RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
चन्द लम्हों के लिए तो ऐसा लगता था कि वो तस्वीर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से यहाँ रहने वाले हर एक इंसान को घूर रही हैं। मैं अभी तक उस तस्वीर के तसूर से ही बाहर नहीं निकल पाया था कि छोटी फूफो की आवाज ने मुझे चौंका दिया।
छोटी फूफो ने मेरे चेहरे पर हैरत से देखते हुए कहा-“यह हमारे बाबा और तुम्हारे दादा की तस्वीर है। अब बताओ। क्या तुम बिल्कुल इन जैसे नहीं दिखते हो?”
मैं अभी तक मुँह फाड़े उनकी तस्वीर देख रहा था। घनी दाढ़ी और बड़ी-बड़ी मूँछो में से उनके लब तो वाजिए नजर नहीं आ रहे थे पर उनकी आँखों के दोनों साइड से खिंचाओ और चेहरे को गौर से देखने पर वाजिए अंदाज में महसूस होता था कि उनके लबों पर एक पुरवेकार मुश्कुराहट फैली हुई है, और वो मुझे ही देख रहे हैं। मैं कुछ देर तक उनकी आँखों में देखता रहा। मगर मैं उनकी आँखों में ज़्यादा देर तक देख नहीं पाया।
उसी वक्त बड़ी फूफो ने मेरे बराबर में आकर कहा-“चलो बेटा, अपनी दादी से मिल लो…”
मैंने उनकी बात सुनकर सवालिया नजरों से उनकी तरफ देखा तो, उन्होंने नजरों से दायें साइड की तरफ जाती राहदरी की तरफ इशारा करते हुए कहा-“उनका रूम इस तरफ है…”
एक बार फ़िर मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गई थी। मैं उस शख्सियत से मिलने जा रहा था, जिनके हुकुम से सरतबी तो मेरे बाबा भी कभी नहीं कर पाए थे। उन्होंने मेरी माँ से शादी करके अपनी ज़िद तो पूरी की थी,
मगर उसके बदले मेरी माँ को इस हवेली में वो रुतबा वो कभी नहीं दिला पाए, जो उनका खवाब था। मेरी दादी इस हवेली की ‘बड़ी बीबी साईं’ मेरे दादा के बाद जिनके हुकुम के बगैर इस जागीर का एक पत्ता भी नहीं हिलता था, वो शख्सियत, जिनका दूध मेरे बाप के रगों में खून बनकर दौड़ता रहा और अब उनका खून मेरी रगों में दौड़ रहा था। वो रिश्ता, जिसकी हमेशा मैं नफरत से ही वाकिफ रहा। कभी उनकी मुहब्बत का भी मैंने ना सुना। जिनसे मैं भी आज तक शायद नफरत ही करता रहा।
लेकिन आज जिंदगी मुझे ऐसे मोड़ पर ले आई है। मैं तो अब उनसे इस बात का शिकवा भी नही कर सकता था कि दादी, मैं आपका वो पोता हूँ, जो बचपन से लेकर आज तक आपकी गोद के लिए तरसता रहा। दादी तो वो होती है, जो पोते के दुनियाँ में आते ही सुन से पहले उसे अपने सीने से लगाती है। लेकिन उन्होंने तो कभी मुझे अपने करीब भी नहीं बुलाया, न ही मुझे वो दादी का प्यार दिया।
मेरे कदम दादी के रूम की तरफ जाते-जाते रुक गये। मुझे मेरी माँ के वो आँसू अब भी याद थे, जो वो अक्सर तन्हाई में खुद को इस काबिल ना समझते हुए बहाती थी कि उसे और उसके बेटे को क्यों उस हवेली के काबिल नहीं समझा गया?
मुझे रुकते देखकर छोटी फूफो और बड़ी फूफो भी रुक गई। मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे, और मेरे कदम अब दादी के रूम की तरफ बढ़ने को तैयार नहीं थे।
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