RE: Desi Porn Kahani संगसार
"बेटी अफ़ज़ल को अंदर ले जाओ." माँ ने बेटी से कहा.
"हाँ, हम बूढ़ों में बँधे बैठे न रहो तुम लोग, " सास ने कहा.
आसिया ने अपना सामान समेटकर बांध लिया. माँ ने बेटी की बलाएँ लीं और दामाद के कंधे पर प्यार से हाथ रखा. सास ने उनकी हालत देखकर कहा, "बहन, मैंने लड़की पैदा नहीं की तो क्या, आसिया ने इतने दिन दूर रहकर एहसास दिला दिया कि लड़की होती बड़ी मोहिनी है. आपके दामाद के जाने के बाद उसे मैं आपके पास कुछ दिनों के लिए फिर भेज दूँगी."
आसिया के जाने के बाद माँ थोड़ी देर आँसू बहाती रहीं, फिर उठकर उन्होंने शुक्राने की नमाज़ अदा की और आसमा को फोन मिलाने लगीं.
"आसिया ससुराल गई, मेरे सिर से ज़िम्मेदारी का बोझ हटा. अगले महीने अगर राशिद को छुट्टी हो तो मन्नत बढ़ा लेते हैं."
"ठीक है." उधर से आसमा की ख़ुशी में डूबी आवाज़ उभरी.
"मैं तुम्हारी ख़ाला को भी इत्तिला दे दूँ." कहकर माँ ने फोन रख दिया.
आसिया ससुराल आकर अफ़जल के कपड़े ठीक करने, नये कपड़े सिलवाने, ज़रूरत की चीजें खरीदने जुट गई थी. अफ़ज़ल अपनी फर्म की तरफ से छ: महीने के लिए यूरोप जा रहा था. उसका इरादा था कि कोर्स के खत्म होते ही वह आसिया को वहाँ बुला लेगा और फिर वे दोनों पूरा घूमकर लौटेंगे.
काम की व्यस्तता में अकसर आसिया का दिल भटक जाता. फोन पर हाथ जाता, नंब घुमाती मगर फिर घबराकर रख देती और बजते टेलीफोन को कभी खुद नहीं उठाती थी. मगर उस मुलायम बिस्तर की यद, जिसने उसे जिंदगी का अर्थ समझाया था, उसे पूरी तरह भूलने की कोशिश करती.
"अपने बंदों से यह दोहरा खेल कैसा? जब जज्बा दिया था तो बहाव भी सीधा देता? एक साथ दो आशिकों को मेरे दामन में डालने का अर्थ आसिया बेदम होकर कह उठती.
रात को वह अपने को ढीला छोड़ देती. अफ़ज़ल उसकी इस अदा पर मिट जाता. आखिर एक दिन उसने कह दिया, "बहुत बदल गई हो."
"यानी?" आसिया की आँखें फैलीं. चेहरे पर से डर की परछाई गुजर गई
"कुछ दिन मां के घर हो आया करो, वहाँ से आकर पहे की तरह भोली, हसीन औरा" बाकी बातें हँसी में डूब गई
सब कुछ समझकर आसिया की आँखें झुक गई अफ़ज़ल ने उस पर बोसों की बौछार कर दी.
कुछ दिन अच्छे गुजर गए मगर जल्द ही दिल अफ़ज़ल के नाम पर टिका नहीं रह सका. दिल और दिमाग पर काबू पाती तो बदन बेकाबू होकर अपना साथी तलाश करता. उसे भी एक खास तापमान पर चढ़ने और उतने की आदत हो गयी थी.
अब अफ़ज़ल के स्पर्श उसे तनाव में ला रहे थे. उसकी मांसपेशियाँ इस तरह से तन जातीं और उसकी खुजली बंद होती मुट्ठी कई बार अफ़ज़ल को परे धकेलना चाहती. एक खौलता आक्रोश ज्वालामुखी बनकर उबलता हुआ दिलो-दिमाग पर छाने लगता जैसे कोई जबरदस्ती अपनी हदें पार कर रहा हो. तैश में आकर उसे लगता कि वह अपनी पूरी ताकत से चीखे कि घर की हर नाजुक चीज चकनाचूर हो जाए.
"क्या बात है?" कभी-कभी उसके तनते-अकड़ते बदन की ऐंठन को अफ़ज़ल महसूस करता. उसे लगता कि आसिया उसकी बाँहों में होने के बावजूद उसके पास नहीं है.
"कुछ नहीं, थक जाती हूं जल्दी." आसिया उसकी आवाज सुनकर होश में आ जाती. ख्वाब से हकीकत में उतर आती और कहीं बात खुल न जाए, इस घबराहट में वह अफ़ज़ल से लिपटकर उसके बाजुओं को चूम लेती, मग दिल में दर्द उठता.
"अपने बदन का यह अपमान आखिर क्यों सहती है. "आँखें जल उठतीं.
"आँसू भला क्यों? कहो ते न जाऊँ?" दीवानगी में भरकर अफ़ज़ल उसे झिंझोड़ता.
"नहीं नहीं, बस यों ही", कहकर हँस पड़ती आसिया और अफ़ज़ल उसके चेहरे पर, बदन पर चुंबनों की मुहरें लगा देता.
अपने तन पर काबू पाते, अपनी इच्छाओं का गला घोंटते और अपने उपर अत्याचार करते-करते आखिर वह हार गई जानती है कि अफ़ज़ल ने उसे प्यार का सबक सिखाया मगर प्यार करना, बदन की जबान में एक-दूसरे तक पहुंचना और उस विस्तार में अपने साथ किसी को पाने, फिर सारे जहाँ को उसमें देखना यह सब तो उसको किसी और ने बताया है. क्या मर्द भी एका-दूसरे से इतने जुदा होते हैं. इस दूसरे मर्द ने उसे ऐसा क्या दिया है कि जो चाहक भी पहले से जुड़ी नहीं रह पाती है? क्या इस हकीकत को वह कबूल कर ले कि तन हर एक से अपनी जबान में बात नहीं कर सकता है?
|