। उसकी चूत के पानी और के-वॉय जैली ने गाँड के छेद के छाले की सख्ती बेहद कम कर दी थी। अब तो सुनील बिना किसी दुश्वारी के रुखसाना की गाँड को अपनी उंगली से चोद रहा था। रुखसाना भी अब फिर से एक दम मस्त हो गयी। हवस और मस्ती के आलम में रुखसाना को ये भी एहसास नहीं हुआ कि कब सुनील की दो उंगलियाँ उसकी गाँड के छेद के अंदर-बाहर होने लगी। कभी दर्द तो कभी मज़ा... कैसा अजीब था ये चुदाई का मज़ा। फिर सुनील ने अपना लंड रुखसाना की चूत से बाहर निकला और उसकी गाँड के छेद पर टिका दिया। उसकी इस हर्कत से रुखसाना एक दम दहल गयी, “नहीं सुनील.... खुदा के लिये... ऐसा ना कर... मैं दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकुँगी..!”
लेकिन सुनील तो जैसे रुखसाना की बात सुनने को तैयार ही नहीं था। उसने दो तीन बार अपने लंड का सुपाड़ा रुखसाना की गाँड के छेद पर रगड़ा और फिर धीरे-धीरे उसकी गाँड के छेद पर दबाता चला गया। जैसे ही उसके सुपाड़े का अगला हिस्सा उसकी गाँड के छेद में उतरा तो रुखसाना बिदक कर आगे हो गयी... दर्द बहद तेज था।“ नहीं सुनील नहीं... मेरे जानू मुझसे नहीं होगा... प्लीज़ तुझे हो क्या गया है...?” रुख्साना अपने चूतड़ों को एक हाथ से सहलाते हुए रिरिया कर बोली। रुखसाना ने अज़रा को कईं दफ़ा फ़ारूक से अपनी गाँड मरवाते हुए देखा था लेकिन रुखसाना को इस बात का डर था कि एक तो उसकी गाँड बिल्कुल कुंवारी थी और फिर फ़ारूक और सुनील के लंड का कोई मुकाबला नहीं था। सुनील का तगड़ा-मोटा आठ इंच लंबा मूसल जैसा लंड वो कैसे बर्दाश्त करेगी अपनी कोरी गाँड में!
“भाभी जान कुछ भी हो... मुझे आज आपकी गाँड मारनी ही है...!” ये कह कर उसने रुखसाना को सोफ़े से खड़ा किया और उसकी रानों में फंसी सलवार खींच कर उतार दी। फिर उसने रुखसाना को खींचते हुए सामने बेडरूम में ले जाकर बेड पर पटक दिया। फिर रुखसाना की टाँगों को पकड़ कर उसने उठाया और अपने कंधों पर रख लिया और एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर उसकी गाँड के छेद पर टिका दिया। रुखसाना समझ चुकी थी कि अब सुनील उसकी एक नहीं सुनने वाला। “आहिस्ता से करना जानू!” रुखसाना ने अपने हाथों में बिस्तर की चादर को दबोचते हुए कहा और अगले ही पल गच्च की एक तेज आवाज़ के साथ सुनील का लौड़ा रुखसाना की गाँड के छेद को चीरता हुआ आधे से ज्यादा अंदर घुस गया। दर्द के मारे रुखसाना का पूरा जिस्म ऐंठ गया... आँखें जैसे पत्थरा गयीं... मुँह खुल गया... और वो साँस लेने के लिये तड़पने लगी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सुनील उसके साथ इतनी वहशियत से पेश आयेगा।
“बस भाभी हो गया.. बसऽऽऽ हो गया..!” और सुनील ने उतने ही आधे लंड को रुखसाना की गाँड के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। उसके हर धक्के के साथ रुखसाना को अपनी गाँड के छेद का छल्ला भी अंदर-बाहर खिंचता हुआ महसूस हो रहा था पर सुनील का लंड के-वॉय जैली और रुखसाना की चूत के पानी से एक दम भीगा हुआ था। इसलिये गाँड का छेद थोड़ा नरम हो गया था और फिर एक मिनट बीता... दो मिनट बीते... फिर तीन मिनट किसी तरह बीते और रुखसाना की गाँड में उठा दर्द अब ना के बराबर रह गया था। अब सुनील के लंड के सुपाड़े की रगड़ से रुखसाना को अपनी गाँड के अंदर की दीवारों पर मज़ेदार एहसास होने लगा था। रुखसाना ज़ोर-ज़ोर से “आआहह ओहह” करती हुई दर्द और मस्ती में सिसकने लगी।
“अभी भी दर्द हो रहा है क्या भाभी!” सुनील ने अपने लंड को और अंदर की ओर ढकेलते हुए पूछा। “आँआँहहह हाँ थोड़ा सा हो रहा है... ऊँऊँहहह लेकिन अब मज़ाआआ भी आआआँ रहा है आआआहहह...!” रुखसाना सिसकते हुए बोली। धीरे-धीरे अब सुनील का पूरा का पूरा लंड रुखसाना की गाँड के अंदर-बाहर होने लगा और दर्द और मस्ती की तेज़-तेज़ लहरें अब रुखसाना के जिस्म में दौड़ रही थी। काले रंग के ऊँची हील वाले सैंडल में रुखसाना के गोरे-गोरे पैर जो सुनील के कंधों पर थे उन्हें रूकसाना ने मस्ती में सुनील की गर्दन के पीछे कैंची बना कर कस लिया। रुखसाना का एक हाथ उसकी खुद की चूत के अंगूर को रगड़ रहा था। धीरे-धीरे सुनील के धक्कों की रफ़्तार बढ़ने लगी और फिर वो रुखसाना की गाँड के अंदर झड़ने लगा। उसके साथ ही रुखसाना की चूत ने भी धड़धड़ाते हुए पानी छोड़ दिया। सुनील ने अपना लंड बाहर निकाला और रुखसाना की कमीज़ के पल्ले से उसे पोंछ कर उसने आगे झुक कर रुखसाना के होंठों पे चूमा और फिर ये बोल कर कमरे से बाहर चला गया कि उसे जल्दी से वापस स्टेशन पहुँचना है। रुखसाना थोड़ी देर लेटी रही और सुनील भी वापस चला गया। थोड़ी देर बाद रुखसाना उठी और बाथरूम में जाकर अपनी चूत और गाँड को अच्छे से साफ़ किया और बाहर आकर अपनी सलवार पहन कर फिर लेट गयी। उसकी गाँड में मीठी-मीठी सी कसक अभी भी उठ रही थी।
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