RE: Desi Porn Kahani संगसार
"मानती हूँ ख़ाला, मगर जब ज़िंदगी इन बोसीदा उसूलों की क़ानूनी क़िताबों से आगे निकल जाए तो?" आसिया ने परेशान आँखें उठाईं और ख़ाला को देखा.
"हर ज़रूरत अगर पूरी की जाए तो फिर अल्लाह ही हफ़िज़ है." ख़ाला ने उसके गालों पर प्यार से चपत मारी.
"आपका पुराना क़ानून नई परेशानियों का हल नहीं आनता, मगर घुटते इंसान की मदद को नहीं पहुँचता, इसलिए आप ज़िंदगी को ख़ौफ़ की दीवारों में चुन देना चाहती हैं ताकि इंसान एक बार मिली ज़िंदगी भी खुलकर न जी सके." कहकर आसिया उठी और कमरे से बाहर निकल गई.
कमरे में थोड़ी देर ख़ामोशी छाई रही. तीनो औरतें अपने - अपने ख़्यालों में डूबी थीं. कमरे में अंधेरा बढ़ते देखकर आसमा ने बत्ती जलाई.
"ये रिश्ते किस ज़माने में औरत - मर्द के बीच नहीं बने, मगर...." माँ ने धीरे से कहा.
"अरे ज़ोहरा, तब अचानक ये रिश्ते बनते थे क्योंकि अचानक ही मौक़ा मिलता था. गर्भ ठहरा या औलाद पैदा हुई. इस बात को बताने के लिए शायद ही उन बेचारों को दूसरा मौक़ा मिलता हो, किसकी औलाद किस घर में पली, किसी को क्या पता है. मगर अब हालात दूसरे हैं. यहाँ बार - बार ज़िंदगी इंसान को मौक़ा देती है. हालात उसका साथ भी देते हैं, क्योंकि इंसान अपने हक़ को पहचानने लगा है और... " ख़ाला बीच में रुक गई.
"हमने आपको इसलिए बुलाया था कि आप उसे समझाएँ, उलटे आप उसी की ज़बान बोलने लगी हैं." ज़ोहरा बहन की इस अदा का बुरा मान गई और उनकी बात बीच में काट दी.
"मेरे कहने का मतलब है कि बात न हलकी है न फ़ुज़ूल, इसलिए थोड़ा सब्र से काम लो, जोश वक़्त के साथ बैठेगा, दबाने से और उफनेगा." बड़ी बहन ने सोचते हुए कहा.
रात को सबने जाने कहाँ - कहाँ की बातें कीं, दु:ख - सुख को आद किया. आसिया ने बच्चों के साथ तकिया फेंककर खेला, माँ से रूई के टूटने पर सलवातें सुनीं और खाने के बाद एक लिहाफ़ में घुसकर सबने आसिया से ढेर सारी कहानियाँ सुनीं. कहानी सुनाते - सुनाते आसिया बच्चों के बीच गहरी नींद में डूब गई.
आधी रात को लगभग जब माँ और ख़ाल अपने कमरे में सो गई तो आसमा ने जाकर बहन को जगाया और दोनों ख़ामोशी से बैठक में आकर बैठ गयीं. आसमा ने पहले ही कॉफ़ी बनाकर रख ली थी. बहन की ख़्वाब में डूबी आँखें देखकर आसमा हल्के से मुस्कुराई.
"लो, पहले तुम्हारी यह नींद टूटे तो आगे बात हो."
दोनों धीरे धीरे कॉफ़ी पीती रहीं. आसमा के चेहरे पर चिंता थी. आसिया के चेहरे पर सपने का सुनहरापन था. कॉफ़ी के प्याले खाली हो गए. आसिया ने पैर उठाकर सोफ़े पर पालथी मारी और बहन की तरफ़ देखा. आसमा ने सोफ़े की पीठ से टेक लगाकर एक लंबी साँस खींची.
"कौन है वह?"
"कौन?" आसिया चौंकी, नींद का ख़ुमार काफ़ूर हो गया.
"तुम मेरा मतलब समझ रही हो, आख़िर वह कौन है?" आसमा का लहज़ा सपाट था.
"एक मर्द." आसिया का स्वर तल्ख़ था.
"उससे तुम्हारा क्या रिश्ता है?" बहन की भौहें तनीं.
"मेरा और उसका रिश्ता? आदम और हव्वा का है." आसिया हँसी.
"आदम और हव्वा का रिशा पाक़ है, मगर औरत - मर्द का जो रिश्ता तुम जी रही हो वह समाज की नज़र में नापाक़ है." आसमा ने आईना उलट दिया.
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