RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
सलामू जल्दी से बोला-“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। आप नाराज ना हो। मैं तो बस आपसे यह जानकर तसल्ली करना चाहता था कि वाकई आप मुझ पर भरोसा करते भी हैं कि नहीं?”
मैंने मुश्कुराते हुए उनको देखकर कहा-“चाचा सलामू। मुझे बाबा के अल्फाज अब भी वाजेह अंदाज में याद हैं। उन्होंने मुझसे कहा था, अगर कभी तुम अकेले पड़ जाओ, और अपनो में से कोई भी तुम्हारे करीब ना हो तो, तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ सलामू पर इस तरह भरोसा कर सकते हो जिस तरह मुझ पर…”
मेरी बात सुनकर सलामू की आँखों में पानी भर आया।
मैंने उनको देखते हुए अपनी बात जारी रखी-“और अब जब मेरे अपने मेरे करीब नहीं है तो आप ही इस दुनियाँ में मेरे अपने हो। मैं आप पर आँखें बंद करके भरोसा करता हूँ…”
मेरी बात खतम होते ही सलामू ने कहा-“तो उस भरोसे के बदले में सिर्फ़ आपको यह बात कहूँगा कि सिर्फ़ बात की वजह से आप अपनी दादी से नफरत ना करें कि उन्होंने आपकी वालिदा को कभी अपनी बहू तसलीम नहीं किया। बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो मैं आपको अभी नहीं बता सकता। तुम्हें इन तमाम बातों के लिए अपनी दादी हुजूर से मिलना होगा। इस वक्त तुम्हारा उनसे मिलना बहुत जरूरी है। वो तुम्हारी दुश्मन नहीं। और उनको इस वक्त तुम्हारी सख़्त जरूरत है…”
मैं सलामू की बात सुनकर परेशान हो गया। और जल्दी से बोला-“लेकिन सलामू चाचा, मुझसे यह दिखावा नहीं होगा। मैं अपनी माँ की तड़प कभी नहीं भूल पाऊूँगा जो उनको दादी हुजूर से मिलने और खुद को इस हवेली की बहू तसलीम करवाने की थी। और वो यह हसरत लिए ही इस दुनियाँ से चली गई…”
मेरी बात सुनकर सलामू जल्दी से बोला-“लेकिन छोटे साईं, आप भूल रहे हैं कि झगड़ा किस बात पर था? आपकी दादी का कहना था कि आपकी वालिदा आपकी कभी भी ऐसी तालीम नहीं कर सकती कि आप इस हवेली और इस पीरों की गद्दी के सही वारिस बन पाओ, और अब आप यह सब करके उनकी सारी बातों को सच साबित करना चाहते हैं, उनको बताना चाहते हैं कि वाकई बीबी साहब ने आपकी ऐसी तालीम नहीं की। अगर वो जिंदा होती तो क्या वो आपको कभी अपनी दादी से नफरत करने का कहती?”
सलामू मुसलसल बोलता जा रहा था और मेरे अंदर में आँधियाँ चल रही थी।
सलामू-“बीबी साहब को आपकी दादी हुजूर ने कभी बहू तसलीम नहीं किया। मगर क्या कभी आपने उनकी जबान से अपनी दादी के खिलाफ कोई बात कभी सुनी। कभी उनको बुरा भला कहते सुना? उल्टा वो तो हर वक्त इस इंतजार में थी कि कब उनको मोका मिले और वो यह साबित करके आपकी दादी हुजूर के सामने सुरखरू हो सके कि उन्होंने आपकी अच्छी तालीम करके इस काबिल बना दिया है कि आप हवेली के सही वारिस साबित हो सकें । लेकिन जिंदगी ने उनसे वफा नहीं की। मगर जब आपको आज यह मोका मिल रहा है तो आप क्यों उनको शर्मिंदा करने पर तुले हुए हैं?”
मेरी आँखों से आँसू की लडियाँ लगी हुई थी। मुझे हिचकियाँ लग चुकी थी। मैं खुद को हिचकियाँ रहा था कि यह मैं क्या करने चला था? खुद अपने हाथों से अपनी अम्मी का खवाब तोड़ने चला था? खुद ही बाबा की जिंदगी के किए गये इतने अहम फ़ैसले को गलत साबित करने चला था? मैं सलामू चाचा को कुछ कह नहीं पा रहा था।
उन्होंने आगे बढ़कर मेरी पीठ को थपथपाया, और कहा-“अब भी तुम्हारे पास मोका है सोच लो? फ़िर भी जो तुम्हारा दिल कहे वो करो…” यह कहकर वो जल्दी से रूम से बाहर निकल गया।
मैं बहुत देर तक रोता रहा, और सलामू की कहीं गई बातों को सोचता रहा। बहुत देर तक मैं अम्मी और बाबा की कहीं गई बातों को याद करके रोता रहा। फ़िर कुछ देर के बाद मैं गहरी-गहरी साँसें लेने लगा। मेरे दिमाग़ से बोझ उतर चुका था, और अब मैं एक फ़ैसले पर पहुँचने का फैसला कर चुका था।
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