RE: Desi Porn Kahani संगसार
शाम को आसमा अपने चार बच्चों के साथ लदी - फँदी चली आई. घर की कोई चीज़ अपनी जगह पर टिकी न रह सकी. घुड़दौड़ ने घर में वह तूफान बरपा किया कि आख़िर माँ को मुँह खोलकर उन्हें डाँटना पड़ा, मगर नानी की डाँट कौन सुनता है. खाने के बाद जब सारे शैतान सो गए तो माँ - बेटी अपने - अपने दु:ख - सुख की बातें करने लगीं.
शाम ढले जब आसिया घर में दाखिल हुई तो उसके स्वागत में बच्चों ने वह चीख - पुकार मचाई कि आसिया भूल गई कि अब उसे इनके साथ ऊधम नहीं मचाना चाहिए. इस उछल - कूद में आसिया को वापस घर में देखकर माँ के तेवर भी ढीले हो गए और हँसी - खुशी सब एक साथ बैठकर चाय पीने लगे, टी. वी. पर बच्चों का प्रोग्राम शुरू हो गया था. इसलिए केक - फल खाते बच्चे ख़ामोशी से बैठे थे.
एक रात खाने के बाद बहनें जब अकेली रह गईं तो आसिया ने बहन को ग़ौर से देखा, फिर झिझकते हुए बोली, "सच बताना, क्या वह सब तुम्हें अपने शौहर से मिला जिसकी तमन्ना एक औरत के दिल में रहती है या सिर्फ़ हर साल एक अदद औलाद का तोहफ़ा मिलता रहा?"
"हाँ, मिला बहुत कुछ, घर - बार और ये औलादें, ऊपर आसमान से नहीं गिरीं न?" आसमा ने आँखें इस तरह उठाई जैसे बहन की नादानी पर हँस रही हो, मगर जब बहन के चेहरे पर संजीदगी और आँखों में सवाल को लगातार नाचते पाया तो वह सवाल को समझी और हँसना भूल गई. जवाब के नाम पर एक सुस्ती चेहरे पर उतर आई.
"झूठ.... यही झूठ हमारा ज़ेवर है... यह ज़ेवर मैंने भी पहना, यह नक़ाब मैंने भी आँखों पर डाली, मगर जानती हो मेरे भाग्य में कुछ और बदा था. मुझे मेरा हिस्सा मिला ज़रूर, मगर उसने मेरा सब कुछ बदल डाला."
"मैं समझी नहीं तुम्हारी बात."
"जब कोई किसी अनुभव से गुजरा ही न हो तो उससे ज़िंदगी की गहराई पूछना बेकार है."
उलझी - उलझी आसमा बहन को समझने की कोशिश करने लगी. जब कुछ भी पल्ले न पड़ा तो उसने एक पुराना सवाल दोहराया, "अफ़ज़ल शौहर तो अच्छा है न?"
"हाँ, शरीफ़, सीधे और कमानेवाला.... हर औरत के लिए सिर्फ़ ये खूबियाँ काफ़ी नहीं होतीं."
"यानी?"
"शराफ़त भूखे को खाना, प्यासे को पानी, मरते हुए को ज़िंदगी नहीं बख़्शती. इन चीज़ों के लिए शराफ़त से और ऊँचा उठना पड़ता है, समझी? अगर अब भी औरत होकर न समझ पाई हो तो...." आसिया बहन के ताज़्जुब से खुले मुँह को देखकर चिढ़ गई और बिस्तर पर जाकर लेट गई.
आसमा की गोद का बच्चा दूध के लिए रो पड़ा और वह बहन को छोड़कर लाड़ले को सँभालने में लग गई. आसिया ने उकताई नज़रों से बहन को देखा जिसके बांई तरफ़ तीन और बच्चे बेसुध पड़े सो रहे थे.
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सूरज के निकलते ही घर में हंगामा शुरू हो गया. कोई गिरा, कोई चीख़ा और कोई रोया. नाश्ते के बाद आसिया मौक़ा देखकर चुपचाप घर से निकल गई.
आसमा रात से उलझन में पड़ी थी. इसलिए बच्चों के पार्क में निकलते ही उसने माँ से पूछा, "सब ठीक तो है न?"
"बुलाकर पूछो उसी से?" माँ एकाएक गुस्से से भड़क उठी.
"वह तो कब की जा चुकी, पूछकर नहीं गई क्या?" ताज्ज़ुब से आसमा ने पूछा.
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