RE: Incest Kahani पहले सिस्टर फिर मम्मी
हम दोनों एकदम अचंभित होकर कुछ देर वहीं पर खड़े रहे, फिर हमने अपने कपड़े पहन लिये। हम दोनों के । अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि हम कमरे से बाहर जा सकें। मेरी बहन बहुत उदास थी और मैं बहुत डरा हुआ था।
दीदी ने कहा- “चलो जो हुआ, सो हुआ। अब हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है। हम इस स्थिति का सामना करतेकरीब एक घंटे के बाद हम दोनों नीचे गये, और फ्रेश होकर अपना लंच लिया। हम दोनों ठीक तरह से खा भी। नहीं पा रहे थे, क्योंकी हमारे दिल में डर भरा हुआ था। हम नहीं जानते थे कि, हमारे साथ क्या होने वाला है? फिर हम अपने कमरे में आ गये, मम्मी अपने कमरे में ही थी।
हमने दोनों थोड़ी देर तक पढ़ाई की। फिर नीचे उतरकर नौकरानी से मम्मी के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि मम्मी अपने कमरे में हैं, और उन्होंने कहा है कि उन्हें डिस्टर्ब न किया जाये। तभी कालबेल बज उठी। दरवाजे पर डैडी के ओफिस का चपरासी था, जो कि पापा का सूटकेस लेने के लिये आया था। पापा शायद चार दिनों के लिये बाहर जा रहे थे। मैंने हिम्मत करके मम्मी के कमरे का दरवाजा खटखटाया, और उसे इस बारे में बताया।
मम्मी ने सामने रखे हुए एक सूटकेस की ओर इशारा किया। मैंने चुपचाप उस सूटकेस को उठा लिया, और बाहर आकर उसे चपरासी को दे दिया। फिर हम दोनों भाई-बहन ने डिनर लिया और दीदी वापस कमरे में चली गई। मैं हिम्मत करके मम्मी के कमरे की ओर चला गया। दरवाजा खुला था और मैं सीधा मम्मी के पास इस तरह से गया, जैसे कुछ हुआ ही नहीं है और पूछा- “क्या आपने डिनर कर लिया है? क्योंकी नौकरानी अब घर जाना चाहती है..."
उसने कोई जवाब नहीं दिया और मैंने बाहर आकर नौकरानी को घर जाने के लिये कह दिया। हम दोनों भाईबहन, अब भी अपने अंदर काफी ग्लानि महसूस कर रहे थे। हमने एक-दूसरे से कोई ज्यादा बातचीत भी नहीं की। चूंकी हमारा कमरा एक था, इसलिये हम दोनों चुपचाप आकर सो गये। बेड के एक छोर पर वो और दूसरे छोर पर मैं लेट गया। हम दोनों ने एक-दूसरे को छुआ भी नहीं। दरवाजा भी खुला हुआ ही था। रात के 12:00 बजे के आस-पास अचानक मेरी नींद खुली। मुझे प्यास लगी थी।
मुझे महसूस हुआ कि, मेरी कमर के ऊपर कोई भी चीज रखी है। मैंने सोचा हो सकता है, ये मेरी दीदी का पैर हो। मगर जब मैंने उसे अपनी कमर के ऊपर से हटाने की कोशिश की, तो मुझे भारी महसूस हुआ। ऐसा लगा जैसे ये मेरी बहन के पैर नहीं है। मेरी आँखें खुल गई, और कमरे की मधिम रोशनी में मैंने जो देखा, उसने मेरे दिल की धड़कनें बढ़ा दीं। मेरा तो गला ही सूख गया।
ओह... ये मैं क्या देखा रहा था... मेरे और मेरी दीदी के बीच में हमारी मम्मी सोई हुई थी। एक पल के लिये तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया, मगर फिर मैं टायलेट जाने के लिये बेड से नीचे उतर गया। मैं एक या दो कदम ही आगे बढ़ा पाया था।
तभि मम्मी की फुसफुसाहट भरी आवाज सुनाई दी- “कहां जा रहे हो, तुम?”
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