non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
06-06-2019, 01:09 PM,
#78
RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
सासूमाँ- हाँ... साले, रामू का लण्ड है भी इतना मस्ताना की नजर एक बार टिकी तो फिर नजर हटाने को दिल नहीं चाहता।

दीदी- हाँ सासूमाँ.. मैं देख रही थी कि दोनों किताब को देखकर दोनों ही मूठ मार रहे थे की इतने में दमऊ भैया ने कहा- “अबे साला... मेरा तो पानी निकला...” और उनके लण्ड ने पिचकारी छोड़ना चालू कर दिया, एक... दो... तीन ना जाने कितनी बार उनके लण्ड ने फर्श पर पिचकारी छोड़ी कि गिनती ही नहीं थी।

दमऊ बोल रहा था- “आज फिर तू जीता और मैं हारा। देख अभी तक तेरा नहीं निकला है...”

रामू भाई कह रहे थे- दमऊ, मैंने तुझसे कितनी बार कहा है की मूठ मारने का प्रतियोगिता मेरे साथ मत करना पर तु है की मानता ही नहीं।

दमऊ बोल रहा था- अरे रामू, मैं जानता हूँ कि तू हमेशा ही जीतता आ रहा है और आगे भी जीतेगा। पर इसमें मजा कितना आता है वो सोच ना मेरे दोस्त। खैर, अभी अपना पानी निकाल। ऐसा करना कि आज रात तू भी यहीं सो जा। देख आज बाबूजी नहीं हैं। शहर जा रखे हैं। तो ऐसा करना तू भी यहीं पे सो जा।

रामू- ठीक है यार, देखते हैं।

रात हुई तो मैंने दोनों की मनपसंद का खाना बनाया। दोनों उंगलियां चाटते हुए मेरी तारीफ करने लगे और मैं मुश्कुराते हुए कनखियों से रामू भैया के पैंट की तरफ देख रही थी की काश... पैंट की जिप खुली हुई हो। और मुझे उनके मस्ताने लण्ड के दर्शन हो जायें। मुझे ऐसा लग रहा था की अभी के अभी रामू भैया को नीचे पटक के उनकी पैंट को फाड़ दें और उनके लण्ड लण्ड को चूस-चूसकर गील कर दें। फिर उनके ऊपर सवार होकर उनके लण्ड को मेरी प्यारी सी फुद्दी में घुसेड़कर ऊपर-नीचे हो जाऊँ। और तब तक ऐसा करते रहूं, जब तक कि मेरा सारा पानी निकल नहीं जाए। मैं बार-बार साड़ी के ऊपर से अपनी चूत खुजला रही थी। एक दो बार तो रामू भैया की नजर पड़ी। वो मुझे देखकर मुश्कुरा दिए और मैं उन्हें देखकर।

खाना खाने के बाद में दोनों टीवी देखने लगे और मैं बर्तन साफ करने के बाद बाथरूम में नहाने चली गई। मैंने रगड़-रगड़कर अपने बदन को धोया।

सासूमाँ- क्यों तकलीफ की बेटी? रामू को तेरा बदन फिर से गंदा करना था। फिर एक साथ ही धो लेती।

दीदी- “हीहीही... सासूमाँ, आप भी ना...”

सासूमाँ- अच्छा बेटी, तेरे मन में था तो रामू को वहीं पे पटक के सवार क्यों नहीं हो गई बेटा?
दीदी- क्या करती अम्मा? मेरा सगा भाई दमऊ भी तो वहीं था ना।

सासूमॉ- अरे उसका लण्ड चूसने लग जाती। जब रामू का काम हो जाता तो उसका घुसेड़ लेती।

दीदी- अरी अम्मा... उस समय तक मैं आपके जितनी महा-चुदक्कड़ नहीं बनी थी ना। आज का समय होता तो जरूर से कर लेती। हाँ... तो मैंने नहाने के बाद सिर्फ नाइटी पहन ली। और नीचे मैंने ब्रा और पैंटी भी नहीं पहनी।

सासूमाँ- फिर तो बेटी, दमऊ और रामू दोनों ने बाहर निकलते ही तुझे पटक के तेरी फुद्दी में लण्ड घुसेड़ दिया होगा।

दीदी- काश की सासूमाँ... ऐसा हुआ होता? अरी अम्मा, मुझे चुदवाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े थे। मैं दोनों के पास बैठ के टीवी देखने लगी। जब रात के ग्यारह बज गये तो मैंने कहा...”

सासूमाँ- तूने कहा होगा कि साले, गान्डुओं... तुम्हारे सामने मैं अधनंगी होकर बैठी हूँ। साले लण्ड पकड़कर खाली मूठ मरते हो। अपनी बहन की कामायनी शांत नहीं कर सकते। डूब मरो चम्मच भर पानी में।

दीदी- काश की अम्मा मैं आपके जैसे बोल्ड हो पाती उस समय?

सासूमाँ- तो फिर तूने क्या कहा?

दीदी- मैंने कहा कि रात काफी हो गई है। चलो चलके सोते हैं।

रामू- ठीक है दीदी, गुड नाइट।

दमऊ- चल यार गेस्टरूम में थोड़ा और गपशप करते हैं। फिर तू अपने रूम में और मैं अपने रूम में।

मैंने सोचा- कम्बख़्त अभी भी नहीं सो रहा है।

सासूमाँ- फिर तूने क्या किया बेटी? किचेन से बैगन लाकर घुसेड़ लिया होगा अपनी बुर में?

दीदी- नहीं अम्मा... मैं चुपचाप आकर अपने पलंग में लेट गई, और... फिर एक घंटे बाद एकाएक कमरे की लाइट बुझ गई। मैंने सोचा- ये क्या हुआ? फिर सोचा “मेरी किश्मत खुल गई है... आज मेरी किश्मत से ही लाइट गई। है.. अमृता इस मौके को हाथ से ना जाने दे... जाकर रामू के लण्ड को चूत में जकड़ ले। आज अगर उनसे नहीं चुदवाएगी तो फिर कभी उनका लण्ड देख नहीं पाएगी...” फिर मैं अंधेरे में सरकते हुए गेस्टरूम की तरफ बढ़ी।

पलंग के ऊपर एक साया नजर आया। और मैं कमरे के अंदर दाखिल हुई।

सासूमाँ- फिर क्या हुआ बेटी? ये भी तो बता? सासूमाँ ने उसकी बुर में उंगली पेलते हुए कहा।

दीदी- हाँ हाँ... बताती हैं, बताती हैं। आप अपनी उंगली चलाना बंद मत करिए।

चम्पा- भाभी, आप भी तो उंगली आगे-पीछे करिए ना। मजा आ रहा है। उंगली पेलवाती हुए ऐसी रसीली कहानी सुनना।

दीदी- हाँ... तो मेरी प्यारी सासूमाँ.. मैंने अंधेरे कमरे में कदम रखा और पलंग की ओर बढ़ने लगी। मेरे पाँव काँप रहे थे। मैं धीरे-धीरे पलंग की ओर बढ़ी।

सासूमाँ- अरी.. तो कमरे में पलंग क्या दो किलोमीटर तक अंदर में था। जो चले जा रही है.. चले जा रही है, पलंग तक तो पहुँच। मैं तेरी जगह होती तो अभी तक चुदवाकर अपने कमरे में टाँगें फैलाकर किसी दूसरे के लण्ड को अपनी फुद्दी में घुसवा करके दूसरा राउंड शुरू कर चुकी होती।

दीदी- हाँ... तो सासूमाँ, आप अपनी उंगली चलाती रहिए और कान खोल के सुनिए आगे क्या हुआ?

सासूमाँ- अरे बहूरानी, कान तो क्या मैं अपनी दोनों टाँगें फैलाये अपनी फुद्दी को भी खोल के रखी हूँ जहाँ चम्पारानी अपनी उंगली की जगह अब अपनी जीभ चला रही हैं। साबाश चम्पा, बहुत ही कम दिनों में तूने अच्छी तरक्की कर ली है। आगे बढ़िया नाम कमाएगी।

चम्पा- सब आपके चूतरस का आशीर्वाद है अम्मा जी।
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