RE: Chudai Story बाबुल प्यारे
इसी बीच मैने रस्मी के साथ बाज़ार जाके काई नये कपड़े सिलवाए. मैने कमीज़ को टाइट सिलवाया और सलवार को भी.मैने कमीज़ को काफ़ी डीप-कट सिलवाया और सामने कुच्छ बटन रखवाए.फिर मैने एक शॉप पर जाकर एक स्कर्ट , टाइट और छ्होटा टॉप और एक मॅक्सी (फुल्ली कवर्ड नाइटी) ली.
रस्मी के साथ ने मुझे सेक्स के रंग में भी रंग दिया. राज शर्मा के ब्लॉग की वासनात्मक कहानियाँ पढ़'के तो में सेक्स के बारे में काफ़ी कुच्छ जान गयी थी. रात में मैं और रस्मी एक दूसरे के जवान होते अंगों से खेलने लगे.
फिर एक दिन मैं गाओं वापस आ गयी, हालाँकि रस्मी का साथ छ्चोड़'ते वक़्त मेरी आँखों में आँसू आ गये . मा और बापू मुझे देख बहुत खुस हुए. बापू ने कुच्छ शहर का हाल चाल पूचछा और फिर खेत में काम करने निकल पड़े. मा कुच्छ देर बाद रसोई में चली गयी. मैने मा के साथ रसोई में ही आ गयी और मा को शहर की बातें बताने लगी. लगभग 2 घन्टे बाद मा ने बापू का खाना एक पोट्ली में बाँधा और बोली की मैं खेत जा रही हूँ.
मैं : लाओ मम्मी, मैं दे आती हूँ, बहुत दीनो से अपना खेत भी नहीं देखी, खेतों की भी बहुत याद आती है.
मम्मी : ठीक है, तू ही दे आ, पहले भी तो तू ही जाती थी मैं बापू का रोटी का टिफिन लेकर खेत में चल्दि. बापू खेत में सिर्फ़ लूँगी पेहेन्ते थे. बापू को मैने पहेले भी ऐसे देखा था लेकिन आज पता नहीं मुझे अंदर से कुच्छ हो रहा था. बापू की अच्छी- ख़ासी मसल्स थी और चेस्ट चौड़ी. बापू का चेहरा मासूम था. बापू ने लूँगी अपनी नेवेल के नीचे बाँधी हुई थी और उनका पूरा बदन पसीने से भरा था. बापू ज़मीन में फावड़ा(टूल टू डिग ग्राउंड) चला रहे थे. बापू ने मुझे देख'ते ही कहा,
अर्रे छेमिया, तू. अपनी मम्मी को ही आने देती, तू सफ़र करके आई है, थक गयी होगी.
मैं : नहीं तो फिर बापू रोटी खाने लगे. मैं बापू के बदन को देख रही थी. पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मेरे बापू कितने मस्क्युलर हैं, कितनी चौड़ी चेस्ट है और चेस्ट पे बाल कितने अच्छे लगते हैं और नेवेल भी प्यारी है. मैं सोचने लगी यह मुझे क्या हो गया है, भला कोई बेटी अपने बापू को इस आंगल से देखती है, पर क्या करूँ, कंट्रोल नहीं होता. जब बापू रोटी खा चुके तो मैं खेत से वापस आते वक़्त यह ही सोचती रही कि यह मुझे क्या हो गया है, मेरा दिल कुच्छ करना चाहता, पर क्या करना चाहता है मैं यह ना समझ पाई. रात को हम लोग ज़मीन पर ही चादर बिछा कर सोते थे. मेरी आँखों के सामने बार बार बापू की बॉडी आ रही थी. मैं बापू और मम्मी के बीच सोती थी, अभी मैं उनके लिए बची थी.
रात को सोते वक़्त मुझे लगा कोई मेरे स्तन्नो (ब्रेस्ट) पर हाथ फेर रहा है. फिर धीरे धीरे वो हाथ मेरे स्तन्नो को दबाने लगे. मुझे भी मज़ा आने लगा. फिर वो हाथ मेरे टाँगों (लेग्स) के बीच में रब करने लगे, मुझे लगा कि यह मेरे बापू ही हैं.मैं उनकी छाति पर हाथ फेरने लगी और उनकी लूँगी उतारने लगी. उन्होने मेरी सलवार निकाल दी.फिर मेरी कछि (पॅंटी) .और मेरी चूत को जैसे ही उन्होने किस किया . मेरी आँख खुल गयी.देखा तो यह मेरा सपना था.बापू तो एक तरफ सो रहे थे.
लेकिन मेरी टाँगों के बीच में सच में आग लगी हुई थी. क्या एक बेटी अपने बाप से सेक्स का सपना भी देख सकती है ? एक तरफ तो मुझे गिल्टी फील हो रही थी तो दूसरी तरफ मुझे मज़ा भी आ रहा था. एक तो मेरा रस्मी का साथ छुट गया था और अब इस गाओं के माहॉल में मेरा मन नहीं लग रहा था. लेकिन इंसान निराशा में भी कोई न कोई आशा की किरण ढून्ढ लेता है और इस घर में जहाँ केवल मा और बापू थे मुझे वह आशा की किरण बापू में दिखाई पाद'ने लगी. पता नहीं क्यों मम्मी मुझे सौत लग'ने लगी.दूसरे दिन फिर में बापू का खाना लेके खेत पहून्ची.
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