Chodan Kahani जवानी की तपिश
06-04-2019, 01:10 PM,
#24
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मैंने उससे नजरें चुराते हुए एक बार फ़िर पूछा-“किसका पैगाम है मेरे लिए और यह खत किसने दिया है?” मैं खत को बड़ी हैरत से देख रहा था, जो अब मेरे हाथ में था। उसमें से सारा के बदन की सौंधी-सौंधी खुश्बू उठती हुई महसूस हो रही थी।

सारा-“बड़ी बीबी साईं का पैगाम है। उन्होंने कहा है कि आप उनसे मिलने से पहले कोई भी जल्दबाजी ना करें और ना ही कोई ऐसा कदम उठायें जिससे आपको किसी नुकसान का अंदेशा हो। सलामू पर पूरा भरोसा रखें और जो हो रहा है उसे खामोशी से देखते रहें…”

मैं बहुत ही हैरत से सारा की बातें सुन रहा था। मुझे उसकी किसी बात की भी समझ नहीं आई थी। मैं अभी सारा से कोई सवाल करने ही वाला था कि सलामू उसी वक्त अंदर दाखिल हुआ। सारा ने सलामू को देखकर खत की तरफ इशारा किया। मुझे ऐसे लगा कि वो शायद मुझे खत छुपाने को कह रही है। मैंने खत को फौरन ही अपनी कमीज की साइड पाकेट में डाल लिया। अब पता नहीं कि सलामू की उसपर नजर पड़ी थी या नहीं? मगर उसके चेहरे के भाव से कोई अंदाज़ा नहीं हो रहा था।

कुछ देर के बाद में सलामू के साथ एक बार फ़िर कल की तरह पहले कब्रिस्तान गया। आज बाबा का सोयम था। औतक पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। बहुत से लोग आए हुए थे, खैरात भी चल रही थी। सोयम पर बहुत सी डेगें बनवाई हुई थी। सारा दिन लंगर चलता रहा। फ़िर धीरे-धीरे शाम होती गई और लोग कम होते गये। दूर से आने वाले वो मुरीद भी जो पहले दिन से ही यहाँ पर थे, वो भी जा चुके थे। बाबा के सोयम पर मामू भी आए थे। मुझे उनसे अकेले में बात करने का कुछ टाइम मिला तो मामू ने मुझे बताया कि कल उन लोगों ने भी अम्मी का सोयम किया था और, खतम भी कराया था। सब लोग मुझे मिस कर रहे थे।

फ़िर उन्होंने मेरा प्रोग्राम पूछा तो मैंने उनको बताया कि दादी मुझसे मिलना चाहती हैं। मगर मैं अभी तक उनसे नहीं मिला, और यहाँ कुछ लोग हैं जो मुझे अब बाबा की जगह पर मानते हैं। मगर कुछ ऐसे भी हैं जिनकी नजरों में मेरे लिए नफरत के सिवा कुछ नहीं।

जवाब में मामू ने कहा-“अगर तुम्हारी दादी तुम्हें अपनाना चाहती हैं तो तुम इनकार मत करना। आख़िरकार यह सब कुछ तुम्हारा ही तो है। और तुम्हारी माँ की भी तो यही ख्वाइश थी कि तुम अपने खानदान से दूर ना रहो। लेकिन इस बात का हरगिज़ यह मतलब ना लेना कि हम तुमको खुद से दूर करना चाहते हैं। हमारे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले हैं। तुम जब चाहो वहाँ आ सकते हो। वो भी तुम्हारा अपना ही घर है। लेकिन अपना हक मत छोड़ो…”


मैंने मामू को अपने किसी भी फ़ैसले के बारे में फ़िलहाल कुछ नहीं बताया, और ना ही मुझे जो शक थे उनका कोई जिकर किया। बस उनकी बातें और नसीहतें सुनकर खामोश रहा। फ़िर शाम को मामू भी चले गये। इस दौरान सलामू दूर से मुझे और मामू को बातें करते देखता रहा था। मैंने जब भी उसकी तरफ निगाह उठाई तो उसकी आँखों में एक बिनती थी कि मैं वहाँ से जाने का कोई प्रोग्राम ना बनाऊूँ। जब मामू चले गये तो वो फौरन मेरे पास आया और मुझे हवेली चलने का कहा।

मैं उसका साथ मर्दानखाने में आ गया, और खामोशी से आकर एक सोफा पर बैठ गया। मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में तूफान चल रहे थे। मैं कोई फैसला नहीं कर पा रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए? यहाँ एक ना समझ में आने वाला सिलसिला बना हुआ था। दादी का अजीबो गरीब पैगाम। सारा का वो खत देना। इसके साथ ही मैंने चौंक के फौरन अपने साइड पाकेट को हाथ लगाया तो वो खत वहीं मौजूद था। सारा दिन मुझे उसे पढ़ने का मोका नहीं मिल सका था, और ना ही वो मुझे याद भी रहा था। और अभी मैं सलामू चाचा के होते हुए उसे पढ़ना भी नहीं चाहता था। मैंने फौरन सलामू चाचा की तरफ देखा तो वो एक साइड पर खड़े मुझे खामोशी से देख रहे थे। उन्होंने मेरे चेहरे के उतार चढ़ाव से अंदाज़ा लगा लिया था शायद कि कोई फैसला नहीं कर पा रहा कि मैं क्या करूँ।

मुझे गौर से देखते हुए सलामू चाचा ने कहा-“छोटे साईं। मुझे पता है कि आप बहुत परेशान हैं। वालिदान की जुदाई का गम बहुत बड़ा है। मगर आपको जल्द ही अपने फ़ैसले पर नजर करनी पड़ेगी। इस हवेली और इस हवेली में रहने वालों को आपकी जरूरत है…”

मैं खामोशी से उसकी बातें सुन रहा था।

सलामू-“छोटे साईं, किसी और के लिए नहीं तो अपने बाबा के लिए ही यहाँ रुक जाओ। वो आपको यहाँ देखना चाहते थे अपनी जगह पर, यही उनका सबसे बड़ा ख्वाब था…”

मैं-“लेकिन मैं बाबा का खवाब इस तरह पूरा नहीं करना चाहता था। मैं जो भी करता उनकी सरपरस्ती में करना चाहता था…” यह कहते ही मैं खुद को रोक नहीं पाया, और मेरी आँखों में से आँसू बह निकले।

सलामू चाचा किसी सोच में डूब गये। फ़िर एक गहरी साँस लेते हुए बोले-“छोटे साईं, आप मुझ पर कितना भरोसा करते हैं?”

मैंने हैरत से सलामू की तरफ देखा और कहा-“आपको यह सवाल पूछने की जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या मेरेी किसी बात से आपको लगा कि मैं आप पर भरोसा नहीं करता?”

सलामू जल्दी से बोला-“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। आप नाराज ना हो। मैं तो बस आपसे यह जानकर तसल्ली करना चाहता था कि वाकई आप मुझ पर भरोसा करते भी हैं कि नहीं?”

मैंने मुश्कुराते हुए उनको देखकर कहा-“चाचा सलामू। मुझे बाबा के अल्फाज अब भी वाजेह अंदाज में याद हैं। उन्होंने मुझसे कहा था, अगर कभी तुम अकेले पड़ जाओ, और अपनो में से कोई भी तुम्हारे करीब ना हो तो, तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ सलामू पर इस तरह भरोसा कर सकते हो जिस तरह मुझ पर…”

मेरी बात सुनकर सलामू की आँखों में पानी भर आया।
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