RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
इसी दौरान मुझे वो खत याद आया, और मैंने जल्दी से खत अपनी जेब से निकाला तो एक सौंधी-सौंधी सी खुश्बू मेरी नाक से टकराई। मैंने जल्दी से खत को अपनी नाक के करीब करके सूँघा तो उसमें से सारा के पशीने की हल्की सी महक अभी तक आ रही थी। मैंने उसे सूंघते हुए उस खुश्बू को आँखें बंद करके एक गहरी साँस लेते हुए अपने अंदर उतारने की कोशिस की, तो अचानक से बंद आँखों के पीछे सारा नजर आने लगी। मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगी। मैंने जल्दी से आँखें खोलकर खुद पर कंट्रोल किया और खत को खोलने लगा। पेपर जब खुलकर मेरे सामने आया तो उसकी तेहरीर बहुत ही खूबसूरत अल्फाज में मेरी नजरों के सामने आई। जो कि इस तरह थी।
“ब्रदर-ए-मोहतरम
असलम अलीकुम्
आप यक़ीनन हैरान होंगे कि हम कौन हैं, और आपको इस तरह खत क्यों लिख रहे हैं? हम वो हैं जो इस हवेली की बड़ी-बड़ी दीवारों में बचपन से ही कैद हैं। हम वो बदनसीब बहनें हैं जिन लोगों का एक भाई तो है, लेकिन उन्होंने आज तक उसे नहीं देखा। भाई हम आपकी सौतेली बहनें हैं। लेकिन बचपन से लेकर बाबा की जिंदगी तक हमने बाबा से आपके बारे में इतनी बातें सुनी हैं कि हम आपसे मिलने के लिए बहुत बेचैन हैं। हर भाई अपनी बहनों का फख्र होता है, और आप भी हमारे फख्र हो, हमारे साईं हो। बाबा के बाद आप ही हमारे अपने हो। हमें उस कंधे की जरूरत है जिस पर हम अपना सिर रखकर अपना दुख, अपनी खुशी बयान कर सकें। बाबा के बाद हमें उस शफकत की जरूरत है, जैसी बाबा हमें देते थे, और अब वो सिर्फ़ आपसे ही हमें मिल सकती है। हमें नहीं पता की आप हमारे बारे में क्या सोचते हैं? मगर भाई हमने हमेशा आपकी एक खयाली तस्वीर बनाकर अपनी आँखों में सजाई हुई है। हमने कभी नहीं सोचा था कि हम इस समय आपसे मिलेंगे, जब बाबा हमारे बीच नहीं होंगे। मगर भाई, आज हमें आपकी जरूरत है।
हमें पता है कि आप हमसे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते। मगर भाई आप दूसरों के किए गये फ़ैसलों की सजा हमें क्यों देना चाहते हैं? हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि कोई आपके बारे में क्या कहता है? हमारे लिए तो बस इतना ही काफी है कि इस दुनियाँ में हमारा एक भाई है। हमारी इज्जतो का रखवाला, हमारे लिए एक मजबूत दीवार जो किसी भी दुख और तकलीफ को हमारे करीब भी नहीं आने देगा। भाई यह हम दो बहनों की इल्तजा है कि हमें छोड़कर कभी मत जाना। हमें बाबा के बाद अब आपकी सख़्त जरूरत है। अगर तुम यहाँ से चले गये तो, चारों तरफ फैले हुए वहशी दरिंदे हमें खा जाएँगे, ना हमारी इज़्जतें महफूज रहेंगी ना हमारी जान।
मजलूम बहनों की इज़्र्जत की खातिर ही रुक जाओ। हम बहुत अकेले हो गये हैं। हमें बहुत डर लगता है भाई। हमें बहुत डर लगता है।
फकत आपकी मजलूम बहनें
खत पढ़कर एक बार फ़िर मेरी आँखों से आँसू जारी हो गये, और ना जाने किस जज़्बे के तहत मैंने खुद कलमी की।
“मैं आ रहा हूँ, मेरी बहनों तुम्हारे पास। मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाउन्गा…” इसके साथ ही मैं उस खत को चूमने लगा। मुझे वो रिश्ता मिल रहा था जिसके लिए मैं बचपन से तरसा था, बहन का रिश्ता। मैंने कल सुबह जनानखाने में जाने का फैसला कर लिया था। यह फैसला करने के बाद मुझे एक रूहानी सकून सा मिल गया था।
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