RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
सामने बीस-इक्कीस साल की बेहद ही खूबसूरत गोरे रंग की लड़की खड़ी थी... उसके बाल खुले हुए थे और उसके हाथ में बाल संवारने का ब्रश था... उसने सफ़ेद कलर का सलवार कमीज़ पहना हुआ था जिसमें उसका जिस्म कयामत ढा रहा था। सुनील को अपनी तरफ़ यूँ घूरता देख वो लड़की मार्बल के फर्श पे अपनी हील वाली चप्पल खटखटाती हुई अंदर चली गयी। तभी फ़ारूक ने सुनील से कहा, “सुनील ये मेरी बेटी सानिया है... आओ अंदर चलते हैं...!”
सुनील उसके साथ अंदर चला गया। अंदर जाकर उसने सुनील को ड्राइंग रूम में सोफ़े पर बिठाया और अंदर जाकर आवाज़ दी, “रुखसाना... ओ रुखसाना! कहा चली गयी... जल्दी इधर आ!” और फिर फ़ारूक सुनील के पास जाकर बैठ गया।
रुखसाना जैसे ही रूम मैं पहुँची तो फ़ारूक उसे देख कर बोला, “ये सुनील है... हमारे स्टेशन पर नये क्लर्क हैं... इनको ऊपर वाला कमरा दिखाने लाया था... अगर इनको रूम पसंद आया तो कल से ये ऊपर वाले रूम में रहेंगे... जा कुछ चाय नाश्ते का इंतज़ाम कर!”
सुनील: “अरे नहीं फ़ारूक भाई... इसकी कोई जरूरत नहीं है!”
फ़ारूक: “चलो यार चाय ना सही... एक-एक पेग हो जाये!”
सुनील: “नहीं फ़ारूक भाई... मैं पीता नहीं... मुझे बस रूम दिखा दो!” सुनील ने फ़ारूक से झूठ बोला था कि वो ड्रिंक नहीं करता पर असल में वो भी कभी-कभी ड्रिंक कर लिया करता था।
रुखसाना ने बड़ी खुशमिजाज़ी से सुनील को सलाम कहा तो उसने एक बार रुखसाना की तरफ़ देखा। वो सर झुकाये हुए उनकी बातें सुन रही थी। रुखसाना ने कढ़ाई वाला गहरे नीले रंग का सलवार- कमीज़ पहना हुआ था और बड़ी शालीनता से दुपट्टा अपने सीने पे लिया हुआ था। खुले लहराते लंबे बाल और चेहरे पे सौम्य मेक-अप था और पैरों में ऊँची हील की चप्पल पहनी हुई थी। रुखसाना की आकर्षक शख्सियत से सुनील काफ़ी इंप्रेस हुआ। रुखसाना को भी सुनील शरीफ़ और माकूल लड़का लगा। सुनील भी अच्छी पर्सनैलिटी वाला लड़का था। हट्टा-कट्टा कसरती जिस्म था और उसके चिकने चेहरे पे कम्सिनी और मासूमियत की झलक थी। दिखने में वो बारहवीं क्लास या कॉलेज के स्टूडेंट जैसा लगता था।
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