vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
06-24-2019, 12:15 PM,
#27
RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
रुखसाना की आरज़ू थी कि सुनील उसके होंठों को फिर बुरी तरह से चूमे... उसकी ज़ुबान को अपने मुँह में लेकर चूसे... और ये सोच कर ही रुखसाना के होंठ काँप रहे थे...! शायद सुनील भी उसके दिल के बात समझ गया था। वो रुखसाना के होंठों पर टूट पड़ा और अपने दाँतों से चबाने लगा... हल्के-हल्के धीरे से कभी उसके होंठ चूसता तो कभी होंठों को काटता... मीठा सा दर्द होंठों पर होता और मज़े के लहर उसकी चूत में दौड़ जाती। रुखसाना उससे चिपकी हुई उसके जिस्म में घुसती जा रही थी। रुखसाना का दिल कर रहा था कि दोनों जिस्म एक हो जायें... एक होकर फिर कभी दो ना हों....! सुनील का लंड फिर उसकी चूत की गहराइयों को नापने लगा था और अनकटे मोटे लंड के घस्से चूत में कितने मज़ेदार होते हैं... ये रुखसाना ने पहले कभी महसूस नहीं किया था। उसकी मस्ती भरी सिस्कारियाँ और बढ़ने लगीं और पूरे कमरे में गूँजने लगीं।

रुखसाना अब खुद अपनी टाँगों को उठाये हुए सुनील से चुदवा रही थी। मस्ती के पल एक के बाद एक आते जा रहे थे। सुनील के धक्कों से उसका पूरा जिस्म हिल रहा था और फिर से वही मुक़ाम... चूत ने लंड को चारों ओर से कस लिया... और अपना प्यार भरा रस सुनील के लंड की नज़र करने लगी। सुनील के वीर्य ने भी मानो उसकी प्यासी बियाबान चूत की जमीन पर बारिश कर दी हो । रुखसाणा का पूरा जिस्म झटके खाने लगा। उसे सुनील की मनी अपनी चूत की गहराइयों में बहती हुई महसूस होने लगी। बेइंतेहा लुत्फ़-अंदोज़ तजुर्बा था... रुखसाना सोचने लगी कि क्यों उसने अब तक अपनी जवानी ज़ाया की।

रुखसाना कमज़ कम तीन बार झड़ चुकी थी। सुनील अब उसकी बगल में लेटा हुआ रुखसाना के जिस्म को सहला रहा था। रुखसाना अचानक बिस्तर से उठने लगी तो सुनील ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। “कहाँ जा रही हो भाभी... एक बार और करने दो ना?” उसने रुखसाना को अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा।

“उफ़्फ़्फ़ मुझे पेशाब लगी है... पेशाब तो करके आने दे ना... फिर कर लेना... वैसे खुल कर बोल कि क्या करना है!” रुखसाना हंसते हुए बोली तो सुनील भी उसके साथ हंस पड़ा। रुखसाना पे अभी भी शराब का नशा हावी था। जब वो झूमती हुई बिस्तर से उठ के नंगी ही टॉयलेट जाने लगी तो हाई हील के सैंडल में चलते हुए उसके कदम नशे में लड़खड़ा रहे थे। नशे में लड़खड़ाती हुई मादरजात नंगी रुखसाना के बलखाते हुस्न को सुनील ने पीछे से देखा तो उसके लंड में सनसनी लहर दौड़ गयी लेकिन फिर वो रुखसाना को सहारा देने के लिये उठा कि कहीं वो गिर ना पड़े... क्योंकि बाथरूम और टॉयलेट कमरे से थोड़ा हट के छत के दूसरी तरफ़ थे। जब सुनील लड़खड़ाती रुखसाना को सहारा दे कर कमरे से बाहर निकल कर छत पर आया तो पास ही छत की परनाली देख कर रुख्सना से बोला, “भाभी इस नाली पे ही मूत लो ना!”

“हाय अल्लाह... यहाँ तेरे सामने मैं... कैसे?” रुखसाना लरजती आवाज़ में नखरा करते हुए बोली तो सुनील मुस्कुराते हुए बोला, “अब मुझसे शर्माने के लिये बचा ही क्या है... यहीं कर लो ना?” रुखसाना को बहुत तेज पेशाब आया था और नशे की हालत में उसने और ना-नुक्कर नहीं की। सुनील ने सहारा दे कर रुखसाना को परनाली के पास मूतने के लिये बिठा दिया। जैसे ही उसकी चूत से मूत की धार निकली तो बहुत तेज आवाज़ हुई। नशे में भी रुखसाना के चेहरे पे शर्म की लाली आ गयी। सुनील बड़े गौर से रुखसाणा को मूतते देख रहा था। चाँदनी रात में रुखसाना का नंगा जिस्म दमक रहा था। उसके बाल थोड़े बिखर गये थे लेकिन बालों में झुमर अभी भी मौजूद था। सोने के झूमर... गले का हार... कंगन और सुनहरी सैंडल भी चाँदनी में चमक रहे थे। करीब एक मिनट तक रुखसाना की चूत से मूत की धार बाहती रही और वो होंठों पे शर्मीली सी मुस्कान लिये सुनील की नज़रों के सामने मूतती रही। ये नज़ारा देख कर सुनील का लंड फिर टनटनाने लगा। रुखसाना का मूतना बंद होने के बाद सुनील उसका हाथ पकड़ के उसे खड़ा करते हुए बोला, “भाभी मुझे भी मूतना है... अब आप मेरी भी तो मदद कर दो ना!”

“तो मूत ले ना... मैं क्या मदद करूँगी इसमें!” रुखसाना बोली तो सुनील उसे छत की मुंडेर के सहारे खड़ा करके उसकी आँखों में झाँकते हुए शरारत से बोला, “मेरा लंड पकड़ कर करवा दो ना भाभी!” फिर सुनील के लंड को अपनी काँपती उंगलियों में पकड़ कर रुखसाना ने उसे मोरी की तरफ़ करते हुए झटका दिया और मुस्कुराते हुए बोली, “हाय अल्लाह बड़ा बेशर्म और शरारती है तू... ले कर अब....!” सुनील के लंड से पेशाब की धार निकली तो रुखसाना का पूरा जिस्म काँप गया और उसकी नज़रें सुनील के लंड और उसमें से निकलती पेशाब की धार पे जम गयीं और साँसें भी फिर से तेज हो गयी।

मूतने के बाद दोनों वापस कमरे में आये और बिस्तर पे लेटते ही सुनील ने रुखसाना का हाथ पकड़ कर उसे अपने ऊपर खींच लिया। उस रात उसने रुखसाना को फिर से चोदा। इस बार रुखसाना के कहने पे सुनील ने उसे घोड़ी बना कर पीछे से चोदा क्योंकि रुखसाना भी वैसे ही चुदना चाहती थी जैसे उसने अज़रा को सुनील से चुदते देखा था। करीब एक बजे दोनों थक कर एक दूसरे के आगोश में नंगे ही सो गये। सुबह सढ़े चार बजे रुखसाना की आँख खुली तो उसने सुनील को जगा कर कहा कि वो उसे नीचे उसके बेडरूम तक छोड़ आये। सुनील नंगी रुखसाना को ही सहारा दे कर नीचे ले गया क्योंकि इस वक़्त इस हालत में शरारा पहनने की तो रुखसाना की सलाहियत थी नहीं। अपने बेडरूम में आकर उसने एक नाइटी पहनी और सलील की बगल में लेट कर सो गयी। सुबह वो देर से उठी। उसके जिस्म में मीठा-मीठा सा दर्द हो रहा था। गनिमत थी कि सलील अभी भी सोया हुआ था।

सुनील हर रोज़ आठ बजे तक नाश्ता करके स्टेशन चला जाता था। वो भी आज नौ बजे नीचे आया और तीनों नाश्ता करने लगे। आज रुखसाना बिल्कुल नहीं शर्मा रही थी बल्कि सलील की मौजूदगी में नाश्ता करते हुए उसने सुनील के साथ आँखों-आँखों में इशारों से ही काफ़ी बातें की। नाश्ते के बाद किचन में बर्तन रखते वक़्त जब दोनों अकेले थे तो सुनील ने रुखसाना को अपने आगोश में भर कर उसके होंठों को चूम लिया। रुक़साना भी उससे लिपटते हुए बोली, “सुनील... आज छुट्टी ले ले ना प्लीज़... नज़ीला भाभी तो बारह बजे तक आकर सलील को ले जायेंगी... उसके बाद तू और मैं...!”

“हाय भाभी... चाहता तो मैं भी हूँ लेकिन आज छुट्टी नहीं ले सकुँगा... लेकिन इतना वादा करता हूँ कि शाम को जल्दी आ जाऊँगा और फिर तो पूरी शाम और पूरी रात जब तक आप कहोगी आपकी सेवा करुँगा!” सुनील उसका गाल सहलाते हुए बोला। “ठीक है... मुझे अपने दिलबर का इंतज़ार रहेगा... इसका ख्याल रखना!” रुखसाना पैंट के ऊपर से ही सुनील का लंड दबाते हुए बोली। एक रात में वो बेशर्म होकर बिल्कुल खुल गयी थी। उसके बाद सुनील ये कह कर चला गया कि वो आज शाम का खाना ना बनाये। उसके बाद नज़ीला भी आकर सलील को ले गयी। रुखसाना ने घर का काम निपटाया और ऊपर जा कर सुनील का कमरा भी ठीकठाक किया और फिर बेसब्री से शाम का इंतज़ार करने लगी। रुखसाना को एक-एक पल बरसों जैसा लग रहा था। फ़ारूक पाँच दिन बाद आने वाला था और सानिया भी अपने मामा के घर से जल्दी ही वापिस आने वाली थी।
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