RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
सुनील: “आप लगा तो खुद लेंगी पर मालिश नहीं कर पायेंगी... मैं आपकी मालिश कर देता हूँ... आप का रहा सहा दर्द भी ठीक हो जायेगा!” ये कह कर सुनील कुर्सी से उठ कर बेड पर आकर रुखसाना के करीब बैठ गया और उसे लेटने को बोला, “चलिये भाभी जी बताइये कहाँ लगाना है...!” अपने लिये सुनील की इतनी हमदर्दी और फ़िक्र देख कर रुखसाना उसे और मना नहीं कर सकी और ये हकीकत भी बता नहीं पायी कि उसे दर्द तो कभी हुआ ही नहीं था और ये दर्द का तो सिर्फ़ बहाना था अज़रा को परेशान करने का। रुखसाना शर्माते हुए पेट के बल लेट गयी और अपनी कमीज़ को कमर से ज़रा ऊपर उठा लिया और बोली यहाँ कमर पर! सुनील ने थोड़ा सा बाम अपनी उंगलियों पर लगाया और फिर रुखसाना की कमर पर मलने लगा। जैसे ही उसके हाथ का लम्स रुखसाना ने अपनी नंगी कमर पर महसूस किया तो उसका पूरा जिस्म काँप गया। उसकी सिस्करी निकलते-निकलते रह गयी। सुनील ने धीरे-धीरे दोनों हाथों से उसकी कमर की मालिश करनी शुरू कर दी। उसके हाथों का लम्स उसे बेहद अच्छा लग रहा था। कईं दफ़ा उसके हाथों की उंगलियाँ रुखसाना की सलवार के जबर से टकरा जाती तो उसका दिल जोरों से धड़कने लगता। वो मदहोश सी हो गयी थी।
“भाभी ज्यादा दर्द कहाँ पर है?” सुनील ने पूछा तो बिना सोचे ही रुखसाना के मुँह से मदहोशी में खुद बखुद निकल गया कि थोड़ा सा नीचे है!
सुनील ने फिर थोड़ा और नीचे बाम लगाना शुरू कर दिया। भले ही उस मालिश से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला था क्योंकि चोट तो कहीं लगी ही नहीं थी पर फिर भी रुखसाना को उसके हाथों के लम्स से जो सुकून मिल रहा था उसे वो बयान नहीं कर सकती थी। “भाभी जी थोड़ी सलवार नीचे सरका दो ताकि अच्छे से बाम लग सके...!” सुनील की बात सुन कर रुखसाना के ज़हन में उसका वजूद काँप उठा पर उसे सुनील के हाथों का लम्स अच्छा लग रहा था और उसे सुकून भी मिल रहा था। रुखसाना ने तुनकते हुए अपनी सलवार को थोड़ा नीचे के तरफ़ सरकाया। उसने नाड़ा बाँधा हुआ था इसलिये सलवार पूरी नीचे नहीं हो सकती थी पर फिर भी काफ़ी हद तक नीचे हो गयी। “भाभी जी आप तो बहुत गोरी हो... मैंने इतना गोरा जिस्म आज तक नहीं देखा..!” सुनील की बात सुनकर रुखसाना के गाल शर्म के मारे लाल हो गये। वो तो अच्छा था कि रुखसाना उल्टी लेटी हुई थी। रुखसाना को यकीन था कि अकेले कमरे में वो उसे इस तरह अपने पास पाकर पागल हो गया होगा। सुनील ने थोड़ी देर और मालिश की और रुखसाना ने जब उसे कहा कि अब बस करे तो वो चुपचप उठ कर ऊपर चला गया। रुखसाना को आज बहुत सुकून मिल रहा था। आज कईं सालो बाद उसके जिस्म को ऐसे हाथों ने छुआ था जिसके लम्स में हमदर्दी और प्यार मिला हुआ था। सुनील के बारे में सोचते हुए रुखसाना को कब नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला। अगली सुबह जब वो उठी तो बेहद तरो तज़ा महसूस कर रही थी।
नहाने के बाद रुखसाना बहुत अच्छे से तैयार हुई... आसमानी रंग का सफ़ेद कढ़ाई वाला जोड़ा पहना और सफ़ेद रंग के ऊँची हील के सैंडल भी पहने। फिर हल्का सा मेक-अप करने के बाद वो किचन में गयी और नाश्ता तैयार करने लगी। नाश्ता तैयार करते हुए वो बार-बार किचन के दरवाजे पर आकर सीढ़ियों की तरफ़ देख रही थी। सुनील के काम पर जाने का वक़्त भी हो गया था। जैसे ही वो नाश्ता तैयार करके बाहर आयी तो सुनील सीढ़ियों से नीचे उतरा। “आज तो आपकी तबियत काफ़ी बेहतर लग रही है भाभी जी... लगता है कल की मालिश ने काफ़ी असर किया!” उसने रुखसाना के लिबास और फिर उसके पैरों में हाई पेंसिल हील के सैंडलों की तरफ़ देखते हुए अपने होंठों पर दिलकश मुस्कान लाते हुए कहा। बदले में रुखसाना ने भी मुस्कुराते हुए कहा, “असर तो जरूर हुआ पर तुझे कैसे पता?” तो सुनील थोड़ा झेंपते हुए बोला कि “भाभी जी वो आज आपने फिर हमेशा की तरह हाई हील के सैंडल जो पहने हैं... तो मुझे लगा कि कमर का दर्द अब बेहतर है!”
रुखसाना: “बिल्कुल ठीक पहचना तूने... अब डायनिंग टेबल पे बैठ... मैं नाश्ता लेकर आती हूँ!” फिर दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करने लगे। इसी बीच में सुनील ने रुखसाना से पूछा कि, “भाभी जी... आप कभी साड़ी नहीं पहनती क्या?”
रुखसाना: “पहनती हूँ लेकिन बहोत कम... साल में एक-आध दफ़ा अगर कोई खास मौका हो तो... क्यों!”
सुनील: “नहीं बस वो इसलिये कि कभी देखा नहीं आपको साड़ी में... मेरा ख्याल है आप पे साड़ी भी काफ़ी सूट करेगी!”
फिर सुनील जाते हुए रुखसाना से बोला, “भाभी जी, रात का खाना मैं बाहर से ही ले आऊँगा... आप बनाना नहीं..!”
रुखसाना ने मुस्कुराते हुए कहा कि ठीक है तो सुनील ने फिर कहा, “अगर किसी और चीज़ के जरूरत हो तो बता दीजिये... मैं आते हुए लेता आऊँगा!”
रुखसाना ने कहा कि किसी और चीज़ के जरूरत नहीं है और फिर सुनील के जाने के बाद वो घर के छोटे-मोटे कामों में लग गयी। फिर ऊपर आकर सुनील के कमरे को भी ठीकठाक करने लगी। इसी दौरान रुखसाना को उसके बेड के नीचे कुछ पड़ा हुआ नज़र आया। उसने नीचे झुक कर उसे बाहर निकाला तो उसकी आँखें एक दम से फैल गयीं। वो एक लाल रंग की रेशमी पैंटी थी। अब इस डिज़ाइन की पैंटी ना तो रुखसाना के पास थी और ना ही सानिया के पास। तभी रुखसाना को दो दिन पहले का शाम वाला वाक़्या याद आ गया जब सुनील ने अज़रा को इसी कमरे में चोदा था। ये जरूर अज़रा की ही पैंटी थी।
उस पैंटी पर जगह- जगह-जगह चूत से निकले पानी और शायद सुनील के लंड से निकली मनी के धब्बे थे। पैंटी का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं था जिस पर उस दिन हुई घमासान चुदाई के निशान ना हों। रुखसाना ने पैंटी को अपने दोनों हाथों में लेकर नाक के पास ले जाकर सूँघा तो मदहोश कर देने वाली खुश्बू उसके जिस्म को झिनझोड़ गयी। वो पैंटी को लेकर बेड पर बैठ गयी और उसे देखते हुए उस दिन के मंज़रों को याद करने लगी। सुनील का मूसल जैसा लंड अज़रा की चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। रुखसाना एक बार फिर से अपना आपा खोने लगी पर तभी बाहर मेन-गेट पर दस्तक हुई तो उसने उस पैंटी को वहीं बेड के नीचे फेंक दिया और बाहर आकर छत से नीचे गेट की तरफ़ झाँका तो देखा कि पड़ोस में रहने वाली नज़ीला खड़ी थी। “अरे नज़ीला भाभी आप..! मैं अभी नीचे आती हूँ.!” रुखसाना ने जल्दी से सुनील का कमरा बंद किया और नीचे आकर दरवाजा खोला। नज़ीला उसके पड़ोस में रहती थी। उसकी उम्र चालीस साल थी और वो अपने घर में ही ब्यूटी पार्लर चलाती थी। वो दोपहर में कईं बार रुखसाना के घर आ जाया करती थी या उसे अपने यहाँ बुला लेती थी और दोनों इधर-उधर की बातें किया करती थी। उस दिन भी रुखसाना और नज़ीला ने गली मोहल्ले की ढेरों बातें की।
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