RE: Desi Porn Kahani संगसार
"यह क्या?" आसिया चौंक पड़ी, अपनी जगह से उठकर बहन के पास बैठ गई.
"तुम्हारी ज़िंदगी की कौन - सी मंज़िल होगी, उसके अंजाम से घबराती हूँ." आसमा ने प्यार से बहन का गला थपथपाया. आँखों में भरे आँसू गालों पर लुढ़क आए.
"डरती मैं भी हूँ मगर गुनाह का यह पक्का मीठा फल छोड़ने का दिल नहीं चाहता." आसिया ने बहन के सिर पर प्यार से अपना सिर रखते हुए कहा.
"कोशिश करो." आसमा ने भर्राई आवाज़ में कहा.
"भूल मत करना कि मुझे अपना अंजाम पता नहीं, मगर मोहब्बत को लौटाने का दम मुझमें नहीं था. इस तन को सुलाना अब मेरे बस की बात नहीं है." आसिया क़ालीन पर बहन के पैरों के पास आकर बैठ गई और बहन की आँखों में झाँकते हुए गहरी आवाज़ में बोली.
जाने किस जज़्बे के तहत आसमा ने बहन के ऊपर उठे मासूम चेहरे को पल भर ग़ौर से देखा, चूमा और ज़ोर से उसे सीने से लगाया. आसिया का मन बहन की हालत देखकर भर आया. इन सबके बीच रहते हुए आसिया ने उस रिश्ते को समंदर में पड़े मोती की तरह सँभाल लिया था. लौटना, ठहरना और वापस मुड़ना उसके बस में नहीं रह गया था. मगर एक दिन यही सारे लोग उससे जवाब तलब करेंगे, इस रिश्ते का नाम पूछेंगे, पाप और पुण्य का फर्क समझाएँगे, उसे सोचने पर मज़बूर करेंगे.... यह सब रिश्ता बनने से पहले उसने नहीं सोचा था. वह मिल गया, यही उपलब्धि उसे सिर झुकाने पर नहीं बल्कि उसमें विचित्र शक्ति और विश्वास देने के साथ सिर उठाने पर उकसाती रही है और आज.... आसिया की पलकों पर टिके आँसू आबसार बन गए.
"इन मोतियों को यों मत गिराओ, इन्हें सँभालकर रखो, ये बहुत क़ीमती हैं पगली.." आसमा ने बहन की झमझमाती आँखों से गिरते आँसुओं को अपनी उँगलियों से साफ किया.
आसिया ने पास पड़े कागज़ के रूमाल को उठाया, चेहरा व आँखें ख़ुश्क कीं और अपने को सँभालने लगी मगर आँसू थे कि रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. सिसकियाँ इतनी शिद्दत लिए हुए थीं, जैसे उसका सीना तोड़कर बाहर निकल आएँगी.
"तुम मुझे ग़लत मत समझना..... ज़िंदगी मैंने भी जी है और क़रीब से देखी भी है. मेरे पास मेरे अपने तज़ुर्बे हैं.... हो सकता है, वे तुम्हें बेकार लगें, मगर.... शायद तुम्हारे काम भी आ जाएँ..." आसमा ने बहन का हाथ अपने हाथ में लेते हुए सरगोशी के अंदाज़ में कहा.
आसिया ने बीरबहूटी जैसी लाल - लाल आँखें बहन की तरफ उठाईं और क़ालीन से उठकर सोफ़े पर आ बैठी. आसमा अपनी जगह से उठी और सोफ़े के बाज़ू पर टिककर बहन के गले में बाँहें डाल, उसके सिर पर अपनी ठुड्डी रख, कुछ पल बैठी रही.
"हो सकता है कुछ नाज़ुक लम्हों में अफ़ज़ल को तुम्हारी मदद की ज़रूरत होती हो.... जो तुम्हें मिला, तुमने जाना, उसकी रौशनी में सोचो..... जानती हो, औरत चाहे तो अपने साथी को भरपूर मर्द बना ले और न चाहे तो नामर्द.... अपने सुख को अफ़ज़ल में तलाश करो, हो सकता है, छिपा खज़ाना तुम्हारे हाथ आ लगे और तुम्हें दोगुने सुख से सराबोर कर जाए...." आसमा ने गहरी आवाज़ में नपे - तुले शब्दों में अपनी बात ख़त्म की और बहन का चेहरा अपनी तरफ़ मोड़ा.
आसिया ने हैरत से बहन को ताका. आसमा का चेहरा उसे बिल्कुल अलग - सा दिखा और उसकी आँखों का ठहरा भाव जाने कैसी चमक से धुँधला गया था. आसिया के होंठ काँपे और भारी पलकें झुक गयीं.
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बहन सुबह माँ को यह दिलासा देकर चली गई कि आसिया अपने को बदलने की कोशिश करेगी. वह अपने ख़ून पर यक़ीन रखे. दोपहर को ख़ाला भी इतमिनान दिलाकर चली गईं कि आख़िर आसिया है तो इनसान ही, कोई फ़रिश्ता तो नहीं, एक दिन ज़रूर समझेगी घर का मतलब. जब बच्चे से गोद भरेगी तो उसको ख़ुद अपनी ज़मीन की तलाश होगी. अभी शादी को दो साल ही तो गुज़रे हैं.... ठोकर खाए बिना कोई सँभलता है? बहन के कहने - सुनने से माँ का दिल काफ़ी सँभल चुका था. माँ को दोपहर में किसी दूर के रिश्तेदार के घर पुरसे में जाना था. वह चली गई.
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