RE: Desi Porn Kahani संगसार
"कमसिन है, घर के माहौल में आसानी से रच - बस जाएगी." फूफी ने फैसला सुनाया.
"यह क्या दरियादिली दिखाई बेटी, अभी तो तुम्हारे खाने - खेलने के दिन हैं." चचिया सास ने अपनी बेटियों के हाथ उपहारों से भरे देखकर बड़े ताज्ज़ुब से कहा.
"उन्हें पसंद आए, उन पर सजते भी तो हैं." आसिया ने हँसकर ननदों की तरफ देखा.
"मुबारक हो तुम्हें, बड़े दिलवाली बहू पाई है." सास की बड़ी बहन ने पसंदीदा नज़रों से आसिया को देखते हुए खुशी से भरकर बहन को गले लगाया.
.........
हिना की ख़ुशबू से कमरा महक रहा था. मौसम दिलकश और हवा मतवाली थी. अफ़ज़ल ने खिड़की खोल दी, तारों से भरा आसमान झिलमिलाती चादर तानकर खड़ा हो गया. खुश मगन आसिया फूलों के ज़ेवर से लदी - फँदी कमरे में दाख़िल हुई तो अफ़ज़ल से रहा न गया, हँसता हुआ आसिया के क़रीब पहुँचकर बोला, "आपका हमसे ईद मिलना रह गया."
आसिया बुरी तरह झेंप गई. अफ़ज़ल ने उसे छुआ और वह छुई-मुई बन गई. आसिया के दिल में हसरत थी कि अफ़ज़ल उसको बार - बार देखे, उसकी तारीफ़ करे और धीरे - धीरे उसकी सजावट उससे दूर कर, अपनी बाहों में उसे भरे. अफ़ज़ल को गुनगुना पसंद नहीं था. वह तूफ़ान की तरह उसको अपने साथ बहा ले जाता और फिर जब वह पूरे वेग से बह रही होती तो वह एकाएक शांत हो जाता और आसिया अभी 'थोड़ा और' के एहसास में डूबी मुश्किल से उस बिखराव से अपने को बाहर निकाल पाती और ज़ोर से अफ़ज़ल का हाथ अपनी तरफ़ खींचती. वह 'अभी आया', कहकर उसके पास से उठ जाता. अफ़ज़ल उसे वक़्त से पहले भँवर में ले कूदता और मझधार में छोड़कर बाहर निकल आता.
अफ़ज़ल को मँहगे और ख़ूबसूरत तोहफ़े देने का बहुत शौक़ था. आसिया को बहुत अच्छा लगता, बाहर घूमना, सजना, ख़ाली वक़्त में कुछ पढ़ना और सास - ससुर के लाड़ में भरकर कभी - कभी कुछ पकाना और ढेरों तारीफ़ें सुनना. कुछ महीनों बाद इस एकाकी ज़िंदगी से वह घबराने लगी. कोई कोर्स करने के लिए सोचने लगी. अफ़ज़ल ने इजाज़त दे दी और जब कोर्स ख़त्म हो गया तो ज़िंदगी भी एक नए रास्ते पर मुड़ गई. उसमें किसका कितना दोष था?
आसिया ने तस्वीरें लिफ़ाफ़े में वापस रखीं और आलमारी बंद करके वापस मुड़ी. उसके दिल और दिमाग़ की कैफ़ियत बदल रही थी. कई तरह के सवाल उसके सामने आकर उससे जवाब तलब कर रहे थे. ये जन्नत की शादियाँ होश आने पर जवानी का रोग क्यों बन जाती हैं? शौहर से तन और मन का मिलना बहुत ज़रूरी होता है? जिससे तन, मन और मस्तिष्क सब मिल जाएँ वह शौहर नहीं होता है, फिर वह क्या होता है.... दुनिया की नज़र में सब गुनाह? गुनाह आखिर इतना ख़ूबसूरत, इतना लबरेज़, इतना लतीफ़ क्यों होता है? गुनाह में इतनी ताक़त कहाँ से आ जाती है कि वह सवाब को छोटाकर समाज और क़ानून को चुनौती देने लगता है?
आसिया गुसलख़ाने में घुस गई और जी भरकर नहाई. नल बंद किया और सामने से तौलिया उठाई, पानी की बूँदे उसके बदन पर ओस की बूँद की तरह ठहर गई थीं. वह बदन पोंछना भूल गई.
'अपने इस बदन के साथ इतने साल रही मगर जान न पाई यह कैसा है और जो पल भर के लिए इससे जुड़ा उसने पुरानी गाथा गा दी - बदन पर कहाँ पर काला तिल है और कहाँ का स्पर्श फ़ाख़्ता के मुलायम परों जैसा रेशमी है. उसके तलवों में ख़म है और पैरों की उँगलियों के पीछे का गदबदा हिस्सा ठीक फूलों की पँखुड़ियों की तरह कटावदार है, उसकी पिंडली चिड़िया के पंजे की तरह नाज़ुक और लचकदार है. उसके बदन का रंग पीली चँपा जैसा सुनहरा और महकदार है और....'
उसने सिर झटका मगर उत्सुक निगाहें फिर अपने को तौलने - परखने लगीं. साँसें तेज होती गईं. उसने घबराकर तौलिए से अपना बदन लपेटा.
|