RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
“भाभी जी मैं अंदर आ जाऊँ?” सुनील ने पूछा तो रुखसाना ने उसे मना करते हुए कहा कि, “नहीं तू जा अभी यहाँ से..!” ये कह कर रुखसाना ने दरवाजा बंद कर दिया। उसकी साँसें तेज हो गयी थी। वो सोचने लगी कि “ये तो अंदर आने को कह रहा है... क्या करेगा अंदर आकर... मुझे फिर से चोदेग...? हाय अल्लाह सलील भी तो कमरे में है... दोबारा चुदाई... तौबा मेरी तौबा एक दफ़ा गल्ती कर दी अब नहीं..!” तभी उसके दिल के कोने से आवाज़ आयी, “तो क्या हो गया इसमें सब करते हैं... अब एक बार तो तू कर चुकी है... एक बार और कर लिया तो क्या है? अगर दोबारा भी करवा लिया तो क्या बिगड़ जायेगा... अल्लाहा तआला ने मौका दिया है इसे ज़ाया ना जाने दे... बार-बार ऐसे मौके नहीं आने वाले ज़िंदगी में... पिछले दस सालों से तरसी है इसके लिये..!” रुखसाना बेड पर बैठी सोचती रही, “मौका मिला है तो रुखसाना इसका फ़ायदा उठा... आधी से ज्यादा जवानी तो यूँ ही निकल गयी... बाकी भी ऐसे ही निकल जायेगी... अच्छा भला आया था बेचारा... उसे तो कोई और मिल जायेंगी... वो तो अभी-अभी जवान हुआ है... शादी भी होगी... तेरा कौन है... वो फ़ारूक जिसने तुझे कभी प्यार से छुआ तक नहीं... ये सब गुनाह ये गलत है... वो गलत है... इन ही सब में ज़िंदगी निकल गयी... उधर अज़रा को देख ज़िंदगी के मज़े ले रही है... तू तो उससे कहीं ज्यादा हसीन है तुझे हक नहीं है क्या ज़िंदगी के लुत्फ़ उठाने का!” यही सब सोचते-सोचते थोड़ी देर गुज़रने के बाद रुखसाना के दिल और दिमाग की जंग में आखिरकार दिमाग की शिकस्त हुई।
रुखसाना को अब सुनील के साथ अपने रवैय्ये के लिये बुरा महसूस होने लगा। फिर वो कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए उठी और अलमारी में से एक बेहद दिलकश सुर्ख रंग का जोड़ा निकाल कर बाथरूम में जा कर कपड़े बदले। फिर कमरे में आकर अच्छा सा मेक-अप किया और लाल रंग के ही ऊँची पेन्सिल हील वाले कातिलाना सैंडल पहने। ये सोच कर रुखसाना के होंठों पे मुस्कुराहट आ गयी कि अगर सुनील उससे खफ़ा भी होगा तो और कुछ नहीं तो उसे ये कातिलाना सैंडल पहने देख कर तो जरूर घायल होकर उसके कदमों में गिर पड़ेगा। फिर उसने पर्फ्यूम लगाया और एक दफ़ा तसल्ली करी कि सलील गहरी नींद सो रहा है और फिर लाइट बंद करके बेडरूम से बाहर निकल कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। रुखसाना आहिस्ता-आहिस्ता सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। जब वो ऊपर पहुँची तो सुनील के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और कमरे में नाईट लैम्प की हल्की सी रोशनी थी। जब वो उसके दरवाजे तक पहुँची तो उसे हैरानी हुई कि सुनील तो अंदर था ही नहीं। तभी उसे अपने पीछे सुनील के कदमों आहट आयी तो वो पलटी। उसने देखा सुनील के हाथ में शराब का गिलास था। शायद वो इतनी देर से छत पर शराब पी रहा था। सुनील उसके करीब आया तो रुखसाना झिझकते हुए बोली, “तू सोया नहीं अब तक...?”
सुनील ने आगे बढ़ कर रुखसाना के एक हाथ को अपने हाथ में थाम लिया। उसके मर्दाना हाथ का एहसास पाते ही रुखसाना पे नशा सा होने लगा। “मुझे यकीन था आप जरूर आओगी..!” ये कह कर सुनील ने उसे अपनी तरफ़ खींचा और वो उसकी तरफ़ खिंचती चली गयी... बिना किसी मुज़ाहिमत किये। सुनील ने उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसके चौड़े सीने से लग कर रुखसाना को जवानी का अनोखा सुकून मिलने लगा। रुखसाना ने उसके चौड़े सीने में अपना चेहरा छुपा लिया और बोल पड़ी, “सुनील मुझे डर लगता है..!” सुनील ने उसकी कमर को अपनी बाहों में और जकड़ लिया। “डर... कैसा डर भाभी?”
रुखसाना उसकी बाहों में कसमसायी। अपने जवान जिस्म को सुनील की जवान बाहों की गिरफ़्त में उसे बहुत अच्छा लग रहा था। रुखसाना फुसफुसाते हुए बोली, “कोई देख लेगा!”
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